Chartered Accountant,Social Activist,Political Analysist-AAP,Spritual Thinker,Founder of Life Management, From India, Since 1987.
Friday 11 December 2020
★★★★★पूछता है हिन्दुस्तानी★★★★★ (1) क्या सरकार धर्मनिरपेक्षता का पालन पूर्ण संविधानिक तरीके व ईमानदारी से कर रही है ? (2) क्या सरकार हिन्दू धर्म व मन्दिरों के साथ व्यवहार निष्पक्ष व न्याय पूर्ण कर रही है ? (3) क्या अरबों-खरबों की संपत्ति वाले मंदिरों में सरकार का दखल होना चाहिए? (4) क्या सरकार पिछले दरवाजे से हिंदू मंदिरों के ट्रस्ट का राष्ट्रीयकरण करना सही है ? जहां आध्यात्मिकता नहीं दिखती है ! (5) क्या सरकार को धर्म का प्रबंधन करना चाहिए ? या केवल हिन्दू धर्म को प्रतिबंधित करना चाहिए ? भारत या विदेश मे भी किसी आम आदमी से उक्त सवाल पूछें तो स्पष्ट रूप से यह आम सहमति व उत्तर मिलेगा ! - - ‘नहीं’ ! - - ◆◆◆◆◆◆◆◆【1】◆◆◆◆◆◆◆◆ (1) क्या सरकार धर्मनिरपेक्षता का पालन पूर्ण संविधानिक तरीके व ईमानदारी से कर रही है ? - - ‘नहीं’ ! - - भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जिसमे संविधान के अनुसार देश/राज्य संचालन मे धर्म का हस्तक्षेप नहीं हो सकता है । तो सरकार को भी देश/राज्य का धार्मिक संस्थाओं मे सरकारी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । सरकार एक धर्म की धार्मिक संस्थाओं मे हस्तक्षेप नहीं करके धर्मनिरपेक्षता का पालन कर रही है किन्तु इसके विपरीत बड़े धर्म की हिन्दू संस्थाओं पर जबरदस्ती सरकारी हस्तक्षेप करके सरकार द्वारा धर्म मे हस्तक्षेप करना धर्मनिरपेक्षता के विधान के विरुद्ध है । जबकि किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश मे सभी धर्मों के लोगों के लिए कानून व सरकारी नीति समान होती है । इसके विपरीत भारत मे हिन्दू मन्दिरों मे सरकारी हस्तक्षेप व मस्जिदों मे सरकारी हस्तक्षेप नहीं करना धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन है । ◆◆◆◆◆◆◆◆【2】◆◆◆◆◆◆◆◆ (2) क्या सरकार हिन्दू धर्म व मन्दिरों के साथ व्यवहार निष्पक्ष व न्याय पूर्ण कर रही है ? - - ‘नहीं’ ! - - ◆◆◆◆◆◆◆◆【3】◆◆◆◆◆◆◆ (3) क्या अरबों-खरबों की संपत्ति वाले मंदिरों में सरकार का दखल होना चाहिए ? - - ‘नहीं’ ! - - ◆सरकारों ने उठाया फायदा मंदिरों के पैसों का :- पैसों के लिए सरकार किस तरह मंदिरों को धोखा देती है ! तमिलनाडु की सरकार ने 36,425 मंदिरों, 56 मठ या मठ से जुड़े 47 मंदिरों, 1721 खास खजाने और 189 ट्रस्ट पर नियंत्रण किया. इसने मंदिर की संपत्तियों का दुरुपयोग किया, मंदिर के कोष से राजनीतिक कार्यक्रम किए और राज्य व देश तक में मुख्य धारा के धर्म को शक्तिहीन बना दिया. एक साथ सिर्फ इस एक राज्य में सालाना 6 हजार करोड़ के करीब रकम को कहीं और खर्च कर दिया गया । आखिरकार आजादी के बाद से राज्य सरकारों ने केंद्र से मिलकर उस ताकत और धन का फायदा उठाया, जिस पर अधिकार मंदिर ट्रस्ट का होना चाहिए था । अदालत ने व्यवस्था दी कि मंदिर (और मंदिर की ओर से जमा किया गया कोष या संपत्ति) मंदिर से जुड़े अनुयायियों का होता है । ऐसा तब भी होता है जब अनुयायियों की संख्या बहुत