Sunday 28 August 2022

★अतिक्रमण का जिम्मेदार / दोषी कौन ?★ नाथूवास तालाब मे अतिक्रमण से आम जनता परेशान ! नाथद्वारा मे अन्य स्थानों व अन्य प्रकार से अतिक्रमण ! (१)जल स्त्रोतों पर अतिक्रमण :- ●नाथूवास तालाब मे पानी आने वाले स्त्रोतों (नालों) पर, ●सिंहाड तालाब व पानी स्त्रोत पर, ●गिरधर सागर पर, ●कुछ कुण्ड़ो व बावडियो पर, ●तालाबों के पानी निकासी के स्त्रोत / नहरों पर अतिक्रमण की भरमार ! (२)नियम विरुद्ध निर्माण से अतिक्रमण :- ●अधिकत्तर बहुमंजिला ईमारतो मे, ●अधिकत्तर होटलो मे, ●कुछ मकानों मे, ●बिना पर्याप्त पार्किंग के बहुमंजिला ईमारत व होटल निर्माण मे, ●सड़क के कुछ हिस्सों पर निर्माण के द्वारा अतिक्रमण की भरमार ! (३)सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण :- ●गणेश टैकरी व सुखाड़िया नगर की वन भूमि पर, ●सरकारी जमीन आंवटन (शिवमूर्ति) की शर्तों मे फेरबदल करके, बिलानाम जमीन पर, ●सडकों पर अनावश्यक गेट / गाडँन (आईकोनिक गेट) निर्माण कराकर, ●पी.डब्लू. डी. की जमीन पर, ●सरकारी स्कूल (हाई स्कूल) की जमीन पर अतिक्रमण ! (४)मन्दिर की जमीनो पर अतिक्रमण :- ●लालबाग बस स्टैण्ड की जमीन पर, ●बड़े मगरे की जमीन पर, ●लावटी पैट्रोल पम्प की जमीन पर, ●जमीन/दुकान/मकान किराये पर लेकर, ●बागो व अन्य मन्दिर की जमीनों पर अतिक्रमण ! आओ ! श्रीकृष्ण को आत्मसात करें ! अन्याय के विरुद्ध धर्म युद्ध करे ! संविधान की पालना करे व कराये ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी #(169) #28/08/22 #dineshapna






 

★अतिक्रमण का जिम्मेदार / दोषी कौन ?★ नाथूवास तालाब मे अतिक्रमण की भरमार ! आम जनता परेशान, अतिक्रमियों की बहार ! (१)प्रशासन :- सरकारी जमीन की सुरक्षा व नियमानुसार जमीन का उपयोग सुनिश्चित करने का कार्य / जिम्मेदारी प्रशासन की है तथा उसके लिए वह वेतन भी लेते है । किन्तु हकीकत मे प्रशासन अतिक्रमण पर चुप हो जाते है क्योंकि कुछ अधिकारी पैसे लेकर / राजनैतिक दबाव मे चुप हो जाते है या नियम विरुद्ध जमीन के पट्टे / स्वीकृति दे देते है । (२)नेता :- आमजन के हितार्थ व कानून के अनुसार कार्य करने के लिए जनता से वोट लेकर जितते है तथा बाद मे संविधान की सपथ भी लेते है । किन्तु हकीकत मे कुछ नेता आमजन के विरुद्ध कार्य करते है या सरकार को नुकसान पहुँचाने का कार्य करते है । इसके लिए अधिकारियों पर अनुचित दबाव बनाते है । (३)सक्षम/प्रभावशाली व्यक्ति :- आमजन से पैसा कमाकर या लूट कर सक्षम व्यक्ति बनते है उसके बाद प्रभावशाली व्यक्ति बनने के लिए धन देकर नेताओं / राजनीति का दुरुपयोग करते है । अन्तिम उद्देश्य है कि जनता / सरकार की जमीनों पर अतिक्रमण या भ्रष्टाचार करना या नियम विरूद्ध पट्टे / स्वीकृति लेकर अनुचित लाभ लेना । (४)इस प्रकार कुछ अधिकारी, कुछ नेता व कुछ सक्षम/प्रभावशाली व्यक्ति मिलकर अतिक्रमण या नियम विरुद्ध कार्य करते है । तथा आम जनता से धन / वोट लेकर, उल्टा जनता को ही लूटते या परेशान करते है । आओ ! श्रीकृष्ण को आत्मसात करें ! अन्याय के विरुद्ध धर्म युद्ध करे ! संविधान की पालना करे व कराये ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी #(168) #28/08/22 #dineshapna










 

