Chartered Accountant,Social Activist,Political Analysist-AAP,Spritual Thinker,Founder of Life Management, From India, Since 1987.
Tuesday 17 September 2019
गाय की सुरक्षा, सर्वस्व की रक्षा जन्मदात्री माँ तो मात्र शिशु-अवस्था में ही पयपान कराती है परंतु गौमाता तो आजीवन हमें अपने दूध-दही-मक्खन आदि से पोषित करती है । उसका उपकार किस प्रकार चुकाया जा सकता है ? अपने इन सुंदर उपहारों से वह जीवन भर हमारा हित करती है । फिर भी गौमाता की उपयोगिता से अनभिज्ञ होकर सरकार की गलत नीतियों के कारण तथा मात्र उसके पालन-पोषण का खर्च वहन न कर पाने के बहाने उन्हें कत्लखानों के हवाले करना विकास का कौन-सा मापदंड है ? क्या गौमाता के प्रति हमारा कोई कर्तव्य नहीं है ? एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना भारत में !!! सदियों से अहिंसा का पुजारी भारतवर्ष आज हिंसक और मुख्य मांस-निर्यातक देश के रूप में उभरता जा रहा है । हिन्दूबहुल समाज होने के बावजूद गोवंश की हत्या जारी है । यह बड़ी विडम्बना है कि एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना 'देवनार' अन्य इस्लामिक देशों में नहीं बल्कि भारत के महाराष्ट्र प्रांत में है, जहाँ हजारों गायें रोज कटती हैं । दूसरा अल-कबीर कत्लखाना आंध्रप्रदेश में है । इनका हजारों-हजारों टन मांस विदेशों मेें निर्यात होता है । पूज्य गौमाता के साथ ऐसी निर्दयता ! क्या आप जानते हैं जिस गौमाता की आप पूजा करते हैं, उसे किस प्रकार निर्दयतापूर्वक मारा जाता है ? कत्लखाने में गौओं को मौत के कुएँ में 4 दिन तक भूखा रखा जाता है । अशक्त होकर गिरने पर घसीटते हुए मशीन के पास ले जाकर उन्हें पीट-पीटकर खड़ा किया जाता है । मशीन की एक पुली (मशीन का पकड़नेवाला एक हिस्सा) गाय के पिछले पैरों को जकड़ लेती है । तत्पश्चात् खौलता हुआ पानी 5 मिनट तक उस पर गिराया जाता है । पुली पिछले पैरों को ऊपर उठा देती है । जिससे गायें उलटी लटक जाती हैं । फिर इन गायों की आधी गर्दन काट दी जाती है ताकि खून बाहर आ जाय लेकिन गाय मरे नहीं । तत्काल गाय के पेट में एक छेद करके हवा भरी जाती है, जिससे गाय का शरीर फूल जाता है । उसी समय चमड़ा उतारने का कार्य होता है । गर्भवाले पशु का पेट फाड़कर जिंदा बच्चे को बाहर निकाला जाता है । उसके नर्म चमड़े (काफ-लेदर) को बहुत महँगे दामों में बेचा जाता है । आज देश में वैध तथा अवैधरूप से हजारों कत्लखाने चल रहे हैं, जिनमें प्रतिदिन लाखों की संख्या में पशुधन काटा जाता है । गौहत्या का बदला चुकाना पड़ेगा गाय मरी तो बचता कौन ? गाय बची तो मरता कौन ? दिल्ली विश्वविद्यालय के दो वैज्ञानिकों डॉ. मदनमोहन बजाज, डॉ. अब्राहम तथा अन्य वैज्ञानिक डॉ. विजय राज ने अपने शोधों से यह साबित कर दिया है कि ''पृथ्वी पर भूकम्प एवं सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ तथा सोये हुए ज्वालामुखी फूट पड़ना अधिकांशतः ई.