Monday, 31 October 2022

★"अध्यात्म रामायण" - चौथा दिन★ सर्वप्रथम भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा "अध्यात्म रामायण" है ! राम कथा का दर्शन "अध्यात्म, और विज्ञान" !!!!!! "अयोध्या" रामकथा का प्रारम्भ और समापन स्थल है ! (1)रावण कौन है ? : - जिसका अपनी इन्द्रियों पर अधिकार न हो ! जिसकी दसों इन्द्रियां, उन्मुक्त हों ! वह है - 'रावण' ! अपनी खोई हुई शक्ति और रावण पर विजय प्राप्ति का एक मात्र उपाय है - "ईश्वराधना और पूजा" ! (2)राम कौन है ? : - जो एक योगी (धर्म साधक) है, जो साधना करें व स्वयं को समाज और राष्ट्र के लिए धर्म, आचार - व्यवस्था, विधि - व्यवस्था, मानवता की स्थापना का कार्य करे ! (3)अध्यात्म रामायण में, सीता के अपहरण की अवधि के दौरान "मिथ्या सीता" का परिचय दिया गया है ! स्वर्ण मृग प्रकरण से ठीक पहले "वास्तविक सीता" अग्नि में विलीन हो जाती है ! (4)अध्यात्म रामायण में, युद्ध के अंत में सीता अग्नि से निकलती है, जब "मिथ्या सीता" उसमें प्रवेश करती है ! (5)अध्यात्म रामायण में, हनुमान जी, रावण से आमने-सामने मिलते हैं और तत्व ज्ञान के बारे में विस्तार से बताते हैं और उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने और भक्ति के साथ मुक्ति प्राप्त करने के लिए उपदेश देते हैं ! (6)अध्यात्म रामायण में, भगवान राम 100 बार रावण के 10 सिर काटते हैं लेकिन फिर भी वे फिर से प्रकट होते हैं ! तब विभीषण ने रावण को समझाया कि रावण के नाभि क्षेत्र में अमृत है और उसे मारने के लिए उसे तोड़ना होगा ! तब भगवान राम ने उसे नष्ट कर दिया और फिर रावण के हाथ और सिर काट दिए ! तब उन्होंने रावण का ब्रम्हास्त्र से वध किया ! (7)वाल्मीकि रामायण समाज में मनुष्य की भौतिक और आध्यात्मिक उत्थान को दर्शाती है और अध्यात्म रामायण भगवान को पूर्ण और बिना शर्त समर्पण के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति को दर्शाती है ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक आध्यात्मिक विचारक #(225) #01/11/22 #dineshapna











 