Friday 19 August 2022

★श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बधाइयाँ !★ आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर हम श्रीकृष्ण के बताये उक्त 12 कदम 12 महीनों चले । (१)जीवन संघर्ष है :- भगवान श्रीकृष्ण का जन्म शुरू से संघर्षों से भरा रहा है। मगर हर परिस्थिति को जीते और जीतते रहे। (२)पौष्टिक भोजन करें :- भगवान श्रीकृष्ण बचपन से माखन और मिश्री के शौकीन रहे। आहार अच्छा व शुद्ध होना चाहिए और बल तथा बुद्धि देने वाला होना चाहिए। तभी खुद को, परिवार को और समाज को सही दिशा दी जा सकती है। (३)रचनात्मक शिक्षा हो :- भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा-दीक्षा वैदिक ज्ञान के अलावा विभिन्न कलाएं सीखी । यानी शिक्षा सिर्फ किताबी न हो, रचनात्मक भी हो। (४)रिश्ते निभाये :- भगवान श्रीकृष्ण ने रिश्ते ने जीवनभर कभी उन लोगों का साथ नहीं छोड़ा, जिन्हें अपना मान लिया। रिश्तों की अहमियत उन्हें बखूबी पता थी। (५)नारी का सम्मान करे :- भगवान श्रीकृष्ण ने हमेशा नारी का सम्मान किया और बेहतर समाज के लिए इसे जरूरी मानते भी थे। (६)रिश्ते व मतभेद को अलग अलग निभाये :- भगवान श्रीकृष्ण जिस दुर्योधन की मौत की वजह से हुई, असल में दोनों समधी थे। श्रीकृष्ण जी के पुत्र सांब का विवाह दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा से हुआ। दोनों के मतभेद इस पीढ़ी के रिश्ते पर कभी नहीं पड़ने दिया। (७)शान्ति विकास का मार्ग है :-भगवान श्रीकृष्ण ने हमेशा चाहा कि कौरव शांति का मार्ग अपना लें, क्योंकि यही विकास का रास्ता है। (८)कर्म प्रधान है :- भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म से ईश्वर तक जाने वाला मार्ग बताया है। मन को स्थिर रखते हुए और दिमाग को शांत करके बुरी से बुरी परिस्थितियों से भी उबरा जा सकता है। (९)दूरदर्शी बने :- भगवान श्रीकृष्ण दूरदृष्टा थे। वे हमेशा भविष्य की ओर देखते रहते थे और इसकी तैयारी भी करते रहते थे। इस समय को सोच कर दुखी न हो और भविष्य की ओर देखो, सोचों और योजना निर्धारित करो। (१०)माफ करें, परन्तु एक सीमा तक :- भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल, जो कृष्ण जी का छोटा भाई था उसकी 100 गलतियों के बाद माफ नहीं किया। (११)युद्ध व जीत केवल अधर्म के नाश के लिए :- भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बुद्धिमानी से दुनियाभर के राजाओं पर जीत हासिल की। मगर कभी उन्होंने खुद शासन नहीं किया। बुरे राजाओं को हराकर उसकी जगह सिंहासन पर अच्छे चरित्र के लोगों को बिठाते थे। (१२)धर्म / न्याय हमेशा रिश्तों से ऊपर है :- भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म / न्याय के साथ रहने के लिए अर्जुन को गीता का उपदेश दिया व इसके लिए रिश्तेदार, दोस्त, भाई व गुरु से भी युद्ध करने के लिए कहा। सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #(167) #19/08/22 #dineshapna



 

