Tuesday, 22 December 2020

हिन्दू मन्दिरों के धन का अहिन्दू कार्यों मे दुरुपयोग ! आंध्र प्रदेश,उड़ीसा,केरल,कर्नाटक सरकारों की लूट ! महमूद गजनवी 1025 से 2020 सरकारों द्वारा लूट ! हिन्दू 1000 वर्षों से भगवान के घर की लूट पर मौन ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● संविधान समानता व धर्मनिरपेक्षता की बात करता है ! सरकारें हिन्दू व मन्दिरों को लूटने का कार्य करते है ! श्रीकृष्ण का सन्देश धर्म की रक्षा करो ! धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा ! धर्म के लिए संघर्ष करो ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● (१) आंध्र प्रदेश सरकार :- ने मंदिर अधिकारिता अधिनियम के तहत 43,000 मंदिरों को अपने नियंत्रण में ले लिया है और इन मंदिरों में आये चढ़ावे और राजस्व का केवल 18 के प्रतिशत मंदिर के प्रयोजनों के लिए वापस लौटाया जाता है। तिरुमाला तिरुपति मंदिर से 3,100 करोड़ रुपये हर साल राज्य सरकार लेती है और उसका केवल 15 प्रतिशत मंदिर से जुड़े कार्यों में प्रयोग होता है। 85 प्रतिशत राज्य के कोष में डाल दिया जाता है और उसका प्रयोग सरकार स्वेच्छा से करती है। क्या ये भगवान के धन का ग़बन नहीं है ? इस धन को आप और मैं मंदिरों में चढ़ाते हैं और इसका उपयोग प्रदेश सरकार हिंदु धर्म से जुड़े कार्यों की जगह मनमाना होता है। (२) उड़ीसा सरकार :- ने जगन्नाथ मंदिर की बंदोबस्ती की भूमि के ऊपर की 70,000 एकड़ जमीन को बेचने का इरादा रखती है। (३) केरल सरकार :- की कम्युनिस्ट और कांग्रेसी सरकारें गुरुवायुर मंदिर से प्राप्त धन अन्य संबंधित 45 हिंदू मंदिरों के आवश्यक सुधारों को नकार कर सरकारी परियोजनाओं के लिए भेज देती हैं। अयप्पा मंदिर से संबंधित भूमि घोटाला पकड़ा गया है। सबरीमाला के पास मंदिर की हजारों एकड़ भूमि पर कब्ज़ा कर चर्च चल रहे हैं। केरल की राज्य सरकार त्रावणकोर, कोचीन के स्वायत्त देवस्थानम बोर्ड को भंग कर 1,800 हिंदू मंदिरों को अधिकार पर लेने के लिए एक अध्यादेश पारित करने के लिए करना चाहती है। (४) कर्नाटक सरकार :- की भी ऐसी स्थिति है । यहाँ देवस्थान विभाग ने 79 करोड़ रुपए एकत्र किए गए थे और उसने उस 79 करोड़ रुपये में से दो लाख मंदिरों को उनके रख-रखाव के लिए सात करोड़ रुपये आबंटित किये। मदरसों और हज सब्सिडी के लिये 59 करोड़ दिए और लगभग 13 करोड़ रुपये चर्चों गया । कर्नाटक में दो लाख मंदिरों में से 25 प्रतिशत या लगभग 50000 मंदिरों को संसाधनों की कमी के कारण बंद कर दिया जायेगा। ★★क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि महमूद गज़नी तो 1030 ईसवी में मर गया मगर उसकी आत्मा अभी भी हज़ारों टुकड़ों में बाँट कर भारत के मंदिरों की लूट में लगी हुई है ?★★ यहाँ यह प्रश्न उठाना समीचीन है कि ★आख़िर मंदिर किसने बनाये हैं ? ★हिंदु समाज के अतिरिक्त क्या इनमें मुस्लिम, ईसाई समाज का कोई योगदान है ? बरेली के चुन्ना मियां के मंदिर को छोड़ कर सम्पूर्ण भारत में किसी को केवल दस और मंदिर ध्यान हैं जिनमें ग़ैरहिंदु समाज का योगदान हो ? मुस्लिम और ईसाई समाज कोई हिन्दू समाज की तरह थोड़े ही है जिसने 1857 के बाद अंग्रेज़ी फ़ौजों के घोड़े बांधने के अस्तबल में बदली जा चुकी दिल्ली की जामा-मस्जिद अंग्रेज़ों से ख़रीद कर मुसलमानों को सौंप दी हो । यहाँ ये बात ध्यान में लानी उपयुक्त होगी कि ★दक्षिण के बड़े मंदिरों के कोष सामान्यतः संबंधित राज्यों के राजकोष हैं। एक उदाहरण से बात अधिक स्पष्ट होगी। कुछ साल पहले ●पद्मनाभ मंदिर● बहुत चर्चा में आया था। मंदिर में लाखों करोड़ का सोना, कीमती हीरे-जवाहरात की चर्चा थी। टी वी पर बाक़ायदा