Sunday 29 November 2020

★श्रीनाथजी के सखा / सेवक / वैष्णवो की जिम्मेदारी !★ (१) "श्रीनाथजी का प्राकृट्य से नाथद्वारा आगमन तक" 【263 वर्ष】 (२) "श्रीनाथजी के नाथद्वारा मे आगमन से पुनः नाथद्वारा आगमन तक" 【235 वर्ष】 (३) "श्रीनाथजी के पुनः नाथद्वारा मे पधारने से मन्दिर मण्डल बनने तक" 【52 वर्ष】 (४) "श्रीनाथजी के नाथद्वारा मे मन्दिर मण्डल बनने से आज तक"【61 वर्ष】 ◆◆◆◆◆◆>>>>>>>>>>>>>>>>>>>◆◆◆◆◆◆ (१) "श्रीनाथजी का प्राकृट्य से नाथद्वारा आगमन तक" सन् 1409 (वि.सं 1466) से - (श्रावण शुक्ल पंचमी - नागपंचमी) से सन् 1672 - 20 फरवरी (वि.सं 1729) - (फाल्गुन कृष्ण सप्तमी - शनिवार) 【263 वर्ष】 श्रीनाथजी का प्राकृट्य (उध्व भुजा) सन् 1409 से श्रीवल्लभाचार्य जी के आन्यौर सन् 1506 के समय 97 वर्षों तक श्रीनाथजी की सेवा, पूजा व सुरक्षा की जिम्मेदारी श्रीनाथजी ने श्रीसद्दू पाण्डे जी व बृजवासियों को दी, जिसका निर्वहन बृजवासियों ने पूर्ण रूप व ईमानदारी से किया । इसके बाद श्रीसद्दू पाण्डे जी व बृजवासियों के द्वारा श्रीवल्लभाचार्य जी को श्रीनाथजी से मिलन कराने के बाद श्रीनाथजी ने विधिवत पूजा करने की जिम्मेदारी श्रीवल्लभाचार्य जी को दी । जिस जिम्मेदारी को उन्होंने अन्य व्यक्तियों को सौंपी थी, जिस कारण उसमे समय समय पर परिवर्तन करना पडा । किन्तु तब भी श्रीनाथजी की सेवा व सुरक्षा की जिम्मेदारी बृजवासियों के पास ही थी, जिसे उन्होंने श्रीनाथजी के नाथद्वारा पधारने तक पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से निभाया तथा सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाते हुए अपने प्राण तक न्यौछावर किये । (२) "श्रीनाथजी के नाथद्वारा मे आगमन से पुनः नाथद्वारा आगमन तक" (सन् 1672 - 20 फरवरी (वि.सं 1729) - (फाल्गुन कृष्ण सप्तमी - शनिवार) से सन् 1907 (वि.सं. 1964) 【235 वर्ष】 श्रीनाथजी के नाथद्वारा आगमन पर मेवाड़ के महारणा जी ने सुरक्षा व संरक्षण की स्वयं जिम्मेदारी ली । इस प्रकार श्रीनाथजी के नाथद्वारा आगमन के पश्चात श्रीनाथजी की सेवा व सुरक्षा मे बृजवासियों के साथ मेवाड़ के महाराणा जी व उनके सभी साथियों की जिम्मेदारी हो गई, जिसे उन सभी ने पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से निभाया । सन् 1778 (वि.स. 1835) में अजमेर मेरवाड़ा के मेरो ने मेवाड पर भयानक आक्रमण किया तथा नृशंस हत्याएं करना प्रारंभ कर दिया। इधर पिंडारियों ने नाथद्वारा में घुसकर लूट खसोट की और धन-जन को हानि पहुँचाई। सन् 1801 (वि.