Wednesday 2 November 2022

★"अध्यात्म रामायण" - पांचवा दिन★ सर्वप्रथम भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा "अध्यात्म रामायण" है ! राम कथा का दर्शन "अध्यात्म, और विज्ञान" !!!!!! "अयोध्या" रामकथा का प्रारम्भ और समापन स्थल है ! (1) रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना व पूजा का विज्ञान : - राम ने गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र के साथ- साथ अन्य ऋषियों से वेद-वेदांग की शिक्षा ग्रहण की थी ! वे जानते हैं कि इस ब्रह्माण्ड का मूल स्रोत (नाभिक) क्या है ? वेद जहाँ "वेदाहमस्य भुवनस्य नाभिम" (यजु. २६.६०) कहकर इसे रेखांकित किया है ! वहीँ गीता ने "सर्वभूतानाम बीजं" तथा "प्रभवः प्रलयः स्थान निधानं बीजं अव्ययम" कहकर बताया है ! वहीँ विज्ञानं ने इसे 'बिग बैंग' थियरी द्वारा विश्लेषित किया है ! (2) राम ने वहां उपस्थित सभी सहयोगियों को समझाया :- सृजन और प्रलय प्रकृति का शाश्वत नियम है ! दृष्टिगत यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अत्यंत घनीभूत होकर एक बिन्दु रूप में विलीन हो जाती है ! इसलिए अहंकारी रावण को परास्त करने के लिए इस ज्ञान सिद्धांत की, इस ब्रह्म सत्ता की आराधना - पूजा करना सर्वथा उचित है, श्रेयष्कर है.- "लयं गच्छति भूतानि संहारे भूतानि निखिलं यतः / सृष्टि काले पुनः सृष्टि: तस्माद लिंगामुदाह्रितम //" (लिंग पुराण- ९९.८). बिन्दु की आराधना, विन्दु की पूजा, बिन्दु में सिन्धु समाहित हो जाने का दर्शन वानरों की समझ में नहीं आया ! (3)तब राम ने मुट्ठी भर रेत हाथ में लेकर गोलाकार पिंड बनाया, मंत्रोच्चार सहित स्थापित किया ! राम समझाते रहे, यही पिंड, शिवलिंग है, शालीग्राम है... ब्रह्मा का प्रतीक है. - "मूले ब्रह्मा तथा मध्ये विष्णु त्रिभुवानेश्वार: रुद्रोपरी महादेव: प्राणवाख्य: सदाशिवः // वानरों की समझ में अब भी कुछ नहीं आया ! तब राम ने पिंड को अंडाकार बनाया, उसके नीचे अर्घा (जलहरी) बनाया, और अपनी व्याख्या को और सरल किया ! यह अंडाकार पिंड 'ब्रह्माण्ड पुरुष सिद्धांत' है, तथा यह अर्घा (जलहरी) 'ब्रह्माण्ड नारी सिद्धांत' है ! (4)युग्म रूप में यही 'शिवशक्ति', यही सिद्धांत है ! यही 'अर्द्ध-नारीश्वर' है, यही सृजनहार है ! यह परम तत्त्व है ! इसे न केवल अध्यात्म तक सिमित किया जा सकता है न केवल विज्ञान तक ! यह असीम है, कल्याणकारी 'शिवम्' है ! इसलिए यह न पुलिंग है, न स्त्रीलिंग और न ही नपुंसक लिंग ! यह मात्र 'ब्रह्माण्ड लिंग' है ! यही राम को सर्व प्रिय है -"लिंग थापि विधिवत करि पूजा शिव समान प्रिय मोहि न दूजा" । (5)विधिवत पूजा का अर्थ है :- उसके सिद्धांत को जानना, उसके अनुप्रयोग को जानना ! केवल गोल पिंड, न्यूट्रान रूप है, अर्घा सहित पिंड 'अर्ध-नारीश्वर' रूप है, हाइड्रोजन रूप है ! इस तत्त्व दर्शन ने वानरों के अंतर के भय को समाप्त कर दिया ! ज्ञानचक्षु खुल जाने से अहंकार रूपी लंका पर विजी संभव हो पाया ! (6)यही रामकथा का संक्षिप्त विज्ञान - दर्शन है ! लंका विजय के पश्चात राम, अयोध्या नरेश हैं, दशरथ रूप हैं क्योकि "रामराज्य बैठे त्रैलोका हर्षित भये गए सब शोका...........". इसी में योग की, अध्यात्म की, विज्ञान की पूर्णता भी है ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक आध्यात्मिक विचारक #(226) #02/11/22 #dineshapna


 

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