Sunday 2 October 2022

★★रामकथा 02/10/2022★★ ★★कलयुग की महिमा (४) ★★ श्रीरामचरितमानस में कलि महिमा का वर्णन :- (१०) नारि बिबस नर सकल गोसाईं। नाचहिं नट मर्कट की नाईं॥ सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना। मेल जनेऊ लेहिं कुदाना॥1॥ भावार्थ:-हे गोसाईं! सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वश में हैं और बाजीगर के बंदर की तरह (उनके नचाए) नाचते हैं। ब्राह्मणों को शूद्र ज्ञानोपदेश करते हैं और गले में जनेऊ डालकर कुत्सित दान लेते हैं॥1॥ (११) सब नर काम लोभ रत क्रोधी। देव बिप्र श्रुति संत बिरोधी॥ गुन मंदिर सुंदर पति त्यागी। भजहिं नारि पर पुरुष अभागी॥2॥ भावार्थ:-सभी पुरुष काम और लोभ में तत्पर और क्रोधी होते हैं। देवता, ब्राह्मण, वेद और संतों के विरोधी होते हैं। अभागिनी स्त्रियाँ गुणों के धाम सुंदर पति को छोड़कर पर पुरुष का सेवन करती हैं॥2॥ (१२) सौभागिनीं बिभूषन हीना। बिधवन्ह के सिंगार नबीना॥ गुर सिष बधिर अंध का लेखा। एक न सुनइ एक नहिं देखा॥3॥ भावार्थ:-सुहागिनी स्त्रियाँ तो आभूषणों से रहित होती हैं, पर विधवाओं के नित्य नए श्रृंगार होते हैं। शिष्य और गुरु में बहरे और अंधे का सा हिसाब होता है। एक (शिष्य) गुरु के उपदेश को सुनता नहीं, एक (गुरु) देखता नहीं (उसे ज्ञानदृष्टि) प्राप्त नहीं है)॥3॥ सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी #(201) #02/10/22 #dineshapna





 

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