Wednesday 27 September 2023

★नाथद्वारा मन्दिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त क्यों नहीं हो ?★ ★मन्दिर बचाने के लिए मै "धर्म युद्व" क्यों कर रहा हूँ ?★ (१) हम श्रीनाथजी ( श्रीकृष्ण ) की सेवा करते है तो हमें उनकी शिक्षा / उपदेश को भी आत्मसात करना होगा ! यदि हम ऐसा नहीं करते है तो हमारी सेवा अधुरी रहती है ! हमें धर्म की रक्षाथँ अपने गुरु, पितामह, भाईयो, परिजनो व मित्रो से भी युद्ध करना पडे तो हमें करना होगा ! अतः श्रीनाथजी की परम्पराओं के साथ खिलवाड़ करने वालों, उनकी सम्पत्तियों, जमीनों व धन को लूटने / लूटाने वालों के विरुद्ध "धर्म युद्ध" करना होगा, जिसका शंखनाद मेरे द्वारा किया जा चुका है ! (२) उत्सव काल :- (सन् 1409 से 1506) (97 वर्ष) इस काल मे श्रीनाथजी का प्राकृट्य व उनकी सेवा बृजवासियों के द्वारा की जाती थी ! कोई सम्पत्तियों, जमीन व धन की किसी भी प्रकार से लूट नहीं थी, केवल सभी ओर "समर्पण" भाव होने के कारण उत्सव सा माहौल था ! (३) अमृत काल :- (सन् 1506 से 1876) (370 वर्ष) इस काल मे श्रीनाथजी, ब्रजवासी व श्रीवल्लभाचार्य जी व उनके वंशजो के बीच एक दूसरे के प्रति "समर्पण" भाव था ! इसमे सेवा पद्वति, पुष्टि मार्ग, अष्ठ आयामी सेवा मे राग ,भोग व श्रृंगार आदि स्थापित होने से चारों ओर अमृत सा माहौल था ! (४) संक्रमण काल :- (सन् 1876 से 1959) (83 वर्ष) इस काल मे श्रीनाथजी, बृजवासी व वल्लभ कुल व वैष्णव थे ! इस काल मे वल्लभ कुल के "महाराजश्री से मठाधीश" बन गये ! उन्हें यह गलत फहमी हो गई कि श्रीनाथजी व उनकी सम्पूर्ण सम्पत्ति उनकी निजी सम्पत्ति है ! इसमे "समर्पण" को "स्व अर्पण" समझने लग गये ! (५) धनकूट काल :- (सन् 1959 से 2023) (64 वर्ष) इस काल मे श्रीनाथजी, बृजवासी, वल्लभ कुल, वैष्णव के साथ बोडँ मैम्बर्स व सरकारी अधिकारी भी शामिल हो गये ! इसमे मठाधीश व सरकारी अधिकारियों ने मिलकर बृजवासियों को "सखा से बन्धुआ मजदूर" बना दिया ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #(81) #27/09/23 #dineshapna





 

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