Sunday 14 June 2020

■१■श्रीकृष्ण बृजवासी प्रेम■२■प्रेमीजनों के बीच अन्य का क्या काम ?■३■श्रीकृष्ण प्रेम के बदले भक्त की रक्षा■४■निस्वार्थ प्रेम की कृपा श्रीकृष्ण की अटूट भक्ति■ ★★★★★एक बृजवासी की श्रीकृष्ण से सीधी बात★★★★★ ■■■■■ 【1】■■■■■ ★श्रीकृष्ण बृजवासी प्रेम ★ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ◆हम बृजवासियों की आपसे ●"साक्षात् प्राकृट्य" 5132 वर्ष पूर्व बृज मे आपके "मानव जन्म" के साथ हुई, उस समय हमने आपसे "निस्वार्थ प्रेम" करना सीखा ! उसके 126 वर्ष बाद आप हमें इस संसार माया मे अकेले छोड़कर चले गये, तब आपके प्रेम व शब्दों की यादो मे हमने 4521 वर्ष बीता दिये ! ◆उसके बाद आपने हमारे निस्वार्थ प्रेम के प्रतिफल स्वरूप दया करके पुनः सन् 1409 मे अर्थात् 611 वर्ष पूर्व बृजभूमि गिरिराज जी पर वर्तमान ●"स्वरूप प्राकृट्य" हो प्रेम करने का अवसर दिया ! हम बृजवासी तभी से आपके श्रीनाथजी के स्वरूप से निस्वार्थ प्रेम के साथ सेवा कर रहे है ! ◆आपने अपने प्राकृट्य के 97 वर्ष बाद "श्रीवल्लभाचार्य जी" को सन् 1506 मे भेजा तो उनके साथ हम आपकी "सेवा विधि विधान से" निस्वार्थ प्रेम से कर रहे है ! ◆हम बृजवासी आप श्रीकृष्ण के 5132 वर्ष पूर्व के श्रीकृष्ण से "निस्वार्थ प्रेम" व श्रीवल्लभाचार्य जी के ब्रह्म (श्रीकृष्ण) से "शुद्ध प्रेम" के 514 वर्ष पूर्व के सन्देश को पूर्ण ईमानदारी से 100% आत्मसात करते हुए आजतक निभा रहे है ! आपका ऐसा अनुग्रह बना रहे ! ◆इसके बाद आक्रान्ताओं के कारण हम आपके साथ बृज छोडकर मेवाड़ मे आये ! आपके 5132 वर्ष पूर्व के सन्देश प्रेम को अभी तक भी हम पूर्ण ईमानदारी से निभा रहे है ! इस निस्वार्थ प्रेम को आप और हम समझ रहे है, ऐसा "हमारा आपसी प्रेम" दुनिया भी देखकर आश्चर्य चकित है, क्योंकि ऐसा उदाहरण अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिल सकता है, यह सभी आपकी कृपा व प्रेम है ! ◆दुनिया मे किसी भी मन्दिर मे प्रभु की सेवा करने वाले प्रभु की सेवा करते हुए "मन्दिर की सम्पत्तियों से भी इतना प्रेम" करने लग जाते है कि मन्दिर की सम्पत्तियों को ही "अपनी सम्पत्ति समझने" लग जाते है ! किन्तु एक बृजवासी ही ऐसे है जिन्होने केवल श्रीनाथजी से प्रेम किया व उसके लिए "अपनी स्वयं की सम्पत्तियों को भी बृज छोड़ते समय त्याग कर दी" व जरूरत पड़ने पर अपने "श्रीजी व उनकी सम्पत्तियों की रक्षार्थ अपने प्राण तक त्याग" दिये ! ★हम बृजवासी अपने श्रीकृष्ण (श्रीनाथजी) से एक ही चीज मांगना चाहते है कि जैसा प्रेम हमारे बीच 611 वर्षो से बना हुआ है और जैसा 5132 वर्षो से बना आ रहा है , वैसा ही ●"प्रेम बना रहे" ! इसके साथ एक और निवेदन है कि आपके व हमारे ●"प्रेम के बीच अन्य कोई नहीं आये", चाहे वह माया हो या माया प्रेमी हो ! ★बृजवासी श्रीकृष्ण से प्रेम करते है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण भी बृजवासियों से प्रेम करते थे, इसलिए आज से 5112 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण बृजवासी की रक्षार्थ मथुरा विजय की ! संयोग से वर्तमान मे "श्रीकृष्णा टीवी सीरियल" मे श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस को मारकर बृजवासियों व मथुरावासियों की रक्षा की ! यह श्रीकृष्ण का बृजवासियों के प्रति प्रेम है ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ श्रीकृष्ण का 5132 वर्ष पूर्व दिया सन्देश - "प्रेम" श्रीवल्लभाचार्य का 514 वर्ष पूर्व पुष्टि मार्ग - "प्रेम" बृजवासी के 5132 वर्ष से चलने वाला पथ - "प्रेम" ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ - दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी ! - 10/06/2020 www.dineshapna.blogspot.com ■■■■■ 【2】■■■■■ ★श्रीकृष्ण (ब्रह्म) व प्रेमी भक्त के बीच "अन्य" का क्या काम ?