थोड़ी हो । अदालत ने कहा कि मंदिर ट्रस्ट का प्रशासन हमेशा के लिए हाथ में नहीं लिया जा सकता. अगर कुछ गलत होता है, तो अदालत निश्चित रूप से चीजें ठीक करती है लेकिन उसे हमेशा के लिए मंदिर का प्रबंधन अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है । अगर उन सारे मंदिरों का लेखा जोखा लिया जाए, जिनका ‘राष्ट्रीयकरण’ किया गया तो सालाना जमा हुई राशि का दस गुणा ‘गायब कर’ दिया गया । कि किस तरह से सरकार ने हर साल कम से कम 6 हजार करोड़ रुपए का नुकसान राज्य में मंदिरों को पहुंचाया । ◆◆◆◆◆◆◆◆【4】◆◆◆◆◆◆◆◆ (4) क्या सरकार पिछले दरवाजे से हिंदू मंदिरों के ट्रस्ट का राष्ट्रीयकरण करना सही है ? जहां आध्यात्मिकता नहीं दिखती है ! - - ‘नहीं’ ! - - भारत के ज्यादातर जनप्रतिनिधि इस विषय पर एकजुट नजर आते हैं. उनके सामूहिक फैसले ने ही पिछले दरवाजे से हिंदू मंदिरों के ट्रस्ट का राष्ट्रीयकरण किया है. यहां आध्यात्मिकता नहीं दिखती । यह सत्ता और धन पर नियंत्रण की इच्छा को दर्शाता है । जिस रीजनल चैरिटेबल एंड एन्डॉमेंट (एचआर एंड सीई) की बहुत आलोचना की गई थी, उसी के प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए सरकार ने सीधे या राज्य सरकारों के माध्यम से मंदिर ट्रस्टों का प्रशासन सरकार की ओर से नियुक्त प्रशासक को सौंप दिया। ◆सुप्रीम कोर्ट ने दिया समाधान :- आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को यह कहना पड़ा कि मंदिर मामलों का प्रबंधन करना सरकार का काम नहीं है । यह संभव इसलिए हो पाया क्योंकि चिदंबरम (नटराज) ग्रुप के ट्रस्टियों ने चिदंबरम मंदिर ट्रस्ट की याचिका का मजबूती से समर्थन किया । इस याचिका में तमिलनाडु सरकार द्वारा अधिग्रहण की कोशिश का विरोध किया गया । 6 जनवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने तमिलनाडु सरकार को आदेश दिया कि वे चिदम्बरम ट्रस्ट के अधिग्रहण की किसी भी कोशिश को रोक दें । सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत कुछ मौलिक अधिकार नागरिकों को दिए गए हैं जिन्हें न हटाए जा सकते हैं, न उसमें कटौती की जा सकती है । अदालत ने यह व्यवस्था तमिलनाडु सरकार के खिलाफ मामले की सुनवाई करते हुए दी, जो चिदंबरम (नटराज) मंदिर के प्रबंधन अपने हाथ में लेना चाहती थी । ◆◆◆◆◆◆◆◆【5】◆◆◆◆◆◆◆◆ (5) क्या सरकार को धर्म का प्रबंधन करना चाहिए ? या केवल हिन्दू धर्म को प्रतिबंधित करना चाहिए ? - - ‘नहीं’ ! - - सर्वोच्च अदालत ने बहुत साफ कहा- 'अगर मंदिर का प्रबंधन किसी बुराई को दूर करने के लिए हाथ में लिया गया हो, तब भी बुराई दूर होने के तुरंत बाद प्रबंधन संबंधित लोगों को सौंप दिया जाना चाहिए था । उसके बाद भी इसके जारी रहने का मतलब पीड़ित के लिए संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों को हड़पने या उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने जैसा था । इसलिए इन परिस्थितियों में प्रबंधन को अपने हाथों में निश्चित रूप से सीमित समय के लिए लेना चाहिए था. प्रशासनिक अधिकारों का उत्तराधिकार स्थाई प्रकृति का नहीं हो सकता । एक बार अधिग्रहण हो जाने के बाद ऐसे हिंदू संस्थानों