पी. वेव्स के कारण ही होता है । ये वेव्स गाय एवं अन्य प्राणियों को कत्ल करते समय उत्पन्न दारुण वेदना एवं चीत्कार से निकलती हैं।'' कटती गायों की चीत्कार से पृथ्वी की रक्षा-कवच कही जानेवाली ओजोन परत में 2 करोड़ 70 लाख वर्ग किलोमीटर का छिद्र हो गया है । यदि गायों की हत्या इसी प्रकार चलती रही तो सन् 2020 तक प्रलय की सम्भावनाएँ निश्चित हैं । पशुहत्या के कारण धरती का तापमान लगातार बढ़ता ही जा रहा है । क्या आप जानते हैं ? देश की आजादी के समय था - 90 करोड़ गोधन सन् 2000 में रह गया - 10 करोड़ सन् 2010 में रह गया - लगभग 1 करोड़ गौमाता चराचर जगत की माता हैं । इनकी रक्षा करना हमारा नैतिक कर्तव्य है । अथर्ववेद में आता है : गौहत्यारे को काँच की गोली से उड़ा दो । अतः हे भारतवासियो ! जागो और गोवंश की हत्या रोकने के लिए आगे आओ । गौमाता धरती का गौरव है । भारत की 40 करोड़ एकड़ भूमि पर पैदावार तथा छोटे-बड़े भूखंडों के अनुकूल कृषिकार्य मात्र गोवंश ही कर सकता है । गायों से प्राप्त विभिन्न पदार्थों से विभिन्न उत्पाद बनाये जाते हैं जो मानव-जीवन के लिए अति आवश्यक हैं । गाय धरती का वरदान, जिसकी महिमा महान * गौमाता के दर्शन एवं गाय के खुरों की धूलि मस्तक पर लगाने से भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं, घर में सुख-समृद्धि एवं शांति बनी रहती है। * जहाँ पर गौएँ रहती हैं उस स्थान को तीर्थभूमि कहा गया है, ऐसी भूमि में जिस मनुष्य की मृत्यु होती है उसकी तत्काल सद्गति हो जाती है, यह निश्चित है । - (ब्रह्मवैवर्तपुराण,श्रीकृष्णजन्म खंड : 21.91-93) * गो-ग्रास देने तथा गाय की परिक्रमा करने से मनोकामना सिद्ध होती है, धन-संपदा स्थिर रहती है तथा अभीष्ट की प्राप्ति होती है। * गाय को प्रेम से सहलाने से ग्रहबाधा, पीड़ा, कष्ट आदि दूर होते हैं। * गौ के शरीर के रोम-रोम से गूगल जैसी पवित्र सुगंध आती है। उसके शरीर से अनेक प्रकार की वायु निकलती है जो वातावरण को जंतुरहित करके पवित्र बनाती है । यज्ञ से जीवन रक्षा देशी गाय के गोबर के कण्डों पर गाय का घी, जौ, तिल, चावल और मिश्री अथवा शक्कर डालकर हवन किया जाता है तो महत्वपूर्ण गैसें उत्पन्न होती हैं । उनमें से एक प्रोपिलीन ऑक्साईड गैस बरसात लाने में सहायक होती है । 