स. 1858) में दौलतराव सिन्धिया से पराजित होकर जसवन्तराव होल्कर यत्र तत्र भटकता हुआ मेवाड़ भूमि के समीप आ गया। परन्तु सिन्धिया की सेना उसे खोजती हुई नाथद्वारा आ पहुँची । इन सभी आक्रमणों का बृजवासियों व कोठारिया व आसपास के रावलो के राजपूतों व सैनिकों ने सामना किया व रक्षा की । उस दौरान कुछ समय के लिए श्रीनाथजी उदयपुर व घसियार पधारे । इसके बाद शान्ति होने पर सन् 1907 (वि.सं. 1964) में प्रभु श्रीनाथजी दलबल सहित अनेक भक्तों को साथ लेकर युद्ध भूमि हल्दीघाटी के अरण्य मार्ग को पारकर खमनोर होते हुए पुनः नाथद्वारा पधारे । (३) "श्रीनाथजी के पुनः नाथद्वारा मे पधारने से मन्दिर मण्डल बनने तक" सन् 1907 (वि.सं. 1964) से सन् 1959 (वि.सं. 2016) 【52 वर्ष】 इस दौरान कोई बाहरी आक्रमण नहीं हुए तथा नाथद्वारा मे शान्ति का समय था । इस समय बाहरी आक्रमण का भय नहीं था, किन्तु आन्तरिक आक्रमण शुरू हो गये थे । बृजवासियों के सेवा व सुरक्षा के अधिकारो मे वल्लभ कुल द्वारा कमी करना शुरू कर दिया । श्रीनाथजी की सम्पत्तियो / धन का दुरुपयोग व अपव्यय करना शुरू हो गया । इसलिए बृजवासियों, मेवाड़वासीयों के विरोध करने पर सरकार द्वारा सन् 1959 को नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन करना पडा । किन्तु इसमें सरकार ने मन्दिर मण्डल के सदस्यों के चयन का अधिकार गलत तरीकों से दे दिया, जिसमें बृजवासियों को उनके नैसर्गिक अधिकारो से वंचित कर दिया गया । (४) "श्रीनाथजी के नाथद्वारा मे मन्दिर मण्डल बनने से आज तक" सन् 1959 (वि.सं. 2016) से सन् 2020 (वि.सं. 2077)【61 वर्ष】 इस काल मे बृजवासियों व मेवाड़ के महाराणा जी के सुरक्षा के सम्पूर्ण अधिकार नाथद्वारा मन्दिर मण्डल के हाथों मे आ गये व उसमें भी बोर्ड के सदस्यों के चयन का अधिकार वल्लभ कुल के हाथों मे ले लिया । इसमे अधिकार केवल महाराजश्री के हाथो मे है जो उन्होंने केवल अपने चहेते वैष्णवों को दे दिये । अब यदि श्रीनाथजी की सम्पत्तियो / धन का दुरुपयोग व अपव्यय होता है तो इसकी पूर्ण जिम्मेदारी मन्दिर मण्डल सदस्यों की संयुक्त व पृथक रुप से होती है । इस दौरान भी श्रीनाथजी की सम्पत्तियो / धन का दुरुपयोग व अपव्यय हो रहा है । अतः इसे रोकने की अत्यधिक आवश्यकता है । क्योंकि श्रीनाथजी स्वयं ने बृजवासियों को सेवा, पूजा व सुरक्षा का अधिकार दिया, जिसे छिनने का किसी को भी अधिकार नहीं है । यदि कोई बृजवासियों के अधिकारो को छिनता है, तो यह संविधान, धर्म, परम्पराओं व श्रीनाथजी की आज्ञा का उल्लंघन है । दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 29/11/2020 #dineshapna Nathdwara, nathdwara live, nathdwara news, nathdwara darshan, shrinathji, shrinathji mandir, nathdwara mandir,











