Monday 9 November 2020

नाथद्वारा मन्दिर मण्डल द्वारा श्रीनाथजी प्राकृट्य का भ्रमित करने वाला इतिहास ! मन्दिर मण्डल की www.nathdwaratemple.org. के अनुसार ◆तीन◆ 【3】 अलग अलग समय हुआ ! (१)विक्रम संवत् १४६६ ई. स. १४०९ की श्रावण कृष्ण तीज, रविवार के दिन सूर्योदय के समय श्री गोवर्धननाथ का प्राकट्य गिरिराज गोवर्धन पर हुआ। (२)सर्वप्रथम श्रावण शुक्ल पंचमी (नागपंचमी) सं. १४६६ के दिन जब एक ब्रजवासी अपनी खोई हुई गाय को खोजने गोवर्धन पर्वत पर गया, तब उसे श्री गोवर्द्धनाथजी की ऊपर उठी हुई, वाम भुजा के दर्शन हुए उसने अन्य ब्रजवासियों को बुलाकर ऊर्ध्व वाम भुजा के दर्शन करवाये। (३) वि.स. १५३५ में वैशाख कृष्ण एकादशी को मध्यान्ह एक अलोकिक घटना घटी। गोवर्धन पर्वत के पास आन्योर गाँव के सद्दू पाण्डे की हजारों गायों में से एक गाय नंदरायजी के गौवंश की थी, जिसे धूमर कहा जाता था। वह नित्य तीसरे प्रहर उस स्थान पर पहुँच जाती थी, जहाँ श्री गोवर्धननाथजी की वाम भुजा का प्रकट्य हुआ था। ■■■■अब वैष्णव स्वयं फैसला करें कि श्रीनाथजी का प्राकृट्य कब हुआ ?■■■■ ★उसके निकट जाकर देखा तो उसे श्री गोवर्धननाथजी के मुखारविन्द के दर्शन हुए इसी दिन वैशाख कृष्ण ११ को संवत् १५३५ छत्तीसगढ़ के चम्पारण्य में श्री वल्लाभाचार्य का प्राकट्य हुआ। ★श्री गोवर्धननाथजी ने स्वयं सद्दू पाण्डे से कहां कि -'मेरा नाम देवदमन है तथा मेरे अन्य नाम इन्द्रदमन और नागदमन भी है। उस दिन से ब्रजवासी श्री गोवर्धननाथजी को देवदमन के नाम से जानने लगे। सदू पाण्डे की पत्नी भवानी व पुत्री नरों देवदमन को नित्य धूमर गाय का दूध आरोगाने के लिए जाती थी। दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #dineshapna - 09.11.2020







 

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