Sunday 26 November 2017

★★इतिहास तो यह भी है !★★ अगर प्रेम कथा पर फिल्म बनानी है जिसमें राजस्थान हो, 1300 ईस्वी के आसपास की बात हो, राजपूत हों, अल्लाउद्दीन खिलजी हो, मेवाड़ के आसपास की ही भूमि हो तो.. एक कहानी मैं बतात हूँ भंसाली... सुन- मेवाड़ के पास ही जबालिपुर (वर्तमान जालौर) के सोनगरा चौहान शासक कान्हड़ देव के एक पुत्र था विरम देव, जो राजकुमार होने के साथ साथ कुश्ती का पहलवान भी था। विरमदेव बहुत ही शूरवीर योद्धा था। विरमदेव की शोहरत और व्यक्तित्व के बारे में सुनकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी की पुत्री शहजादी फिरोजा (सताई) का दिल विरमदेव पर आ गया और शहजादी ने किसी भी कीमत पर विरमदेव से शादी करने की जिद पकड़ ली और कहने लगी, “वर वरूं विरमदेव ना तो रहूंगी अकन कुँवारी” (शादी करुँगी तो विरमदेव से नहीं तो अक्षत कुँवारी रहूंगी)… बेटी की जिद, पूर्व में हुई अपनी हार का बदला लेने के लिए और अपना राजनैतिक फ़ायदा देखकर अल्लाउद्दीन खिलजी ने प्रणय प्रस्ताव भेजा लेकिन विरमदेव ने यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया- “मामो लाजे भाटियां, कुल लाजे चौहान, जे मैं परणु तुरकणी, तो पश्चिम उगे भान…” (अगर मैं तुरकणी से शादी करूँ तो मामा भाटी कुल और चौहान कुल लज्जित हो जाएंगे और ऐसा तभी होसकता है जब सूरज पश्चिम से उगे) इस जवाब से आगबबूला होकर अल्लाउद्दीन ने युद्ध का ऐलान कर दिया। कहते हैं कि एक वर्ष तक तुर्कों की सेना जालौर पर घेरा डाल कर बैठी रही फिर युद्ध हुआ और किले की राजपूतानियों ने जौहर किया। स्वयं विरमदेव ने 22 वर्ष की अल्पायु में ही केसरिया बाना पहन वीरगति पाई। तुर्की सेना विरमदेव का मस्तक दिल्ली ले गई और शहजादी के सामने रख दिया। कहते हैं कि शहजादी ने मस्तक से शादी की बात कही तो थाली में रखा मस्तक पलट गया, लेकिन शहजादी अडिग थी की शादी करुँगी तो विरमदेव से नहीं तो कुंवारी मर जाउंगी। अंततः शहजादी फिरोजा ने उनके मस्तक का अग्नि संस्कार कर ख़ुद अपनी माँ से आज्ञा प्राप्त कर यमुना नदी के जल में प्रविष्ट हो सती हो गई। कैसी है कहानी…? बनाओ फिल्म अगर हिम्मत है तो… नहीं तो ‘तोफा क़ुबूल’ करवाओ। और एक बात राजस्थान के बारे में याद रहनी चाहिए। जोहर री जागी आग अठै, रळ मिलग्या राग विराग अठै, तलवार उगी रण खेतां में, इतिहास मंडयोड़ा रेता में… बोस-डीके ये राजस्थान है, राजस्थान… जहां हाथ डालेगा जौहर और केसरिया की दास्तानें मिलेंगी… औकात होनी चाहिए सच दिखाने की।


★★★भारत के तीन महत्वपूर्ण दिन★★★ ★ 26.11.1949 संविधान दिवस ★ 26.11.2008 बहादुरी दिवस ★ 26.11.2012 स्थापना दिवस AAP ◆"राजनिति परिवर्तन" दिवस ◆"स्वराज लोकतन्त्र" स्थापना दिवस ◆"भ्रष्टाचार मुक्त भारत" दिवस ◆"आम आदमी" आजादी दिवस ◆1947 "देश की आजादी" दिवस 2012 "आम आदमी आजादी" दिवस (65 वर्ष बाद) CA.Dinesh Sanadhya = 26.11.2017 www.dineshapna.blogspot.in