 

Friday 27 November 2020

★क्या नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का ऐसा हाल ?★ ★बोर्ड मे IAS / RAS / उनके द्वारा चयनित व्यक्ति (बोर्ड मैम्बर्स) होने के कारण हो रहा है !★ 【●श्रीनाथजी की सम्पत्तियो / जमीनों को लूटाया जा रहा है ! ●धन का अपव्यय हो रहा है ! ●पुरानी परम्पराओं को धिरे - धिरे तोडा जा रहा है ! ●बृजवासियों को अपने अधिकारों से वंचित किया जा रहा है !】 क्योंकि (यह प्रमाण है) :- (१) अमूल के संस्थापक कुरियन ने भूतपूर्व प्रधानमन्त्री शास्त्री जी को बोर्ड मे IAS के लिए नहीं रखने के लिए कहा तथा शास्त्री ने बोर्ड मे IAS नहीं रखे, इसलिए अमूल देश मे श्वेत क्रांति ला पाया व पूर्ण सफल हुए । (२) समस्त विश्व मे भारत का गौरव बढाने वाली ISRO के बोर्ड मे एक भी IAS नहीं है । (३) पूरी दुनिया मे पुल बना कर नाम कमाने वाली Utter Pradesh State Bridge Corporation Ltd. (UPSBC Ltd.) प्रदेश की इकलोती सरकारी कम्पनी है जो घाटे मे नहीं चल रही है, क्योंकि इसके बोर्ड मे एक भी IAS नहीं है । (४) भारतीय सशस्त्र सेना भी इसका एक उदाहरण है । नाथद्वारा मन्दिर मण्डल के 61 वर्ष के इतिहास मे फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ है, अर्थात् कुएँ मे से निकल कर बावडी मे गिरने जैसा काम हुआ है ! इसलिए बृजवासी नाथद्वारा मन्दिर मण्डल के कार्यों का सामाजिक अंकेक्षण करना चाहते है ! किन्तु बोर्ड मैम्बर्स इसकी स्वीकृति क्यों नहीं दे रहे है ? ★★जयश्रीकृष्ण★★ ★★श्रीकृष्णार्पण★★ सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 27/11/2020 - - 27.11.19 www.dineshapna.blogspot.com











 