Thursday 18 August 2022

★श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं !★ श्रीकृष्ण का मठाधीश को "गीता सन्देश" ! एक बृजवासी का मठाधीश से 36 प्रश्न ! श्रीनाथजी का प्राकृट्य सन् 1409 मे जतीपुरा, गिरिराज जी, मथुरा मे बृजवासियों के लिए हुआ ! अतः श्रीनाथजी ने निज सेवा व सुरक्षा का अधिकार श्रीसद्दू पाण्डे व बृजवासियों को दिया ! जिस जिम्मेदारी को सन् 1506 तक कुल 97 वर्षों तक केवल बृजवासीयो ने ही निभाई ! इसके बाद भी सेवा व सुरक्षा का कार्य आजतक भी कर रहे है किन्तु मठाधीश ने बृजवासियों के अधिकारो को अनाधिकृत रुप से सीमित कर दिये, जो गलत है ! श्रीनाथजी ने सन् 1506 को सेवा पद्धति निश्चित करने की जिम्मेदारी श्रीवल्लभाचार्य जी को दी थी ! किन्तु उनके वंशजों ने सेवा करते हुए श्रीनाथजी की सम्पत्तियों पर अधिकार जमाने लग गये व बृजवासियों को उनके निज सेवा व सुरक्षा के अधिकारो से भी वंचित कर दिया ! जो श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा के विपरीत है ! मठाधीश इससे भी ज्यादा श्रीनाथजी की सम्पत्ति की लूट व धर्म विरुद्ध आचरण करने लग गये व इसमें उनका साथ बोर्ड मैम्बर्स, सरकार व अधिकारी भी दे रहे है ! श्रीनाथजी मन्दिर मे जिम्मेदार चुप है, मन्दिर मे सम्पत्ति की लूट व धर्म विरुद्ध आचरण हो रहा है ! तो एक बृजवासी का मन्दिर से सम्बंधित 36 प्रश्न :- (१)श्रीनाथजी मन्दिर मे सम्पदा अधिकारी व निष्पादन अधिकारी लाखों रुपये वेतन लेने के बावजूद जमीन / सम्पत्ति की रक्षा नहीं कर पा रहे है ! तो क्या यह धन का अपव्यय नहीं है ? (२)श्रीनाथजी मन्दिर मे कृषि अधिकारी लाखों रुपये वेतन लेने व हजारों बीघा जमीन होने के बावजूद लाखों रुपये खर्च करके फल, फूल व सब्जी बाजार से खरीद रहे है ! तो क्या यह धन का अपव्यय नहीं है ? (३)श्रीनाथजी मन्दिर मे हजारों गाये व हजारों बीघा जमीन होने के बावजूद लाखो रुपये का घी बाजार से खरीद रहे है ! तो क्या यह धन का अपव्यय नहीं है ? (४)श्रीनाथजी मन्दिर मे मुख्य पुजारी होने के बावजूद, वह नियमित सेवाएं नहीं दे रहे है जिससे प्रसाद, दर्शन व्यवस्था व सेवा व्यवस्थाओं मे कई अनियमितताएं हो रही है जिससे नुकसान हो रहा है और उनको पारिश्रमिक के रुप मे बिना काम के लाखो रुपये का प्रसाद दिया जा रहा है ! तो क्या यह धन का अपव्यय नहीं है ? (५)श्रीनाथजी मन्दिर मे नवनिर्माण के नाम पर पुराने अच्छे व मजबूत भवनों को तोड़कर करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे है ! तो क्या यह धन का अपव्यय नहीं है ? (६)नगरपालिका नाथद्वारा ने मन्दिर मण्डल से लालबाग बस स्टैण्ड के लिए जमीन किराए पर लेकर अन्य व्यक्ति को बेच दी, तब भी श्रीनाथजी मन्दिर के जिम्मेदार चुप है ! तो क्या यह जमीन की लूट नहीं है ? (७)नगरपालिका नाथद्वारा ने मन्दिर मण्डल की बडा मगरे की तलहटी मे कई बीघा जमीन पर प्लोट काटकर अन्य व्यक्ति को बेच दी, तब भी श्रीनाथजी मन्दिर के जिम्मेदार चुप है ! तो क्या यह जमीन की लूट नहीं है ? (८)सरकार ने भीलवाड़ा मे मन्दिर मण्डल की जमीन पर अतिक्रमण करके अपने आँफिस बना दिये, तब भी श्रीनाथजी मन्दिर के जिम्मेदार चुप है ! तो क्या यह जमीन की लूट नहीं है ? (९)सरकार के खनिज विभाग ने मन्दिर मण्डल की कांटीमाला, ओड़न, नाथद्वारा की जमीन पर माईनिंग लीज आंवटित करके करोड़ों रुपये की राँयल्टी कमा रहे हैं, तब भी श्रीनाथजी मन्दिर के जिम्मेदार चुप है ! तो क्या यह जमीन की लूट नहीं है ? (१०)श्रीनाथजी प्रथम बार जब मेवाड़ मे पधारे, तब उनका रथ सिंहाड़, नाथद्वारा मे रुका, वह स्थान महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक है किन्तु वहाँ अतिक्रमण हो चुका है, तब भी श्रीनाथजी मन्दिर के जिम्मेदार चुप है ! तो क्या यह जमीन की लूट नहीं है ? (११)श्रीनाथजी मन्दिर के लिए मेवाड़ के महाराणा ने जमीन, धन, वस्त्र व आभूषण आदी समर्पित किये तथा कई वैष्णवों ने भी उक्त प्रकार की सम्पत्ति दान दी, किन्तु वर्तमान मे क्या सभी सम्पत्ति मन्दिर के पास सुरक्षित रुप से विद्दमान है या नहीं ? पूर्व वर्षों मे जिम्मेदार व्यक्तियों के द्वारा कई चोरीयाँ व लूट भी हुई है ! तो क्यों नहीं उक्त सम्पत्तियों का सामाजिक अंकेक्षण बृजवासी के द्वारा हो ? (१२)कई वैष्णवों ने धर्मशालाओं व काँटेजो का निर्माण कराकर मन्दिर मण्डल को दी थी, किन्तु उनको तोड़कर नया निर्माण किया गया, इससे उनको व उनकी भावनाओ को ठेस पहुँचायी गई ! तो क्यों नहीं उक्त सम्पत्तियों का सामाजिक अंकेक्षण बृजवासी के द्वारा हो ? (१३)नाथद्वारा मन्दिर मण्डल के द्वारा कई सम्पत्तियों को कोडियों के भाव पर किराए पर या लीज (दूसरे शब्दों मे विक्रय) की गई ! (जैसे - लालबाग हाईवे व आर.टी.डी.सी. रोड़ पर नुक्कड़ की 45000 वर्गफीट जमीन केवल 2000/- रु. वार्षिक पर किराए पर दी) इस प्रकार यह सम्पत्ति की लूट है ! तो क्यों नहीं उक्त सम्पत्तियों का सामाजिक अंकेक्षण बृजवासी के द्वारा हो ? (१४)नाथद्वारा मन्दिर मण्डल की स्थापना मन्दिर की सम्पत्ति की लूट को रोकने के लिए की गई ! किन्तु इन 63 वर्षों मे कई सम्पत्तियों (जमीन, भवन, आभूषण, वस्त्र, पिछवाई) की कमी हुई है, जबकि कोई सम्पत्ति बेची नहीं गई, तो कमी कैसे हुई ? तो क्यों नहीं उक्त सम्पत्तियों का सामाजिक अंकेक्षण बृजवासी के द्वारा हो ? (१५)श्रीनाथजी मन्दिर मे सम्पत्तियों की लूट 1959 से पूर्व भी होती थी व उसके बाद मन्दिर मण्डल बनने पर भी जारी है क्योंकि पहले व बाद मे जो भी जिम्मेदार है उनमे श्रीनाथजी के प्रति पूर्ण समर्पण की कमी है ! तो क्यों नहीं उक्त सम्पत्तियों का सामाजिक अंकेक्षण बृजवासी के द्वारा हो ? (१६)श्रीसद्दू पाण्डे जी व बृजवासियों ने सन् 1409 से 1506 (97 वर्ष) तक घर का दूध, दही, घी, मक्खन का श्रीनाथजी को भोग लगाया गया ! उसके बाद भी यह क्रम चालू रहा ! वर्तमान मे हजारों गाये, हजारों बीघा जमीन, सैकड़ों बृजवासी व करोड़ों रुपये होने के बावजूद मन्दिर मे बाजार से घी खरीद कर प्रसाद बनाया जा रहा है ! तो क्यों हमारे श्रीनाथजी को कम शुद्ध घी से बना प्रसाद का भोग लगाया जा रहा है ? (१७)श्रीनाथजी मे बालभाव से सेवा की जाती है, जिसमे सभी सामग्री को श्रीनाथजी के सम्मुख भोग के लिए रखा जाता है ! किन्तु आजकल कुछ सामग्री ही श्रीनाथजी के सम्मुख भोग के लिए रखी जाती है बाकी की सामग्री को वेणुजी के सन्मुख भोग के लिए रखी जाती है, जो गलत है ! तो क्यों हमारे श्रीनाथजी को भूखा रखा जा रहा है ? (१८)श्रीनाथजी मे आज से 50 वर्ष पूर्व जो सामग्री की गुणवत्ता थी, वह आज कल नहीं है ! जबकि सामग्री मे डाली जाने वाली वस्तुओं की मात्रा मे कोई अन्तर नहीं है ! क्या सामग्री की वस्तुओं की गुणवत्ता मे कमी या फर्क है ? तो क्यों हमारे श्रीनाथजी को कम गुणवत्ता की सामग्री का भोग लगाया जा रहा है ? (१९)श्रीनाथजी के नित्य भोग मे कोरोना काल के समय कमी करना गलत है क्योंकि मन्दिर मे धन की कोई कमी नहीं है और उस समय जनता को भोजन की जरूरत थी ! तो उस समय प्रसाद की मात्रा को कम करने के स्थान पर बढ़ाना चाहिए था, और उसे जनता मे नि:शुल्क बाँटना चाहिए था ! तो क्यों हमारे श्रीनाथजी के भोग मे कमी की गई ? (२०)पुष्टि मार्ग मे श्रीनाथजी की सेवा विधि के तीन प्रमुख अंग है - श्रृंगार, भोग, राग ! जिसमें "भोग" सेवा का पुष्टि सेवा मे 1/3 हिस्सा है ! उक्त तथ्यों के आधार पर भोग सामग्री मे कुछ कमी या फर्क आया है, जिससे श्रीनाथजी की सेवा क्रम मे कुछ कमी आयी है, जो गलत हैं ! तो क्या उक्त कार्य (प्रसाद की मात्रा / गुणवत्ता मे कमी) धर्म विरुद्ध आचरण नहीं है ? (२१)श्रीकृष्ण ने कहा है कि "अन्याय व अधर्म के विरुद्ध" लड़कर धर्म की रक्षा करनी चाहिए ! यदि मन्दिर की "आन्तरिक सुरक्षा" मजबूत नहीं होगी तो अधर्मी आपके मन्दिर पर आक्रमण करके नुकसान पहुँचायेंगे ! श्रीनाथजी मन्दिर की आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए ! तो क्यो श्रीनाथजी मन्दिर की आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था कमजोर है ? (२२)भारत मे लाखों मन्दिरों को लूटने व टूटने का इतिहास रहा है ! इसका कारण है कि मन्दिर सुरक्षा पर नगन्य खर्च, आपसी फूट व मठाधीश/जिम्मेदार की सुरक्षा के प्रति उदासीनता ! तो क्यो मन्दिर की आन्तरिक सुरक्षा केवल कुछ स्वार्थी व असक्षम व्यक्तियों के हाथो मे है ? (२३)जब नाथद्वारा मन्दिर की सुरक्षा बृजवासियों / मेवाड़ के महाराणा के पास थी, तब मन्दिर पर मुगलों, सिन्धिया व पिड़ारियो के आक्रमण होने के बावजूद भी मन्दिर सुरक्षित रहा ! किन्तु आजकल सरकार, नेताओं, बोर्ड मैम्बर्स व नगरपालिका से भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि अब मन्दिर की सुरक्षा समर्पित बृजवासी / मेवाड़ के महाराणा के हाथो मे नहीं है ! तो क्यो मन्दिर की सुरक्षा मे से बृजवासियों को हटाया गया ? (२४)पहले नाथद्वारा मन्दिर को लूटने आक्रमणकारी हथियार लेकर आये थे किन्तु आजकल नाथद्वारा मन्दिर को लूटने के लिए हितैषी/दोस्त/संरक्षक बनकर आये है व दगाबाजी से लूट रहे है और जिम्मेदार / मठाधीश चुप है ! तो क्यों श्रीनाथजी मन्दिर की सुरक्षा असक्षम हाथों मे मठाधीश को दे रखी है ? (२५)स्वार्थ, आपसी फूट, समर्पण