बहसें हुई थीं कि मंदिर का धन समाज के काम में लिया जाना चाहिये। यहाँ इस बात को सिरे से गोल कर दिया गया कि वो धन केवल हिन्दू समाज का है, भारत के निवासी हिन्दुओं के अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बियों का नहीं है। उसका कोई सम्बन्ध मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी समाज से नहीं है। वैसे वह मंदिर प्राचीन त्रावणकोर राज्य, जो वर्तमान में केरल राज्य है, के अधिपति का है। मंदिर में विराजे हुए भगवान विष्णु महाराजाधिराज हैं और व्यवस्था करने वाले त्रावणकोर के महाराजा उनके दीवान हैं। नैतिक और क़ानूनी दोनों तरह से पद्मनाभ मंदिर का कोष वस्तुतः भगवान विष्णु, उनके दीवान प्राचीन त्रावणकोर राजपरिवार का, अर्थात तत्कालीन राज्य का निजी कोष हैं। उस धन पर क्रमशः महाराजाधिराज भगवान विष्णु, त्रावणकोर राजपरिवार और उनकी स्वीकृति से हिन्दू समाज का ही अधिकार है। केवल हिन्दु समाज के उस धन पर अब वामपंथी, कांग्रेसी गिद्ध जीभ लपलपा रहे हैं। ★मन्दिर को मन्दिर रहने दो पुजारी की लूट की दुकान नहीं बनने दो :- यहाँ एक ही जगह की यात्रा के दो अनुभवों के बारे में बात करना चाहूंगा। वर्षों पहले वैष्णव देवी के दर्शन करने जाना हुआ। कटरा से मंदिर तक भयानक गंदगी का बोलबाला था। घोड़ों की लीद, मनुष्य के मल-मूत्र से सारा रास्ता गंधा रहा था। लोग नाक पर कपड़ा रख कर चल रहे थे। हवा चलती थी तो कपड़ा दोहरा-तिहरा कर लेते थे। काफ़ी समय बाद 1991 में फिर वैष्णव देवी के दर्शन करने जाना हुआ। तब तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल पद को जगमोहन जी सुशोभित कर चुके थे। आश्चर्यजनक रूप से कटरा से मंदिर तक की यात्रा स्वच्छ और सुविधाजनक हो चुकी थी। कुछ वर्षों में ये बदलाव क्यों और कैसे आया ? पूछताछ करने पर पता चला कि वैष्णव देवी मंदिर को महामहिम राज्यपाल ने अधिग्रहीत कर लिया है और इसकी व्यवस्था के लिये अब बोर्ड बना दिया गया है। अब मंदिर में आने वाले चढ़ावे को बोर्ड लेता है। उसी चढ़ावे से पुजारियों को वेतन मिलता है और उसी धन से मंदिर और श्रद्धालुओं से सम्बंधित व्यवस्थायें की जाती हैं। ये स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ गया कि मंदिर जो समाज के आस्था केंद्र हैं, वो पुजारी की निजी वृत्ति का ही केंद्र बन गए हैं और समाज के एकत्रीकरण, हित-चिंतन के केंद्र नहीं रहे हैं। अब समाज की निजी आस्था अर्थात हित-अहित की कामना और ईश्वर प्रतिमा पर आये चढ़ावे का व्यक्तिगत प्रयोग का केंद्र ही मंदिर बचा है। मंदिर के लोग न तो समाज के लिये चिंतित हैं न मंदिर आने वालों की सुविधा-असुविधा उनके ध्यान में आती है। क्या ये उचित और आवश्यक नहीं है कि मंदिर के पुजारी गण, मंदिर की व्यवस्था के लोग अपने साथ-साथ समाज के हित की चिंता भी करें ? यदि वो ऐसा नहीं करेंगे तो मंदिरों को अधर्मियों के हाथ में जाते देख कर हिंदु समाज भी मौन नहीं रहेगा ? मंदिरों के चढ़ावे का उपयोग मंदिर की व्यवस्था, उससे जुड़े लोगों के भरण-पोषण, आने वाले श्रद्धालुओं की व्यवस्था के लिये होना स्वाभाविक है। ये त्वदीयम वस्तु गोविन्दः जैसा ही व्यवहार है। साथ ही हमारे मंदिर, हमारी व्यवस्था, हमारे द्वारा दिए गये चढ़ावे का उपयोग अहिन्दुओं के लिये न हो ये आवश्यक रूप से करवाये जाने वाले विषय हैं। संबंधित सरकारें इसका ध्यान करें, इसके लिये हिंदु समाज का चतुर्दिक दबाव आवश्यक है अन्यथा लुटेरे भेड़िये हमारी शक्ति से ही हमारे संस्थानों को नष्ट कर देंगे। सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी 23/12/2020 #dineshapna

















 

No comments:

Post a Comment