Friday 23 December 2022

■साहित्य से समाज सेवा - दिनेश सनाढ्य■ श्रीराम की मर्यादाओं का पालन करें तो उनके धनुष को भी याद रखे । श्रीकृष्ण की बांसुरी का वर्णन करे तो सुदर्शन चक्र को भी नहीं भूले । इसके लिए साहित्य सर्जन भी इसके अनुसार हो तथा उसको धरातल पर भी उतारे व जनता की सेवा करें । इसके लिए आज रविन्दन चारण की अध्यक्षता मे श्रीहरि साहित्य सेवा संस्थान का गठन करके काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । यह कार्य व विचार सीए. दिनेश सनाढ्य ने रखें । इस श्रीहरि साहित्य सेवा संस्थान के गठन व काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता सीए. दिनेश सनाढ्य ने की व मुख्य अतिथि पुलिस अधिकारी डाँ. हनुमन्त सिह राजपुरोहित विशिष्ट अतिथि डाँ. आनंद श्रीवास्तव, समाज कल्याण अधिकारी जय प्रकाश चारण, डाँ. लक्ष्मी नारायण आमेटा, श्रीमती ज्योत्सना थे । इस अवसर पर 10 साहित्यकार, कवि, समाजसेवी को अपना ट्रस्ट व श्रीहरि साहित्य सेवा संस्थान की ओर से सम्मानित किया गया । सम्मानित गण आनंद श्रीवास्तव, राजेन्द्र सनाढ्य राजन, प्रेम कुमावत, पूरण शर्मा, योगेंद्र यश, राजेन्द्र सिंह चारण, कैलाश चन्द्र वैष्णव, श्रीमती ललिता शर्मा शशि थे । हे प्यारी भारत माँ तुझे हमे शिश झुकाते है तेरे पर बलि बलि जाते है 🙏 - राधेश्याम राणा ओ म्हारा सांवरिया गिरधारी, तुम नहीं रुठो चाहे रुठे दुनिया सारी... - बख्तावर सिंह चुंडावत प्रीतम बैठी अशोका पेड़ तले सीताजी झर झर रोई , रामजी थे क्यूं देर लगाई रे हिवडे़ रा साथी क्यूं बिसराई रे - लेखराज मीणा 'मुराड़या' आदरणीय मोहन जी गायत्री परिवार गीत की पंक्तियां बीड़ी मज़ा न देगी जर्दा मज़ा न देगा दिल तक पहुंचे बात मेरी,वो शब्द कहां से मैं लाऊं - वीणा वैष्णव रागिनी पन्नाधाय बलिदान गाथा बलिदान वेरियो लाडलो खेखाळ लोया रा वैग्या.... - ललिता शर्मा 'शशि' स्त्रियां परिवार को जोड़ती, रिश्तो को गहराई देती है, पत्नी सुदामा जी को द्वारिकाधीश से मिलने की दुहाई देती है, - रामगोपाल आचार्य रण में भेजो मुझको भी मैं तत्पर बैठा राणा जी, मुझको भी तो रण में जाकर अपना शौर्य दिखाना जी, - योगेन्द्र "यश" सच की आवाज उठाने में बुरा क्या है। घने अंधेरे में चिराग जलाने में बुरा क्या है। हो जाते तुझे मुतासिर मदभरा तेरा अंदाज है - डॉ. आनन्द श्रीवास्तव। नी खाऊं,तो क ई खाऊं, अबे भाटा खाऊं क ई। एलियन तो वणी ग्यों हूं, मंगल पे परो जाऊं क ई। - राजेन्द्र सनाढ्य राजन कोठारिया। इतनी सी बात कही और वो बुरा मान गए सीधी सच्ची ही कही पर वो बुरा मान गए - कुसुम अग्रवाल आज कल किसी के घर नहीं आते-जाते हैं लोग मुलाक़ातों से न जाने क्यों कतराते हैं लोग - कमल अग्रवाल संचालन कुसुम अग्रवाल ने किया व धन्यवाद रविनंदन चारण ने ज्ञापित किया ।

































 

No comments:

Post a Comment