Saturday 25 November 2017

★अब और "झूठ" का व्यापार नही होने देगे !★ ★"सच्चाई" के लिए मेवाड़ के साथ हिन्दुस्तान है !★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆>>>>>>>>>>>>>>◆◆◆◆◆◆◆◆ *अकबर_जोधा की सच्चाई देखो* रोहताश सिंह चौहान (पत्रकार) •••••••••••●••••••●•••••••●••••••••●•••••••••••• मित्रों जब भी कोई हिन्दू राजपूत किसी मुग़ल की गद्दारी की बात करता है तो कुछ मुग़ल प्रेमियों द्वारा उसे जोधाबाई का नाम लेकर चुप करने की कोशिश की जाती है। बताया जाता है की कैसे जोधा ने अकबर की आधीनता स्वीकार की या उससे विवाह किया। परन्तु अकबर कालीन किसी भी इतिहासकार ने जोधा और अकबर की प्रेम कहानी का कोई वर्णन नहीं किया। सभी इतिहासकारों ने अकबर की सिर्फ 5 बेगम बताई है:- 1.सलीमा सुल्तान 2.मरियम उद ज़मानी 3.रज़िया बेगम 4.कासिम बानू बेगम 5.बीबी दौलत शाद अकबर ने खुद अपनी आत्मकथा अकबरनामा में भी किसी हिन्दू रानी से विवाह का कोई जिक्र नहीं किया। परन्तु हिन्दू राजपूतों को नीचा दिखने के लिए कुछ इतिहासकारों ने अकबर की मृत्यु के करीब 300 साल बाद 18 वीं सदी में “मरियम उद ज़मानी”, को जोधा बाई बता कर एक झूठी अफवाह फैलाई। और इसी अफवाह के आधार पर अकबर और जोधा की प्रेम कहानी के झूठे किस्से शुरू किये गए। जबकि खुद अकबरनामा और जहांगीर नामा के अनुसार ऐसा कुछ नही था। 18वीं सदी में मरियम को हरखा बाई का नाम देकर हिन्दू बता कर उसके मान सिंह की बेटी होने का झूठ पहचान शुरू किया गया। फिर 18वीं सदी के अंत में एक ब्रिटिश लेखक जेम्स टॉड ने अपनी किताब "एनाल्स एंड एंटीक्युटिज ऑफ़ राजस्थान" में मरीयम से हरखा बाई बनी इसी रानी को जोधा बाई बताना शुरू कर दिया। और इस तरह ये झूठ आगे जाकर इतना प्रबल हो गया की आज यही झूठ भारत के स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है और जन जन की जुबान पर ये झूठ सत्य की तरह आ चूका है। और इसी झूठ का सहारा लेकर राजपूतों को निचा दिखाने की कोशिश जारी है। जब भी मैं जोधाबाई और अकबर के विवाह प्रसंग को सुनता या देखता हूं तो मन में कुछ अनुत्तरित सवाल कौंधने लगते हैं। आन,बान और शान के लिए मर मिटने वाले शूरवीरता के लिए पूरे विश्व मे प्रसिद्ध भारतीय क्षत्रिय अपनी अस्मिता से क्या कभी इस तरह का समझौता कर सकते हैं ? हजारों की संख्या में एक साथ अग्नि कुंड में जौहर करने वाली क्षत्राणियों में से कोई स्वेच्छा से किसी मुगल से विवाह कर सकती हैं ? जोधा और अकबर की प्रेम कहानी पर केंद्रित अनेक फिल्में और टीवी धारावाहिक मेरे मन की टीस को और ज्यादा बढ़ा देते हैं। अब जब यह पीड़ा असहनीय हो गई तो एक दिन इस प्रसंग में इतिहास जानने की जिज्ञासा हुई तो पास के पुस्तकालय से अकबर के दरबारी 'अबुल फजल' द्वारा लिखित 'अकबरनामा' निकाल कर पढ़ने के लिए ले आया। उत्सुकतावश उसे एक ही बैठक में पूरा पढ़ डाला पूरी किताब पढ़ने के बाद घोर आश्चर्य तब हुआ जब पूरी पुस्तक में जोधाबाई का कहीं कोई उल्लेख ही नही मिला। मेरी आश्चर्य मिश्रित जिज्ञासा को भांपते हुए मेरे मित्र ने एक अन्य ऐतिहासिक ग्रंथ 'तुजुक-ए-जहांगिरी' जो जहांगीर की आत्मकथा है उसे दिया। इसमें भी आश्चर्यजनक रूप से जहांगीर ने अपनी मां जोधाबाई का एक भी बार जिक्र नही किया। हां कुछ स्थानों पर हीर कुँवर और हरका बाई का जिक्र जरूर था। अब जोधाबाई के बारे में सभी एतिहासिक दावे झूठे समझ आ रहे थे कुछ और पुस्तकों और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के पश्चात हकीकत सामने आयी कि “जोधा बाई” का पूरे इतिहास में कहीं कोई जिक्र या नाम नहीं है। इस खोजबीन में एक नई बात सामने आई जो बहुत चौकानें वाली है। ईतिहास में दर्ज कुछ तथ्यों के आधार पर पता चला कि आमेर के राजा भारमल को दहेज में 'रुकमा' नाम की एक पर्सियन दासी भेंट की गई थी जिसकी एक छोटी पुत्री भी थी। रुकमा की बेटी होने के कारण उस लड़की को 'रुकमा-बिट्टी' नाम