Thursday 31 December 2020

नववर्ष 2021 का स्वागत ! प्रेम के साथ 20 से 21बने !

























 

★★★2021 का स्वागत !★★★ अर्थात् हम इस वर्ष 20 से 21 होगे ! 【इस नये साल मे हमारे दु:ख 20 - व सुख 21 हो ! हमारे व्यापार की हानि 20 - व लाभ 21 हो ! टैक्स के रूप मे देना 20 - व लेना 21 सामाजिक उपायोगिता के रूप मे हो ! आम आदमी गरीब 20 - से अमीर 21 की ओर बढ़े ! हम खानपान मे कृत्रिम 20 - से प्रकृति 21 की ओर खानपान मे बढ़े ! हम मृत्यु 20 - से जीवन 21 की ओर बढ़े ! 】 20 - 21 ----------------- दु:ख - सुख हानि - लाभ देना - लेना गरीब - अमीर कृत्रिम- प्रकृति मृत्यु - जीवन ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ★★★★★★2020 की बिदाई !★★★★★★ अर्थात् हम गत वर्ष 20 से 20 से बराबर हो गये थे ! 【इस गत वर्ष मे हमारे दु:ख 20 - व सुख 20 बराबर हो गये थे ! हमारे व्यापार की हानि 20 - व लाभ 20 बराबर हो गई ! टैक्स के रूप मे देना 20 - व लेना 20 सामाजिक उपायोगिता के रूप मे बराबर हो गया ! आम आदमी व अमीर लोगों की गरीब 20 - से अमीर 20 समान हो गये ! हम खानपान मे कृत्रिम 20 - व प्रकृति 20 की ओर खानपान बराबर हो गये ! हम मृत्यु 20 - से जीवन 20 की ओर बराबर हो गये थे ! 】 20 - 20 ----------------- दु:ख - सुख हानि - लाभ देना - लेना गरीब - अमीर कृत्रिम- प्रकृति मृत्यु - जीवन ■■ इस प्रकार 20 20 से 20 21 की ओर बढ़े ! ■■ भूल जाओ, बीते हुए कल को ! दिल में बसा लो, आने वाले कल को ! मुस्कुराओ, चाहे जो भी हो पल ! खुशियाँ लायेगा, आने वाला कल ! ★★नये साल की शुभकामनाएं !★★ सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी एक बृजवासी - 31/12/2020 #dineshapna





 

