Saturday 13 June 2020

★★श्रीकृष्ण की "अटूट भक्ति" कृपा है, बृजवासियों के "निस्वार्थ प्रेम" की !★★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ◆बृजवासियो व गोपीयों ने वर्षों पूर्व कई वर्षों तक श्रीकृष्ण की भक्ति व प्रेम किया, तो उसके परिणामस्वरूप श्रीकृष्ण ने बृज मे "मानव स्वरूप" मे 5132 वर्ष पूर्व प्राकृट्य हुए ! इसके बाद बृजवासियों का श्रीकृष्ण प्रेम और बढ़ गया ! श्रीकृष्ण के लीला काल मे भी बृजवासियों ने श्रीकृष्ण से कुछ भी माँगा नहीं ! केवल निस्वार्थ प्रेम ही दिया ! यह बृजवासियों का श्रीकृष्ण प्रेम अनूठा व अतुलनीय है, ऐसा निस्वार्थ प्रेम अन्य किसी भी भक्तों मे देखने को नहीं मिलता है ! ◆पहले भी कई भक्त हुए , ऋषि व देवता हुए , सभी ने श्रीकृष्ण (विष्णु) की भक्ति की, उनसें "भक्ति व प्रेम" के पीछे कुछ न कुछ पाने का कारण जरूर था, चाहे वह वरदान/मोक्ष/जनकल्याण हो ! किन्तु बृजवासियों की "भक्ति व प्रेम" के पीछे कोई कारण/उद्देश्य/लालसा/ईच्छा नहीं थी व नहीं है ! इसलिए उनका "प्रेम अद्वितीय व अनुपम" है ! ◆बृजवासी चाहते तो द्वापरयुग मे श्रीकृष्ण से कुछ भी माँग सकते थे किन्तु उन्होंने अपने "निस्वार्थ प्रेम" के बदले कुछ भी नहीं माँगा ! उसके बाद भी बृजवासी श्रीकृष्ण से निरन्तर कई सदीयों तक निस्वार्थ प्रेम करते रहे ! उसी निस्वार्थ प्रेम से अभिभूत हो श्रीकृष्ण को पुनः उसी बृजभूमि व उसी गिरीराज पर्वत पर 4521 वर्ष बाद "प्रतिमा स्वरूप" मे प्राकृट्य होना पडा ! तब से बृजवासी उस स्वरूप को श्रीकृष्ण के रुप मे आज दिन तक "निस्वार्थ प्रेम व सेवा" कर रहे है ! ◆वेद व पुराणों मे कई उदाहरण है कि कई ऋषियों व भक्तों ने कई हजार वर्षों तक भक्ति/तपस्या केवल मोक्षप्राप्ति/वरदान प्राप्ति/जनहित हेतु श्रीकृष्ण (विष्णु) की उपासना की व अभी भी भक्ति व तपस्या कर रहे है ! किन्तु बृजवासीयो ने "निस्वार्थ प्रेम" से भक्ति की, जिसके प्रतिफल मे कोई आशा नहीं की ! जिस कारण श्रीकृष्ण (विष्णु) ने दो बार (5132 वर्ष पूर्व व 611 वर्ष पूर्व) व दो प्रकार से (मानव रुप मे व प्रतिमा रुप मे) बृजवासियो के लिए बृज मे पधारे व सेवा का अवसर दिया ! संसार मे श्रीकृष्ण (विष्णु) ने केवल बृज व बृजवासियों पर "दो बार कृपा की" ! यह अद्वितीय व अतुलनीय उदाहरण व उपहार है ! ◆सर्वज्ञानी व सर्वज्ञाता श्रीवल्लभाचार्य जी ने श्रीकृष्ण "भक्ति व प्रेम" के लिए शिक्षा अपने शिष्यों, वैष्णवों व अपने वंशजों को दी किन्तु बृजवासियों को नहीं दी, क्योंकि वह जानते थे कि बृजवासी ही 4618 वर्षों से श्रीकृष्ण से "निस्वार्थ प्रेम से भक्ति" कर रहे है ! ◆बृजवासी जानते है कि श्रीकृष्ण से "निस्वार्थ प्रेम" करने के लिए अपना समय, श्रम व अपना सर्वश्व "श्रीकृष्णार्पण" करना है ! जब कोई अपना सर्वश्व श्रीकृष्ण को समर्पण कर देता है तब वह श्रीकृष्ण मे एकाकार हो जाता है , तब दोनों समान हो जाते है , जब दोनों समान हो जाते है , तो दोनों मित्र हो जाते है ! अतः श्रीकृष्ण व बृजवासी मित्र हैं ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ श्रीकृष्ण से निस्वार्थ प्रेम करो ! श्रीकृष्ण की अटूट भक्ति पाओ ! श्रीकृष्ण की तपस्या करोगे तो वरदान व मोक्ष मिलेगा ! श्रीकृष्ण से निस्वार्थ प्रेम करोगे तो श्रीकृष्ण को पाओगे ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 13/06/2020 www.dineshapna.blogspot.com



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