★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ◆जब भक्त श्रीकृष्ण (ब्रह्म) से #प्रेम करता है तो अन्य (#माया) का कोई स्थान नहीं होना चाहिए, तथा अन्य (स्वार्थी / लोभी / अत्याचारी / अधर्मी) का भी कोई स्थान नहीं होना चाहिए ! यदि कोई अन्य व्यक्ति बीच मे आता है तो उसको श्रीकृष्ण (ब्रह्म) हटा देते है या भक्त को ही अन्य (माया/व्यक्ति) को बीच मे से हटा देना चाहिए, क्योंकि "सच्चे भक्त" को भी "निष्काम_कर्म" तो करना ही है ! ◆आज से 5132 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण (ब्रह्म) व बृजवासियों के बीच केवल प्रेम ही था, किन्तु उनके बीच #अन्य (पूतना/राक्षस/कालिया/इन्द्र/ब्रह्मा जी) आये तो श्रीकृष्ण (ब्रह्म) ने उनको हटा दिया ! राजा #कंस ने भी श्रीकृष्ण व बृजवासियों के प्रेम के बीच मे आने का असफल प्रयास किया, तब भी श्रीकृष्ण ने उसको भी हटा दिया ! प्रेमी भक्तों (बृजवासियों) ने भी "माया" को बीच मे नहीं आने दिया, यह एक भक्त का कर्म है ! ◆श्रीवल्लभाचार्य_जी ने भी पुष्टि_मार्ग मे श्रीकृष्ण (ब्रह्म) से माया को भिन्न बताया तथा कहा कि श्रीकृष्ण (ब्रह्म) से सम्बन्ध जोडे व "माया" को मिथ्या समझकर उसे श्रीकृष्णार्पण कर दे ! इसलिए सच्चे भक्त को श्रीकृष्ण (ब्रह्म) से निस्वार्थ_प्रेम करते हुए अपने सभी कर्म श्रीकृष्णार्पण करने चाहिए व श्रीकृष्ण से अनुग्रह प्राप्त करना चाहिए ! ◆यह सभी ज्ञान श्रीवल्लभाचार्य जी ने वैष्णवों के लिए दिया था तथा साथ मे अपने वंशजों को भी चेतावनी दी कि आपको भी केवल श्रीकृष्ण (ब्रह्म) के चरणों मे अपनी भक्ति व मन लगाना है, "माया" की ओर मन भटकाना नहीं चाहिए ! यह ज्ञान बृजवासियों को नहीं दिया क्योंकि श्रीवल्लभाचार्य जी सर्वज्ञानी होने के कारण जानते थे कि श्रीकृष्ण व बृजवासियों का प्रेम अटूट व निस्वार्थ है ! इसलिए श्रीकृष्ण (ब्रह्म) ने बृजवासियों के प्रेम के कारण ही 4521 वर्ष बाद पुनः उसी गिरीराज पर्वत पर स्वयं "प्राकृट्य_प्रतिमा रुप मे" हुए ! ◆यह सामान्य सी बात है कि दो के बीच तीसरे को नहीं आना चाहिए क्योंकि "दो_पाटो के बीच #साबूत बचा न कोय" ! यहाँ भी #श्रीकृष्ण व बृजवासियों के प्रेम के बीच किसी अन्य का कोई स्थान नहीं है, किन्तु वर्तमान मे कलयुग चल रहा है इसलिए इनके बीच मे "मनोनुकूल_कानून व स्वनिर्मित_परम्पराओं" को लाने का कुप्रयास किया जा रहा है ! यह सभी कुचेष्टा "निजी_लाभ व अनाधिकृत_अधिकार" प्राप्त करने के लिए की जा रही है ! यह सभी "माया" से प्रेरित होकर किया जा रहा है ! अतः हमें श्रीवल्लभाचार्य जी के कहे अनुसार व्यक्ति को "माया" के झंझाल से दूर रहते हुए केवल #श्रीकृष्ण से प्रेम करना चाहिए ! ◆श्रीवल्लभाचार्य जी से पूर्व जैसे श्रीकृष्ण - बृजवासी के बीच ●"निस्वार्थ प्रेम" था ! श्रीवल्लभाचार्य जी के समय जैसे श्रीकृष्ण - बृजवासी व श्रीकृष्ण - वल्लभाचार्य