Sunday 27 December 2020

🌇ब्राह्मणों की वंशावली🌇 भविष्य पुराण के अनुसार ब्राह्मणों का इतिहास है की प्राचीन काल में महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वय की आर्यावनी नाम की देव कन्या पत्नी हुई। ब्रम्हा की आज्ञा से दोनों कुरुक्षेत्र वासनी सरस्वती नदी के तट पर गये और कण् व चतुर्वेदमय सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और ब्राम्हणो की समृद्धि के लिये उन्हें वरदान दिया । वर के प्रभाव कण्वय के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए जिनका क्रमानुसार नाम था - उपाध्याय, दीक्षित, पाठक, शुक्ला, मिश्रा, अग्निहोत्री, दुबे, तिवारी, पाण्डेय, और चतुर्वेदी । इन लोगो का जैसा नाम था वैसा ही गुण। इन लोगो ने नत मस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया। बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगो को भक्तवत्सला शारदा देवी ने अपनी कन्याए प्रदान की। वे क्रमशः उपाध्यायी, दीक्षिता, पाठकी, शुक्लिका, मिश्राणी, अग्निहोत्रिधी, द्विवेदिनी, तिवेदिनी पाण्ड्यायनी, और चतुर्वेदिनी कहलायीं। फिर उन कन्याआं के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम - कष्यप, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्रि, वसिष्ठ, वत्स, गौतम, पराशर, गर्ग, अत्रि, भृगडत्र, अंगिरा, श्रंगी, कात्याय, और याज्ञवल्क्य। इन नामो से सोलह-सोलह पुत्र जाने जाते हैं। मुख्य 10 प्रकार ब्राम्हणों ये हैं- (1) तैलंगा, (2) महार्राष्ट्रा, (3) गुर्जर, (4) द्रविड, (5) कर्णटिका, यह पांच "द्रविण" कहे जाते हैं, ये विन्ध्यांचल के दक्षिण में पाये जाते हैं| तथा विंध्यांचल के उत्तर में पाये जाने वाले या वास करने वाले ब्राम्हण (1) सारस्वत, (2) कान्यकुब्ज, (3) गौड़, (4) मैथिल, (5) उत्कलये, उत्तर के पंच गौड़ कहे जाते हैं। वैसे ब्राम्हण अनेक हैं जिनका वर्णन आगे लिखा है। ऐसी संख्या मुख्य 115 की है। शाखा भेद अनेक हैं । इनके अलावा संकर जाति ब्राम्हण अनेक है । यहां मिली जुली उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हणों की नामावली 115 की दे रहा हूं। जो एक से दो और 2 से 5 और 5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए हैं, फिर उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हण की संख्या शाखा भेद से 230 के लगभग है | तथा और भी शाखा भेद हुए हैं, जो लगभग 300 के करीब ब्राम्हण भेदों की संख्या का लेखा पाया गया है। उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणां के भेद इस प्रकार है 81 ब्राम्हाणां की 31 शाखा कुल 115 ब्राम्हण संख्या, मुख्य है - (1) गौड़ ब्राम्हण, (2)गुजरगौड़ ब्राम्हण (मारवाड,मालवा) (3) श्री गौड़ ब्राम्हण, (4) गंगापुत्र गौडत्र ब्राम्हण, (5) हरियाणा गौड़ ब्राम्हण, (6) वशिष्ठ गौड़ ब्राम्हण, (7) शोरथ गौड ब्राम्हण, (8) दालभ्य गौड़ ब्राम्हण, (9) सुखसेन गौड़ ब्राम्हण, (10) भटनागर गौड़ ब्राम्हण, (11) सूरजध्वज गौड ब्राम्हण(षोभर), (12) मथुरा के चौबे ब्राम्हण, (13) वाल्मीकि ब्राम्हण, (14) रायकवाल ब्राम्हण, (15) गोमित्र ब्राम्हण, (16) दायमा ब्राम्हण, (17) सारस्वत ब्राम्हण, (18) मैथल ब्राम्हण, (19) कान्यकुब्ज ब्राम्हण, (20) उत्कल ब्राम्हण, (21) सरयुपारी ब्राम्हण, (22) पराशर ब्राम्हण, (23) सनोडिया या सनाड्य, (24)मित्र गौड़ ब्राम्हण, (25) कपिल ब्राम्हण, (26) तलाजिये ब्राम्हण, (27) खेटुवे ब्राम्हण, (28) नारदी ब्राम्हण, (29) चन्द्रसर ब्राम्हण, (30)वलादरे ब्राम्हण, (31) गयावाल ब्राम्हण, (32) ओडये ब्राम्हण, (33) आभीर ब्राम्हण, (34) पल्लीवास ब्राम्हण, (35) लेटवास ब्राम्हण, (36) सोमपुरा ब्राम्हण, (37) काबोद सिद्धि ब्राम्हण, (38) नदोर्या ब्राम्हण, (39) भारती ब्राम्हण, (40) पुश्करर्णी ब्राम्हण, (41) गरुड़ गलिया ब्राम्हण, (42) भार्गव ब्राम्हण, (43) नार्मदीय ब्राम्हण, (44) नन्दवाण ब्राम्हण, (45) मैत्रयणी ब्राम्हण, (46) अभिल्ल ब्राम्हण, (47) मध्यान्दिनीय ब्राम्हण, (48) टोलक ब्राम्हण, (49) श्रीमाली ब्राम्हण, (50) पोरवाल बनिये ब्राम्हण, (51) श्रीमाली वैष्य ब्राम्हण (52) तांगड़ ब्राम्हण, (53) सिंध ब्राम्हण, (54) त्रिवेदी म्होड ब्राम्हण, (55) इग्यर्शण ब्राम्हण, (56) धनोजा म्होड ब्राम्हण, (57) गौभुज ब्राम्हण, (58) अट्टालजर ब्राम्हण, (59) मधुकर ब्राम्हण, (60) मंडलपुरवासी ब्राम्हण, (61) खड़ायते ब्राम्हण, (62) बाजरखेड़ा वाल ब्राम्हण, (63) भीतरखेड़ा वाल ब्राम्हण, (64) लाढवनिये ब्राम्हण, (65) झारोला ब्राम्हण, (66) अंतरदेवी ब्राम्हण, (67) गालव ब्राम्हण, (68) गिरनारे ब्राम्हण (69) आमेटा ब्राम्हण गुजरात/ राजस्थान/ मध्य प्रदेश।। सभी ब्राह्मण बंधुओ को मेरा नमस्कार बहुत दुर्लभ जानकारी है जरूर पढ़े। और समाज में शेयर करे हम क्या है इस तरह ब्राह्मणों की उत्पत्ति और इतिहास के साथ इनका विस्तार अलग अलग राज्यो में हुआ और ये उस राज्य के ब्राह्मण कहलाये। ब्राह्मण बिना धरती की कल्पना ही नहीं की जा सकती इसलिए ब्राह्मण होने पर गर्व करो और अपने कर्म और धर्म का पालन कर सनातन संस्कृति की रक्षा करें। ************************************