की कमी, आन्तरिक सुरक्षा की उपेक्षा, असक्षम / स्वार्थी हाथों मे नियंत्रण, सुरक्षा पर नगण्य खर्च ! यह सभी "धर्म विरुद्ध आचरण के लक्षण" है ! श्रीनाथजी मन्दिर मे यह लक्षण पिछले १०० वर्षों से नजर आ रहे है और इसके कारण धिरे - धिरे मन्दिर को लूटा जा रहा है ! तो क्या यह "आन्तरिक सुरक्षा मे कमी" धर्म विरुद्ध आचरण नहीं है ? (२६)श्रीनाथजी सभी भक्तों के लिए समान है ! भक्तों के साथ अन्याय करना धर्म विरुद्ध आचरण है ! हकीकत मे उनके स्वघोषित बन्दो ने भक्तों को साधारण व वी.आई.पी. के नाम से बाँट दिया ! तो क्यों श्रीनाथजी दर्शन मे साधारण भक्तों के साथ अन्याय हो है ? (२७)श्रीनाथजी के दरबार मे कभी साधारण व विशेष का फर्क नहीं होता था ! पूर्व मे वैष्णव वार्ताओं मे साधारण भक्तों का बहुत महत्व बताया गया ! तो अब विशेष (धनपति) भक्तो को अनावश्यक महत्त्व देकर साधारण भक्तों को परेशान क्यों किया जा रहा है ? (२८)श्रीनाथजी मन्दिर मे पहले वी.आई.पी. दर्शन के नाम पर धन लूटा जाता था ! कोरोनाकाल मे भी जमकर धन लूटा गया ! अब उस वी.आई.पी. दर्शन की धन लूट को बन्द करने के स्थान पर मन्दिर मण्डल स्वयं ने यह धन लूट चालू कर दी है ! तो क्या यह साधारण भक्तों के साथ दर्शन व्यवस्था के नाम पर अन्याय नहीं है ? (२९)श्रीनाथजी मन्दिर मे नई दर्शन व्यवस्था से बृजवासीयो व जो प्रतिदिन दर्शन करने वाले स्थानीय व्यक्तियो के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है ! तो क्या बृजवासी व स्थानीय दर्शनार्थियों के लिए सुविधाजनक व्यवस्था नहीं हो सकती है ? (३०)श्रीनाथजी मन्दिर मे केवल धन के लिए सखा बृजवासियों को, स्थानीय दर्शनार्थियों को व साधारण दर्शनार्थियों को केवल दर्शन के लिए परेशान करना धर्म विरुद्ध आचरण है ! तो क्या सरकारी अधिकारियों के द्वारा इस प्रकार मन्दिर की आन्तरिक व्यवस्थाओ मे अनावश्यक हस्तक्षेप करना उचित है ? (३१)श्रीनाथजी ने सर्वप्रथम प्रकट होकर सद्दू पाण्डे को निज सेवा की व बृजवासियों को सखा मानते हुए खेलने व सेवा करने की "साक्षात् आज्ञा" दी ! तो क्यों बृजवासियों को निज सेवा से वंचित करके केवल नौकर बना दिया ? (३२)श्रीवल्लभाचार्य जी ने "स्वप्न आज्ञा" से पुष्टि मार्ग की स्थापना करके उसकी परम्पराओं को बनाया, किन्तु उसमें से कुछ महत्त्वपूर्ण परम्पराओं को समाप्त बिना आधार के कर दिया ! तो क्यों पुष्टि मार्ग की परम्पराओं को तोड़ा / समाप्त किया जा रहा है ? (३३)पुष्टि मार्ग की आत्मा "भावनाएँ" है और उसी को ठेस पहुँचायी जा रही है ! इसके बावजूद जिम्मेदार चुप है व उनका साथ भी दे रहे है ! तो क्यो पुष्टि मार्ग की आत्मा को समाप्त किया जा रहा है ? (३४)"श्रीनाथजी की आज्ञा व सुप्रीम कोर्ट के आदेश" के अनुसार मठाधीश केवल मुख्य पुजारी है ! वर्तमान मे मठाधीश श्रीनाथजी व उनकी सम्पत्तियों को अपनी निजी सम्पत्ति मानते हुए मालिक बने हुए है ! तो क्या यह श्रीनाथजी की आज्ञा व पुष्टि मार्ग के सिद्धांतो के विपरीत आचरण नहीं है ? (३५)मठाधीश सेवक से मालिक बन गये ! श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा, श्रीवल्लभाचार्य