Sunday, 30 October 2022

★"अध्यात्म रामायण" - तीसरा दिन★ सर्वप्रथम भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा "अध्यात्म रामायण" है ! राम कथा का दर्शन "अध्यात्म, और विज्ञान" !!!!!! "अयोध्या" रामकथा का प्रारम्भ और समापन स्थल है। (1)राजा दशरथ - एक अस्थिर योगी : - ◆योग का पथ कठिन साधना-पथ है ! थोड़ी सी असावधानी भी साधक को उसके स्थान से, उसके प्राप्य और प्राप्ति से, भटका सकता है ! उसके जीवन में उथल-पुथल मचा सकता है ! ◆त्रिगुणरुपी रानियों कौशल्या (सत), सुमित्रा (रज), कैकेयी (तम) के प्रति भाव असंतुलन राजा दशरथ को "शासक दशरथ" के स्थान से च्युतकर "शासित दशरथ" बना देता है ! ◆फलतः अब वृत्तियों द्वारा "शासित दशरथ" की अभिलाषाएं, आकांक्षाये अधूरी रहतीं है ! परिस्थितियाँ विपरीत हो जातीं हैं; शोक - पश्चाताप - दु:ख - अतिशय दु:ख, और अन्त में कष्टदायी मृत्यु. योगपथ में शिथिलता और सहस्रार तक की यात्रा पूरी न कर पाने के कारण "तत्त्व साक्षात्कार" से भी वंचित ! (2)राम - एक योगी (धर्म साधक) : - ◆योगी के कार्य - साधना, स्वयं को, समाज को और राष्ट्र को .... ◆इस साधना के मुख्यतः चार सोपान हैं - बुद्धि, चित्त, मन और अहंकार ! ◆धर्म का कार्य आचार-व्यवस्था, विधि-व्यवस्था, मानवता की स्थापना है ! जंगल वह स्थान है जहाँ, मानवता का क्षरण हो रहा है ! ◆राम वनगमन का यही निहितार्थ है ! ◆सत (कौशल्या) को विश्वास है - 'जो पितु मातु कहेउ बन जाना तो कानन षत अवध समाना' ! ◆जहाँ धर्म है; वहीं- अयोध्या है, वहीँ अवध है और वहीँ सुशासन है ! (i) प्रथम सोपान - "बुद्धि जगत" : - जहाँ बुद्धि है वहाँ द्वंद्व है, अनेकता है, तर्क-वितर्क है. जहां द्वंद्व, द्वंद्वों से अतीत हो जाय, तर्क शांत हो जाय, मानसिक सामाजिक कलह न हो, वह है - अयोध्या. अतः अयोध्या नगरी में या ●"अयोध्याकाण्ड" में घटित समस्त 'राम लीलाएं' "बुद्धि जगत" की लीला है ! (ii) द्वितीय सोपान - "चित्त जगत" : - चित्त स्मृतियों और यादों का भंदारागार है ! रामकथा में यही "चित्रकूट" है. ●चित्रकूट में घटित समस्त 'राम लीलाएं' "चित्त जगत" की लीला है ! भाव तरंगों का बनना, मिटना, फिर बनना और फिर उठना .... यहाँ इसी की प्रधानता है ! चित्त की पांच अवस्थाएं हैं - "क्षिप्तं मूढं विक्षिप्तं एकाग्रं निरुद्धमिती चित्त भूमयः" (योग १.१) (iii) तृतीय सोपान - "मानसिक जगत" : - मन अत्यंत चंचल है. यहाँ कामनाएं हिलोरें मारती रहती हैं ! उचित - अनुचित भी समझ में नहीं आता ! बौद्धिक जगत के समाधान अस्थाई लगाने लगते हैं ! कुछ समझ में नहीं आता ! जो होता है, वह दीखता नहीं ! जो दिखाई देता है, उसमे सच्चाई नहीं ! पूरी तरह मृग मरीचिका की स्थिति है यहाँ ! असंभव "कंचनमृग" भी वास्तविक लगने लगता है ! बुद्धि मोहित हो जाती है ! पंचवटी ही मन है. ●"पंचवटी" में घटित समस्त 'राम लीलाएं' "मानसिक जगत" की लीला है ! इसी मानसिक जगत में सचेत और संमित रहना है ! ●मन को यदि नियंत्रित न किया गया तो विश्वामित्र की तरह अर्जित तपस्या गयी ! सूर्पनखा की तरह नाक (मर्यादा) गयी, स्वयं राम की भी शक्ति (सीता) गयी। (iv)चतुर्थ सोपान - "अहंकार जगत" : - अतिशय सम्पन्नता की प्राप्ति पर अहंकार आता है ! इस अहंकार के विविध रूप हैं - शक्ति का अहंकार, धन का अहंकार, विद्या का अहंकार, बल का अहंकार, सत्ता का अहंकार,..... यहीं साधक के अपने अन्दर के रावण की पहचान कर उसे विजित करना है ! ●"लंका" में घटित समस्त 'राम लीलाएं' "अंहकार जगत" की लीला है ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक आध्यात्मिक विचारक #(224) #31/10/22 #dineshapna










 

Saturday, 29 October 2022

★"अध्यात्म रामायण" - दुसरा दिन★ सर्वप्रथम भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा "अध्यात्म रामायण" है ! राम कथा का दर्शन "अध्यात्म, और विज्ञान" !!!!!! "अयोध्या" रामकथा का प्रारम्भ और समापन स्थल है ! (1)"धनुष यज्ञ" का अर्थ :- शिव महायोगी है. साधना के क्षेत्र में, प्रत्येक साधक को इस धनुष को तोडना पड़ता है. लेकिन एक योगी ही "महायोगी शिव" के धनुष को तोड़ सकता है, कोई वंचक या ढोंगी नहीं ! (2)शिव के इस धनुष का नाम पिनाक है और निरुक्त में पिनाक का अर्थ बताया गया है -"रम्भ: पिनाकमिति दण्डस्य" अर्थात रम्भ और पिनाक दंड के नाम हैं ! योग और अध्यात्म के क्षेत्र में यह पिनाक नाम "मेरुदंड" का है। (3)प्रतीक रूप में यही धनुष है ! इसी धनुष की प्रत्यंचा को मूलाधार से खींच-तान कर सहस्रार तक ले जाकर चढाना पड़ता है ! जो योगी होगा, जिसे षटचक्र भेदन का भली भांति ज्ञान होगा, वही प्रत्यंचा चढ़ाकर धनुष को तोड़ सकता है ! इस धनुष के निचले शिरे मूलाधार से आज्ञां चक्र की यात्रा के बाद ही साधक रुपी "शिव" का मिलन "शक्ति" से होता है। (4)राम एक योगी हैं, कुण्डलनी विद्या द्वारा "ताडका - सुबाहु- मारीच" रूपी (काम-क्रोध-लोभ-मोह आदि) कषाय-कल्मषों को विजित कर सहस्रार तक की यात्रा पूरी की थी ! सहस्रार में सहस्रदल कमल खिलने की बात योगशास्त्र में बताई गयी है ! इसी सहस्रार रूपी "पुष्प वाटिका" में शिव (राम) का अपनी शक्ति (सीता) से प्रथम साक्षात्कार होता है ! यही "शिव-शक्ति" का मिलन भी है। (5)धनुष यज्ञ के माध्यम से "राम-सीता विवाह" की कहानी, "शिव-शक्ति" के मिलन की कहानी है ! जो योगी नहीं होगा, वह धनुष को हिला भी नहीं पायेगा ! योगबल के अभाव में, "कुण्डलिनी विद्या बल" के अभाव में शारीरिक बल, धन बल, संख्या बल का कोई महत्त्व नहीं। इसी को संकेतित करते हुए गोस्वामीजी ने लिखा - "भूप सहसदस एकहिं बारा लगे उठावाहीं टरयी न टारा" ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक आध्यात्मिक विचारक #(223) #30/10/22 #dineshapna