को तत्परता से सरकार के विभाग ‘हिंदू धार्मिक कोष’ से जोड़ दिया गया और उस पर स्थाई रूप से सरकार का नियंत्रण हो गया । साधु समेत मंदिर के कर्मचारी की भूमिका दूसरे दर्जे की हो गई और यह मुख्य रूप से राजनीतिक गुंडों और भ्रष्ट व कठोर बाबुओं के हाथों में चला गया । सुप्रीम कोर्ट का आदेश बहुत स्पष्ट है कि मंदिरों और उनके ट्रस्ट का स्थाई रूप से अधिग्रहण नहीं किया जा सकता । अगर कोई समस्या है, तो इसका अस्थायी रूप से दायित्व लिया जा सकता है, जिसके खत्म होने की तारीख तय होगी और उस मुद्दे को हल करने का मकसद भी निश्चित होगा । अस्पष्ट, अनिश्चित समय तक और शाश्वत तरीके से इन मंदिरों, धार्मिक ट्रस्ट और यहां तक कि धर्म का अधिग्रहण नहीं हो सकता । बात यहीं से शुरू करें कि प्रशासन के एवज में फीस के तौर पर पूरी आमदनी का छठा हिस्सा लेना सरकार ने तय किया । कुल आमदनी का अगला 2/5 हिस्सा कर्मचारियों की तनख्वाह पर खर्च किए जाते । (लेकिन पूजा करने वाले को कोई सैलरी या इस रूप में भत्ता नहीं दिया जाता) इस तरह मंदिर की आमदनी का 56 फीसदी प्रशासकीय खर्चे के तौर पर सीधे चला जाता । पजानी मंदिर जैसे बड़े मंदिरों में मंदिर की आय का दो प्रतिशत से भी कम हिस्सा पूजा और अनुष्ठानों में इस्तेमाल होता । वोट बैंक की राजनीति के लिए होता मंदिरों का इस्तेमाल! स्वयंसेवक और मंदिरों के भक्त का पीछा किया जाता ताकि अधिक से अधिक लोग सरकार की ओर से स्टाफ नियुक्त किए जा सकें. ऐसी नियुक्तियां सत्ता में रहने वाली पार्टी और बाबुओं के ‘पूंजीगत फायदे’ के लिए किए जाते । फिर मंदिरों से फंड का बड़ा हिस्सा कमिश्नर के कॉमन गुड फंड, मुख्यमंत्री के आनंदधाम योजना, विवाह योजना आदि में भेज दिया जाता । जिनका संबंधित मंदिरों से कोई लेना देना नहीं होता । यह सब वोट बैंक की राजनीति के लिए किया जाता । सरकार ट्रस्टी और ट्रस्ट बोर्ड के बजाए अपने ‘मनोनुकूल’ बाबुओं को नियुक्त करती और इस तरह मंदिर पूरी तरह से उनके नियंत्रण में आ गए । सरकारी अधिकारियों का लालच ठेके देने में दिखता, जब वे भेदभावपूर्ण तरीके से मंदिरों का ‘पुनरोद्धार’ कराते । प्राचीन ग्रेनाइट फ्लोरिंग की जगह पालिशदार टाइल्स और स्लैब्स लगाए जाते । प्राचीन मंडपों को नष्ट कर दिया जाता । नए मंडप के तौर पर मिलावट वाले सीमेंट इस्तेमाल किए जाते । पत्थरों पर प्राचीन लिखावट उखाड़ दिए गए । ऐसी पेन्टिंग्स जिसका कोई जोड़ नहीं, उन्हें नौसिखिओं से पेन्ट कराया जाता । प्रतीक और मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया जाता ताकि उसे बदला जा सके और उन्हें स्मगल किया जा सके । हिन्दू मंदिरों और उनकी निधियों समेत उनकी अचल संपत्तियों पर अतिक्रमण और उन्हें मंदिरों से अलग करने का काम व्यवस्थित ढंग से हुआ । 1986 से 2005 के बीच तमिलनाडु के मंदिरों की 47 हजार एकड़ जमीन ‘खो’ गई. तमिलनाडु में हिंदू मंदिरों से जुड़े 1 करोड़ वर्ग फीट की बेशकीमती जगहों पर वर्तमान में अतिक्रमण हो रखा है । सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी - 11/12/2020 www.dineshapna.blogspot.com
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