Thursday 26 November 2020

★★श्रीनाथजी प्राकृट्य से नाथद्वारा आगमन★★ ★★"जीवन्त पुष्टि मार्ग" से "ज्ञान पुष्टि मार्ग" ★★ ●●●●●●●●●●●●●【१】●●●●●●●●●●●●● "श्रीनाथजी का प्राकृट्य, प्रथम दर्शन व सेवा" - श्रीसद्दू पाण्डे जी द्वारा !(सन् 1478 - वि.सं 1535) "श्रीनाथजी से महाप्रभु जी का प्रथम मिलन" - श्रीवल्लभाचार्य जी का !(सन् 1506 - वि.सं 1563) ◆◆>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>◆◆ ◆सन् 1409 (वि.सं 1466) - (श्रावण शुक्ल पंचमी - नागपंचमी) श्रीनाथजी का प्राकृट्य (उध्व भुजा) । (श्रीसद्दू पाण्डे (सनाढ्य) के दादाजी जयदेव जी पाण्डे द्वारा "प्रथम दर्शन" व बृजवासीयो द्वारा "प्रथम सेवा" कार्य) ◆सन् 1441 (वि.सं 1498) - महाप्रिय श्री सद्दू पाण्डे जी का प्राकृट्य । ◆सन् 1478 (वि.सं 1535) - (वैशाख कृष्ण एकादशी) बालस्वरूप मे श्रीनाथजी स्वयं साक्षात् प्रकट होकर श्रीसद्दू पाण्डे को सेवा का अधिकार दिया व श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य । (श्रीनाथजी के उध्व भुजा प्राकृट्य के 69 वर्ष बाद श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य) ◆सन् 1506 (वि.सं 1563) श्रीवल्लभाचार्य जी का श्रीसद्दू पाण्डे जी के घर आन्यौर पदार्पण व श्रीनाथजी से प्रथम मिलन श्रीसद्दू पाण्डे जी के द्वारा । (97 वर्षों तक श्रीसद्दू पाण्डे, उनके परिवार व बृजवासीयो के द्वारा श्रीनाथजी की सेवा व पूजा की ।) (श्रीवल्लभाचार्य जी 28 वर्ष की उम्र मे बृज मे पधारे व श्रीनाथजी से प्रथम मिलन हुआ ।) ◆सन् 1519 (वि.सं 1576) - (वैशाख शुक्ल तीज - अक्षय तृतीया) श्रीनाथजी का जतिपुरा मन्दिर मे पाटोत्सव । (13 वर्षों मे श्रीनाथजी का जतिपुरा मे नया मन्दिर बना ।) ◆सन् 1530 (वि.सं 1587) - (आषाढ़ शुक्ल तीज, रविवार) श्रीवल्लभाचार्य जी का देवलोक गमन । (52 वर्ष की उम्र मे ) ◆सन् 1534 (वि.सं 1591) - श्रीसद्दू पाण्डे जी का देवलोक गमन । (93 वर्ष की उम्र मे ) ◆सन् 1665 (वि.सं 1722) - (आश्विन शुक्ल १५, शुक्रवार) श्रीनाथजी का बृज से प्रस्थान । (श्रीनाथजी 256 वर्ष तक बृज मे विराजे) ◆सन् 1672 - 20 फरवरी (वि.सं 1729) - (फाल्गुन कृष्ण सप्तमी - शनिवार) श्रीनाथजी का नाथद्वारा मन्दिर मे पाटोत्सव । (श्रीनाथजी को बृज से मेवाड़ पधारने मे 32 माह का समय लगा) ●●●●●●●●●●●●●●【२】●●●●●●●●●●●●● ★★"जीवन्त पुष्टि मार्ग" से "ज्ञान पुष्टि मार्ग" ★★ ■श्रीवल्लभाचार्य जी का "ज्ञान पुष्टि मार्ग" (भक्ति मार्ग) सन् 1506 से (514 वर्षों से) V/S ■बृजवासियों का "जीवन्त पुष्टि मार्ग" (प्रेम मार्ग) सन् 1409 से (611 वर्षों से) (5132 वर्ष पूर्व भी) ●●>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>●● ■श्रीवल्लभाचार्य जी के अनुसार पुष्टिमार्ग :- (सन् 1506 से ......514 वर्षों से) तीन 【3】 महत्त्वपूर्ण बिन्दु :- (१)भक्त स्वयं अपने आराध्य के समक्ष "आत्मसमर्पण" करता है ! (२)भगवान के "अनुग्रह" से भक्ति उत्पन्न होती है , उसे पुष्टि भक्ति कहते है ! (३)ऐसा भक्त भगवान के "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता है ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● पुष्टि मार्ग = 【आत्मसमर्पण, अनुग्रह, स्वरूप दर्शन 】 ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ●श्रीवल्लभाचार्य जी ने पुष्टि मार्ग को जो ज्ञान रुप मे आम जन व वैष्णवों के लिए सरल भक्ति मार्ग के रूप मे बताया