 

Friday, 28 October 2022

★"अध्यात्म रामायण" - पहला दिन★ सर्वप्रथम श्री राम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वती जी को सुनाया था। भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा "अध्यात्म रामायण" है ! "अध्यात्म रामायण" वेदांत दर्शन पर आधारित भगवान श्रीराम की भक्ति का प्रतिपादन करने वाला रामचरितविषयक 'अध्यात्म-रामचरित' है। इसमें 7 कांड एवं 65 अध्याय हैं, जिन्हें प्राय: महर्षि व्यास द्वारा रचित और 'ब्रह्मांडपुराण' के 'उत्तरखंड' का एक अंश है ! श्रीराम के भक्तों के लिए अध्यात्म रामायण को अत्यंत महत्वपूर्ण कहा गया है। इसमें राम, विष्णु के अवतार होने के साथ ही, "परब्रह्म" या "निर्गुण ब्रह्मा" भी माने गए और सीता की "योगमाया" कहा गया है। रामायण में सात काण्ड हैं - बालकाण्ड, अयोध्यकाण्ड, अरण्यकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, लंकाकाण्ड और उत्तरकाण्ड। राम कथा का दर्शन "अध्यात्म, और विज्ञान" !!!!!! "अयोध्या" रामकथा का प्रारम्भ और समापन स्थल है। (1)अयोध्या का अर्थ : - अयोध्या (अ + युद्ध), जहाँ युद्ध और द्वन्द न हो, अर्थात शांति हो। अयोध्या का दूसरा नाम अवध है। (अ + वध) अर्थात जहाँ अपराध न हों, पाप न हों, जहाँ कठोर सजा की, वध जैसी सजा की आवश्यकता ही न हो। ऎसी उच्च कोटि की शांति - व्यवस्था कायम हो जहाँ, वह है - अवध. दार्शनिक दृष्टि से जहाँ चित्त की वृत्तियों का पूर्णतः निरोध हो जाय, वह है - अयोध्या और वह है - अवध। यह एक साधक की अपनी मनः स्थिति है। साधना का उच्च सोपान है यह ! यही योग की परिभाषा भी है - "योग: चिति वृत्ति निरोधः" - (योग सूत्र-१.१) (2)अयोध्या का राजा "दशरथ" का अर्थ :- जो शरीर रूपी रथ में जुटे हुए दसो इन्द्रिय रूपी घोड़ों (५ कर्मेन्द्रिय + ५ ज्ञानेन्द्रिय) को अपने वश में रखे ! ज्ञातव्य है कि कठोपनिषद में "आत्मानं रथिं विद्धि शरीरं रथमेव तु । बुद्धिं सारथि विद्धि मनः प्रग्रह मेवच ।। ...." (कठ -३.३-५) से इसी आशय को स्पष्ट किया गया है. और गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को इन्ही इन्द्रियों को वश में करके 'दशरथ; बनने का उपदेश देते हैं - (गीता ३.४१) "दशरथ" - योग मार्ग का पथिक : - योगी के लिए निर्देश है -"योग: कर्मः कौशलम". इसके लिए अनिवार्य शर्त है "समत्वं योग उच्यते", समत्व दृष्टि की, समत्व के आचार-विचार की समदर्शी और समत्व की स्थिति में ही शान्ति-व्यवस्था कायम है ! आतंरिक और वाह्य सुख की, प्रसन्नता की अवस्था है यह ! (3)दशरथ की 3 रानियाँ का अर्थ :- त्रिगुण (सत + रज + तम) यही सत - कौशल्या, रज - सुमित्रा, और तम - कैकेयी हैं ! (4)योगी दशरथ के 4 पुत्रों (पुरुषार्थ) का अर्थ :- एक योगी ही अपने जीवन में चारों पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) की प्राप्ति कर सकता है । दशरथ रूपी साधक ने भी इन चारों पुरुषार्थों को प्राप्त किया था; ( धर्म - राम, अर्थ - लक्ष्मण, काम - भरत , मोक्ष - शत्रुघ्न) (5)राम हैं - धर्म : - राम धर्म का प्रतीक हैं. धर्म को परिभाषित किया गया है - "धारयति असौ सह धर्मः". अर्थात हमारे अस्तित्व को धारण करे वह धर्म है । जिससे हमारा अस्तित्व है और जिसके अभाव में हम अपनी पहचान खो देते हैं । वह नियामक तत्व धर्म है । इस परिभाषा के अनुसार हम मानव हैं । इंसान हैं, अतः हमारा