से बुलाते थे आमेर की महारानी ने रुकमा बिट्टी को 'हीर कुँवर' नाम दिया चूँकि हीर कुँवर का लालन पालन राजपूताना में हुआ इसलिए वह राजपूतों के रीति-रिवाजों से भली भांति परिचित थी। राजा भारमल उसे कभी हीर कुँवरनी तो कभी हरका कह कर बुलाते थे। उत्तराधिकार के विवाद को लेकर जब पड़ोसी राजाओं ने राजा भारमल की सहायता करने से इनकार कर दिया तो उन्हें मजबूरन अकबर की सहायता लेनी पड़ी। सहायता के एवज में अकबर ने राजा भारमल की पुत्री से विवाह की शर्त रख दी तो राजा भारमल ने क्रोधित होकर प्रस्ताव ठुकरा दिया था प्रस्ताव अस्वीकृत होने से नाराज होकर अकबर ने राजा भारमल को युद्ध की चुनौती दे दी। आपसी फूट के कारण आसपास के राजाओं ने राजा भारमल की सहायता करने से मना कर दिया। इस अप्रत्याशित स्थिति से राजा भारमल घबरा गए क्योंकि वे जानते थे कि अकबर की सेना उनकी सेना से बहुत बड़ी है सो युद्ध मे अकबर से जीतना संभव नही है। चूंकि राजा भारमल अकबर की लंपटता से भली-भांति परिचित थे सो उन्होंने कूटनीति का सहारा लेते हुए अकबर के समक्ष संधि प्रस्ताव भेजा कि उन्हें अकबर का प्रस्ताव स्वीकार है वे मुगलो के साथ रिश्ता बनाने तैयार हैं। अकबर ने जैसे ही यह संधि प्रस्ताव सुना तो विवाह हेतु तुरंत आमेर पहुँच गया राजा भारमल ने अकबर को बेवकूफ बनाकर अपनी परसियन दासी रुकमा की पुत्री हीर कुँवर का विवाह अकबर से करा दिया जिसे बाद में अकबर ने मरियम-उज-जमानी नाम दिया। चूँकि राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था इसलिये ऐतिहासिक ग्रंथो में हीर कुँवरनी को राजा भारमल की पुत्री बता दिया। जबकि वास्तव में वह कच्छवाह राजकुमारी नही बल्कि दासी-पुत्री थी। राजा भारमल ने यह विवाह एक समझौते की तरह या राजपूती भाषा में कहें तो हल्दी-चन्दन किया था। इस विवाह के विषय मे अरब में बहुत सी किताबों में लिखा है। (“ونحن في شك حول أكبر أو جعل الزواج راجبوت الأميرة في هندوستان آرياس كذبة لمجلس”) हम यकीन नहीं करते इस निकाह पर हमें संदेह इसी तरह ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड लाइब्रेरी में रखी किताबों में एक भारतीय मुगल शासक का विवाह एक परसियन दासी की पुत्री से करवाए जाने की बात लिखी है। 'अकबर-ए-महुरियत' में यह साफ-साफ लिखा है कि (ہم راجپوت شہزادی یا اکبر کے بارے میں شک میں ہیں) हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है क्योंकि निकाह के वक्त राजभवन में किसी की आखों में आँसू नही थे और ना ही हिन्दू गोद भरई की रस्म हुई थी। सिक्ख धर्म गुरू अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंह ने इस विवाह के विषय मे कहा था कि क्षत्रियों ने अब तलवारों और बुद्धि दोनो का इस्तेमाल करना सीख लिया है, मतलब राजपुताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धि का भी काम लेने लगा है। 17वी सदी में जब 'परसी' भारत भ्रमण के लिये आये तब उन्होंने अपनी रचना ”परसी तित्ता” में लिखा “यह भारतीय राजा एक परसियन वैश्या को सही हरम में भेज रहा है अत: हमारे देव(अहुरा मझदा) इस राजा को स्वर्ग दें"। भारतीय राजाओं के दरबारों में राव और भाटों का विशेष स्थान होता था वे राजा के इतिहास को लिखते थे और विरदावली गाते थे उन्होंने साफ साफ लिखा है- ”गढ़ आमेर आयी तुरकान फौज ले ग्याली पसवान कुमारी ,राण राज्या राजपूता ले ली इतिहासा पहली बार ले बिन लड़िया जीत (1563 AD)। मतलब आमेर किले में मुगल फौज आती है और एक दासी की पुत्री को ब्याह कर ले जाती है। हे रण के लिये पैदा हुए राजपूतों तुमने इतिहास में ले ली बिना लड़े पहली जीत (1563 AD)। ये ऐसे कुछ तथ्य हैं जिनसे एक बात समझ आती है कि किसी ने जानबूझकर गौरवशाली क्षत्रिय समाज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की और यह कुप्रयास अभी भी जारी है। लेकिन अब यह षड़यंत्र अधिक दिन नहीं चलेगा। 🙏🌹🙏



















