Saturday 12 October 2013

BEWARE: Now this is No time to Sleep..........................................................

सावधान :- अब समय नहीं है सोने का. . . . . 
भारतीय संस्कृति को समाप्त करने की मंशा रखने वाली विदेशी शक्तियों देश भर में फैले उनके एनजीओ अपनी संस्कृति के स्वार्थी धन लोकुप व्यक्तियों के द्वारा देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज की धार्मिक भावनाओं को दुखाकर हमारे ऊपर आगे से या पीछे से छुरा घोपने का देश द्रोही कार्य होता रहा है यह कार्य मुगलों अंग्रेजो आजादी के बाद स्वार्थी राजनेताओं स्वार्थी प्रशासनिक अधिकारीयों के द्वारा होता रहा है तथा अभी भी अनवरत चालू है। 
इस क्रम में उनके द्वारा हमारे हिन्दु धर्म में सर्व प्रथम मूर्ति पूजा नहीं करनी चाहिये यह भ्रम कहा गया, हमारे वेदो का बेकार बताया गया, हमारी परमंपराओं को उनकी ही अनुयायीयों से उनका विरोध कराया गया हमारे पंथ सम्प्रदायों को आपस में लडाया गया तथा उनके बिच में मतभेद की दिवारे खडी की गई। इतिहास साक्षी है कि धर्म विरोधी ताकतों ने हमारे ही धर्म के लोगो को बहका कर महान संत ज्ञानेश्वरजी को समाज से बहिष्कृत बनाने के लिए स्वामी विवेकानन्द जी को थोडी सी जमीन नहीं दी थी। ऐसा दुष्प्रचार कराया गया कि संत कबीर जी ने शराब की बात हाथ में ली है, वैश्या के साथ धूमते है कबीर बिगड गये है इस प्रकार गंदा दुष्प्रचार करने की कुनीती किसकी थी। स्वामी शमतीर्थ की विदेश यात्राओं में गंदे गंदे, अनर्गल आरोप करने वाले कौन थे। तो समाज को कुछ काल के लिए गुमराह करने वाले तत्वों के लिए अब भारत में कोई स्थान नहीं है। हिन्दू धर्म हिन्दू संस्कूति, हिन्दू परम्परा का अपमान करने वालो उनको तोडने वालो को युक्ति पूर्वक मुहतोड जवाब दो। 
मुख्य कारण
हिन्दू धर्म, संस्कृति, सम्प्रदाय, सन्त अनुयायीयों में सबसे बडी कमी है कि संगठीत नहीं रह पाते है क्योंकि हम सभी बुद्धिजीवी है तथा विरोधी ताकतों द्वारा भ्रम फैलाने की स्थिति में हम अपनी अपनी बुद्धि का उपयोग करके हम अपने ही व्यक्तियों के विरूद्ध लडने लग जाते है तथा उसके पीछे आधार राखते है सत्य, हमारा विश्वास, स्वयं को श्रेष्ठ बताने की ईच्छा धन पद का लाभ, अपनो से ज्यादा दुसरों की बातो पर विश्वास आदी। दूसरी कमी हम स्वयं को धर्म, संस्कृ,ि सम्प्रदाय, परम्पराओं से बडा समझने लग जाते है जिससे हम स्वार्थ परक होकर अपने अधिकारों का दुरूपयोग करके अपनों को ही अपना दुश्मन बना लेते है तथा अन्त में अपने ही हमारे सबसे बडे विरोधी बन जाते है। इसका फायदा विरोधी ताकते उठाती है। 
गैरो में क्या दम जो हमें मारे, हम तो हारे अपनों से
यह पंक्ति हमारे लिए बिलकुल ठिक बैठती है। इसका उदाहरण है मेवाड राजपूताना राज्य। राजपूत राज सशक्त था, शक्तिशाली था, देश भक्त था जन हितेशी था किन्तु इसके बावजूद भी कूछ मात्र व्यक्ति ही दुश्मनों से मिल गये थे। इसके कारण उन्हे हार का सामना करना पडा, उनकी गुलामी सहनी पडी। किन्तु महाराणा प्रताप इसके अपवाद है महाराणा प्रताप इसके अपवाद है। 
महाराणा प्रताप हारे नहीं किन्तु परेशान जरूर हुए थे उनके नहीं हारने का कारण उनका देश प्रेम उनका पराक्रम उनका जनता में विश्वास उनका सेना पर विरश्वास उनकी सेना का उनके प्रति विश्वास, उनकी सेना का उनके प्रति समर्पण, उनकी दूरदर्शिता उनके संस्कार उनकी श्री एकलिंगजी के प्रति अटूट विश्वास आदी। प्रताप के परेशान होने का कारण उनके मित्र राजाओं ने साथ नहीं दिया। तथा परिवार के सदस्य शक्ति सिंह ही मुगलों से मिल गया तथा मुगलों का सेनापति भी मानसिंह बनकर युद्ध करने आया था। किन्तु इन सभी के बावजूद भी महाराणा प्रताप हारे नहीं क्योंकि उनकी सेना मजबूत समर्पित थी तथा जनता का पूर्ण रूप से समर्थन था।

Dinesh Sanadhya