धर्म है - 'मानवता', 'इंसानियत' । यह मानव धर्म हमारी सोच, विचार, मन और आचरण से निःसृत होता है; इसलिए इसका नाम है - 'राम'. "रम्यते इति राम:" अर्थात जो हमारे शारीर में, अंग-प्रत्यंग में रम रहा है, वही है - 'राम '; और वही है - 'धर्म' । इस राम के कई रूप हैं, सबकी अपनी अपनी अनुभूतियाँ हैं - "एक राम दशरथ का बेटा ! एक राम है घट - घट लेटा ! एक राम का जगत पसारा ! एक राम है सबसे न्यारा ! (6)लक्ष्मण हैं - अर्थ : - जिसका लक्ष्य हो 'राम', जिसका एक मात्र ध्येय हो 'राम', वही है - 'लक्ष्मण' ! अर्थ का धर्म के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ जाना ही अर्थ की सार्थकता, उसकी उपयोगिता और उसका गौरव है ! अर्थ और धर्म का युग्म ही कल्याणकारी, लोकमंगलकारी है ! अर्थ का साथ होने पर ही धर्म अपने उद्देश्य में सफल हो सकता है ! लेकिन यह अर्थ उपयोगी तब है जब वह भोग, लिप्सा और विलासिता से दूरी बनाये रहे ! भोग तो रहेगा, लेकिन त्यागमय भोग ! 'तेन त्यक्तेन भुन्जीथा' के रूप में. राम रूपी लक्ष्य को छोडकर जो अन्यत्र न भटके; वह है - "लक्ष्मण" अर्थात "अर्थ" ! (7)भरत है - काम : - भरत का अर्थ है - भा + रत (भा = ज्ञान, रत = लीन), अर्थात जो सतत ज्ञान में लीन हो ; वह है भरत ! जिसकी सोच, जिसके विचार, जिसके कार्य, जिसकी जीवनशैली 'काम' को भी महनीय, नमनीय और वन्दनीय बना दे ! वह है - "भरत" ! कम को हेय दृष्टि से देखने वालों की जो धारणा बदल दे वह है - "भरत" ! काम की सर्वोच्चता का जो दर्शन-दिग्दर्शन करा दे, वह है- "भरत" ! (8)शत्रुघ्न हैं - मोक्ष : - कामना तो सर्वव्यापी है ! कामना की पूर्ति न हो तो अशांति और क्रोध की उत्पत्ति होती है. परन्तु जिसकी कोई कामना ही नहीं ! वह है - शत्रुघ्न ! लक्ष्मण की कामना हैं - "राम", भरत की कामना हैं - "राम" ! परन्तु जिसे राम की भी कामना नहीं है, जो वीतरागी है, जिसका कोई अपना नहीं, कोई पराया नहीं, कोई कोई शत्रु नहीं, वही तो है - "शत्रुघ्न" ! जिसने अपनी समस्त मनोवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लिया है, वही तो है - "शत्रुघ्न" ! यही मोक्ष की स्थिति है, जीवन मुक्त की स्थिति है, कैवल्य और निर्वाण की परिकल्पना इसी भाव से ओत-प्रोत है ! यही गीता की शब्दावली में 'स्थितिप्रज्ञं है. बका और फना में इसी प्रकार के वीतरागी जीवन की परिकल्पना है ! जीवनमुक्त जगत का कार्य तो करता है, क्योकि कार्य से मुक्ति किसी की नहीं हो सकती. लेकिन अब उसका कर्म निष्काम कर्म है, उसका कार्य कर्मयोग है. यह योग की पूर्णता है ! यह कर्म - अकर्म - विकर्म......, इन सभी कोटियों से बहुत ऊपर की अवस्था है ! (9)पुरुषार्थी वृत्ति का अर्थ :- पुरुषार्थी वृत्ति की परिणति "दानवृत्ति" में है। लोककल्याणार्थ धर्म और अर्थ (राम और लक्ष्मण) को सुपात्र, "जगत के मित्र" विश्वामित्र के हाथों सौप देना ही पुरुषार्थ की उपादेयता और उपयोगिता है ! प्रत्येक पुरुषार्थी का यह सामाजिक दायित्व बनता है कि राष्ट्र की प्रगतिशीलता, विकास और उत्थान में बाधक आसुरी - प्रतिगामी प्रवृत्तियों (ताड़का, सुबाहु, मारीच) से सृजनशील शोध संस्थानों, यज्ञशालाओं, प्रयोगशालाओं की रक्षा करे ! आज भी समर्थवानों से, संवेदनशीलों से यही अपेक्षा है ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिंदुस्तानी #(222) #29/10/22 #dineshapna


