Chartered Accountant,Social Activist,Political Analysist-AAP,Spritual Thinker,Founder of Life Management, From India, Since 1987.
Thursday 14 May 2020
■★देश हित ★नारी सम्मान★धर्म★राजधर्म■ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ★जब कोई "देवव्रत" देश के हितो का मार्ग रोकेगा, तब कोई न कोई "अर्जुन" उसको बाणों की शैया पर लिटाने के लिए आगे आयेगा !★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ■भीष्मपितामह मृत्युशैय्या पर पांडवों से:- ◆जब-जब कोई देवव्रत "देश के हितों का मार्ग रोक कर" खड़ा होगा, तब-तब उसको "बाणों की शैय्या पर लिटाने के लिए" कोई न कोई अर्जुन अवश्य सामने आयेगा। राजनीति का मूलमंत्र यही है। ◆पुत्र, "देश हित से बढ़कर राजा का और कोई हित हो ही नहीं सकता"। देश राजा के लिए नहीं होता। राजा देश के लिए होता है। और वो राजा कभी अपने देश के लिए शुभ नहीं होता जो अपने देश के "आर्थिक और सामाजिक रोगों के लिए अपने अतीत को जिम्मेदार ठहराता हो"। यदि अतीत ने तुमको एक निर्बल आर्थिक और सामाजिक ढांचा दिया है तो उसे सुधारो। उसे बदलो। क्यूंकि अतीत यू भी कभी वर्तमान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। वर्तमान ही देश को प्रगति और बदलाव ला सकता है। ◆एक और अच्छी बात सुनो. किसी समाज की कुशलता की सही कसौटी यही है कि वहां "नारी जाति का सम्मान" होता है या अपमान। देश की सीमाओं और नारी की सदैव रक्षा करना पुत्र, सदैव रक्षा करना। ■श्रीकृष्ण:- ◆इनको "धर्म" और "राजधर्म" के विषय में भी कुछ बताइये पितामह। ■भीष्म पितामह:- ◆"धर्म" विधियों और औपचारिकताओं के अधीन नहीं होता। धर्म अपने कर्तव्यों और दूसरों के अधिकारों के संतुलन को कहते हैं। इसलिए "धर्म का पालन अवश्य करना चाहिए"। ◆"राजधर्म" भी यही है किंतु राजा का दायित्व नागरिक के दायित्व से कहीं अधिक होता है। यदि कोई परिस्थिति देश के विभाजन की मांग करती हो तो कुरुक्षेत्र में आ जाओ। परन्तु देश का विभाजन कभी न होने दो। क्या आप सभी भाई, माता कुंति को काट कर आपस में बांट सकते हो? यदि नहीं तो मातृभूमि का विभाजन कैसे संभव हो सकता है? CA. Dinesh Sanadhya - 14/05/2020 www.dineshapna.blogspot.com
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