Chartered Accountant,Social Activist,Political Analysist-AAP,Spritual Thinker,Founder of Life Management, From India, Since 1987.
Saturday 23 May 2020
★श्रीमद् भगवद् गीता★ ★१★मूल श्लोकः- श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।३.३५।। ★२★हिन्दी अनुवाद :- रागद्वेषयुक्त मनुष्य तो शास्त्रके अर्थको भी उल्टा मान लेता है और परधर्म को भी धर्म होने के नाते अनुष्ठान करने योग्य मान बैठता है। परंतु उसका ऐसा मानना भूल है अच्छी प्रकार अनुष्ठान किये गये अर्थात् अंगप्रत्यंगोंसहित सम्पादन किये गये भी परधर्मकी अपेक्षा गुणरहित भी अनुष्ठान किया हुआ, ●अपना धर्म कल्याणकर है● अर्थात् अधिक प्रशंसनीय है। परधर्ममें स्थित पुरुषके जीवनकी अपेक्षा स्वधर्म में स्थित पुरुष का मरण भी श्रेष्ठ है क्योंकि ●दूसरे का धर्म भयदायक है,● नरक आदि रूप भय का देनेवाला है। ।।३.३५।। ★३★गीता के सप्तम अध्याय ज्ञान-विज्ञान योग में अन्य देवताओं की उपासना के संदर्भ में कहा गया है :- न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः । माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ॥ ।।१५।। भावार्थ : ●माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किए हुए,● मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते।१५॥ ★४★कथाकारों से निवेदन :- ★जो कथाकार "श्रीराम की रामायण कथा" सुनाते है, उन्हें श्रीकृष्ण का सन्देश (श्री भगवद् गीता का श्लोक ३.३५) भी ध्यान से पढ़ व समझने की आवश्यकता है ! ★जो कथाकार "श्रीकृष्ण की भागवत कथा" सुनाते है, उन्हें श्रीकृष्ण का सन्देश (श्री भगवद् गीता का श्लोक ३.३५) भी ध्यान से पढ़ व समझने की आवश्यकता है ! ★५★यदि कोई गलती हुई हो तो सनातनी हिन्दू से माफी भी माँगी जा सकती है ! अन्यथा आपको विवेक पूर्ण तरीकों से स्पष्टीकरण देकर सभी को सन्तुष्ट करना चाहिए ! ■■■■■■■■■■■■■■ आपका अपना अल्प व सत्य ज्ञानी (दिनेश सनाढ्य "अपना") 23/05/2020
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