 

Thursday, 27 October 2022

★दीपावली प्रेस मिलन★ हम वर्ष मे एक दिन पर्यावरण दिवस मनाते है जबकि हम 365 दिन पेड़ से प्राप्त आँक्सीजन का उपयोग हम 365 दिन करते है ! इसलिए आशापुरा मानव कल्याण ट्रस्ट के माध्यम से हम 365 दिन पर्यावरण दिवस मना रहे है ! इसकी शुरुआत गंगा सागर गांव, लखाजी की भागल, कांलिन्जर से की और पिछले पांच माह मे 3000 पेड़ लगा दिये है, इसके साथ ही प्रतिमाह यहाँ समीक्षा बैठक रखी जाती है ! हमारा इस वर्ष का लक्ष्य है कि 11000 पेड़ लगाये जायेंगे ! इसके लिए हम माँ पन्नाधाय वन क्षैत्र विकसित कर रहे है ! हम इस बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अब चहुंओर प्रयास की आवश्यकता है, इसके लिए हमने सीए दिनेश सनाढ्य, लक्ष्मी नारायण आमेटा, भँवर सिह व देवी सिंह भल्ला को जिम्मेदारी दी ! अब हम सभी राजनैतिक दलों, सभी समाज, सभी धर्म व सभी व्यक्तियों को साथ लेकर पर्यावरण का विकास करेंगे ! यह विचार सीए. दिनेश सनाढ्य, महासचिव, आशापुरा मानव कल्याण ट्रस्ट ने रखें ! नानजी भाई गुर्जर संस्थापक अध्यक्ष ने बताया कि हम सभी सामाजिक संस्थाओं को साथ मे लेकर वन क्षैत्र विकसित करेंगे ! हम माँ पन्नाधाय वन क्षैत्र मे 11000 पेड़ लगाये जायेंगे, इस तरह के 11 वन क्षैत्र राजसमन्द मे बनाये जायेंगे ! इस प्रकार 121000 पेड़ पाँच वर्ष मे लगायें जायेंगे ! पंच दिवसीय त्यौहार के अवसर पर पर्यावरणविद् डाॅ. लक्ष्मीनारायण आमेटा ने बताया कि आयुर्वेद प्रवर्तक, आरोग्य प्रदाता भगवान धन्वंतरि त्रयोदशी पर आयुर्वेदिक पौधे एवं पुरे विश्व और राष्ट्र में दीपावली के साथ हरियाली बढ़े। वनोपज से खुशीहाली बढ़ेएवं वनो व पौधो की अंधाधुंध कटाई पर सख्त रोक लगे पर्यावरण संरक्षण की दिशा मे सभी राष्ट्रवादी व पर्यावरण प्रेमी संगठन मिलकर कार्य करे आने वाली पिढ़ी के लिए हम सबको प्रकृति की रक्षा की जिम्मेदारी लेना है। अमिता कजरेकर ने कहा कि यदि गाय बचेगी तो पर्यावरण बचेगा ! हम गाय के गोबर से छाने को ईन्धन के रुप मे उपयोग करते है तो लकडियों के लिए पेड़ काटने की जरूरत नहीं होगी, जिससे पेड़ों को कटने से रोका जा सकता है ! गुजरात मे हम गौशालाओं का संचालन कर रहे है , ऐसी ही गौशालाओं का निर्माण व संचालन राजसमन्द मे किया जायेगा ! मनीषा बेन पटेल ने कहा है कि हम 3000 पेड़ जो 3 से 5 वर्ष बड़े है उनको आशापुरा मानव कल्याण ट्रस्ट को राजसमन्द मे लगाने के लिए उपलब्ध करायेंगे ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिंदुस्तानी #(220) #27/10/22 #dineshapna





