Chartered Accountant,Social Activist,Political Analysist-AAP,Spritual Thinker,Founder of Life Management, From India, Since 1987.
Wednesday 27 May 2020
■#धर्म #धर्म_नियम #धर्म_निर्णय #धर्म_पालन #व्यासपीठ #व्यासपीठ_की_गरिमा #स्त्री #वेद #पुराण #धर्म_शास्त्र #हिन्दू #सनातन_धर्म ■ ●●●●●●●●●●●●●◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ 【1】 ★धर्म निर्णय व धर्म पालन★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ धर्म का निर्णय धर्म शास्त्र के आधार पर ही होना चाहिये। धर्म शास्त्र के विषय में लोकतंत्र या अन्य संवैधानिक नियम लागू नहीं होते हैं। धार्मिक विषयों में धर्म शास्त्र ही एक मात्र प्रमाण है। ®भागवत कथा व्यास पीठ पर बैठकर सुनाना एक धार्मिक कृत्य है।® और ©इस धार्मिक कृत्य को कैसे किया जाय, धर्म शास्त्र इसके लिये निर्देश करता है।© श्रीमद्भागवत महापुराण के माहात्म्य में ही, श्री वेदव्यास जी ने,श्रीमद्भागवत के साप्ताहिक अनुष्ठान का जो विधान बताया है, उस विधान में कब कथा करनी चाहिये? कैसे करनी चाहिये और सुनने वाले को किन-किन नियमों का पालन करना चाहिेये? ये सब बताते हुये उसी प्रसंग में यह भी कहा गया है कि किस व्यक्ति से कथा श्रवण करनी चाहिये, वक्ता कैसा होना चाहिये? तो वक्ता का लक्षण बताते हुये, श्री वेद व्यास जी ने कहा है कि विरक्तो वैष्णवो, विप्रो वेदशास्त्र विशुद्ध कृत, दृष्टांत कुशलो धीर: वक्ता कार्यो निस्पृह:। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ 【2】 ★व्यास पीठ की गरीमा व नियम★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ (१) वेदव्यास जी कहते हैं कि वक्ता :- ◆संसार से विरक्त हो, उसकी संसार में कोई आसक्ति न हो, ◆वैष्णव हो यानि भगवान का भक्त हो, ◆विप्रो यानि ब्राह्मण हो, ◆वेदशास्त्र विशुद्ध कृत यानि वेद शास्त्र को उसने शुद्ध रुप से परंपरा से अध्ययन किया हो। आज जो स्त्री, व्यासपीठ पर बैठकर भागवत कथा सुना रही हैं, अगर शास्त्र दृष्टि से देखा जाये तो उनको यह अधिकार नहीं है। (२) भागवत कथा कहने का अधिकार :- ◆ब्राह्मण को, ◆वैष्णव को, और जिसने ◆वेद शास्त्र का अध्ययन किया, उसको है। उस श्लोक में कहीं भी स्त्री की चर्चा नहीं आई है। जितने शब्द प्रयोग किये गये हैं पुल्लिंग शब्द प्रयोग किये गये हैं, पुरुषों के लिये प्रयोग किये गये हैं। और (३) जो विशेषण कहा गया वेद शास्त्र विशुद्ध कृत,भागवत की कथा वही सुनावे जो वेद शास्त्र को पढ़ा हो, कारण की भागवत वेद रुपी वृक्ष का फल है। निगम कल्पतरु है, तो बिना वेद पढ़े कोई अगर भागवत की कथा सुनाता है, तो वेद के किन मंत्रों का कहां पर क्या तात्पर्य है, इसकी संगति वह नहीं बता सकता है। इसलिये वेद पढ़ना अनिवार्य है। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ 【3】 ★धर्म व कलयुग★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ (१) आज आर्यसमाज, गायत्री परिवार प्रभृति छद्म धर्मद्रोही पन्थों ने इन मर्यादाओं को न मानने का घोर कुकृत्य किया है और कलियुग की लीला से अनेक विज्ञजन भी भ्रमित हो रहे हैं। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ 【4】 ★धर्म के नियम अपरिवर्तनीय है !★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ (१)यह है कि परिस्थितियां बदल रही हैं, इसलिये नियम बदले जायें ! यह बात धर्म पर लागू नहीं होती है। ●धर्म के नियम को स्थापित करने वाले ऋषि, मुनि और महात्मा हैं और वेद की वाणी सार्वभौम वाणी है, भूत भविष्य और वर्तमान का हमारे ऋषि मुनियों ने परीक्षण किया और हर काल के लिये एक विशेष नियम बनाये। ●धर्म के कोई भी नियम परिवर्तनशील नहीं हैं। (२)अगर आज उन्हें देशकाल और परिस्थिति के हिसाब से परिवर्तित करेंगे तो कल दूसरा परिवर्तन होगा, परसों तीसरा परिवर्तन होगा, और फिर चौथा परिवर्तन होगा इस तरह से 【धर्म का जो वास्तविक मूल रुप है वह समाप्त हो जायेगा। इसलिये धर्म के नियम में परिवर्तन की कोई आवश्यकता ही नहीं है ।】 (३) हमारे ऋषि मुनियों ने ■ बहुत सोच समझ कर नियम बनाये हैं और वह नियम सार्वभौम और सार्वकालिक है। उसे किसी भी काल में परिवर्तित करने की आवश्यकता नहीं है। