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Saturday, 6 February 2021
श्रीनाथजी व सखा बृजवासी के साथ अन्याय हो रहा है ! क्या "कानून" से ऊपर "श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा" है ? क्योंकि वल्लभ कुल मे कुछ लोग श्रीनाथजी को छोड़कर माया की ओर अग्रसर हो रहे है तथा कुछ मायापति व माया के दास अधिकारी व नेता भी उनका साथ दे रहे है ! इस हेतु कानून को भी तोड़ मरोड़कर अपने फायदे के लिए उपयोग ले रहे है ! किन्तु हकीकत यह है कि "कानून से भी ऊपर 'श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा" हैं ! ★श्रीनाथजी ने सर्वप्रथम श्रीसद्दू पाण्डे जी व बृजवासियों को सेवा, पूजा, सुरक्षा व साथ में खेलने की आज्ञा दी ! ★उसके बाद श्रीवल्लभाचार्य जी को पूजा पद्वति, ज्ञान व पुष्टि मार्ग के प्रचार प्रसार की आज्ञा दी ! ★किन्तु बाद मे श्रीवल्लभाचार्य जी के वंशजों ने श्रीनाथजी की आज्ञा पालन कर पुष्टि मार्ग का प्रसार करने के बजाय अपनी सम्पत्तियों का प्रसार करने लग गये, जिसके लिए दोनों हाथों से श्रीनाथजी की सम्पत्तियां लूटा रहे है या लूटते हुए मूक दर्शक बनकर देख रहे है ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆【1】◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ★श्रीनाथजी के सखा / सेवक / वैष्णवो की जिम्मेदारी !★ (१) "श्रीनाथजी का प्राकृट्य से नाथद्वारा आगमन तक" 【263 वर्ष】 (२) "श्रीनाथजी के नाथद्वारा मे आगमन से पुनः नाथद्वारा आगमन तक" 【235 वर्ष】 (३) "श्रीनाथजी के पुनः नाथद्वारा मे पधारने से मन्दिर मण्डल बनने तक" 【52 वर्ष】 (४) "श्रीनाथजी के नाथद्वारा मे मन्दिर मण्डल बनने से आज तक"【61 वर्ष】 ◆◆◆◆◆◆>>>>>>>>>>>>>>>>>>>◆◆◆◆◆◆ (१) "श्रीनाथजी का प्राकृट्य से नाथद्वारा आगमन तक" सन् 1409 (वि.सं 1466) से - (श्रावण शुक्ल पंचमी - नागपंचमी) से सन् 1672 - 20 फरवरी (वि.सं 1729) - (फाल्गुन कृष्ण सप्तमी - शनिवार) 【263 वर्ष】 श्रीनाथजी का प्राकृट्य (उध्व भुजा) सन् 1409 से श्रीवल्लभाचार्य जी के आन्यौर सन् 1506 के समय 97 वर्षों तक श्रीनाथजी की सेवा, पूजा व सुरक्षा की जिम्मेदारी श्रीनाथजी ने श्रीसद्दू पाण्डे जी व बृजवासियों को दी, जिसका निर्वहन बृजवासियों ने पूर्ण रूप व ईमानदारी से किया । इसके बाद श्रीसद्दू पाण्डे जी व बृजवासियों के द्वारा श्रीवल्लभाचार्य जी को श्रीनाथजी से मिलन कराने के बाद श्रीनाथजी ने विधिवत पूजा करने की जिम्मेदारी श्रीवल्लभाचार्य जी को दी । जिस जिम्मेदारी को उन्होंने अन्य व्यक्तियों को सौंपी थी, जिस कारण उसमे समय समय पर परिवर्तन करना पडा । किन्तु तब भी श्रीनाथजी की सेवा व सुरक्षा की जिम्मेदारी बृजवासियों के पास ही थी, जिसे उन्होंने श्रीनाथजी के नाथद्वारा पधारने तक पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से निभाया तथा सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाते हुए अपने प्राण तक न्यौछावर किये । (२) "श्रीनाथजी के नाथद्वारा मे आगमन से पुनः नाथद्वारा आगमन तक" (सन् 1672 - 20 फरवरी (वि.सं 1729) - (फाल्गुन कृष्ण सप्तमी - शनिवार) से सन् 1907 (वि.सं. 