Tuesday 19 May 2020

★ #आत्मनिर्भर भारत :: #हिंदी राष्ट्र भाषा बनाये ★ ★ आत्मनिर्भर #भारत :: #विदेशी प्रतिबंधित करें ★ ★ #स्वदेशी जनता अपनाये :: #सरकार भी स्वदेशी के लिए करें ★ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● आत्मनिर्भर भारत जब बनेगा , जब हम स्वदेशी को अपनायेगे तथा स्वदेशी को तब अपना पायेंगे जब हिंदी को राष्ट्र भाषा व जन जन की भाषा बनायेंगे ! यह बात हम 1905 से कह रहे है व समझ भी रहे है तथा इसके आधार पर ही हमें आजादी मिली है ! किन्तु र्दुभाग्य से हम सन् 1905 की आवाज को हम भूल गये है , अत 115 वर्ष बाद अब तो समझे व 2020 मे हम हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाकर इसे जन जन की भाषा बनाये ! ■★१★■ स्वदेशी का अर्थ :- 'अपने देश का' अथवा 'अपने देश में निर्मित'। वृहद अर्थ में किसी भौगोलिक क्षेत्र में जन्मी, निर्मित या कल्पित वस्तुओं, नीतियों, विचारों को स्वदेशी कहते हैं। ■★२★■ वर्ष 1905 मे :- भारत मे ● सर्वप्रथम बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आन्दोलन को बहुत बल मिला, यह 1911 तक चला और गाँधी जी के भारत में पदार्पण के पूर्व सभी सफल आन्दोलनों में से एक था। ●अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय स्वदेशी आन्दोलन के मुख्य उद्घोषक थे। आगे चलकर यही ●स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होंने इसे "स्वराज की आत्मा" कहा। ■★३★■ वर्ष 1915 मे :- महात्मा गाँधी ने सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा था– मैंने सन् 1915 में कांग्रेस के (एक के अलावा) सभी अधिवेशनों में भाग लिया है। इन अधिवेशनों का मैंने इस अभिप्राय से अध्ययन किया है कि कार्यवाही को अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दुस्तानी में चलाने से कितनी उपयोगिता बढ़ जायेगी। मैंने सैकड़ों प्रतिनिधियों और हजारों अन्य व्यक्तियों से बातचीत की है और मैंने अन्य सभी व्यक्तियों से अधिक विशाल क्षेत्र का दौरा किया है और अधिक शिक्षित तथा अशिक्षित लोगों से मिला हूँ– लोकमान्य तिलक और श्रीमती ऐनी बेसेन्ट से भी अधिक। मैं इस दृढ़ निश्चय पर पहुँचा हूँ कि हिन्दुस्तानी के अलावा संभवत: कोई ऐसी भाषा नहीं है, जो विचार विनिमय या राष्ट्रीय कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय माध्यम बन सके । ●यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सन 1905 ई. तक कांग्रेस के अधिवेशनों में भाग लेने वाले सदस्य अधिकतर अंग्रेजी वेशभूषा में रहते थे और अपने भाषण अंग्रेजी में ही दिया करते थे लेकिन सन 1906 ई. के बाद ‘स्वराज्य’, ‘स्वदेशी’ ने इतना जोर पकड़ा कि ‘स्वभाषा’ और हिन्दी भाषा के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया। लोकमान्य तिलक ने ‘हिन्द केसरी’ के माध्यम से हिन्दी को प्रचारित–प्रसारित करने का प्रयास किया। पंजाब में लाला लाजपत राय ने शिक्षण संस्थाओं में हिन्दी की पढ़ाई को अनिवार्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ●पण्डित मदनमोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना करके एवं पाठ्यक्रम में हिन्दी एक विषय के रूप में सम्मिलित करके तथा ‘अभ्युदय’, ‘मर्यादा’, ‘हिन्दुस्तान’ आदि पत्रों को प्रारम्भ एवं सम्पादन करके हिन्दी का प्रचार–प्रसार किया। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन, काका कालेलकर आदि ने हिन्दी को सार्वदेशिक बनाकर जन–जागृति लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ■★४★■ वर्ष 1915 के बाद :- जाहिर है स्वाधीनता आन्दोलन की सफलता के लिए यह आवश्यक था कि उसे सार्वदेशिक और अखिल भारतीय बनाया जाए क्योंकि सन् 1857 के प्रथम संघर्ष में हमें इसलिए असफल होना पड़ा क्योंकि वह अखिल देशीय नहीं हो सका था। उस प्रथम स्वाधीनता संग्राम को अखिल भारतीय नहीं बनाये जा सकने के अनेक कारणों में एक कारण राष्ट्रव्यापी भाषा का अभाव भी था। एक अखिल देशीय भाषा के अभाव में सम्पूर्ण देश को नहीं जोड़कर रखा जा सका और वह आन्दोलन मात्र हिन्दी प्रदेशों तक ही सीमित होकर रह गया था। अन्य प्रदेशों में छिटपुट घटनाएँ अवश्य घटित हुईं लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला। १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम असफल जरूर हुआ लेकिन यह सिखा गया कि अखिल भारतीय स्तर पर संगठित हुए बिना आजादी का स्वप्न देखना व्यर्थ है। इसलिए यह जरूरी समझा गया कि विभिन्न भाषा–भाषियों के बीच एक सम्पर्क भाषा ही राष्ट्रव्यापी भाषा हो ताकि योजनाओं का सही क्रियान्वयन हो सके और सम्पूर्ण देश को जोड़कर रखा जा सके। अब प्रश्न यह था कि राष्ट्रव्यापी भाषा कौन हो सकती है? यद्यपि उस समय अखिल भारतीय स्तर पर संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी जैसी भाषाएँ थीं लेकिन इनमें से कोई भी ऐसी नहीं थी जो जनता की भाषा बन सके। वैसे तो अंग्रेजी के माध्यम से उस समय सम्पर्क–कार्य चल रहा था लेकिन जब बात स्वदेशी, स्वाधीनता, स्वाभिमान और स्वभाषा की हो तब किसी विदेशी भाषा को सम्पर्क भाषा या राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाना उचित नहीं था। इसलिए देश की एक दर्जन से भी अधिक भाषाओं में से एक को राष्ट्रीय सन्देश की वाहिका या अन्तर प्रान्तीय व्यवहार के लिए चुनना था। सरलता, सहजता, स्वाभाविकता और बोलने वालों की संख्या के आधार पर हिन्दी को राष्ट्र भाषा और सम्पर्क भाषा के रूप में अपनाने की जोरदार वकालत की गई। ■★५★■ वर्ष 2020 मे :- आजादी मे हिंदी के सम्पर्क व जन जन भाषा के रुप मे योगदान के बावजूद आज तक सरकारों ने हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप मे मान्यता नहीं देना गलत है ! इसके बिना भारत को आत्मनिर्भर बनाने व स्वदेशी को अपनाना सम्भव नहीं है । ■★६★■ कटु सत्य :- आज भी हमारा देश गुलाम हुए क्योंकि आजादी के पूर्व भी जनता की आवाज व स्वदेशी की बात को सुना अनसुना किया जाता था । वर्तमान मे भी जनता का राज, जनप्रतिनिधि, जनता के सेवक, आत्मनिर्भर भारत, स्वदेशी के नाम पर आमजनता को मुर्ख बनाया जा रहा है ! जैसे जनता को स्वदेशी का पाठ पढाया जाता है तथा सरकार इसके विपरीत विदेशी कम्पनियों व विदेशी प्रोडक्ट को बढावा दिया जा रहा है । इस प्रकार सरकार आम जनता की आवाज को सुना अनसुना किया जा रहा है । अतः आमजनता को आत्मनिर्भर व स्वदेशी का "उपदेश" देने के साथ सरकार को भी "ईमानदारी से जनता के अनुसार कार्य" भी करना होगा, तभी सच्ची आजादी मिलेगी ! सीए. दिनेश सनाढ्य - 19/05/2020 www.dineshapna.blogspot.com








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