Friday 26 February 2021

राष्ट्रीय संगोष्ठी व अधिवेशन , राजसमन्द मे 26/02/2021 को *"पुष्टिमार्गीय विरासत एवं संस्कृति"* विषय पर सीए. दिनेश सनाढ्य ने अपने विचार रखे । ★★"जीवन्त पुष्टि मार्ग" से "ज्ञान पुष्टि मार्ग" ★★ ■श्रीवल्लभाचार्य जी का "ज्ञान पुष्टि मार्ग" (भक्ति मार्ग) सन् 1506 से (514 वर्षों से) V/S ■बृजवासियों का "जीवन्त पुष्टि मार्ग" (प्रेम मार्ग) सन् 1409 से (611 वर्षों से) (5132 वर्ष पूर्व भी) ■श्रीवल्लभाचार्य जी के अनुसार पुष्टिमार्ग :- (सन् 1506 से ......514 वर्षों से) तीन 【3】 महत्त्वपूर्ण बिन्दु :- (१) भक्त स्वयं अपने आराध्य के समक्ष "आत्मसमर्पण" करता है ! (२) भगवान के "अनुग्रह" से भक्ति उत्पन्न होती है , उसे पुष्टि भक्ति कहते है ! (३) ऐसा भक्त भगवान के "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता है ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● पुष्टि मार्ग = 【आत्मसमर्पण, अनुग्रह, स्वरूप दर्शन 】 ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● श्रीवल्लभाचार्य जी ने पुष्टि मार्ग को जो ज्ञान रुप मे आम जन व वैष्णवों के लिए सरल भक्ति मार्ग के रूप मे बताया गया, उसका मूल भावना बृजवासीयो से ली गई । क्योंकि बृजवासी आज से 5132 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण के मानव रुप मे अवतार के समय से जीया था । उस समय बृजवासियों ने श्रीकृष्ण के समक्ष ◆"आत्मसमर्पण" किया, तब उन्हें श्रीकृष्ण का ◆"अनुग्रह" प्राप्त हुआ था । उस समय बृजवासियों ने श्रीकृष्ण के ◆"स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त कोई प्रार्थना या ईच्छा नहीं की । ●जब बृजवासियों ने हजारों वर्षों तक श्रीकृष्ण से निस्वार्थ प्रेम किया व प्रतिफल मे कुछ भी नहीं माँगा गया तो श्रीकृष्ण ने पुनः बृजवासियों के लिए "प्रतिमा" रुप मे सन् 1409 मे अवतार लिया ! इसका मूल कारण बृजवासियों का निस्वार्थ "प्रेम मार्ग" ही है । ●इस अवतार मे श्रीकृष्ण को श्रीनाथजी के नाम से जाना गया । बृजवासियों के प्रेम मार्ग (जीवन्त पुष्टि मार्ग) को जन जन तक पहुंचाने के लिए श्रीनाथजी ने श्रीवल्लभाचार्य जी को आज्ञा दी की बृजवासियों के प्रेम मार्ग (जीवन्त पुष्टि मार्ग) को शब्दों व ज्ञान रुप मे परिभाषित करें, जो आगे चलकर "पुष्टि मार्ग" कहलाया । ■बृजवासियों के अनुसार निस्वार्थ प्रेम मार्ग (जीवन्त पुष्टि मार्ग) :- (सन् 1409 से .........611 वर्षों से) (१) भक्त स्वयं अपने आराध्य के समक्ष "आत्मसमर्पण" करता है ! 【【जब भक्त (बृजवासी) को प्रथम बार आराध्य की ऊध्र्व भुजा के दर्शन होते ही "आत्मसमर्पण" किया, इससे भी पूर्व भक्त (बृजवासी) की गाय ने भी आत्मसमर्पण अपने दूध का किया ! उसके बाद जैसे ही बृजवासियों ने स्वतः "आत्मसमर्पण" किया !】】 (२) भगवान के "अनुग्रह" से भक्ति उत्पन्न होती है , उसे पुष्टि भक्ति कहते है ! 【【उसके बाद "भगवान श्रीकृष्ण ने अनुग्रह" किया, तो बृजवासियों मे भक्ति उत्पन्न हुई जो अनवरत रुप से 97 वर्षों तक (श्रीवल्लभाचार्य जी के जतिपुरा पधारने के पूर्व तक) जारी थी, तथा जो आजतक (611 वर्षो तक) विद्दमान है व आगे भी रहेगा !】】 (३) ऐसा भक्त भगवान के "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता है ! 【【 बृजवासी श्रीनाथजी के प्राकृट्य सन् 1409 से सन् 1506 श्रीवल्लभाचार्य जी के पधारने से पूर्व 97 वर्ष तक केवल "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं की !】】https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4105129336173702&id=100000300273580































 

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