Sunday 24 November 2019

★नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का सामाजिक अंकेक्षण★ ★श्रीकृष्ण का भीष्म पितामह से संवाद★ ★★हमारे लिए कलयुग मे शिक्षा★★ ★★पूरा पढ़ें ! समझे ! आत्मसात करें !★★ ■■■■■■■■■◆◆◆◆◆◆◆■■■■■■■■■ महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था. युद्धभूमि में द्वापर का सबसे महान योद्धा "देवव्रत" (भीष्म पितामह) शरशय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था... ! ◆तभी उनके कानों में परिचित ध्वनि पहुँची , "प्रणाम पितामह" .... !! ◆भीष्म बोले , "आओ देवकीनंदन ! मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था" .... !! ◆कृष्ण बोले , "क्या कहूँ पितामह ! अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप" .... ! ◆भीष्म ने कहा , "कुछ पूछूँ केशव .... ? सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाय " .... !! ◆कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....! ◆भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया ! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या .... ?" "किसकी ओर से पितामह .... ? पांडवों की ओर से .... ?" " कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया ! पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था .... ? आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या .... ? यह सब उचित था क्या .... ?" ◆कृष्ण: "इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह .... ! इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ..... !! उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन .... !! मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह .... !!" ◆भीष्म: "अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण .... ? अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है .... ! मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण .... !" ◆कृष्ण: "तो सुनिए पितामह .... ! 【कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ .... ! वही हुआ जो हो होना चाहिए .... !"】 ◆भीष्म: "यह तुम कह रहे हो केशव .... ? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ....? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया ..... ? " ●●●●●●●●●●● ◆कृष्ण: ★★★★★★ 【"इतिहास से "शिक्षा" ली जाती है पितामह , पर "निर्णय" वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है .... !】★★★★★ हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है .... !! ●राम त्रेता युग के नायक थे , ●मेरे भाग में द्वापर आया था .... ! हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह .... !!" ●●●●●●●●●●●● " नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो .... !" " राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह .... ! ●राम के युग में खलनायक भी ' रावण ' जैसा शिवभक्त होता था .... !! तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण जैसे सन्त हुआ करते थे ..... ! तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे .... ! उस युग में "खलनायक भी धर्म का ज्ञान" रखता था .... !! इसलिए राम ने उनके साथ कहीं ◆"छल नहीं किया" .... ! ● किंतु मेरे युग के भाग में में कंस , जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे "घोर पापी" आये हैं .... !! उनकी समाप्ति के लिए हर ◆ "छल उचित है" पितामह .... ! पाप का अंत आवश्यक है पितामह , वह चाहे जिस विधि से हो .... !!" ●भीष्म: "तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव .... ? क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा .... ? और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा ..... ??" ●कृष्ण: " भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह .... ! कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा .... ! ●●●●●●वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा .... नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा .... !●●●●●● जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह .... ! तब महत्वपूर्ण होती है "विजय" , केवल "विजय" .... ! भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह ..... !!" ●भीष्म: "क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव .... ? और यदि धर्म का नाश होना ही है , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ..... ?" ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ●कृष्ण: "सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह .... ! ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता ..... !केवल मार्ग दर्शन करता है। सब मनुष्य को ही स्वयं करना पड़ता है .... ! आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न .... ! तो बताइए न पितामह , मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ..... ? सब पांडवों को ही करना पड़ा न .... ? यही प्रकृति का संविधान है .... ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से .... ! यही परम सत्य है ..... !! भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे .... ! उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी .... ! उन्होंने कहा - चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है .... कल सम्भवतः चले जाना हो ... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण .... !" ●कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले , पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका है। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ "जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है ....।।" ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ CA. Dinesh Sanadhya - 24.11.2019 www.dineshapna.blogspot.com





















No comments:

Post a Comment