Wednesday, 1 October 2025

★ *"एक" दिन (02/10/25)* *किन्तु "दो" दिवस* ★ (*अहिंसा रखें* "या" *धर्म रक्षार्थ हिंसा*) एक ही सूरज, दो दीपक जले, गाँधी की प्रतिमा, राम की गाथा चले। एक ने कहा – *“अहिंसा है शक्ति”*, दूसरे ने दिखाया – *“धर्म-युद्ध है भक्ति”*। *गाँधी बोले – सत्याग्रह अपनाओ*, अंग्रेजी जंजीरों को प्रेम से हटाओ। *राम ने कहा* – अधर्म जब छाए, *शस्त्र उठाओ*, सत्य को बचाए। सवाल खड़ा है – किसे मानें सही? क्या वाणी से टूटेगी जंजीर कहीं? या फिर रणभूमि में जब अन्याय बढ़े, *तो धर्म-सेना ही विजय पथ गढ़े*? निर्णय यही है, समय का संकेत, सत्य के लिए दोनों साधन उपयुक्त हैं विशेष। *जहाँ संवाद से शांति संभव हो*, वहाँ *अहिंसा से ही विजय* निश्चय हो। पर *जब अत्याचार सीमा लांघे*, तो राम का *धनुष ही धर्म संभाले*। इसलिए जीवन का संदेश यही, *“सत्य और धर्म ही दोनों पथ सही।”* *कभी गाँधी का मार्ग, कभी राम की ज्योति*, दोनों मिलकर देती हैं मानव को स्वाधीनता की ओटि। सीए दिनेश चन्द्र सनाढ्य #एक हिन्दुस्तानी (52) #01/10/25 #dineshapna


 

No comments:

Post a Comment