Saturday 28 September 2019

शहीद भगत सिंह के जन्मदिवस पर आम जनता के नाम संदेश कि भगत सिंह के आदर्शों पर चलकर हम आजादी को बरकरार रख सकते हैं, आज के दिन हम अपने इतिहास से शिक्षा ले कि जाति, धर्म , संप्रदाय व राजनीतिक पार्टीयो से ऊपर उठकर हम देश के लिए एकजुट होकर कार्य करें तथा अपने अधिकारों की रक्षा के लिए जनहित में कार्य करें ! ★★★★★★★★★★★ शहीद भगत सिंह बम फेंककर क्रांतिकारी नहीं बने. अपने विचारों से बने. उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खासियत उनके विचार हैं. 23 की उम्र में वह जो कुछ लिख गए, वह उन्हें आजादी के दूसरे सिपाहियों से बिल्कुल अलग खड़ा करता है. उन्हें सलाम करते हुए हम उनके कुछ मशहूर कोट्स यहां पेश कर रहे हैं. वह किस किस्म की दुनिया बनाना चाहते थे, आप उनकी कही इन बातों से समझ सकते हैं ! ★★★★★★★★★★★★★★★ भगत सिंह लिखते हैं "महान लोग इसलिए महान हैं क्योंकि हम घुटनों पर हैं. आईए, हम उठें!" इसके पेज नंबर 177 पर वह लिखते हैं "यह प्राकृतिक नियम के विरुद्ध है कि कुछ मुट्ठी भर लोगों के पास सभी चीजें इफरात में हों और जन साधारण के पास जीवन के लिए जरूरी चीजें भी न हों." इसके 41वें पेज पर धर्म के बारे में अपने विचार जाहिर किए हैं. "लोग धर्म द्वारा उत्पन्न झूठी खुशी से छुटकारा पाए बिना सच्ची खुशी हासिल नहीं कर सकते. यह मांग कि लोगों को इस भ्रम से मुक्त हो जाना चाहिए, उसका मतलब यह मांग है कि ऐसी स्थिति को त्याग देना चाहिए जिसमें भ्रम की जरूरत होती है." शहीद-ए-आजम भगत सिंह की आवाज, उनके क्रांतिकारी विचार आम लोगों तक पहुंचाने के लिए पहली बार उनकी जेल डायरी हिंदी में छपवाई गई है. खास बात यह है कि इसमें एक तरफ भगत सिंह की लिखी डायरी के पन्नों की स्कैन प्रति लगाई गई है और दूसरी तरफ उसका ट्रांसलेशन है. शहीद-ए-आजम ने अंग्रेजी और उर्दू में डायरी लिखी है. इस पर लाहौर जेल के जेलर के भी हस्ताक्षर हैं. डायरी पर 'नोटबुक' भारती भवन बुक सेलर लाहौर छपा हुआ है. शहीद-ए-आजम के वंशज यादवेंद्र सिंह संधू राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे फरीदाबाद में रहते हैं. उन्होंने भगत सिंह द्वारा लाहौर सेंट्रल जेल में लिखी गई डायरी की मूल प्रति संजोकर रखी हुई है. संधू कहते हैं "हम चाहते थे कि डायरी में लिखी बातों का हिंदी में अनुवाद कर आम लोगों तक पहुचायां जाए. खासकर हिंदी पट्टी के लोग उनके विचार उन्हीं के शब्दों में जान सकें. संधू कहते हैं "भगतसिंह के बारे में हम जब भी पढ़ते हैं, तो एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि जो कुछ भी उन्होंने किया, उसकी प्रेरणा, हिम्मत और ताकत उन्हें कहां से मिली? उनकी उम्र मात्र 23 साल थी और उन्हें फांसीपर चढ़ा दिया गया. लाहौर सेंट्रल जेल में आखिरी बार कैदी रहने के दौरान (1929-1931 के बीच) भगत सिंह ने आजादी, इंसाफ, खुद्दारी, मजदूरों, क्रांति और समाज के बारे में महान् दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों तथा नेताओं के विचारों को खूब पढ़ा और आत्मसात् किया. इसी आधार पर उन्होंने जेल डायरी में कमेंट्स लिखे." "यह सब आप उन्हीं के शब्दों में, उन्हीं की हैंडराइटिंग में पढ़ सकते हैं. भगत सिंह ने यह सब भारतीयों को यह बताने के लिए लिखा कि आजादी क्या है, मुक्ति क्या है और इन अनमोल चीजों को बेरहम तथा बेदर्द अंग्रेजों से कैसे छीना जा सकता है, जिन्होंने भारतवासियों को बदहाल और मजलूम बना दिया था. भगतसिंह ने किस तरह के भविष्य का सपना देखा था? मौजूदा हालात में भगत सिंह की जेल डायरी इन सवालों का जवाब दे सकती हैं." हमने डायरी के कुछ पन्ने अपने कैमरे में कैद किए. गजब की अंग्रेजी लिखावट के साथ-साथ एक बेहतर देश और समाज बनाने के उनके विचार भी इसमें छिपे हुए हैं. 404 पेज की इस डायरी के हर पन्ने पर वतनपरस्ती झलकती है. आजाद भारत के सपने को लेकर भगत सिंह ने लाहौर जेल में जो कठिन दिन गुजारे उसका हर लम्हा इसमें कैद है. इसके पेज नंबर 124 पर उन्होंने Aim of life शीर्षक से लिखा है "ज़िंदगी का मकसद अब मन पर काबू करना नहीं बल्कि इसका समरसता पूर्ण विकास है. मौत के बाद मुक्ति पाना नहीं बल्कि दुनिया में जो है उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना है. सत्य, सुंदर और शिव की खोज ध्यान से नहीं बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के वास्तविक अनुभवों से करना भी है. सामाजिक प्रगति सिर्फ कुछ लोगों की नेकी से नहीं, बल्कि अधिक लोगों के नेक बनने से होगी. आध्यात्मिक लोकतंत्र अथवा सार्वभौम भाईचारा तभी संभव है जब सामाजिक, राजनैतिक और औद्योगिक जीवन में अवसरों की समानता हो !!!!!!!!!!!





















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