'इथिलीन ऑक्साइड' का गैस संक्रामक रोगों में एवं जीवनरक्षक दवाओं के रूप में प्रयोग होता है। इससे पर्यावरण शुद्ध, पवित्र तथा आरोग्यप्रद बनता है । इसलिए प्राचीन काल में अपने पूर्वज, राजा-महाराजा, ऋषि-मुनि, संत-महात्मा निरंतर अश्वमेध, विष्णुयाग, सहस्रकुंडी इत्यादि यज्ञ करते रहते थे। इससे खूब वर्षा होती थी व पर्यावरण शुद्ध और पवित्र होता था, महामारियाँ भी नहीं फैलती थीं। अवकाशीय ऊर्जा (लेीाळल शपशीसू) का संग्राहक : अंतरिक्ष में असंख्य तारे, नक्षत्र, सूर्य, चन्द्र, ग्रह, उपग्रह और असंख्य आकाशगंगाएँ हैं। आकाश से दिन-रात अनेक प्रकार की ऊर्जा की वर्षा पृथ्वी पर होती रहती है। उस ऊर्जा को झेलने का कार्य गौ के सींग करते हैं। गाय के सींगों का आकार पिरामिड जैसा होता है। यह एक शक्तिशाली 'एन्टेना' है। सींगों की मदद से गौ सभी अवकाशीय ऊर्जाओं को शरीर में संचित कर लेती है और वही ऊर्जा हमें गोझरण, दूध और गोबर के द्वारा देती है। इसके अलावा गाय की पीठ पर ककुद (डिल्ला) होता है जो कि सूर्य-अवकाशीय कई तत्त्वों को शरीर में दूध, गोझरण तथा गोबर के द्वारा हमें देता है। गोमूत्र अवकाशीय ऊर्जा का भंडार है। गोमूत्र चिकित्सा गोमूत्र विषाणुनाशक, रक्तविकार व वात-पित्त कफजन्य विकारों को दूर करने वाला एक श्रेष्ठ एवं पवित्र रसायन द्रव्य है । यह कायिक, मानसिक दोनों प्रकार के रोगों का नाश करता है । गोझरण प्रतिजैविक (एन्टीबायोटिक) है तथा सत्त्वगुण की वृद्धि करता है । यह शरीर में श्वेत रक्तकणों की वृद्धि कर रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है । इसके सेवन से शरीरगत विष मल-मूत्र व पसीने के द्वारा बाहर निकल जाते हैं । गोझरण शरीर के लिए आवश्यक विटामिन ए, बी, सी, डी और इ की पूर्ति करता है। इसके सेवन से प्राणशक्ति बढ़ती है। यह गुर्दे-संबंधी रोग दूर कर गुर्दे की सक्रियता और क्षमता को बढ़ाता है। * कब्ज निवारक : गोझरण कब्जियत मिटाकर आँतों की दीवारों पर जमे हुए वर्षों पुराने मल को दूर कर देता है । मूत्र-विसर्जन के समय पीड़ा होना, पेशाब रुक-रुककर आना अथवा बारम्बार जाना। शिथिलता का अनुभव होना। ये सभी तकलीफें गोझरण के सेवन से दूर होती हैं व स्नायु सक्रिय होते हैं। ज्यादा कब्जियत हो तो गोझरण में दो से तीन ग्राम छोटी हर्रे (हरड़) का चूर्ण मिलाकर 45 दिन तक निरंतर लें। इसके आधे घंटे पूर्व व बाद में कुछ न लें । * कृमिनाशक : गोझरण कृमिनाशक है । 10 से 25 मि.ली. गोझरण बालकों को देने से उनके पेट के तमाम कृमि नष्ट हो जाते हैं। (बड़ों को 50 मि.ली.)। * अपच-मंदाग्नि : मंदाग्नि के मरीजों को आहार नहीं पचता, भूख नहीं लगती, पेट भारी लगता है, बेचैनी और सुस्ती रहती है। मंदाग्नि के मरीजों को 50 मि.ली. गोझरण में एक चम्मच सोंठ, आधा चम्मच पीपरामूल तथा दो चम्मच शहद डालकर लेना चाहिए । यह प्रयोग 45 दिन तक करें । * दर्दशामक : गोझरण में दर्दशामक तत्त्व प्रचुर मात्रा में हैं। इसके उपयोग से घुटनों के दर्द, कमरदर्द, सिरदर्द, स्नायुदर्द आदि अनेक प्रकार के दर्दों में राहत देता है। स्नायुओं के दर्द में गोझरण की मालिश की जाय तो राहत मिलती है। दाँत के दर्द में इसके कुल्ले करने से राहत मिलती है। * घुटनों का दर्द