जी व श्रीकृष्ण - अष्ट छाप कवि / वैष्णवों के बीच ●"शुद्ध प्रेम" था ! किन्तु वर्तमान मे श्रीकृष्ण - बृजवासी / कुछ वैष्णवों के बीच ही ●प्रेम रहा है, शेष सभी "माया" मे फँसे हुए है , अतः अब हमें अपना निष्काम कर्म करना है ! ●●●●●●●●● शेष श्रीकृष्णार्पण ! ●●●●●●●●●● श्रीकृष्ण से निस्वार्थ प्रेम करें ! श्रीकृष्ण पर अडिग विश्वास करें ! स्वयं निष्काम कर्म करें ! स्वयं के सभी कर्म श्रीकृष्णार्पण करें ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 11/06/2020 at 09.24 P.M. #dineshapna ■■■■■【3】■■■■■ ★"श्रीकृष्ण प्रेम" के बदले "भक्त की रक्षा" करते है !★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ◆श्रीकृष्ण (विष्णु) से "जो प्रेम करता" है उस भक्त के लिए व उसकी रक्षा के लिए सक्षम राजाओं / सम्राटों से भी लड़कर उनकी "अनीति/अन्याय से मुक्ति" दिलाई ! जैसे ●"प्रहलाद" के प्रेम के कारण स्वघोषित भगवान हरिण्यकश्यप से , ●"बृजवासियों" के प्रेम के कारण इन्द्र विजयी राजा कंस से , ●"अर्जुन" सखा प्रेम के कारण स्वघोषित युवराज दुर्योधन + 11 अक्षौहिणी सेना + अन्याय के सहयोगी गुरु, महाबलियों, इच्छा मृत्यु प्राप्त महान व्यक्ति से भी मुक्ति दिलाई ! ◆श्रीकृष्ण प्रेम मे भक्त (प्रहलाद) से "पुत्रवत् व्यवहार" करते है तो सखा (बृजवासी/अर्जुन) से "मित्रवत् व्यवहार" करते है, और उनकी रक्षार्थ व अन्याय के विरुद्ध अपने मामा /अपने रिश्तेदार /अपने गुरु समान व्यक्ति को भी दण्ड़ देते है ! यह सभी "प्रेम व न्याय" की रक्षार्थ ही करते है ! ●यह बात वर्तमान मे अन्याय करने वाले को ध्यान रखना चाहिए कि श्रीकृष्ण (विष्णु) • हर कण , • हर पल व • हर व्यक्ति मे विधमान है, केवल व्यक्ति को श्रीकृष्ण (विष्णु) को आत्मा से पुकारने की देर है ! ◆अन्यायी "धन व शक्ति" लेता तो श्रीकृष्ण (विष्णु) व देवताओं से ही है किन्तु वह उस "धन व शक्ति" का दुरुपयोग व अहंकार करने लग जाता है ! इससे भी अति तब करता है जब आम जनता व "श्रीजी भक्तों के साथ अन्याय" करने लग जाता है ! ● वर्तमान मे भी कुछ व्यक्ति श्रीकृष्ण (विष्णु) व धर्म के नाम पर धन व शक्ति प्राप्त करके , उसका दुरुपयोग आम जनता के साथ अन्याय करके कर रहे है ! उन्हे अन्यायी हरिण्यकश्यप, कंस व दुर्योधन के अन्त को भी याद रखना चाहिए ! ◆श्रीकृष्ण के सखा "अर्जुन" व "बृजवासी" है ! श्रीकृष्ण ने अपने सखा अर्जुन की सहायता सारथी बनकर की, किन्तु युद्ध तो अर्जुन को ही लड़ना पडा! उसी प्रकार वर्तमान मे भी श्रीकृष्ण अपने सखा बृजवासियों के लिए केवल सारथी ही बनेंगे, युद्ध तो बृजवासियों को स्वयं ही लड़ना पड़ेगा ! ●अब उठो बृजवासियों ! श्रीकृष्ण के आदेश से युद्ध करो , क्योंकि गीता का उपदेश तो पूर्व मे दिया जा चुका है, अब केवल धर्मयुद्ध शुरू करो ! ● इससे पूर्व शान्ति सन्देश शीघ्र श्रीकृष्ण की आज्ञा से भेजा जायेगा ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ श्रीकृष्ण का अपने भक्तों से प्रेम ! श्रीकृष्ण अपने भक्तों के लिए स्वयं युद्ध करते हैं ! श्रीकृष्ण का अपने सखा से प्रेम ! श्रीकृष्ण अपने सखा के लिए सारथी बनते है ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 12/06/2020 www.dineshapna.blogspot.com ■■■■■【4】■■■■■ ★★श्रीकृष्ण की "अटूट भक्ति" कृपा है, बृजवासियों की "निस्वार्थ प्रेम" की !