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ 【5】 ★स्त्री / वेद / पुराण / धर्म शास्त्र★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ (१) दूसरा प्रश्न आपने जो किया है कि अपने पुत्रों को संस्कारवान बनाने के लिये अगर स्त्रियां वेद नहीं पढ़ेंगी तो उन्हें धर्म की शिक्षा कैसे देंगी? इसी बात पर विचार करने के लिये भगवान नारायण ने वेद व्यास का अवतार लेकर, 18 पुराण की रचना की। 18 पुराणों के माध्यम से स्त्रियों को धर्म का बोध हो जायेगा और उन्हें वेद पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। इस तरह वह धर्म का बोध करके अपने परिवार को संस्कारित कर सकती हैं। ★【जहां तक भागवत, महाभारत, 18 पुराणों की बात है इन ग्रंथों को हर कोई पढ़ सकता है, महिलाये भी पढ़ सकती हैं। घर में महिलायें इन्हें पढ़ें, उसके संदेश और उपदेश को ग्रहण करें और अपने बच्चों को संस्कारित करें, इसके लिये कोई मनाही नहीं है】 (२) लेकिन व्यास पीठ पर बैठकर इसका उपदेश करें इस बात का उन्हें अधिकार नहीं है। (३) स्त्री , शूद्र और द्विजबन्धु (जन्म से द्विज और कर्म से पतित) को श्रुति का उच्चारण , पारायण और वाचन नहीं करना चाहिये। (४) कौशिकी संहिता मे भी आया है – “अवैष्णव मुखाद्गाथा न श्रोतव्या कदाचन। शुक शास्त्र विशेषेण न श्रोतव्य अवैष्णवात् ।। वैष्णवोऽत्र स विज्ञेयो यो विष्णोर्मुखमुच्यते। ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत श्रुतेः ब्राह्मण एव सः।(कौ०सं० 6/19-30)। कथा किसी वैष्णव संत या ब्राह्मण मुख से ही सुनना चाहिए। वे वैष्णव जो भगवान् विष्णु के मुख है, भगवान् विष्णु के मुख केवल ब्राह्मण ही है। ब्राह्मणोस्य मुखमासीत् । भगवान् भोगको केवल स्वीकार करते हैं – भोजन तो ब्राह्मण के मुख के द्वारा ही करते हैं। अतः सभी पुराण एवं श्रीभगवान की कथा किसी विरक्त संत या ब्राह्मण मुख से ही सुनना चाहिए अन्यथा आपका अनुष्ठान व्यर्थ ही है। (५) स्त्री को महीने में पांच दिनों के लिए अशुद्ध होना निश्चित है। कभी कभी आठ दिन भी हो जातें हैं। कईयों के चक्र निश्चित नहीं होते। मान लो कोई स्त्री व्यासपीठ पर बैठकर कथा सुना रही हो,अनुष्ठान में हो और उसी समय वह अशुद्ध हो जाय तो तुम्हारा अनुष्ठान कैसे पूरा होगा। (६) इसलिए कथा कभी भी ब्राह्मण मुख से ही श्रवण करना चाहिए। स्त्री को प्रणव और गायत्री के उच्चारण का निषेध है, किंतु आजकल माताये खूब जप रही है, सभी जगह समानता की बात हो रही है। इसका आध्यात्मिक पक्ष जो है सो है किन्तु इसका वैज्ञानिक पक्ष भी है। (७) सनातन धर्म शुद्ध विज्ञान पर आधारित धर्म है। हमारे ऋषियों ने हर विषय को विज्ञान की कसौटी पर कसा है, जांचा है, फिर लिखा है। सर्वप्रथम, स्त्री एवं पुरुष के शरीर की बनावट एक समान नहीं होती है। (८) जितने भी वेदमंत्र है, उनका उच्चारण का सीधा स्पंदन मणिपुर चक्र यानि नाभि से होता है। प्रणव और गायत्री तो वेद के मूल ही हैं और इनका भी उच्चारण नाभि से ही होता है। स्त्री के शरीर की बनावट पुरूषों से अलग है। (९) स्त्री जननी है, नाभि के पास ही स्त्रियों का गर्भाशय स्थित होता है। इन मंत्रो के उच्चारण से माताओ के गर्भाशय पर विपरीत प्रभाव पडता है और भविष्य में उन्हें संतानोत्पत्ति में बाधा होती है। (१०) हालाकि इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि सनातन धर्म स्त्री विरोधी है। सनातन धर्म में स्त्रियों को जितने अधिकार, सम्मान और श्रेष्ठता दी गयी है, उतना शायद ही किसी परम्परा में दृष्टिगोचर होता हो। (११) स्त्रियों को सभा में शास्त्रार्थ करने का अधिकार भी है, ऐसे प्रमाण मिलते हैं। पर ऐसे उदाहरण वाले व्यक्तित्व भी कथावाचन की मर्यादा को भंग न करने के पक्षधर थे। (१२) सद्ज्ञान की शिक्षा तो अनुसूया, कुंती, गार्गी, आदि ने भी दिया, पर व्यासपीठ पर बैठ कर नहीं। स्त्रियां अपने लायक ग्रन्थ पढ़ें, अनुपालन करें, सद्ज्ञान दें, समाज में अच्छा आदर्श प्रस्तुत करें। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ अब आमजनता को जागरूक होने की आवश्यकता है !
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