Saturday 20 June 2020

■१- निस्वार्थ प्रेम V/S कर्त्तव्य■२- पुष्टि मार्ग V/S प्रेम मार्ग ■३- प्रेम मार्ग ही पुष्टि मार्ग■४- निस्वार्थ प्रेम V/S प्रेम ●●●●●●●●●●●●●○○○○○●●●●●●●●●●●●● ■सूर्य व पृथ्वी के बीच {चन्द्रमा} आने पर "सूर्यग्रहण"! ■श्रीनाथजी व बृजवासियों के बीच {नाथद्वारा मन्दिर मण्डल +सम्पूर्ण} आने पर "अधिक्रमण" ! ●●●●●●●●●●●●●○○○○○●●●●●●●●●●●●● #$$$$$$$$$$$$$# ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ●●●●●●========●●१●●=======●●●●●●● ★★बृजवासी का "निस्वार्थ प्रेम" V / S बोर्ड मैम्बर्स / अधिकारी का "कर्त्तव्य"★★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ■निस्वार्थ प्रेम वही होता है जो ●बिना किसी स्वार्थ / प्रतिफल की आशा के दूसरे के लिए कुछ भी किया जाये , ●दूसरे का सम्मान करें , ●दूसरे के प्रति आदर व सर्मपण भाव रखें ! निस्वार्थ प्रेम करने वाला व्यक्ति हमेशा ●अटूट विश्वास करता है ! ■कर्तव्य का अभिप्राय उन कार्यों से होता है, जिन्हें करने के लिए व्यक्ति ●नैतिक रूप से प्रतिबद्ध होता है। एक ●पारिश्रमिक प्राप्ति के बदले नैतिक बंधन मात्र है। कर्तव्य दो प्रकार के होते हैं- नैतिक तथा कानूनी। नैतिक कर्तव्य वे हैं जिनका संबंध ●मानवता की नैतिक भावना, ●अंत:करण की प्रेरणा या उचित कार्य की प्रवृत्ति से होता है। यदि मानव इन कर्तव्यों का पालन नहीं करता तो स्वयं उसका अंत:करण उसको धिक्कार सकता है, या समाज उसकी निंदा कर सकता है ! कानूनी कर्तव्य वे हैं जिनका पालन न करने पर नागरिक ●राज्य द्वारा निर्धारित दंड का भागी हो जाता है। ■श्रीनाथजी से बृजवासी "निस्वार्थ प्रेम" करते थे इसलिए सन् 1409 से 1506 तक बिना प्रतिफल की आशा के ●97 वर्ष तक सेवा की , उसके उपरान्त महाप्रभु वल्लभाचार्य जी पधारे व श्रीनाथजी के दर्शन की इच्छा जाहिर की तो तुरंत ●बृजवासी सद्दू पाण्डे ने वल्लभाचार्य जी को श्रीनाथजी से मिला दिये ! उसके बाद श्रीवल्लभाचार्य जी के कहे अनुसार श्रीनाथजी की सेवा आजतक निस्वार्थ भाव से कर रहे है ! जब बृज (जतिपुरा) मे संकट आया तो श्रीनाथजी के लिए अपने प्राण तक दिये व अपनी सम्पत्ति छोडकर मथुरा से मेवाड़ तक आये ! यहाँ नाथद्वारा मे आक्रमण हुए तो अपने प्राण देकर रक्षा की ! ●बृजवासीयो का श्रीनाथजी से "निस्वार्थ प्रेम" का 611 वर्षो का इतिहास है ! ■सत्ता से असुरक्षा :- श्रीनाथजी को बृज (मथुरा) मे सन् 1669 मे सत्ता व अधिकारी से असुरक्षा थी व शायद सन् 1959 के बाद भी सत्ता व बोर्ड मैम्बर्स/अधिकारी से असुरक्षा बढ़ रही है ! क्योंकि इतिहास गवाह है कि हमेशा कुछ सत्ताधीशों से ही असुरक्षा होती है जैसे अकबर, शाहजहाँ व जहाँगीर से नहीं औरंगजेब से असुरक्षा थी ! ■सन् 1959 मे नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन श्रीनाथजी की सम्पत्तियों की रक्षार्थ किया था ! इस प्रकार कुछ वर्षो तक सत्ताधीशों ने सुरक्षा भी की, किन्तु वर्तमान के सत्ताधारी, बोर्ड मैम्बर्स व अधिकारियों के काम व व्यवहार से श्रीनाथजी की सम्पत्तियों की सही ढंग से सुरक्षा नहीं हो पा रही है ! इसके अनेकों उदाहरण प्रमाण सहित है ! इसलिए इनसे (सत्ता से) असुरक्षा है ! ■पहले श्रीवल्लभाचार्य जी, उनके पुत्र व पौत्रों ने असुरक्षा की स्थिति मे पलायन किया, किन्तु