Friday 19 January 2024

★ धर्म मे राजनीति न हो, किन्तु राजनीति मे धर्म चलेगा ! ★ ★ श्रीराम मन्दिर की सभी को बधाइयाँ ! सत्य व तथ्य ! ★ (●धर्म मे राजनीति न हो ! ●धर्म = संविधान ) (१) धर्म = संविधान :- ★"धर्म" के जन्मदाता केवल परमात्मा है ! धर्म मे कोई परिवर्तन नहीं हो सकता है क्योंकि वह पूर्ण है इसलिए उसमें परिवर्तन की आवश्यकता ही नहीं है, व परिवर्तन का अधिकार भी परमात्मा के पास है ! (धर्म के अनुसार कार्य नहीं करने पर पाप व नरक का डर !) ★जबकि "संविधान" के जन्मदाता राष्ट्र के नागरिक (व्यक्ति) है ! संविधान मे परिवर्तन किया जा सकता है ! भारत मे नेता / सक्षम व्यक्ति इसमें परिवर्तन अपने स्वार्थ के लिए कर रहे है ! (संविधान के अनुसार कार्य नहीं करने पर आर्थिक दण्ड व जेल का डर !) जैसे :- भारत के संविधान मे धर्म निरपेक्ष शब्द को जोड़ा है, जो झगड़े की जड़ है ! इससे भी ज्यादा नेता / सक्षम व्यक्तियों ने संविधान विरुद्ध कानून बनाये, जिसमे हिन्दू विरोधी 30 कानून 60 वर्षो मे सरकार द्वारा बनाये गये ! जो गलत व नुकसानदेह है ! (२) धर्म मे "राजनीति" (शासन करने की नीति) व्यक्ति अपने स्वार्थ के कारण लाता है ! जिसके के कारण धर्म अशुद्ध हो जाता है ! इससे निम्न मुख्य नुकसान होते है :- ★ सनातन धर्म मे परिवर्तन आज से करीब 2000 पूर्व हुआ, उससे "ईसाई" मजहब बना ! ★ऐसा ही परिवर्तन आज से करीब 1400 पूर्व हुआ, उससे "इस्लाम" मजहब बना ! ★इसी तरह से "सनातन धर्म" मे अन्य परिवर्तन होने के कारण बौद्ध, सिख, फारसी आदि बने ! इसका परिणाम यह हुआ कि सनातन धर्म से निकले अन्य धर्म (मजहब) आपस मे लड़ रहे है, जो गलत व नुकसान दायक है ! (३) जैसे "धर्म" व्यक्ति को स्वयं व अन्य व्यक्तियों के साथ शान्ति व आनंद पूर्वक जीने की राह बताता है ! (४) उसी तरह "संविधान" भी देशवासियों (व्यक्तियों) को स्वयं व अन्य व्यक्तियों के साथ शान्ति व आनंद पूर्वक जीने के लिए कर्तव्य व अधिकार का बोध कराते है और उसी के अनुसार कानून की राह बताता है ! (अतः धर्म = संविधान है !) सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी #(120) #19/01/24 #dineshapna



 

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