Friday 15 September 2017

*कड़वी बात* *नाथद्वारा मंदिर में “ धर्मनीति ” के स्थान पर ” राजनीति “ प्रवेश कर चुकी है !" (1) *निर्णय लेना* :- ★निर्णय बोर्ड मेंबर्स के हाथ में ! बोर्ड मेंबर्स सरकार के हाथ में ! सरकार “राजनीती” के हाथ में ! ★महाराजश्री की निर्णय में स्वीकृति दबाव में ! ★बृजवासी , नगरवासी , मेवाड़ के महाराणा जी की निर्णय लेने में कोई अहमियत नही है ! (2) *फायदा लेना* :- ★फायदा नेता , अधिकारी व सक्षम लोग ही ले रहे है ! ★महाराजश्री की इसमें मौन स्वीकृति है ! ★वास्तविक हक़दार बृजवासी, नगरवासी, वैष्णव व आमजनता को फायदा कम, नुकसान ज्यादा ! (3) *सेवा करना* :- ★सेवा करे तन से, मन से, धन से बृजवासी , नगरवासी , वैष्णव व आमजनता ! ★उस सेवा का लाभ लेवे नेता, अधिकारी व सक्षम लोग ! ★चुप क्यों रहे महाराजश्री ! जबकि श्रीनाथजी का प्राकट्य बृजवासी व आमजनता की लिए ही हुआ तथा सर्वप्रथम श्रीनाथजी ने दर्शन व सेवा का लाभ बृजवासियों को ही दिया ! बाद में बृजवासियों ने सेवा व्यस्था का कार्य महाप्रभुजी को श्रीनाथजी की आज्ञा से सौपा ! जिसे महाप्रभुजी व उनकी 14 पीढ़ीयो तक सही तरीके से निभाया ! उसके बाद “राजनीती” ने प्रवेश किया जो आज तक चल रही है ! महाराजश्री को चाहिए की मंदिर में पुनः “धर्मनीति” की स्थापना करे ! श्रीनाथजी की प्राकट्य का मूल उद्देश्य बृजवासियों व आमजनता को उचित व उच्च स्थान (सखा भाव ) पर स्थापित करना तथा इसकी जिम्मेदारी महाप्रभुजी को सौपी थी! वर्तमान में महाराजश्री की जिम्मेदारी श्रीनाथजी के सखा बृजवासियों को उचित स्थान देने की है ! +++++ “धर्मनीति” की स्थापना हो ! +++++ +++++ “राजनीति” का निष्कासन हो ! +++++ CA.Dinesh Sanadhya – 15.09.2017 www.dineshapna.blogspot.com







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