★सरकार का विकास धन केन्द्रित, किन्तु सच्चा विकास प्रकृति, पर्यावरण व मानव केन्द्रित हो !★ (१)"विकास" परिवर्तन प्रकृति का नियम है। परिवर्तन सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही हो सकते हैं । किसी भी समाज, देश व विश्व में कोई भी सकारात्मक परिवर्तन जो "प्रकृति और मानव" दोनों को बेहतरी की ओर ले जाता है वही वास्तव में विकास है । (२)"सतत् एवं संतुलित विकास" के लिए यह जरूरी है कि विकास का केन्द्र बिन्दु "मानव" हो । मानव के अन्र्तनिहित गुणों व क्षमताओं का विकास कर उनके अस्तित्व, क्षमता, कौशल व ज्ञान को मान्यता देना, उन्हें अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना, लोगों की सोचने की शक्ति को बढ़ाना, उनके चारों तरफ के वातावरण का विश्लेषण करने की क्षमता जागृत करना, समाज में उनको उनकी पहचान दिलाना व उन्हें सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक सशक्तता के अवसर प्रदान करना ही वास्तविक विकास है । (३)"सच्चा विकास" को समझने के लिए समग्रता में देखना जरूरी है, जिसमें मानव संसाधन, प्राकृतिक संसाधन, सामाजिक, आर्थिक राजनैतिक, सांस्कृतिक, व नैतिक व ढाँचागत विकास शामिल हो । (४)"विकास" जो नेता / सरकार आम जनता को बताती है उसमें केवल भौतिक ढाँचागत निर्माण ही है । किन्तु प्राकृतिक संसाधन केवल पूँजीपतियों के लिए, सामाजिक उत्थान के नाम पर जाती व धर्म के बीच मे लडाई, आर्थिक उत्थान केवल धनपतियों का, राजनैतिक उत्थान केवल बेईमानों व अपराधियो का, सांस्कृतिक उत्थान केवल दिखावे का, व नैतिक उत्थान केवल भाषणों मे हो रहा है । (५)"वास्तविक विकास" तब होगा जब विकास केवल प्रकृति, पर्यावरण व मानव केन्द्रित हो । सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी #(284) #01/03/23 #dineshapna
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