Thursday 11 June 2020

★★★★#श्रीकृष्ण (ब्रह्म) व प्रेमी भक्त के बीच "अन्य" का क्या काम ?★★★★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ◆जब भक्त #श्रीकृष्ण (ब्रह्म) से #प्रेम करता है तो #अन्य (#माया) का कोई स्थान नहीं होना चाहिए, तथा अन्य (स्वार्थी / लोभी / अत्याचारी / अधर्मी) का भी कोई स्थान नहीं होना चाहिए ! यदि कोई अन्य व्यक्ति बीच मे आता है तो उसको श्रीकृष्ण (ब्रह्म) हटा देते है या भक्त को ही अन्य (माया/व्यक्ति) को बीच मे से हटा देना चाहिए, क्योंकि "सच्चे भक्त" को भी "#निष्काम_कर्म" तो करना ही है ! ◆आज से 5132 वर्ष पूर्व #श्रीकृष्ण (ब्रह्म) व बृजवासियों के बीच केवल #प्रेम ही था, किन्तु उनके बीच #अन्य (पूतना/राक्षस/कालिया/इन्द्र/ब्रह्मा जी) आये तो श्रीकृष्ण (ब्रह्म) ने उनको हटा दिया ! राजा #कंस ने भी श्रीकृष्ण व बृजवासियों के प्रेम के बीच मे आने का असफल प्रयास किया, तब भी श्रीकृष्ण ने उसको भी हटा दिया ! प्रेमी भक्तों (#बृजवासियों) ने भी "माया" को बीच मे नहीं आने दिया, यह एक भक्त का कर्म है ! ◆#श्रीवल्लभाचार्य_जी ने भी #पुष्टि_मार्ग मे श्रीकृष्ण (ब्रह्म) से माया को भिन्न बताया तथा कहा कि श्रीकृष्ण (ब्रह्म) से सम्बन्ध जोडे व "#माया" को मिथ्या समझकर उसे #श्रीकृष्णार्पण कर दे ! इसलिए सच्चे भक्त को श्रीकृष्ण (ब्रह्म) से #निस्वार्थ_प्रेम करते हुए अपने सभी कर्म श्रीकृष्णार्पण करने चाहिए व श्रीकृष्ण से अनुग्रह प्राप्त करना चाहिए ! ◆यह सभी ज्ञान #श्रीवल्लभाचार्य जी ने #वैष्णवों के लिए दिया था तथा साथ मे अपने #वंशजों को भी चेतावनी दी कि आपको भी केवल श्रीकृष्ण (ब्रह्म) के चरणों मे अपनी भक्ति व मन लगाना है, "माया" की ओर मन भटकाना नहीं चाहिए ! यह ज्ञान #बृजवासियों को नहीं दिया क्योंकि श्रीवल्लभाचार्य जी सर्वज्ञानी होने के कारण जानते थे कि श्रीकृष्ण व बृजवासियों का प्रेम अटूट व निस्वार्थ है ! इसलिए श्रीकृष्ण (ब्रह्म) ने बृजवासियों के प्रेम के कारण ही 4521 वर्ष बाद पुनः उसी गिरीराज पर्वत पर स्वयं "#प्राकृट्य_प्रतिमा रुप मे" हुए ! ◆यह सामान्य सी बात है कि दो के बीच तीसरे को नहीं आना चाहिए क्योंकि "#दो_पाटो के बीच #साबूत बचा न कोय" ! यहाँ भी #श्रीकृष्ण व #बृजवासियों के प्रेम के बीच किसी अन्य का कोई स्थान नहीं है, किन्तु वर्तमान मे #कलयुग चल रहा है इसलिए इनके बीच मे "#मनोनुकूल_कानून व #स्वनिर्मित_परम्पराओं" को लाने का कुप्रयास किया जा रहा है ! यह सभी कुचेष्टा "#निजी_लाभ व #अनाधिकृत_अधिकार" प्राप्त करने के लिए की जा रही है ! यह सभी "माया" से प्रेरित होकर किया जा रहा है ! अतः हमें #श्रीवल्लभाचार्य जी के कहे अनुसार व्यक्ति को "माया" के झंझाल से दूर रहते हुए केवल #श्रीकृष्ण से प्रेम करना चाहिए ! ◆#श्रीवल्लभाचार्य जी से पूर्व जैसे #श्रीकृष्ण - #बृजवासी के बीच "#निस्वार्थ प्रेम" था ! श्रीवल्लभाचार्य जी के समय जैसे श्रीकृष्ण - बृजवासी व श्रीकृष्ण - वल्लभाचार्य जी व श्रीकृष्ण - अष्ट छाप कवि / वैष्णवों के बीच "#शुद्ध प्रेम" था ! किन्तु वर्तमान मे श्रीकृष्ण - बृजवासी / कुछ वैष्णवों के बीच ही #प्रेम रहा है, शेष सभी "माया" मे फँसे हुए है , अतः अब हमें अपना निष्काम कर्म करना है ! ●●●●●●●●● शेष श्रीकृष्णार्पण ! ●●●●●●●●●● श्रीकृष्ण से निस्वार्थ प्रेम करें ! श्रीकृष्ण पर अडिग विश्वास करें ! स्वयं निष्काम कर्म करें ! स्वयं के सभी कर्म श्रीकृष्णार्पण करें ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 11/06/2020 at 09.24 P.M. #dineshapna



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