 

Wednesday, 26 October 2022

★विश्व की सबसे ऊंची शिव जी प्रतिमा है तो शिव जी के द्वारा, सर्वप्रथम सुनाई श्रीराम कथा - "अध्यात्म रामायण" हो, नाथद्वारा मे★ (१)क्योंकि भगवान श्री शिव जी के मुख से निकली श्रीराम की यह प्रथम पवित्र कथा "अध्यात्म रामायण" है इसलिए इसकी शिव परिसर मे सुनना / सुनाने की आवश्यकता है ! ! (२)क्योंकि 50 वर्ष की उम्र के बाद व्यक्ति वानप्रस्थ आश्रम मे प्रवेश करने के कारण आध्यात्मिक ज्ञान की जरूरत होती है इसलिए "अध्यात्म रामायण" सुनना / सुनाने की आवश्यकता है ! (३)क्योंकि इस "अध्यात्म रामायण" मे भक्ति, ज्ञान, उपासना, नीति और सदाचार सम्बन्धी दिव्य उपदेश दिये गये हैं, जो इस कलियुग मे सक्षम लोगों को सुनने / सुनाने व आत्मसात करने की आवश्यकता है ! (४)तुलसी कृत रामचरितमानस / वाल्मीकि रामायण के बाद व सांसारिक कार्य पूर्ण होने के उपरांत आध्यात्मिकता की ओर बढ़ना जरूरी है, इसलिए "अध्यात्म रामायण" सुनना / सुनाने की आवश्यकता है ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक आध्यात्मिक विचारक #(219) #26/10/22 #dineshapna



 

Tuesday, 25 October 2022

★ भगवान श्रीशंकर जी के द्वारा सर्वप्रथम सुनाई श्रीराम कथा - अध्यात्म रामायण ★ श्रीनाथजी श्रीकृष्ण का स्वरूप है, श्रीकृष्ण व श्रीराम दोनों विष्णु जी का स्वरूप है ! नाथद्वारा मे श्री शिवजी की विशाल मूर्ति के समक्ष श्रीराम कथा का आयोजन किया जा रहा है ! तो आवश्यक है कि अध्यात्म रामायण सुनाई जाये क्योंकि यह ही वो श्री राम की कथा है जो भगवान श्री शंकर जी ने सर्वप्रथम माता पार्वती जी को सुनाया था ! (१)उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के रूप में हुआ। काकभुशुण्डि को पूर्वजन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह राम कथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होने यह कथा अपने शिष्यों सुनाया। इस प्रकार राम कथा का प्रचार प्रसार हुआ। (२)भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा अध्यात्म रामायण के नाम से विख्यात है। अध्यात्म रामायण को ही विश्व का प्रथम रामायण माना जाता है। (३)यह आख्यान ब्रह्माण्डपुराणके उत्तरखण्ड के अन्तर्गत माना जाता है। अतः इसके रचयिता महामुनि वेदव्यास जी ही हैं। (४)इसमें परम रसायन रामचरितका वर्णन करते-करते पद-पद पर प्रसङ्ग उठाकर भक्ति, ज्ञान, उपासना, नीति और सदाचार सम्बन्धी दिव्य उपदेश दिये गये हैं। विविध विषयों का विवरण रहने पर भी इसमें प्रधानता अध्यात्मतत्त्व के विवेचन की ही है। इसीलिये यह 'अध्यात्म रामायण' कहलाता है। सीए. दिनेश सनाढ्य - एक आध्यात्मिक विचारक #(218) #26/10/22 #dineshapna



 

