Monday 9 November 2020

★इतिहास समीक्षा व इतिहास की सत्यता ! अभी तक इतिहास मे सत्य को छिपाया गया, इसलिए सत्य को प्रकट किया जा रहा है व उसको सत्यता की कसौटी पर कसने के लिए आप सभी के विचार सादर आमंत्रित है !★ ★★ - श्रीनाथजी प्राकृट्य का गूढ़ रहस्य - ★★ "श्रीनाथजी प्राकृट्य व प्रथम दर्शन"- श्रीसद्दू पाण्डे द्वारा ! "श्रीनाथजी से प्रथम मिलन" - श्रीवल्लभाचार्य जी द्वारा ! श्रीनाथजी का प्राकृट्य गोवर्धन पर्वत, जतिपुरा, मथुरा मे सन् 1409 (वि.सं 1466 - श्रावण शुक्ल पंचमी - नागपंचमी) श्रीनाथजी का प्राकृट्य (उध्व भुजा) । श्रीसद्दू पाण्डे - सनाढ्य द्वारा प्रथम दर्शन व बृजवासीयो द्वारा प्रथम सेवा कार्य किया गया । उसके 69 वर्ष बाद सन् 1478 (वि.सं 1535 - वैशाख कृष्ण एकादशी) श्रीनाथजी के मुखारविंद के दर्शन हुए व उसके साथ ही श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य हुआ । श्रीनाथजी के प्राकृट्य के 69 वर्ष बाद श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य हुआ । इसके बाद सन् 1506 (वि.सं 1563) श्रीवल्लभाचार्य जी का श्रीसद्दू पाण्डे के घर आन्यौर पदार्पण हुआ व श्रीवल्लभाचार्य जी ने सद्दू पाण्डे से श्रीनाथजी के दर्शन कराने का निवेदन किया तब श्रीनाथजी ने नरो को दूध पिलाने के लिए आवाज लगाई, जब सद्दू पाण्डे की लड़की नरो श्रीनाथजी को दूध पिलाकर आई तो उस बर्तन मे शेष बचे दूध को श्रीवल्लभाचार्य जी ने श्रीनाथजी का प्रसाद समझकर ग्रहण किया । दूसरे दिन सद्दू पाण्डे श्रीवल्लभाचार्य जी को लेकर बृजवासीयो के साथ गोवर्धन पर्वत लेकर गये जहाँ श्रीवल्लभाचार्य जी का श्रीनाथजी से प्रथम मिलन हुआ । इस प्रकार 97 वर्षों तक श्रीसद्दू पाण्डे व बृजवासीयो के द्वारा श्रीनाथजी की सेवा व पूजा की व जब श्रीवल्लभाचार्य जी बृज मे पधारे तब उनकी उम्र 28 वर्ष की थी । इसके बाद श्रीवल्लभाचार्य जी ने सन् 1519 (वि.सं 1576 - वैशाख शुक्ल तीज - अक्षय तृतीया) श्रीनाथजी का जतिपुरा नये मन्दिर मे पाटोत्सव किया । जतिपुरा मे श्रीनाथजी का नया मन्दिर बनाने मे 13 वर्षों का समय लगा । इसके बाद श्रीवल्लभाचार्य जी ने श्रीनाथजी की सेवा का दायित्व चौहान व बंगाली ब्राह्मणों को दिया व स्वयं साहित्य सृजन मे लग गये व सन् 1530 (वि.सं 1587 - आषाढ़ शुक्ल तीज, रविवार) श्रीवल्लभाचार्य जी का देवलोक गमन हो गया । उनके देवलोक गमन के समय श्रीवल्लभाचार्य जी की उम्र 52 वर्ष की थी । उसके बाद मुगलों के आक्रमण के कारण सन् 1665 (वि.सं 1722 - आश्विन शुक्ल १५, शुक्रवार) को श्रीनाथजी ने बृजवासियों व वल्लभ कुल के साथ बृज से अनिश्चित स्थान के लिए प्रस्थान किया । इस प्रकार श्रीनाथजी 256 वर्ष तक बृज मे विराजे थे । तदरुपरान्त सन् 1672 - 20 फरवरी (वि.सं 1729 - फाल्गुन कृष्ण सप्तमी - शनिवार) श्रीनाथजी का नाथद्वारा मन्दिर मे पाटोत्सव हुआ । उस समय उदयपुर, मेवाड़ के महाराणा ने सुरक्षा का आश्वासन दिया व तन, मन व धन से सहयोग किया । श्रीनाथजी को बृज से मेवाड़ पधारने मे 32 माह का समय लगा । इसके बाद मन्दिर की अव्यवस्थाओ मे सुधार व अच्छे प्रबंधन के लिए सरकार द्वारा सन् 1959 - 28 मार्च (वि.सं 2016) को नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन किया गया । इस प्रकार 61 वर्ष पूर्व नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन हुआ, जिसमें बृजवासीयो को कोई स्थान नहीं दिया गया । नाथद्वारा मन्दिर मण्डल होने के बावजूद श्रीनाथजी की सम्पत्ति व धन का अपव्यय जारी है अतः श्रीनाथजी की प्रेरणा से सत्य, न्याय व सेवाधिकार के लिए आवाज श्रीनाथजी की आज्ञा से एक बृजवासी के द्वारा सन् 2019 - 2 अक्टूबर (वि.सं. 2076) को उठाई गई । इस प्रकार सन् 2020 (वि.सं.2077) तक के घटनाक्रम मे "श्रीनाथजी के प्राकृट्य" व श्रीसद्दू पाण्डे (सनाढ्य) व बृजवासीयो को प्रथम दर्शन व सेवा करते सन् 1409 (वि.सं 1466 - श्रावण शुक्ल पंचमी - नागपंचमी) 611 वर्ष हुए व श्रीवल्लभाचार्य जी के "श्रीनाथजी से मिलन" व उनके द्वारा श्रीनाथजी की पूजा करते सन् 1506 (वि.सं 1563) से 514 वर्ष हुए तथा श्रीनाथजी को नाथद्वारा पधारे 348 वर्ष हुए व नाथद्वारा मन्दिर मण्डल बने 61 वर्ष हुए । ★★★★★जयश्रीकृष्ण◆श्रीकृष्णार्पण★★★★★ नोट :- (१)श्रीनाथजी के प्राकृट्य का इतिहास जो बताया गया, उसमें श्रीनाथजी के प्राकृट्य की तीन अलग - अलग समय बताया गया ! (२)श्रीनाथजी प्राकृट्य मे श्री सद्दू पाण्डे व बृजवासियों का प्रथम व महत्त्वपूर्ण योगदान है, उसे गौण करने कि असफल प्रयास किया गया ! - दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - नाथद्वारा, राजस्थान, भारत ।




































 

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