 

Friday 25 December 2020

हमने 25 दिसम्बर को "ज्ञान" बाँटकर, जीने की कला दी ! कोई 25 दिसम्बर को "गिफ्ट" बाँटकर, क्या दे रहा है ? 25 दिसंबर को गीता जयंती है । गीता जयन्ती की शुभकामनाएं ! ब्रह्मपुराण के अनुसार, द्वापर युग में मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को श्रीकृष्ण ने इसी दिन गीता का उपदेश दिया था । गीता का उपदेश मोह का क्षय करने के लिए है, इसीलिए एकादशी को मोक्षदा कहा गया। गीता जयंती के दिन मोक्षदा एकादशी भी है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र अर्जुन के मन में महाभारत के युद्ध के दौरान पैदा होने वाले भ्रम को दूर करते हुए जीवन को सुखी और सफल बनाने के लिए उपदेश दिए थे। धर्म और कर्म के महत्व को बताते हुए भगवान कृष्ण के इन उपदेशों को गीता में संग्रहित किया गया। महाभारत युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने जो उपदेश अर्जुन के मन में धर्म और कर्म को लेकर पैदा हुई दुविधा को दूर किया था, वही आज मनुष्य के तमाम समस्याओं के समाधान और सफल जीवन जीने की कला के रूप में गीता के उपदेशों में समाहित है। (१) निष्काम कर्म :- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ! मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि !! ★(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)★ अर्थ : - कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं............................ इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो । कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं । अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो । (२) अकर्मण्य न बने :- हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम् ! तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय: !! ★(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)★ अर्थ :- यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो, तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख पा जाओगे........................ इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो । ★★श्रीकृष्ण का सन्देश★★ धर्म और कर्म के महत्व को बताते हुए मनुष्य के तमाम समस्याओं के समाधान और सफल जीवन जीने की कला के रूप में गीता के उपदेशों में समाहित है । ★★एक हिन्दुस्तानी का सन्देश★★ आज 5132 वर्ष बाद श्रीकृष्ण के धर्म व कर्म के सन्देश को आत्मसात करने की आवश्यकता है ! (१) हिन्दू ही हिन्दू धर्म के दुश्मन है ! (२) धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दू धर्म व हिन्दू मन्दिरों के साथ लूट की जा रही है ! (३) हिन्दू दे प्रेम व सम्मान, तो इसके विपरीत सरकार दे धोखा व धन की लूट ! (४) सरकार व अधिकारी संविधान का उल्लंघन कर हिन्दुओं पर अत्याचार कर रही है ! (५) हिन्दू अब मौन व अन्याय नहीं सहे ! आवाज उठाये ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी 25/12/2020 #dineshapna