व संधिवात : दो चम्मच एरंड का तेल और एक चम्मच सोंठ का चूर्ण गोझरण में डालकर गरम करके खूब हिलाने के बाद लें, इससे तकलीफें दूर हो जाती है। * जीभ के रोग : तम्बाकू आदि व्यसन अथवा अन्य किसी कारण से स्वाद या रस को पहचान नहीं सकते हों तो गोझरण के कुल्ले करने से स्वादेन्द्रिय सचेत हो जाती है। * आँख : छाना हुआ गोझरण पीने और नेत्रों में डालने से नेत्रज्योति बढ़ती है। चश्मे के नंबर कम होते हैं । आँख में से पानी बहना, आँख लाल होना आदि रोग दूर होते हैं। गाय का घी नेत्रों में आँजने से नेत्रज्योति चमत्कारिक रूप से बढ़ती है। * कान : छाना हुआ गोझरण पीने और कान में डालने से कान का मैल दूर होता है, मवाद बहना, कान की खुजली आना बंद हो जाती है तथा श्रवणशक्ति बढ़ती है। * त्वचारोग : गोझरण पीने और गोमय (गोबर का रस) व गोमूत्र मिलाकर मालिश करने से त्वचा के छिद्र खुल जाते हैं, चर्मरोग दू होते हैं और पसीने का नियंत्रण होता है। * मोटापा नाशक : गोझरण वात और कफ का नाश कर त्वचा के नीचे एकत्र हुई चर्बी को पिघलाकर मोटापा कम करता है। शरीर को पतला व सुडौल बनाता है। मोटापा कई रोगों का मूल है। * रक्तवसा (कोलेस्ट�ोल) नियंत्रण : गोझरण में अनेक प्रकार के अम्ल (एसिड) व सुपाच्य यूरिक क्षार होते हैं जो अतिरिक्त रक्तवसा (कोले- -स्ट�ोल) को दूर करके रक्त को स्वच्छ, जंतुरहित तथा पतला रखते हैं। * उत्कृष्ट रोगाणुरोधक (एंटीसेप्टिक) : शरीर के घावों को गोमूत्र द्वारा धोने से अथवा जले हुए स्थानों पर गोझरण लगाने से वे पकते नहीं हैं। घाव पर गोझरण की पट्टी करने से घाव के जन्तुओं का नाश हो जाता है। * प्रभावशाली कीटाणुनाशक : गोझरण में 16 प्रकार के अम्ल (एसिड) पाये जाते हैं जो वातावरण को जंतुरहित करके पवित्र व आरोग्यप्रद बनाते हैं । इसलिए हिंदू धर्म के सभी 16 संस्कारों व धार्मिक कार्य करने से पहले गोझरण व गोबर का उपयोग किया जाता है। * उत्तम विषनाशक : विषैली रासायनिक खाद और जंतुनाशक दवाओं के कारण अनाज, साग-सब्जी, फल आदि विषैले बनते हैं जिन्हें खाने से शरीर में भी विष पहुँच जाता है। एलोपैथी की दवाओं के कारण भी शरीर में जहर उत्पन्न होता है। ये सभी प्रकार के विष शरीर में जमा होकर कालांतर में कैंसर आदि जैसे घातक रोगों को जन्म देते हैं। ऐसी सभी विष का शमन करने में गोझरण सफल है। * यकृत-रक्षक : गोझरण यकृत (लीवर) के लिए एक असरकारक व बलप्रदायक औषध है। यकृत कमजोर होने से पीलिया जैसे रोग होने की संभावना रहती है। गोझरण यकृत के रोगों को मिटाकर उसकी कार्यप्रणाली को नियमित करके उसे कार्यशील बनाता है। * ग्रंथि भेदन : गोझरण में अनेक प्रकार के अम्ल(एसिड) होने के कारण कैंसर की गाँठों को चाहे वे रक्त में मिश्रित हों, चाहे मस्तिष्क में हों या शरीर के अन्य किसी भाग में हों, उन्हें पिघलाने में मदत करते हैं। ये एसिड गुर्दे अथवा मूत्राशय की पथरी को भी पिघलाकर शरीर से बाहर निकाल देते हैं। * मस्तिष्क बलदायक : गोझरण ज्ञानतंतुओं को कार्यशील और गतिशील बनाता है जिससे स्मरणशक्ति और बुद्धिशक्ति में बढ़ोतरी होती है। यह दिमाग को शक्ति देता है। अपस्मार या मिर्गी जैसे दिमाग के रोगों को दूर करने में गोझरण मदद करता है। * मधुमेह : दिन में 3 बार 50 मि.