जी के उपदेश, पुष्टि मार्ग की परम्पराओं व भावनाओं के विपरीत कार्य कर रहे है ! तो किसने व कब "यह अधिकार" मठाधीश को दिया ? (३६)मठाधीश मन्दिर के ●धन, ●जमीन व ●सम्पत्ति लूट पर चुप है ! मन्दिर मे ●प्रसाद, ●आन्तरिक सुरक्षा व ●दर्शन व्यवस्था ठीक करने मे असक्षम है ! पुष्टि मार्ग की ●परम्पराओं, ●भावनाओं व ●श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा की रक्षा नहीं कर पा रहे है ! तो क्यों हम "श्रीनाथजी के सखा" चुप रहे ? 【 जयश्रीकृष्ण 】 सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #(166) #18/08/22 #dineshapna









 

Wednesday 17 August 2022

★ जो श्रीकृष्ण का नहीं, वह किसी काम का नहीं ! ★ ★ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पूर्व श्रीकृष्ण को आत्मसात करें ! ★ (जो जिम्मेदारी नहीं उठा सके, उसे जिम्मेदारी से मुक्त करो !) श्रीनाथजी मन्दिर मे जिम्मेदार चुप है, मन्दिर मे "सम्पत्ति की लूट व धर्म विरुद्ध आचरण" हो रहा है ! तो एक बृजवासी का मन्दिर मे "श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा व पुष्टि मार्ग मे धर्म विरुद्ध आचरण" से सम्बंधित प्रश्न :- (३१)श्रीनाथजी ने सर्वप्रथम प्रकट होकर सद्दू पाण्डे को निज सेवा की व बृजवासियों को सखा मानते हुए खेलने व सेवा करने की "साक्षात् आज्ञा" दी ! तो क्यों बृजवासियों को निज सेवा से वंचित करके केवल नौकर बना दिया ? (३२)श्रीवल्लभाचार्य जी ने "स्वप्न आज्ञा" से पुष्टि मार्ग की स्थापना करके उसकी परम्पराओं को बनाया, किन्तु उसमें से कुछ महत्त्वपूर्ण परम्पराओं को समाप्त बिना आधार के कर दिया ! तो क्यों पुष्टि मार्ग की परम्पराओं को तोड़ा / समाप्त किया जा रहा है ? (३३)पुष्टि मार्ग की आत्मा "भावनाएँ" है और उसी को ठेस पहुँचायी जा रही है ! इसके बावजूद जिम्मेदार चुप है व उनका साथ भी दे रहे है ! तो क्यो पुष्टि मार्ग की आत्मा को समाप्त किया जा रहा है ? (३४)"श्रीनाथजी की आज्ञा व सुप्रीम कोर्ट के आदेश" के अनुसार मठाधीश केवल मुख्य पुजारी है ! वर्तमान मे मठाधीश श्रीनाथजी व उनकी सम्पत्तियों को अपनी निजी सम्पत्ति मानते हुए मालिक बने हुए है ! तो क्या यह श्रीनाथजी की आज्ञा व पुष्टि मार्ग के सिद्धांतो के विपरीत आचरण नहीं है ? (३५)मठाधीश सेवक से मालिक बन गये ! श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा, श्रीवल्लभाचार्य जी के उपदेश, पुष्टि मार्ग की परम्पराओं व भावनाओं के विपरीत कार्य कर रहे है ! तो किसने व कब "यह अधिकार" मठाधीश को दिया ? (३६)मठाधीश मन्दिर के ●धन, ●जमीन व ●सम्पत्ति लूट पर चुप है ! मन्दिर मे ●प्रसाद, ●आन्तरिक सुरक्षा व ●दर्शन व्यवस्था ठीक करने मे असक्षम है ! पुष्टि मार्ग की ●परम्पराओं, ●भावनाओं व ●श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा की रक्षा नहीं कर पा रहे है ! तो क्यों हम "श्रीनाथजी के सखा" चुप रहे ? 【 जयश्रीकृष्ण 】 सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #(165) #17/08/22 #dineshapna