 

Thursday 24 December 2020

★★धर्म के साथ स्वयं मे भी धार्मिकता हो !★★ ★★धर्मों के बीच धर्म (प्रेम व सम्मान) हो !★★ आजकल लोग धर्म के लिए लडते है, किन्तु स्वयं अपने अपने धर्म का पालन नहीं करते है । अब एक नई तरह की धार्मिकता को दुनिया में लाना होगा, जिसको मौलवी, पादरी, पंडित, पुजारी व धर्म के स्वघोषित ठेकेदार नष्ट न कर सकें । धर्मों को तो नष्ट कर दिया, अब धार्मिकता चाहिए। हमारी चिंता यह नहीं है कि तुम मुसलमान बनो, ईसाई बनो, हिंदू बनो, बौद्ध बनो । हकीकत मे किसी भी धर्म के कुछ ठेकेदार अपने धर्म की स्वयं 100 % पालना नहीं कर रहे है और वह धर्म की चिंता करने का दिखावा करते है । हमारी चिंता यही है कि तुम धार्मिक बनो । धार्मिक होना ही बड़ी और महत्वपूर्ण बात है । सभी धर्म प्रेम, शान्ति, भाईचारा व एक दूसरे का सम्मान और सहयोग करना सिखाता है तो एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों से नफरत क्यों करते है ? अतः स्पष्ट है कि धर्म नफरत करना नहीं सिखाता है बल्कि कुछ धर्म के कुछ ठेकेदार नफरत कर अपनी दुकान चला रही है । धार्मिक व्यक्ति ध्यान सिखेगा, प्रार्थना में डूबेगा, इस दुनिया के सौंदर्य में नहाएगा, इस दुनिया के संगीत को अनुभव करेगा, इस दुनिया में जगह-जगह प्रेम, शान्ति व समृद्धि खोजेगा और पाएगा ! अदृश्य परमात्मा की उपस्थिति और अपने भीतर अनुग्रह का भाव लायेगा ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी 24/12/2020 #dineshapna



 