Friday 24 November 2017

★इतिहास से सीखे ! इतिहास को बदले !★ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ■ 70 वर्ष बाद वापस इतिहास दोहरा रहा है ! ■ अंग्रेज वापस फूट डाल रहे है ! ■ अंग्रेज "मेवाड़" को गुलाम नही बना सके, तो अब "इतिहास" के साथ "पद्मावती फिल्म" के द्वारा बदलने की "नाकाम कोशिश" कर रहे है ! ■ भारत के सेन्सर बोडँ ने स्वीकृति नही दी, फूट डालने के लिए • "ब्रिटेन ने स्वीकृति" • दे दी ! °°°°°क्यो ????°°°°° ■ भंसाली जैसे "गद्दार" फिल्म के द्वारा हमारे "सम्मान को गुलाम" बना रहे है ! •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• ◆◆◆◆◆ किन्तु मेवाड़ कभी "गुलाम नही हुआ" ! तो अब हम मेवाड़ के इतिहास को भंसाली की "फिल्म का गुलाम नही बनने देगे" ! ◆◆◆◆◆ उन्होने "प्राण व खून" दिया ! तो अब हम "दिमाग व कानून" से जीत हासिल करेगे ! ◆◆◆◆◆ पहले हम "एकता की कमी व अति विश्वास" के कारण हारे ! अब हम पूरा हिन्दुस्तान "एक रहेगे" व "गद्दारो पर विश्वास" नही करेगे ! CA.Dinesh Sanadhya www.dineshapna.blogspot.in





Wednesday 22 November 2017

★आओ ! मेवाड़ जैसा हिन्दुस्तान बनाये !★ ◆मेवाड़ "मुगलो" व "अंग्रेजो" का गुलाम नही हुआ , तो "भंसाली" व "वालीवुड़" क्या चीज है ? ? ? ? ? ◆अब और...... हिन्दुस्तान की संस्कृति, इतिहास व परम्पराओ को नष्ट नही होने देगे ! ◆हिन्दू के हार का कारण :- (1)स्वतन्त्रता का दुरुपयोग (2)मनोरंजन के नाम का दुरुपयोग (3)कानून (सेन्सर) का मजाक (4)सहनशील हिन्दू्ओ की परीक्षा ◆अब तक फिल्मो का विरोध के बावजूद फिल्म रिलीज होती रही, सेन्सर बोडँ व सरकार की मौन स्वीकृति के कारण जनता गुलाम बनी ! किन्तु "पद्मावती फिल्म" मे ऐसा नही होगा ! ◆क्योकि अब "मेवाड़" की आन बान व शान की बात है ! ■★★■जय मेवाड़ ■★★■