ली. गोझरण लें । मीठे पदार्थों का त्याग करें । चावल, आलू, तले हुए तथा स्निग्ध पदार्थ न लें । सुबह-शाम एक-एक घंटा तेज गति से चलें तथा योगासन, कसरत या सूर्यनमस्कार करें । * त्वचा के रोग (सोराइसिस, दाद-खाज-खुजली) : त्वचा के रोगों के लिए गोझरण और गोबर अकसीर इलाज है । सर्वप्रथम गोझरण से मालिश करके बाद में गाय के गोबर से मालिश करें । फिर उसका मोटा लेप करें । मंद धूप में आधे घंटे तक बैठें । पुनः गोझरण से मालिश करें । एक घंटे के बाद नीम के पत्ते डालकर उबाले हुए गर्म पानी से स्नान करें । सुबह-शाम 50 मि.ली. गोझरण पीये। भोजन में खट्टे तले हुए पदार्थ न लें । थोड़े दिन नमक बंद रखें अथवा कम लें । गोझरण उपयोग में सावधानियाँ केवल देशी स्वस्थ गाय का ताजा झरण ही उपयोग में लेना चाहिए । गोझरण को ताँबे या पीतल के पात्र में नहीं रखना चाहिए । मिट्टी, काँच, चीनी मिट्टी या स्टील का पात्र में रख सकते हैं । ताजा झरण 24 घंटे तक सेवन करने योग्य माना जाता है । झरण का अर्क कुछ लम्बे समय तक उपयोग कर सकते हैं । गोझरण अर्क सुबह खाली पेट पानी मिलाकर तत्संबंधी दिये गये निर्देशानुसार लें । गोझरण पीने के 1 घंटे पहले व बादकुछ नहीं खाना चाहिए । सेवन की मात्रा देश, ऋतु, प्रकृति, आयु आदि के अनुसार बदलती रहती है । सामान्यत: व्यक्ति 50 से 100 मि.ली. तक गोझरण सेवन कर सकते हैं । 'गौ स्वास्थ्य वर्धिनी' उपयोगी उपचार (क) बच्चों को खोखली खाँसी होने पर गोझरण में हल्दी का चूर्ण मिलाकर दें । (ख) जलोदर में मरीज केवल गोदुग्ध का सेवन करे । गोझरण में शहद मिलाकर नियमित निर्देशानुसार लें । (ग) प्रसूति के बाद होनेवाले सूतिका (सूवा) रोग में गोझरण लेने से लाभ होता है । (घ) हाथीपाँव रोग में गोझरण सुबह खाली पेट लें । (ड) गोझरण सिर में अच्छी तरह मलकर लगायें । सूखने के बाद धो लें । इससे बाल सुंदर होते हैं । (च) गोझरण में पुराना गुड़ और हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीने से दाद, कुष्ठरोग और हाथीपाँव (फाइलेरिया) में लाभ होता है । (छ) उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) में रोज 50 ग्राम गोझरण सुबह-शाम लें । (ज) 1 से 3 ग्राम मोचरस मिश्रीयुक्त दूध से सेवन करने पर स्वप्नदोष मिटता है । (झ) काकड़ासिंगी पानी में घोंटकर लुगदी बना के दूध में मिला के पीने से शक्ति आती है । मात्रा- बड़ों हेतु : 1 से 3 ग्राम व बच्चों हेतु : 0.5 ग्राम । * गौदुग्ध : गौदुग्ध धरती का अमृत है । यह सम्पूर्ण आहार है, साथ ही अमूल्य औषधि भी । बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़े सभीके लिए यह उपयोगी है । यह बल, बुद्धि, स्मृति व रक्तवर्धक, आयुष्य को बढ़ानेवाला रसायन है । 