Tuesday 22 December 2020

हिन्दू मन्दिरों के धन का अहिन्दू कार्यों मे दुरुपयोग ! आंध्र प्रदेश,उड़ीसा,केरल,कर्नाटक सरकारों की लूट ! महमूद गजनवी 1025 से 2020 सरकारों द्वारा लूट ! हिन्दू 1000 वर्षों से भगवान के घर की लूट पर मौन ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● संविधान समानता व धर्मनिरपेक्षता की बात करता है ! सरकारें हिन्दू व मन्दिरों को लूटने का कार्य करते है ! श्रीकृष्ण का सन्देश धर्म की रक्षा करो ! धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा ! धर्म के लिए संघर्ष करो ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● (१) आंध्र प्रदेश सरकार :- ने मंदिर अधिकारिता अधिनियम के तहत 43,000 मंदिरों को अपने नियंत्रण में ले लिया है और इन मंदिरों में आये चढ़ावे और राजस्व का केवल 18 के प्रतिशत मंदिर के प्रयोजनों के लिए वापस लौटाया जाता है। तिरुमाला तिरुपति मंदिर से 3,100 करोड़ रुपये हर साल राज्य सरकार लेती है और उसका केवल 15 प्रतिशत मंदिर से जुड़े कार्यों में प्रयोग होता है। 85 प्रतिशत राज्य के कोष में डाल दिया जाता है और उसका प्रयोग सरकार स्वेच्छा से करती है। क्या ये भगवान के धन का ग़बन नहीं है ? इस धन को आप और मैं मंदिरों में चढ़ाते हैं और इसका उपयोग प्रदेश सरकार हिंदु धर्म से जुड़े कार्यों की जगह मनमाना होता है। (२) उड़ीसा सरकार :- ने जगन्नाथ मंदिर की बंदोबस्ती की भूमि के ऊपर की 70,000 एकड़ जमीन को बेचने का इरादा रखती है। (३) केरल सरकार :- की कम्युनिस्ट और कांग्रेसी सरकारें गुरुवायुर मंदिर से प्राप्त धन अन्य संबंधित 45 हिंदू मंदिरों के आवश्यक सुधारों को नकार कर सरकारी परियोजनाओं के लिए भेज देती हैं। अयप्पा मंदिर से संबंधित भूमि घोटाला पकड़ा गया है। सबरीमाला के पास मंदिर की हजारों एकड़ भूमि पर कब्ज़ा कर चर्च चल रहे हैं। केरल की राज्य सरकार त्रावणकोर, कोचीन के स्वायत्त देवस्थानम बोर्ड को भंग कर 1,800 हिंदू मंदिरों को अधिकार पर लेने के लिए एक अध्यादेश पारित करने के लिए करना चाहती है। (४) कर्नाटक सरकार :- की भी ऐसी स्थिति है । यहाँ देवस्थान विभाग ने 79 करोड़ रुपए एकत्र किए गए थे और उसने उस 79 करोड़ रुपये में से दो लाख मंदिरों को उनके रख-रखाव के लिए सात करोड़ रुपये आबंटित किये। मदरसों और हज सब्सिडी के लिये 59 करोड़ दिए और लगभग 13 करोड़ रुपये चर्चों गया । कर्नाटक में दो लाख मंदिरों में से 25 प्रतिशत या लगभग 50000 मंदिरों को संसाधनों की कमी के कारण बंद कर दिया जायेगा। ★★क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि महमूद गज़नी तो 1030 ईसवी में मर गया मगर उसकी आत्मा अभी भी हज़ारों टुकड़ों में बाँट कर भारत के मंदिरों की लूट में लगी हुई है ?★★ यहाँ यह प्रश्न उठाना समीचीन है कि ★आख़िर मंदिर किसने बनाये हैं ? ★हिंदु समाज के अतिरिक्त क्या इनमें मुस्लिम, ईसाई समाज का कोई योगदान है ? बरेली के चुन्ना मियां के मंदिर को छोड़ कर सम्पूर्ण भारत में किसी को केवल दस और मंदिर ध्यान हैं जिनमें ग़ैरहिंदु समाज का योगदान हो ? मुस्लिम और ईसाई समाज कोई हिन्दू समाज की तरह थोड़े ही है जिसने 1857 के बाद अंग्रेज़ी फ़ौजों के घोड़े बांधने के अस्तबल में बदली जा चुकी दिल्ली की जामा-मस्जिद अंग्रेज़ों से ख़रीद कर मुसलमानों को सौंप दी हो । यहाँ ये बात ध्यान में लानी उपयुक्त होगी कि ★दक्षिण के बड़े मंदिरों के कोष सामान्यतः संबंधित राज्यों के राजकोष हैं। एक उदाहरण से बात अधिक स्पष्ट होगी। कुछ साल पहले ●पद्मनाभ मंदिर● बहुत चर्चा में आया था। मंदिर में लाखों करोड़ का सोना, कीमती हीरे-जवाहरात की