★★श्रीवल्लभाचार्य जी का "पुष्टि मार्ग" 1479 V/S बृजवासियों का "प्रेम मार्ग" 1409★★ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● श्रीवल्लभाचार्य जी के अनुसार षुष्टिमार्ग :- (सन् 1479 से ......) ◆भक्त स्वयं अपने आराध्य के समक्ष आत्मसमर्पण करता है ! ◆भगवान के अनुग्रह से भक्ति उत्पन्न होती है , उसे पुष्टि भक्ति कहते है ! ◆ऐसा भक्त भगवान के स्वरूप दर्शन के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता है ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ●श्रीवल्लभाचार्य जी के पुष्टि मार्ग पर पूर्व से ही ●बृजवासी चले, वह प्रेम मार्ग ●(तीन बिन्दु के अनुसार ◆ ◆ ◆ शब्दों मे व्याख्या ) ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● बृजवासियों के अनुसार निस्वार्थ प्रेम :- (सन् 1409 से ......... ) ◆भक्त स्वयं अपने आराध्य के समक्ष "आत्मसमर्पण" करता है ! 【【जब भक्त (बृजवासी) को प्रथम बार आराध्य की ऊध्र्व भुजा के दर्शन होते ही आत्मसमर्पण किया, इससे भी पूर्व भक्त (बृजवासी) की गाय ने भी आत्मसमर्पण अपने दूध का किया ! उसके बाद जैसे ही बृजवासियों ने स्वतः "आत्मसमर्पण" किया !】】 ◆ "भगवान के अनुग्रह" से भक्ति उत्पन्न होती है , उसे पुष्टि भक्ति कहते है ! 【【उसके बाद "भगवान श्रीकृष्ण ने अनुग्रह" किया, तो बृजवासियों मे भक्ति उत्पन्न हुई जो अनवरत रुप से 97 वर्षों तक (श्रीवल्लभाचार्य जी के जतिपुरा पधारने के पूर्व तक) जारी थी, तथा जो आजतक (611 वर्षो तक) विद्दमान है व आगे भी रहेगा !】】 ◆ऐसा भक्त भगवान के "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता है ! 【【 बृजवासी श्रीनाथजी के प्राकृट्य सन् 1409 से सन् 1506 श्रीवल्लभाचार्य जी के पधारने से पूर्व 97 वर्ष तक केवल "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं की !】】 दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 16/06/2020 #dineshapna
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