1964) 【235 वर्ष】 श्रीनाथजी के नाथद्वारा आगमन पर मेवाड़ के महारणा जी ने सुरक्षा व संरक्षण की स्वयं जिम्मेदारी ली । इस प्रकार श्रीनाथजी के नाथद्वारा आगमन के पश्चात श्रीनाथजी की सेवा व सुरक्षा मे बृजवासियों के साथ मेवाड़ के महाराणा जी व उनके सभी साथियों की जिम्मेदारी हो गई, जिसे उन सभी ने पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से निभाया । सन् 1778 (वि.स. 1835) में अजमेर मेरवाड़ा के मेरो ने मेवाड पर भयानक आक्रमण किया तथा नृशंस हत्याएं करना प्रारंभ कर दिया। इधर पिंडारियों ने नाथद्वारा में घुसकर लूट खसोट की और धन-जन को हानि पहुँचाई। सन् 1801 (वि.स. 1858) में दौलतराव सिन्धिया से पराजित होकर जसवन्तराव होल्कर यत्र तत्र भटकता हुआ मेवाड़ भूमि के समीप आ गया। परन्तु सिन्धिया की सेना उसे खोजती हुई नाथद्वारा आ पहुँची । इन सभी आक्रमणों का बृजवासियों व कोठारिया व आसपास के रावलो के राजपूतों व सैनिकों ने सामना किया व रक्षा की । उस दौरान कुछ समय के लिए श्रीनाथजी उदयपुर व घसियार पधारे । इसके बाद शान्ति होने पर सन् 1907 (वि.सं. 1964) में प्रभु श्रीनाथजी दलबल सहित अनेक भक्तों को साथ लेकर युद्ध भूमि हल्दीघाटी के अरण्य मार्ग को पारकर खमनोर होते हुए पुनः नाथद्वारा पधारे । (३) "श्रीनाथजी के पुनः नाथद्वारा मे पधारने से मन्दिर मण्डल बनने तक" सन् 1907 (वि.सं. 1964) से सन् 1959 (वि.सं. 2016) 【52 वर्ष】 इस दौरान कोई बाहरी आक्रमण नहीं हुए तथा नाथद्वारा मे शान्ति का समय था । इस समय बाहरी आक्रमण का भय नहीं था, किन्तु आन्तरिक आक्रमण शुरू हो गये थे । बृजवासियों के सेवा व सुरक्षा के अधिकारो मे वल्लभ कुल द्वारा कमी करना शुरू कर दिया । श्रीनाथजी की सम्पत्तियो / धन का दुरुपयोग व अपव्यय करना शुरू हो गया । इसलिए बृजवासियों, मेवाड़वासीयों के विरोध करने पर सरकार द्वारा सन् 1959 को नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन करना पडा । किन्तु इसमें सरकार ने मन्दिर मण्डल के सदस्यों के चयन का अधिकार गलत तरीकों से दे दिया, जिसमें बृजवासियों को उनके नैसर्गिक अधिकारो से वंचित कर दिया गया । (४) "श्रीनाथजी के नाथद्वारा मे मन्दिर मण्डल बनने से आज तक" सन् 1959 (वि.सं. 2016) से सन् 2020 (वि.सं. 2077)【61 वर्ष】 इस काल मे बृजवासियों व मेवाड़ के महाराणा जी के सुरक्षा के सम्पूर्ण अधिकार नाथद्वारा मन्दिर मण्डल के हाथों मे आ गये व उसमें भी बोर्ड के सदस्यों के चयन का अधिकार वल्लभ कुल के हाथों मे ले लिया । इसमे अधिकार केवल महाराजश्री के हाथो मे है जो उन्होंने केवल अपने चहेते वैष्णवों को दे दिये । अब यदि श्रीनाथजी की सम्पत्तियो / धन का दुरुपयोग व अपव्यय होता है तो इसकी पूर्ण जिम्मेदारी मन्दिर मण्डल सदस्यों की संयुक्त व पृथक रुप से होती है । इस दौरान भी श्रीनाथजी की सम्पत्तियो / धन का दुरुपयोग व अपव्यय हो रहा है । अतः इसे रोकने की अत्यधिक आवश्यकता है । क्योंकि श्रीनाथजी स्वयं ने बृजवासियों को सेवा, पूजा व सुरक्षा का अधिकार दिया, जिसे छिनने का किसी को भी अधिकार नहीं है । यदि कोई बृजवासियों के अधिकारो को छिनता है, तो यह संविधान, धर्म, परम्पराओं व श्रीनाथजी की आज्ञा का उल्लंघन है । ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆【2】◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ★★श्रीनाथजी के सखा ब्रजवासियों को श्रीनाथजी से दूर करने की 348 वर्षों से साजिश ? कौन जिम्मेदार ?