वर्तमान मे उनके वंशज ऐसी असुरक्षा की स्थिति मे चुप है यानि मौन स्वीकृति है ? CA. Dinesh Sanadhya - 14/06/2020 www.dineshaona.blogspot.com ●●●●●●=======●●२●●=========●●●●●● ★★श्रीवल्लभाचार्य जी का "पुष्टि मार्ग" 1479 V/S बृजवासियों का "प्रेम मार्ग" 1409★★ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● श्रीवल्लभाचार्य जी के अनुसार षुष्टिमार्ग :- (सन् 1479 से ......) ◆भक्त स्वयं अपने आराध्य के समक्ष आत्मसमर्पण करता है ! ◆भगवान के अनुग्रह से भक्ति उत्पन्न होती है , उसे पुष्टि भक्ति कहते है ! ◆ऐसा भक्त भगवान के स्वरूप दर्शन के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता है ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ●श्रीवल्लभाचार्य जी के पुष्टि मार्ग पर पूर्व से ही ●बृजवासी चले, वह प्रेम मार्ग ●(तीन बिन्दु के अनुसार ◆ ◆ ◆ शब्दों मे व्याख्या ) ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● बृजवासियों के अनुसार निस्वार्थ प्रेम :- (सन् 1409 से ......... ) ◆भक्त स्वयं अपने आराध्य के समक्ष "आत्मसमर्पण" करता है ! 【【जब भक्त (बृजवासी) को प्रथम बार आराध्य की ऊध्र्व भुजा के दर्शन होते ही आत्मसमर्पण किया, इससे भी पूर्व भक्त (बृजवासी) की गाय ने भी आत्मसमर्पण अपने दूध का किया ! उसके बाद जैसे ही बृजवासियों ने स्वतः "आत्मसमर्पण" किया !】】 ◆ "भगवान के अनुग्रह" से भक्ति उत्पन्न होती है , उसे पुष्टि भक्ति कहते है ! 【【उसके बाद "भगवान श्रीकृष्ण ने अनुग्रह" किया, तो बृजवासियों मे भक्ति उत्पन्न हुई जो अनवरत रुप से 97 वर्षों तक (श्रीवल्लभाचार्य जी के जतिपुरा पधारने के पूर्व तक) जारी थी, तथा जो आजतक (611 वर्षो तक) विद्दमान है व आगे भी रहेगा !】】 ◆ऐसा भक्त भगवान के "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता है ! 【【 बृजवासी श्रीनाथजी के प्राकृट्य सन् 1409 से सन् 1506 श्रीवल्लभाचार्य जी के पधारने से पूर्व 97 वर्ष तक केवल "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं की !】】 दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 16/06/2020 #dineshapna ●●●●●●==========३===========●●●●●● ★प्रभुजी का "प्रेममार्ग" ही महाप्रभुजी का "पुष्टिमार्ग"★ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ◆सर्वशक्तिमान प्रभु (श्रीकृष्ण) ने आज से 5132 वर्ष पूर्व बृज मे अवतार लिया तब बृजवासियों ने निस्वार्थ प्रेम व समर्पण के द्वारा श्रीकृष्ण से अनुग्रह मे "प्रेम भक्ति" प्राप्त की तथा श्रीकृष्ण ने बृजवासियों के साथ मित्रवत व्यवहार किया ! ◆सर्वशक्तिमान प्रभु (श्रीकृष्ण) के द्वारा बृजवासियों को "मित्र बनाने" के कारण व श्रीकृष्ण के कृष्णावतार की लीला पूर्ण करने के बाद भी बृजवासियों को श्रीकृष्ण ने "अनुग्रह" मे "निस्वार्थ प्रेम भक्ति" दी ! ◆बृजवासी को सर्वशक्तिमान प्रभु (श्रीकृष्ण) द्वारा "मित्र" बनाने के कारण उनके समकक्ष बृजवासी को प्रभुजी श्रीकृष्ण ने बनाये ! ◆बृजवासी 5132 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण से निस्वार्थ प्रेम को उनके लीला समाप्ति के बाद भी प्रतिमा रुप मे 4521 वर्ष बाद तक भी निरन्तर प्रेम करते रहे ! इसी "निस्वार्थ प्रेम" के कारण सर्वशक्तिमान प्रभु (श्रीकृष्ण) को