Thursday 26 November 2020

★★श्रीनाथजी प्राकृट्य से नाथद्वारा आगमन★★ ★★"जीवन्त पुष्टि मार्ग" से "ज्ञान पुष्टि मार्ग" ★★ ●●●●●●●●●●●●●【१】●●●●●●●●●●●●● "श्रीनाथजी का प्राकृट्य, प्रथम दर्शन व सेवा" - श्रीसद्दू पाण्डे जी द्वारा !(सन् 1478 - वि.सं 1535) "श्रीनाथजी से महाप्रभु जी का प्रथम मिलन" - श्रीवल्लभाचार्य जी का !(सन् 1506 - वि.सं 1563) ◆◆>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>◆◆ ◆सन् 1409 (वि.सं 1466) - (श्रावण शुक्ल पंचमी - नागपंचमी) श्रीनाथजी का प्राकृट्य (उध्व भुजा) । (श्रीसद्दू पाण्डे (सनाढ्य) के दादाजी जयदेव जी पाण्डे द्वारा "प्रथम दर्शन" व बृजवासीयो द्वारा "प्रथम सेवा" कार्य) ◆सन् 1441 (वि.सं 1498) - महाप्रिय श्री सद्दू पाण्डे जी का प्राकृट्य । ◆सन् 1478 (वि.सं 1535) - (वैशाख कृष्ण एकादशी) बालस्वरूप मे श्रीनाथजी स्वयं साक्षात् प्रकट होकर श्रीसद्दू पाण्डे को सेवा का अधिकार दिया व श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य । (श्रीनाथजी के उध्व भुजा प्राकृट्य के 69 वर्ष बाद श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य) ◆सन् 1506 (वि.सं 1563) श्रीवल्लभाचार्य जी का श्रीसद्दू पाण्डे जी के घर आन्यौर पदार्पण व श्रीनाथजी से प्रथम मिलन श्रीसद्दू पाण्डे जी के द्वारा । (97 वर्षों तक श्रीसद्दू पाण्डे, उनके परिवार व बृजवासीयो के द्वारा श्रीनाथजी की सेवा व पूजा की ।) (श्रीवल्लभाचार्य जी 28 वर्ष की उम्र मे बृज मे पधारे व श्रीनाथजी से प्रथम मिलन हुआ ।) ◆सन् 1519 (वि.सं 1576) - (वैशाख शुक्ल तीज - अक्षय तृतीया) श्रीनाथजी का जतिपुरा मन्दिर मे पाटोत्सव । (13 वर्षों मे श्रीनाथजी का जतिपुरा मे नया मन्दिर बना ।) ◆सन् 1530 (वि.सं 1587) - (आषाढ़ शुक्ल तीज, रविवार) श्रीवल्लभाचार्य जी का देवलोक गमन । (52 वर्ष की उम्र मे ) ◆सन् 1534 (वि.सं 1591) - श्रीसद्दू पाण्डे जी का देवलोक गमन । (93 वर्ष की उम्र मे ) ◆सन् 1665 (वि.सं 1722) - (आश्विन शुक्ल १५, शुक्रवार) श्रीनाथजी का बृज से प्रस्थान । (श्रीनाथजी 256 वर्ष तक बृज मे विराजे) ◆सन् 1672 - 20 फरवरी (वि.सं 1729) - (फाल्गुन कृष्ण सप्तमी - शनिवार) श्रीनाथजी का नाथद्वारा मन्दिर मे पाटोत्सव । (श्रीनाथजी को बृज से मेवाड़ पधारने मे 32 माह का समय लगा) ●●●●●●●●●●●●●●【२】●●●●●●●●●●●●● ★★"जीवन्त पुष्टि मार्ग" से "ज्ञान पुष्टि मार्ग" ★★ ■श्रीवल्लभाचार्य जी का "ज्ञान पुष्टि मार्ग" (भक्ति मार्ग) सन् 1506 से (514 वर्षों से) V/S ■बृजवासियों का "जीवन्त पुष्टि मार्ग" (प्रेम मार्ग) सन् 1409 से (611 वर्षों से) (5132 वर्ष पूर्व भी) ●●>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>●● ■श्रीवल्लभाचार्य जी के अनुसार पुष्टिमार्ग :- (सन् 1506 से ......514 वर्षों से) तीन 【3】 महत्त्वपूर्ण बिन्दु :- (१)भक्त स्वयं अपने आराध्य के समक्ष "आत्मसमर्पण" करता है ! (२)भगवान के "अनुग्रह" से भक्ति उत्पन्न होती है , उसे पुष्टि भक्ति कहते है ! (३)ऐसा भक्त भगवान के "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता है ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● पुष्टि मार्ग = 【आत्मसमर्पण, अनुग्रह, स्वरूप दर्शन 】 ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ●श्रीवल्लभाचार्य जी ने पुष्टि मार्ग को जो ज्ञान रुप मे आम जन व वैष्णवों के लिए सरल भक्ति मार्ग के रूप मे बताया गया, उसका मूल भावना बृजवासीयो से ली गई । क्योंकि बृजवासी आज से 5132 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण के मानव रुप मे अवतार के समय से जीया था । उस समय बृजवासियों ने श्रीकृष्ण के समक्ष ◆"आत्मसमर्पण" किया, तब उन्हें श्रीकृष्ण का ◆"अनुग्रह" प्राप्त हुआ था । उस समय बृजवासियों ने श्रीकृष्ण के ◆"स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त कोई प्रार्थना या ईच्छा नहीं की । ●जब बृजवासियों ने हजारों वर्षों तक श्रीकृष्ण से निस्वार्थ प्रेम किया व प्रतिफल मे कुछ भी नहीं माँगा गया तो श्रीकृष्ण ने पुनः बृजवासियों के लिए "प्रतिमा" रुप मे सन् 1409 मे अवतार लिया ! इसका मूल कारण बृजवासियों का निस्वार्थ "प्रेम मार्ग" ही है । ●इस अवतार मे श्रीकृष्ण को श्रीनाथजी के नाम से जाना गया । बृजवासियों के प्रेम मार्ग (जीवन्त पुष्टि मार्ग) को जन जन तक पहुंचाने के लिए श्रीनाथजी ने श्रीवल्लभाचार्य जी को आज्ञा दी की बृजवासियों के प्रेम मार्ग (जीवन्त पुष्टि मार्ग) को शब्दों व ज्ञान रुप मे परिभाषित करें, जो आगे चलकर "पुष्टि मार्ग" कहलाया । ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ■बृजवासियों के अनुसार निस्वार्थ प्रेम मार्ग (जीवन्त पुष्टि मार्ग) :- (सन् 1409 से .........611 वर्षों से) (१)भक्त स्वयं अपने आराध्य के समक्ष "आत्मसमर्पण" करता है ! 【【जब भक्त (बृजवासी) को प्रथम बार आराध्य की ऊध्र्व भुजा के दर्शन होते ही "आत्मसमर्पण" किया, इससे भी पूर्व भक्त (बृजवासी) की गाय ने भी आत्मसमर्पण अपने दूध का किया ! उसके बाद जैसे ही बृजवासियों ने स्वतः "आत्मसमर्पण" किया !】】 (२)भगवान के "अनुग्रह" से भक्ति उत्पन्न होती है , उसे पुष्टि भक्ति कहते है ! 【【उसके बाद "भगवान श्रीकृष्ण ने अनुग्रह" किया, तो बृजवासियों मे भक्ति उत्पन्न हुई जो अनवरत रुप से 97 वर्षों तक (श्रीवल्लभाचार्य जी के जतिपुरा पधारने के पूर्व तक) जारी थी, तथा जो आजतक (611 वर्षो तक) विद्दमान है व आगे भी रहेगा !】】 (३)ऐसा भक्त भगवान के "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता है ! 【【 बृजवासी श्रीनाथजी के प्राकृट्य सन् 1409 से सन् 1506 श्रीवल्लभाचार्य जी के पधारने से पूर्व 97 वर्ष तक केवल "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं की !】】 दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 26/11/2020 - 18/11/2020 #देव_उठनी_एकादशी #संविधान_दिवस #बहादुरी_दिवस #स्थापना_दिवस #dineshapna Nathdwara, nathdwara live, nathdwara news, nathdwara darshan, shrinathji, shrinathji mandir, nathdwara mandir, श्रीनाथजी, श्रीनाथजी दर्शन, श्रीनाथजी प्राकृट्य, श्रीनाथद्वारा,













 

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