★★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ◆बृजवासियो व गोपीयों ने वर्षों पूर्व कई वर्षों तक श्रीकृष्ण की भक्ति व प्रेम किया, तो उसके परिणामस्वरूप श्रीकृष्ण ने बृज मे "मानव स्वरूप" मे 5132 वर्ष पूर्व प्राकृट्य हुए ! इसके बाद बृजवासियों का श्रीकृष्ण प्रेम और बढ़ गया ! श्रीकृष्ण के लीला काल मे भी बृजवासियों ने श्रीकृष्ण से कुछ भी माँगा नहीं ! केवल निस्वार्थ प्रेम ही दिया ! यह बृजवासियों का श्रीकृष्ण प्रेम अनूठा व अतुलनीय है, ऐसा निस्वार्थ प्रेम अन्य किसी भी भक्तों मे देखने को नहीं मिलता है ! ◆पहले भी कई भक्त हुए , ऋषि व देवता हुए , सभी ने श्रीकृष्ण (विष्णु) की भक्ति की, उनसें "भक्ति व प्रेम" के पीछे कुछ न कुछ पाने का कारण जरूर था, चाहे वह वरदान/मोक्ष/जनकल्याण हो ! किन्तु बृजवासियों की "भक्ति व प्रेम" के पीछे कोई कारण/उद्देश्य/लालसा/ईच्छा नहीं थी व नहीं है ! इसलिए उनका "प्रेम अद्वितीय व अनुपम" है ! ◆बृजवासी चाहते तो द्वापरयुग मे श्रीकृष्ण से कुछ भी माँग सकते थे किन्तु उन्होंने अपने "निस्वार्थ प्रेम" के बदले कुछ भी नहीं माँगा ! उसके बाद भी बृजवासी श्रीकृष्ण से निरन्तर कई सदीयों तक निस्वार्थ प्रेम करते रहे ! उसी निस्वार्थ प्रेम से अभिभूत हो श्रीकृष्ण को पुनः उसी बृजभूमि व उसी गिरीराज पर्वत पर 4521 वर्ष बाद "प्रतिमा स्वरूप" मे प्राकृट्य होना पडा ! तब से बृजवासी उस स्वरूप को श्रीकृष्ण के रुप मे आज दिन तक "निस्वार्थ प्रेम व सेवा" कर रहे है ! ◆वेद व पुराणों मे कई उदाहरण है कि कई ऋषियों व भक्तों ने कई हजार वर्षों तक भक्ति/तपस्या केवल मोक्षप्राप्ति/वरदान प्राप्ति/जनहित हेतु श्रीकृष्ण (विष्णु) की उपासना की व अभी भी भक्ति व तपस्या कर रहे है ! किन्तु बृजवासीयो ने "निस्वार्थ प्रेम" से भक्ति की, जिसके प्रतिफल मे कोई आशा नहीं की ! जिस कारण श्रीकृष्ण (विष्णु) ने दो बार (5132 वर्ष पूर्व व 611 वर्ष पूर्व) व दो प्रकार से (मानव रुप मे व प्रतिमा रुप मे) बृजवासियो के लिए बृज मे पधारे व सेवा का अवसर दिया ! संसार मे श्रीकृष्ण (विष्णु) ने केवल बृज व बृजवासियों पर "दो बार कृपा की" ! यह अद्वितीय व अतुलनीय उदाहरण व उपहार है ! ◆सर्वज्ञानी व सर्वज्ञाता श्रीवल्लभाचार्य जी ने श्रीकृष्ण "भक्ति व प्रेम" के लिए शिक्षा अपने शिष्यों, वैष्णवों व अपने वंशजों को दी किन्तु बृजवासियों को नहीं दी, क्योंकि वह जानते थे कि बृजवासी ही 4618 वर्षों से श्रीकृष्ण से "निस्वार्थ प्रेम से भक्ति" कर रहे है ! ◆बृजवासी जानते है कि श्रीकृष्ण से "निस्वार्थ प्रेम" करने के लिए अपना समय, श्रम व अपना सर्वश्व "श्रीकृष्णार्पण" करना है ! जब कोई अपना सर्वश्व श्रीकृष्ण को समर्पण कर देता है तब वह श्रीकृष्ण मे एकाकार हो जाता है , तब दोनों समान हो जाते है , जब दोनों समान हो जाते है , तो दोनों मित्र हो जाते है ! अतः श्रीकृष्ण व बृजवासी मित्र हैं ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ श्रीकृष्ण से निस्वार्थ प्रेम करो ! श्रीकृष्ण की अटूट भक्ति पाओ ! श्रीकृष्ण की तपस्या करोगे तो वरदान व मोक्ष मिलेगा ! श्रीकृष्ण से निस्वार्थ प्रेम करोगे तो श्रीकृष्ण को पाओगे ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 13/06/2020 www.dineshapna.blogspot.com






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