Friday, 21 October 2022

विश्वास स्वरुपम् का लोकर्पण है, तो विश्वास जीते ! जनता का विश्वास व श्रीनाथजी का विश्वास जीते ! शिव जी की विशाल मूर्ति बनाने के लिए दिल से धन्यवाद ! कौन जनता / श्रीनाथजी के विश्वास पर खरा उतरा है ? (१)शिव जी का नाम "विश्वास स्वरुपम्" रखा है और उसे लोगों को अर्पण कर रहे है तो आम आदमी / श्रीनाथजी को भी यह जानने को हक है कि कहीं उनके विश्वास के साथ कोई विश्वासघात तो नहीं हो रहा है ! (२)स्थानीय बोर्ड सदस्य पर विश्वास ? जो जनता को असुविधा दे व श्रीनाथजी की जमीन छिने ? (आईकोनिक गेट, माँडल बस स्टैण्ड, शिवमूर्ति की जमीन, एलिवेटेड पुल के नीचे की जमीन, हाई स्कूल का भवन, लालबाग बस स्टैण्ड की जमीन) (३)बोर्ड सदस्य व मठाधीश पर विश्वास ? जो जनता को असुविधा दे व श्रीनाथजी की जमीन छिने ? (धर्मशाला तोड़कर लग्जरी होटल निर्माण, बिना पार्किंग के होटल निर्माण, मन्दिर की जमीन हाथ से निकलना, मन्दिर के धन की बबार्दी, मन्दिर की परम्पराओं को तोड़ना, बृजवासियों के अधिकार छिनना) (४)निष्पादन अधिकारी, कलेक्टर व विधायक पर विश्वास ? जो जनता को असुविधा दे व श्रीनाथजी की जमीन छिने ? (आईकोनिक गेट, लालबाग बस स्टैण्ड की जमीन, श्रीनाथजी के धन की बबार्दी, एलिवेटेड पुल व उसके नीचे का गाडँन) (५)जनता व श्रीनाथजी किस पर व कैसे विश्वास करें ? उक्त व्यक्ति पद व प्रतिष्ठा पाने के बाद अपनी मनमानी क्यों ? (स्थानीय बोर्ड सदस्य, मन्दिर मण्डल बोर्ड, मठाधीश, निष्पादन अधिकारी, कलेक्टर व विधायक) सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी #(216) #21/10/22 #dineshapna


 

Wednesday, 19 October 2022

विश्वास स्वरुपम् का लोकर्पण है, तो विश्वास जीते ! जनता का विश्वास व श्रीनाथजी का विश्वास जीते ! शिव जी की विशाल मूर्ति बनाने के लिए दिल से धन्यवाद ! (१)शिव जी का नाम "विश्वास स्वरुपम्" रखा है और उसे लोगों को अर्पण कर रहे है तो आम आदमी/श्रीनाथजी को भी यह जानने को हक है कि कहीं उनके विश्वास के साथ कोई विश्वासघात तो नहीं हो रहा है ! (२)नगरपालिका, नाथद्वारा ने जनहित मे शिवमूर्ति के लिए आम जनता की 25 बिघा जमीन लीज पर 30 वर्ष के बाद पुनः जनता को देने की शर्त पर दी थी, किन्तु उसकी अवधि 99 वर्ष बढ़वाई गई ! तो क्या यह जनता के साथ विश्वासघात नहीं है ? (३)एलिवेटेड पुल के नीचे की जमीन सड़क व पार्किंग के लिए ही उपयोग मे लेनी चाहिए, अतः यदि उस पर जनहित के विरुद्ध जबरदस्ती गाडँन बनाया जाता है ! तो क्या यह जनता के साथ विश्वासघात नहीं है ? (४)मन्दिर के द्वारा हाई स्कूल की जमीन व बिल्डिंग शिक्षा के लिए दी तथा जो आज भी मजबूत व उपयोगी होने के बावजूद किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने के लिए उसे तोड़कर, पुनः बनाना धन की बबार्दी है ! तो क्या यह जनता के साथ विश्वासघात नहीं है ? (५)आम जनता के साथ हो रहे विश्वासघात को रोकने की जिम्मेदारी बोर्ड सदस्य / स्थानीय बोर्ड सदस्य / मठाधीश / निष्पादन अधिकारी / कलेक्टर / विधायक की है ! तो क्या उक्त व्यक्तियो को आम जनता के विश्वास को बनाये रखने के लिए प्रयास नहीं करना चाहिए ? सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी #(215) #19/10/22 #dineshapna


 

