Chartered Accountant,Social Activist,Political Analysist-AAP,Spritual Thinker,Founder of Life Management, From India, Since 1987.
Sunday 13 October 2019
गांधी जी के 150 वर्ष बाद .......... ◆अब "जानने की" जरूरत नहीं, ◆उससे आगे "कुछ करने" की जरूरत है ! #dineshapna ●अहिंसा परमो धर्म: ............ के आगे .................!!!!!!!!!!!!!!! अहिंसा परमो धर्म: , धर्म रक्षा तथैव च: (अहिंसा श्रेष्ठ धर्म है, किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा भी सर्वश्रेष्ठ है !) ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ उत्पत्ति – इस श्लोक की उत्पत्ति हमारे श्रेष्ठ भारत के महाकाव्य महाभारत में हुई। जब महाभारत ग्रंथ में पांडवो को 12 वर्षों का वनवास मिलता हैं, तो वो अनेक ऋषि-मुनियों के संपर्क में आते हैं, जिनसे उन्हें भांति-भांति का ज्ञान मिलता है। इसी अवधि में उनका ऋषि मारकंडेय से भी परिचय होता है। ऋषि मारकंडेय के मुख से उन्हें कौशिक नाम के ब्राह्मण और धर्मनिष्ठ व्याध के बीच के वार्तालाप की बात सुनने को मिलती है। यह श्लोक उसी के अंतर्गत उपलब्ध है ! ★★“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: ”★★ इस श्लोक के अनुसार अहिंसा ही मनुष्य का परम धर्म हैं और जब जब धर्म पर आंच आये तो उस धर्म की रक्षा करने के लिए की गई हिंसा उससे भी बड़ा धर्म हैं। यानि हमें हमेशा अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए लकिन अगर हमारे धर्म पर और राष्ट्र पर कोई आंच आ जाये तो हमें अहिंसा का मार्ग त्याग कर हिंसा का रास्ता अपनाना चाहिए। क्यूंकि वह धर्म की रक्षा की लिए की गई हिंसा ही सबसे बड़ा धर्म हैं। जैसे हम अहिंसा के पुजारी है लकिन अगर कोई हमारे परिवार को कोई हानि पहुंचता हैं तो उसके लिए की गई हिंसा सबसे बड़ा धर्म हैं। वैसा ही हमारे राष्ट्र के लिए हैं। भारतीय नेताओं ने हमारे महान राष्ट्र भारत के महाकाव्य महाभारत के इस सबसे महत्वपूर्ण श्लोक को लोगों तक ●●पूरा नहीं पहुंचाया●● है । ■■■■अब 150 वर्ष बाद■■■■ इसलिए आपको उस अधूरे श्लोक को पूरा जरूर पड़ना चाहिए ! CA. Dinesh Sanadhya - 13.10.2019 www.dineshapna.blogspot.com
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