अपने मित्र बृजवासियों के लिए 611 वर्ष पूर्व पुनः प्रतिमा रुप मे उसी बृज मे साक्षात् प्रकट हुए ! श्रीकृष्ण व बृजवासी दोनों आपस मे मित्र होने के कारण एक "सर्वशक्तिमान प्रभु" तो दूसरा "प्रभुजी" कहलाये ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ◆बृजवासियों के "निस्वार्थ प्रेम" व "आत्मसमर्पण" के कारण श्रीकृष्ण ने "अनुग्रह" करके उन्हें प्रेम भक्ति दी तथा बृजवासीयो ने भी 5132 वर्षो से केवल "स्वरूप दर्शन" के अलावा अन्य कोई प्रार्थना नहीं की ! 【आत्मसमर्पण + अनुग्रह + स्वरूप दर्शन】 यही "प्रेममार्ग" आगे चलकर "पुष्टिमार्ग" कहलाया ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ◆बृजवासियों ने 4521 वर्ष तक श्रीकृष्ण के साथ एकीकार होकर जो दर्शन व प्रेममार्ग पर चले ! उसको ज्ञान व शब्द रुप मे प्रस्तुत करने के लिए श्रीनाथजी (श्रीकृष्ण) ने महाप्रभुजी को 514 वर्ष पूर्व आज्ञा कर बृज मे बुलाया ! ◆महाप्रभुजी ने श्रीनाथजी (श्रीकृष्ण) की आज्ञानुसार प्रभुजी (बृजवासी) के प्रेममार्ग को ज्ञान व शब्दों मे "पुष्टिमार्ग" के रुप मे वैष्णवजनों के समक्ष रखा ! ◆प्रभुजी (बृजवासियों) के "प्रेममार्ग" व महाप्रभुजी (वल्लभाचार्य जी) के "पुष्टिमार्ग" समान है ! सर्वशक्तिमान प्रभु (श्रीकृष्ण) की आज्ञानुसार ही वल्लभाचार्य जी ने प्रेम मार्ग को पुष्टि मार्ग रुप मे जनकल्याण हेतु परिभाषित किया ! केवल अन्तर यह है कि "प्रेममार्ग" को बृजवासियों ने "वास्तिवकता मे जीया" है व "पुष्टिमार्ग" को वल्लभाचार्य जी ने संसार के जनकल्याण हेतु "ज्ञान व शब्दों मे" प्रकट किया है जिससे श्रीकृष्ण भक्ति का फायदा ज्यादा से ज्यादा लोगो को मिल सके ! दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 18/06/2020 हल्दीघाटी युद्ध - महाराणा प्रताप - 18/06/1576 ●●●● 444 वर्ष ●●●● #dineshapna ●●●●●●=========●●४●●========●●●●●● ★★ब्रह्म (श्रीकृष्ण) से "निस्वार्थ प्रेम" V/S "प्रेम"★★ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ●●ब्रह्म (श्रीकृष्ण) से "निस्वार्थ प्रेम" :- ●१●२●३●● ◆१◆बृजवासियों ब्रह्म (श्रीकृष्ण) से 5132 वर्षो से निस्वार्थ प्रेम कर रहे है ! बृजवासियों ने श्रीकृष्ण के "मानव अवतार" मे प्रेम के बदले कुछ भी नहीं माँगा व उसके बाद भी 4521 वर्षो तक भी श्रीकृष्ण से "निस्वार्थ प्रेम" करते रहे, इसलिए श्रीकृष्ण पुनः "प्रतिमा रुप" मे गोवर्धनजी पर "बृजवासियों के लिए" अवतरित हुए ! इसके बाद बृजवासी 611 वर्ष आजतक भी "निस्वार्थ प्रेम" कर रहे है ! जब बृज मे मुगलों ने आक्रमण किया तो बचाने के लिए अपने प्राण व सम्पत्तियों का त्याग करके मेवाड़ आये ! ◆२◆श्रीवल्लभाचार्य जी / उनके वंशजों ने भी "निस्वार्थ प्रेम" किया व अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण की सेवा मे लगाया ! उन्होंने मन्दिर बनवाने, सेवा प्रणाली, षुष्टिमार्ग का ज्ञान, शिष्यों को शिक्षा, धर्म प्रसार हेतु भारत भ्रमण व मेवाड़ आगमन आदि कार्य निस्वार्थ प्रेम के कारण ही किये ! ◆३◆अष्ट सखा / कुछ भगवती वैष्णवों / श्रीजी समर्पित दर्शनार्थी ने भी "निस्वार्थ प्रेम" किया, जिसके कारण उन्होंने अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण की सेवा मे बिताया व अपना सब कुछ (माया) श्रीजी को न्यौछावर कर दी ! उनकी सेवा आज भी जारी हैं ! ■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■ ●श्रीनाथजी का प्राकृट्य बृजवासीयो "निस्वार्थ प्रेम" के कारण व बृजवासियों के लिए, बृज मे "मित्रभाव" से हुआ !