Tuesday, 18 October 2022

विश्वास स्वरुपम् का लोकर्पण है, तो विश्वास जीते ! जनता का विश्वास व श्रीनाथजी का विश्वास जीते ! शिव जी की विशाल मूर्ति बनाने के लिए दिल से धन्यवाद ! (१)शिव जी का नाम "विश्वास स्वरुपम्" रखा है और उसे लोगों को अर्पण कर रहे है तो आम आदमी/श्रीनाथजी को भी यह जानने को हक है कि कहीं उनके विश्वास के साथ कोई विश्वासघात तो नहीं हो रहा है ! (२)श्रीनाथजी की लालबाग बस स्टैण्ड की 45000 वर्गफीट जमीन 2000/- प्रतिवर्ष किराए पर नगरपालिका, नाथद्वारा को दी ! उसमें से 17798 वर्गफीट जमीन नगरपालिका ने बेच दी ! यह विश्वासघात है ! (३)आईकोनिक गेट व माँडल बस स्टैण्ड बनाने के लिए 17798 वर्गफीट जमीन नगरपालिका से ली, तब भी माँडल बस स्टैण्ड पर व्यक्ति विशेष का नाम लगाया है, तो क्या यह आम आदमी के साथ विश्वासघात नहीं है ? (४)पहली बार स्थानीय व्यक्ति मन्दिर मण्डल का बोर्ड सदस्य बना है तो उनको बधाई ! किन्तु उनका दायित्व भी बनता है कि मन्दिर मण्डल की जमीनों / धन की रक्षा करें ! (५)श्रीनाथजी की लालबाग बस स्टैण्ड की जमीन, लावटी पेट्रोल पम्प की जमीन, बड़ा मगरे की जमीन, भीलवाड़ा की जमीन को बचाने की जरूरत है ! यदि यह (बोर्ड सदस्य / स्थानीय बोर्ड सदस्य / मठाधीश / निष्पादन अधिकारी / कलेक्टर / विधायक) जमीन नहीं बचाते है तो यह श्रीनाथजी के साथ विश्वासघात है ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी #(214) #18/10/22 #dineshapna



 

Monday, 17 October 2022

विश्वास स्वरुपम् का लोकर्पण है, तो विश्वास जीते ! जनता का विश्वास व श्रीनाथजी का विश्वास जीते ! (१)शिव जी की विशाल मूर्ति बनाने के लिए दिल से धन्यवाद ! किन्तु जो नाम "विश्वास स्वरुपम्" रखा है और उसे लोगों को अर्पण कर रहे है तो आम आदमी को जानने को हक है कि उसके विश्वास के साथ धोखा तो नहीं हुआ है ! (२)आईकोनिक गेट बनाना, क्या यह कार्य आम आदमी के विश्वास के अनुरूप है ? (३)आईकोनिक गेट से आने जाने मे परेशानी है, पड़ोसी दुकानदारों को परेशानी है, गाडँन का जनता को फायदा नहीं है, पार्किंग की समस्या है ! तो क्या यह आम आदमी के साथ विश्वासघात है ? (४)इस आईकोनिक गेट की कीमत (एवज मे जमीन) वसूलने के बावजूद यह कार्य जनहित मे कैसे हो सकता है ? (५) आईकोनिक गेट के स्थान पर "आईकोनिक सर्कल" बनाया जाता तो उक्त कोई समस्या पैदा ही नहीं होती ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी #(213) #17/10/22 #dineshapna






 

Saturday, 15 October 2022

भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना ही सभी धर्मो के हित मे है ! हिन्दू राष्ट्र मे बाधक कौन ? क्यों ? व कैसे बाधाओं को हटाया जाये ? (१)हिन्दू राष्ट्र क्यों हो ? - "एकरुपता" से "शान्ति" स्थापित होती है ! शान्ति से "विकास" होता है ! विकास से "सम्पन्नता" मिलती है ! सम्पन्नता से "आनन्द" मिलता है ! आनन्द ही "व्यक्ति का अन्तिम लक्ष्य" है ! (२)सनातन / हिन्दू धर्म ही ऐसा एक मात्र धर्म है जो "वसुदेव कुटुम्ब" की धारणा पर आधारित है ! जब पूरे विश्व को कुटुम्ब बनाएगे तो एकरूपता होगी ! किन्तु हम पूरे विश्व को एक कुटुम्ब नहीं बना पा रहे है तो हमें अपने राष्ट्र को "एक कुटुम्ब" तो आसानी से बना सकते है ! इसके लिए हमे भारत को "हिन्दू राष्ट्र" बनाकर 130 करोड़ लोगों को एकजुट करके "एकरूपता" आसानी से ला सकते है ! जब एकरूपता होगी तो शान्ति - विकास - सम्पन्नता - आनन्द को प्राप्त कर सकते है ! (३)हिन्दू राष्ट्र बनाने मे बाधक कौन है ? - कुछ नेता, कुछ राजनैतिक पार्टी, कुछ हिन्दू, कुछ शताब्दी पूर्व बदले हिन्दू, धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति व धर्मनिरपेक्षता शब्द ! (४)हिन्दू राष्ट्र बनाने की बाधाओं को कैसे दूर करे ? - हम हिन्दू है तो हिन्दू धर्म को 100% आत्मसात करें ! जैसे - श्रीराम की मर्यादा को अपनाये तो श्रीराम के धनुष को भी आत्मसात करें ! श्रीकृष्ण की मुरली को अपनाये तो श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र को भी आत्मसात करें ! (५)देश व देशवासियों की सभी समस्याओं का एकमात्र हल है कि हम श्रीकृष्ण को 100% आत्मसात करें ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी #(212) #15/10/22 #dineshapna