गया, उसका मूल भावना बृजवासीयो से ली गई । क्योंकि बृजवासी आज से 5132 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण के मानव रुप मे अवतार के समय से जीया था । उस समय बृजवासियों ने श्रीकृष्ण के समक्ष ◆"आत्मसमर्पण" किया, तब उन्हें श्रीकृष्ण का ◆"अनुग्रह" प्राप्त हुआ था । उस समय बृजवासियों ने श्रीकृष्ण के ◆"स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त कोई प्रार्थना या ईच्छा नहीं की । ●जब बृजवासियों ने हजारों वर्षों तक श्रीकृष्ण से निस्वार्थ प्रेम किया व प्रतिफल मे कुछ भी नहीं माँगा गया तो श्रीकृष्ण ने पुनः बृजवासियों के लिए "प्रतिमा" रुप मे सन् 1409 मे अवतार लिया ! इसका मूल कारण बृजवासियों का निस्वार्थ "प्रेम मार्ग" ही है । ●इस अवतार मे श्रीकृष्ण को श्रीनाथजी के नाम से जाना गया । बृजवासियों के प्रेम मार्ग (जीवन्त पुष्टि मार्ग) को जन जन तक पहुंचाने के लिए श्रीनाथजी ने श्रीवल्लभाचार्य जी को आज्ञा दी की बृजवासियों के प्रेम मार्ग (जीवन्त पुष्टि मार्ग) को शब्दों व ज्ञान रुप मे परिभाषित करें, जो आगे चलकर "पुष्टि मार्ग" कहलाया । ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ■बृजवासियों के अनुसार निस्वार्थ प्रेम मार्ग (जीवन्त पुष्टि मार्ग) :- (सन् 1409 से .........611 वर्षों से) (१)भक्त स्वयं अपने आराध्य के समक्ष "आत्मसमर्पण" करता है ! 【【जब भक्त (बृजवासी) को प्रथम बार आराध्य की ऊध्र्व भुजा के दर्शन होते ही "आत्मसमर्पण" किया, इससे भी पूर्व भक्त (बृजवासी) की गाय ने भी आत्मसमर्पण अपने दूध का किया ! उसके बाद जैसे ही बृजवासियों ने स्वतः "आत्मसमर्पण" किया !】】 (२)भगवान के "अनुग्रह" से भक्ति उत्पन्न होती है , उसे पुष्टि भक्ति कहते है ! 【【उसके बाद "भगवान श्रीकृष्ण ने अनुग्रह" किया, तो बृजवासियों मे भक्ति उत्पन्न हुई जो अनवरत रुप से 97 वर्षों तक (श्रीवल्लभाचार्य जी के जतिपुरा पधारने के पूर्व तक) जारी थी, तथा जो आजतक (611 वर्षो तक) विद्दमान है व आगे भी रहेगा !】】 (३)ऐसा भक्त भगवान के "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता है ! 【【 बृजवासी श्रीनाथजी के प्राकृट्य सन् 1409 से सन् 1506 श्रीवल्लभाचार्य जी के पधारने से पूर्व 97 वर्ष तक केवल "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं की !】】 दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 26/11/2020 - 18/11/2020 #देव_उठनी_एकादशी #संविधान_दिवस #बहादुरी_दिवस #स्थापना_दिवस #dineshapna Nathdwara, nathdwara live, nathdwara news, nathdwara darshan, shrinathji, shrinathji mandir, nathdwara mandir, श्रीनाथजी, श्रीनाथजी दर्शन, श्रीनाथजी प्राकृट्य, श्रीनाथद्वारा,













 

★★★भारत के तीन महत्वपूर्ण दिन★★★ ★★★भारत के तिरंगे के तीन रंग★★★ 💐 26.11.1949 संविधान दिवस 💐 26.11.2008 बहादुरी दिवस 💐 26.11.2012 स्थापना दिवस AAP 👏👏👏👏आज संकल्प ले !👏👏👏👏 हम आज इन रंगों से संकल्प ले कि संविधान की पूर्ण पालना करें, देश/सत्य/आमजन के लिए बहादुरी दिखाये, राजनीति मे सत्य/आमजन को भागीदार बनाने के लिए आम आदमी पार्टी का सहयोग/समर्थन/वोट दे ! ◆"राजनिति परिवर्तन" दिवस ◆"स्वराज लोकतन्त्र" स्थापना दिवस ◆"भ्रष्टाचार मुक्त भारत" दिवस ◆"आम आदमी" आजादी दिवस ◆1947 "देश की आजादी" दिवस व 2012 "आम आदमी आजादी" दिवस (65 वर्ष बाद) CA.Dinesh Sanadhya = 26.11.2020 www.dineshapna.blogspot.in