Saturday 20 June 2020

★★ब्रह्म (श्रीकृष्ण) से "निस्वार्थ प्रेम" V/S "प्रेम"★★ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ●●ब्रह्म (श्रीकृष्ण) से "निस्वार्थ प्रेम" :- ●१●२●३●● ◆१◆बृजवासियों ब्रह्म (श्रीकृष्ण) से 5132 वर्षो से निस्वार्थ प्रेम कर रहे है ! बृजवासियों ने श्रीकृष्ण के "मानव अवतार" मे प्रेम के बदले कुछ भी नहीं माँगा व उसके बाद भी 4521 वर्षो तक भी श्रीकृष्ण से "निस्वार्थ प्रेम" करते रहे, इसलिए श्रीकृष्ण पुनः "प्रतिमा रुप" मे गोवर्धनजी पर "बृजवासियों के लिए" अवतरित हुए ! इसके बाद बृजवासी 611 वर्ष आजतक भी "निस्वार्थ प्रेम" कर रहे है ! जब बृज मे मुगलों ने आक्रमण किया तो बचाने के लिए अपने प्राण व सम्पत्तियों का त्याग करके मेवाड़ आये ! ◆२◆श्रीवल्लभाचार्य जी / उनके वंशजों ने भी "निस्वार्थ प्रेम" किया व अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण की सेवा मे लगाया ! उन्होंने मन्दिर बनवाने, सेवा प्रणाली, षुष्टिमार्ग का ज्ञान, शिष्यों को शिक्षा, धर्म प्रसार हेतु भारत भ्रमण व मेवाड़ आगमन आदि कार्य निस्वार्थ प्रेम के कारण ही किये ! ◆३◆अष्ट सखा / कुछ भगवती वैष्णवों / श्रीजी समर्पित दर्शनार्थी ने भी "निस्वार्थ प्रेम" किया, जिसके कारण उन्होंने अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण की सेवा मे बिताया व अपना सब कुछ (माया) श्रीजी को न्यौछावर कर दी ! उनकी सेवा आज भी जारी हैं ! ■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■ ●श्रीनाथजी का प्राकृट्य बृजवासीयो "निस्वार्थ प्रेम" के कारण व बृजवासियों के लिए, बृज मे "मित्रभाव" से हुआ !● ●श्रीनाथजी का प्राकृट्य सन् "1409" मे व वल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य सन् "1479" मे हुआ !● ●"बृजवासियों" ने सर्वप्रथम "97 वर्ष" तक निस्वार्थ सेवा की ! यह बृजवासी का "प्रेममार्ग" है जो बाद मे वल्लभाचार्य जी ने ज्ञान व शब्दों मे "पुष्टिमार्ग" का नाम दिया !● ■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■ ◆◆◆◆◆v/s◆◆◆◆◆v/s◆◆◆◆◆v/s◆◆◆◆◆ ●●ब्रह्म (श्रीकृष्ण) से "प्रेम" (ब्रह्मप्रेम + (धन) मायाप्रेम = प्रेम) :-●१●२●३●● ◆१◆वर्तमान महाराजश्री व 8 दशक पूर्व के वंशज ब्रह्म (श्रीकृष्ण) से प्रेम से ज्यादा धन (माया) से प्रेम करने लग गये, साथ ही श्रीवल्लभाचार्य जी के अन्तिम "शिक्षा श्लोक" को भी भूल गये ! इसलिए वल्लभ कुल "महाप्रभुजी" से "महाराजश्री" बनकर मुख्य रूप से केवल माया की उपासना कर रहे है ! उनका व्यवहार व उपदेश भक्ति व ज्ञान के स्थान पर माया मे डूबकर महाराजा जैसे आचरण करने लग गये ! ◆२◆स्वघोषित वैष्णव बोर्ड मैम्बर्स / माया समर्पित वैष्णव / कुछ दर्शनार्थी श्रीजी से प्रेम तो दिखावे के लिए या फायदे के लिए करते है, किन्तु वास्तविकता मे धन (माया) के लिए ही कार्य करते है ! ऐसे व्यक्तियों को श्रीनाथजी व उनके भाव / भक्ति से कोई लेना देना नहीं होता है, यह बात मन्दिर के जिम्मेदार लोगों को समझना चाहिए व निस्वार्थ प्रेम करने वालों (बृजवासियों) को अधिकार दिया जाना चाहिए ! क्योंकि बृजवासियों के अधिकारो को अनिति से संकुचित किया गया ! ◆३◆मन्दिर मण्डल के कर्मचारी / अधिकारी जिन्हें श्रीनाथजी से ज्यादा अपने वेतन व फायदे से प्रेम है ! ऐसे व्यक्ति कभी कभी अपने कर्तव्यों को भी भूल जाते है ! अतः निस्वार्थ प्रेमी व्यक्तियो (बृजवासियों) को अधिकार दिये जाने चाहिए ! ■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■ ●श्रीवल्लभाचार्य जी ने "ब्रह्म से" निस्वार्थ प्रेम करने को कहा, किन्तु वल्लभ कुल व उनके वंशज 8 दशक से केवल "माया से" प्रेम करने लग गये !● ●वल्लभ कुल के वंशज आजकल "ब्रह्म ज्ञान व ब्रह्म सम्बन्ध" के स्थान पर "माया ज्ञान व माया सम्बन्ध" का उपदेश देने व स्वयं उस पर चलने लगे है !● ●श्रीनाथजी व उनकी सम्पत्ति पर न तो किसी वल्लभ कुल का वंशानुगत अधिकार है और न ही उस पर बोर्ड मैम्बर्स का अधिकार है ! श्रीनाथजी पर अधिकार केवल उनके मित्र व उनसे "निस्वार्थ प्रेम" करने वाले बृजवासियों का है !● ■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■◆◆◆◆◆■■■■■ 【श्रीकृष्ण + बृजवासी = निस्वार्थ प्रेम 】 【निस्वार्थ प्रेम + ज्ञान = पुष्टि मार्ग】 ●●●●● श्रीकृष्णार्पण ●●●●● दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 20/06/2020 #dineshapna







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