'चरक संहिता' में आता है : प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुक्तं रसायनम । अर्थात् 'गोदुग्ध जीवनशक्ति बढ़ाने वाला श्रेष्ठतम रसायन है ।' इससे रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है, बुद्धि कुशाग्र होती है । * गौदधि : गाय के दही में उत्पन्न सूक्ष्म जीवाणु आँतों में विषाणुओं की उत्पत्ति को रोकते हैं । दही मथकर उचित मात्रा में सेवन करने से भूख व पाचनशक्ति बढ़ती हैै । कैंसर के लिए भी दही एक असरकारक औषधि है । परम पवित्र पंचगव्य पंचगव्य गाय के दूध, दही, घी, गौमूत्र, और गोबर के रस को एक निश्चित अनुपात में मिलाने से बनता है । पंचगव्य मनुष्य के शरीर को शुद्ध करके स्वस्थ, सात्त्विक व बलवान बनाता है । इसके सेवन से तन-मन-बुद्धि के विकार दूर होकर आयुष्य, बल और तेज की वृद्धि होती है । निम्न मंत्र के तीन बार उच्चारण के पश्चात् खाली पेट सेवन करना चाहिए । पंचगव्य सेवन का मंत्र : यत् त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके । प्राशनात् पंचगव्यस्य दहत्वग्निरिवेन्धनम् ।। ।। गौ-संस्कृति ।। खेती, गौपालन, बागवानी और इन तीनों से जुड़े हुए उद्योगों (कामकाज) पर टिकी हुई एक जीवन शैली है । गौ-संस्कृति यानी बहुआयामी कृषि प्रणाली पर टिकी हुई जीवन व्यवस्था । * गौ-संस्कृति आधुनिक विज्ञान की अत्याधुनिक स्थापनाओं और शोधो के आधारभूत तथ्यों पर टिकी हुई है । *. यह जीवन शैली प्राकृतिक पर्यावरण की विशुद्धता के साथ कम-से- कम छेड़छाड़ करते हुए यानी प्रकृति में जितने भी प्राणी-पशु, पक्षी, जल, जीव, जीवाणु आदि है उसके साथ अपना तालमेल बैठाकर जीवन जीने का तरीका है । * गोबर रेडियोधर्मिता सोखता है एवं ईंधन, खाद की भी आपूर्ति करता है । * गोसेवा केन्द्रित जीवन-पद्धति, गौशाला केन्द्रित ग्रामोद्योग और गोचर केन्द्रित कृषि से स्थायी, समग्र व संतुलित विकास संभव है । * आधा टन वजन की गाय रात-दिन में 12 सौ वाट की गर्मी देती है । गोवंश लगभग 30 हजार मेगावाट जितनी ऊर्जा देता है । गायों के लिए गौशालाएँ आश्रय स्थल हैं, जो ऊर्जा केन्द्र बन सकती हैं । * गोधन से विकसित धान्य और धन मानवता को हृदयहीन व जड़ होने से बचाता है । * आधुनिक सभ्यता प्राकृतिक सम्पदा का अंधाधुंध दोहन कर रही है । पिछले 50-60 वर्षों से सारी दुनिया का पर्यावरण बुरी तरह प्रदूषित हुआ है । संसार के सभी प्रबुद्ध वैज्ञानिक इस स्थिति से चिंतित हैं ।
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