चर्चा थी। टी वी पर बाक़ायदा बहसें हुई थीं कि मंदिर का धन समाज के काम में लिया जाना चाहिये। यहाँ इस बात को सिरे से गोल कर दिया गया कि वो धन केवल हिन्दू समाज का है, भारत के निवासी हिन्दुओं के अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बियों का नहीं है। उसका कोई सम्बन्ध मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी समाज से नहीं है। वैसे वह मंदिर प्राचीन त्रावणकोर राज्य, जो वर्तमान में केरल राज्य है, के अधिपति का है। मंदिर में विराजे हुए भगवान विष्णु महाराजाधिराज हैं और व्यवस्था करने वाले त्रावणकोर के महाराजा उनके दीवान हैं। नैतिक और क़ानूनी दोनों तरह से पद्मनाभ मंदिर का कोष वस्तुतः भगवान विष्णु, उनके दीवान प्राचीन त्रावणकोर राजपरिवार का, अर्थात तत्कालीन राज्य का निजी कोष हैं। उस धन पर क्रमशः महाराजाधिराज भगवान विष्णु, त्रावणकोर राजपरिवार और उनकी स्वीकृति से हिन्दू समाज का ही अधिकार है। केवल हिन्दु समाज के उस धन पर अब वामपंथी, कांग्रेसी गिद्ध जीभ लपलपा रहे हैं। ★मन्दिर को मन्दिर रहने दो पुजारी की लूट की दुकान नहीं बनने दो :- यहाँ एक ही जगह की यात्रा के दो अनुभवों के बारे में बात करना चाहूंगा। वर्षों पहले वैष्णव देवी के दर्शन करने जाना हुआ। कटरा से मंदिर तक भयानक गंदगी का बोलबाला था। घोड़ों की लीद, मनुष्य के मल-मूत्र से सारा रास्ता गंधा रहा था। लोग नाक पर कपड़ा रख कर चल रहे थे। हवा चलती थी तो कपड़ा दोहरा-तिहरा कर लेते थे। काफ़ी समय बाद 1991 में फिर वैष्णव देवी के दर्शन करने जाना हुआ। तब तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल पद को जगमोहन जी सुशोभित कर चुके थे। आश्चर्यजनक रूप से कटरा से मंदिर तक की यात्रा स्वच्छ और सुविधाजनक हो चुकी थी। कुछ वर्षों में ये बदलाव क्यों और कैसे आया ? पूछताछ करने पर पता चला कि वैष्णव देवी मंदिर को महामहिम राज्यपाल ने अधिग्रहीत कर लिया है और इसकी व्यवस्था के लिये अब बोर्ड बना दिया गया है। अब मंदिर में आने वाले चढ़ावे को बोर्ड लेता है। उसी चढ़ावे से पुजारियों को वेतन मिलता है और उसी धन से मंदिर और श्रद्धालुओं से सम्बंधित व्यवस्थायें की जाती हैं। ये स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ गया कि मंदिर जो समाज के आस्था केंद्र हैं, वो पुजारी की निजी वृत्ति का ही केंद्र बन गए हैं और समाज के एकत्रीकरण, हित-चिंतन के केंद्र नहीं रहे हैं। अब समाज की निजी आस्था अर्थात हित-अहित की कामना और ईश्वर प्रतिमा पर आये चढ़ावे का व्यक्तिगत प्रयोग का केंद्र ही मंदिर बचा है। मंदिर के लोग न तो समाज के लिये चिंतित हैं न मंदिर आने वालों की सुविधा-असुविधा उनके ध्यान में आती है। क्या ये उचित और आवश्यक नहीं है कि मंदिर के पुजारी गण, मंदिर की व्यवस्था के लोग अपने साथ-साथ समाज के हित की चिंता भी करें ? यदि वो ऐसा नहीं करेंगे तो मंदिरों को अधर्मियों के हाथ में जाते देख कर हिंदु समाज भी मौन नहीं रहेगा ? मंदिरों के चढ़ावे का उपयोग मंदिर की व्यवस्था, उससे जुड़े लोगों के भरण-पोषण, आने वाले श्रद्धालुओं की व्यवस्था के लिये होना स्वाभाविक है। ये त्वदीयम वस्तु गोविन्दः जैसा ही व्यवहार है। साथ ही हमारे मंदिर, हमारी व्यवस्था, हमारे द्वारा दिए गये चढ़ावे का उपयोग अहिन्दुओं के लिये न हो ये आवश्यक रूप से करवाये जाने वाले विषय हैं। संबंधित सरकारें इसका ध्यान करें, इसके लिये हिंदु समाज का चतुर्दिक दबाव आवश्यक है अन्यथा लुटेरे भेड़िये हमारी शक्ति से ही हमारे संस्थानों को नष्ट कर देंगे। सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी 23/12/2020 #dineshapna