● ●श्रीनाथजी का प्राकृट्य सन् "1409" मे व वल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य सन् "1479" मे हुआ !● ●"बृजवासियों" ने सर्वप्रथम "97 वर्ष" तक निस्वार्थ सेवा की ! यह बृजवासी का "प्रेममार्ग" है जो बाद मे वल्लभाचार्य जी ने ज्ञान व शब्दों मे "पुष्टिमार्ग" का नाम दिया !● ■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■ ◆◆◆◆◆v/s◆◆◆◆◆v/s◆◆◆◆◆v/s◆◆◆◆◆ ●●ब्रह्म (श्रीकृष्ण) से "प्रेम" (ब्रह्मप्रेम + (धन) मायाप्रेम = प्रेम) :-●१●२●३●● ◆१◆वर्तमान महाराजश्री व 8 दशक पूर्व के वंशज ब्रह्म (श्रीकृष्ण) से प्रेम से ज्यादा धन (माया) से प्रेम करने लग गये, साथ ही श्रीवल्लभाचार्य जी के अन्तिम "शिक्षा श्लोक" को भी भूल गये ! इसलिए वल्लभ कुल "महाप्रभुजी" से "महाराजश्री" बनकर मुख्य रूप से केवल माया की उपासना कर रहे है ! उनका व्यवहार व उपदेश भक्ति व ज्ञान के स्थान पर माया मे डूबकर महाराजा जैसे आचरण करने लग गये ! ◆२◆स्वघोषित वैष्णव बोर्ड मैम्बर्स / माया समर्पित वैष्णव / कुछ दर्शनार्थी श्रीजी से प्रेम तो दिखावे के लिए या फायदे के लिए करते है, किन्तु वास्तविकता मे धन (माया) के लिए ही कार्य करते है ! ऐसे व्यक्तियों को श्रीनाथजी व उनके भाव / भक्ति से कोई लेना देना नहीं होता है, यह बात मन्दिर के जिम्मेदार लोगों को समझना चाहिए व निस्वार्थ प्रेम करने वालों (बृजवासियों) को अधिकार दिया जाना चाहिए ! क्योंकि बृजवासियों के अधिकारो को अनिति से संकुचित किया गया ! ◆३◆मन्दिर मण्डल के कर्मचारी / अधिकारी जिन्हें श्रीनाथजी से ज्यादा अपने वेतन व फायदे से प्रेम है ! ऐसे व्यक्ति कभी कभी अपने कर्तव्यों को भी भूल जाते है ! अतः निस्वार्थ प्रेमी व्यक्तियो (बृजवासियों) को अधिकार दिये जाने चाहिए ! ■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■ ●श्रीवल्लभाचार्य जी ने "ब्रह्म से" निस्वार्थ प्रेम करने को कहा, किन्तु वल्लभ कुल व उनके वंशज 8 दशक से केवल "माया से" प्रेम करने लग गये !● ●वल्लभ कुल के वंशज आजकल "ब्रह्म ज्ञान व ब्रह्म सम्बन्ध" के स्थान पर "माया ज्ञान व माया सम्बन्ध" का उपदेश देने व स्वयं उस पर चलने लगे है !● ●श्रीनाथजी व उनकी सम्पत्ति पर न तो किसी वल्लभ कुल का वंशानुगत अधिकार है और न ही उस पर बोर्ड मैम्बर्स का अधिकार है ! श्रीनाथजी पर अधिकार केवल उनके मित्र व उनसे "निस्वार्थ प्रेम" करने वाले बृजवासियों का है !● ■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■ 【श्रीकृष्ण + बृजवासी = निस्वार्थ प्रेम 】 【निस्वार्थ प्रेम + ज्ञान = पुष्टि मार्ग】 ●●●●● श्रीकृष्णार्पण ●●●●● दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 20/06/2020 #dineshapna ◆◆◆अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस - 21/06/2020◆◆◆ ◆◆◆योग = (तन + मन + आत्मा + स्वास्थ्य)◆◆◆ ◆पुष्टि मार्ग = (आत्मसमर्पण+अनुग्रह+स्वरूप दर्शन)◆

















































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