★★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ (1) 611 वर्षो से ( 1409 से 2020 तक ) बृजवासी श्रीनाथ जी की सेवा व सुरक्षा कर रहे है, किंतु आज उन्हें सेवा व सुरक्षा के निर्णय लेने के अधिकार से दूर क्यों रखा जा रहा है ? (2) 97 वर्षो तक ( 1409 से 1506 तक ) केवल बृजवासीयो ने ही श्रीनाथजी की सेवा व सुरक्षा कर रहे थे ! इसके बाद सन् 1506 में श्री वल्लभाचार्य जी पधारे,( 27 वर्ष की आयु मे ) तब से उन्होंने श्रीनाथ जी की पूजा शुरू की, जो आज तक उनके वंशजों द्वारा पूजा व अन्य जारी है ! (3) 514 वर्षो से ( 1506 से 2020 तक ) श्री वल्लभाचार्य जी ने श्रीनाथजी की पूजा सर्वप्रथम चौहान व बाद में बंगाली ब्राह्मणों तथा अन्य लोगों को करने का अधिकार दिया तथा सेवा व सुरक्षा का जिम्मा बृज वासियों को दिया ! (4) 13 वर्षों में ( 1506 से 1519 ) श्री वल्लभाचार्य जी के पधारने ब्रज मे पधारने व वहाँ श्रीनाथजी के नए मंदिर में पाटोत्सव करने व सेवा का क्रम निश्चित करने के बाद, आप मधुबन पधार गए ! (40 वर्ष की आयु में) (5) 12 वर्षो तक ( 1519 से 1531 तक ) श्री वल्लभाचार्य जी ने अपना समय पुष्टिमार्ग के लिए साहित्य सर्जन में लगा दिया ! ( 52 वर्ष की आयु तक ) (6) 489 वर्ष तक ( 1531 से 2020 तक ) श्री वल्लभाचार्य जी के बाद उनके वंशजों व पुजारियों को उनके द्वारा स्थापित सेवाक्रम व परंपरा के अनुसार ही कार्य करना था तथा ब्रजवासियों को सेवा व सुरक्षा तथा उस सम्बन्धित निर्णय का अधिकार था ! इसके लिए बृजवासीयो ने अपना जीवन व संपत्ति के भी त्याग करने मे पिछे नहीं रहे, तो भी उनसे निर्णय लेने का अधिकार छिन लिया ! (7) 348 वर्ष से ( 1672 से 2020 तक ) नाथद्वारा पधारने के बाद कालान्तर मे धीरे धीरे पूजा करने वाले श्रीनाथजी के नाम पर उनकी संपत्ति पर भी अपना अधिकार जमाने लग गये, जबकि वल्लभाचार्य जी ने (संसार की प्रवृत्ति) माया से दूर रहने के लिए सन् 1531 मे अपने अन्तिम उपदेश मे कहा था ! वर्तमान मे सम्मानीय ने सच्चे , सेवाभावी व सखा ब्रजवासियों को धीरे-धीरे श्रीनाथजी से दूर कर दिया गया ! (8) 61 वर्ष पूर्व ( 1959 से ) श्रीनाथजी की पूजा करने वालों ने हद ही पार कर दी, जिस कारण सरकार को मजबूरी मे टेम्पल बोर्ड का गठन करना पड़ा, किन्तु यहाँ भी श्रीनाथजी के सखा बृजवासीयो को बोडँ सदस्य बनने से दूर रखा गया ! तथा गलत करने वालों व जिनका नाथद्वारा से कोई लेना-देना नहीं है, उनको बोर्ड सदस्य बनाया गया ! इसके बाद जिन बोडँ सदस्यों को सुरक्षा की जिम्मेदारी दी, वह लोग श्रीनाथजी की संपत्ति की रक्षा करना तो दूर श्रीजी प्रसाद की शुद्धता मे कमी लाकर अन्याय कर रहे हैं ! ऐसे व्यक्तियों को निर्णय का अधिकार देना कहाँ तक उचित है ? (9) 04 माह से ( 3.10.2019 में ) कुछ बृजवासीयो ने श्रीनाथजी की संपत्ति के सदुपयोग व सुरक्षा के लिए बोर्ड द्वारा जो निर्णय लिए गए, उसका स्पष्टीकरण व सामाजिक अंकेक्षण करने के लिए कहा, तो बोडँ मेम्बर्स सामाजिक अंकेक्षण के नाम पर चुप क्यों ? क्या बोर्ड सदस्यों का मन्दिर के प्रति कोई कर्तव्य नहीं है ? CA. Dinesh Sanadhya - 06/02/2021 सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी www.dineshapna.blogspot.com #dineshapna Nathdwara, nathdwara live, nathdwara news, nathdwara darshan, shrinathji, shrinathji mandir, nathdwara mandir,
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