Sunday 30 October 2022

★"अध्यात्म रामायण" - तीसरा दिन★ सर्वप्रथम भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा "अध्यात्म रामायण" है ! राम कथा का दर्शन "अध्यात्म, और विज्ञान" !!!!!! "अयोध्या" रामकथा का प्रारम्भ और समापन स्थल है। (1)राजा दशरथ - एक अस्थिर योगी : - ◆योग का पथ कठिन साधना-पथ है ! थोड़ी सी असावधानी भी साधक को उसके स्थान से, उसके प्राप्य और प्राप्ति से, भटका सकता है ! उसके जीवन में उथल-पुथल मचा सकता है ! ◆त्रिगुणरुपी रानियों कौशल्या (सत), सुमित्रा (रज), कैकेयी (तम) के प्रति भाव असंतुलन राजा दशरथ को "शासक दशरथ" के स्थान से च्युतकर "शासित दशरथ" बना देता है ! ◆फलतः अब वृत्तियों द्वारा "शासित दशरथ" की अभिलाषाएं, आकांक्षाये अधूरी रहतीं है ! परिस्थितियाँ विपरीत हो जातीं हैं; शोक - पश्चाताप - दु:ख - अतिशय दु:ख, और अन्त में कष्टदायी मृत्यु. योगपथ में शिथिलता और सहस्रार तक की यात्रा पूरी न कर पाने के कारण "तत्त्व साक्षात्कार" से भी वंचित ! (2)राम - एक योगी (धर्म साधक) : - ◆योगी के कार्य - साधना, स्वयं को, समाज को और राष्ट्र को .... ◆इस साधना के मुख्यतः चार सोपान हैं - बुद्धि, चित्त, मन और अहंकार ! ◆धर्म का कार्य आचार-व्यवस्था, विधि-व्यवस्था, मानवता की स्थापना है ! जंगल वह स्थान है जहाँ, मानवता का क्षरण हो रहा है ! ◆राम वनगमन का यही निहितार्थ है ! ◆सत (कौशल्या) को विश्वास है - 'जो पितु मातु कहेउ बन जाना तो कानन षत अवध समाना' ! ◆जहाँ धर्म है; वहीं- अयोध्या है, वहीँ अवध है और वहीँ सुशासन है ! (i) प्रथम सोपान - "बुद्धि जगत" : - जहाँ बुद्धि है वहाँ द्वंद्व है, अनेकता है, तर्क-वितर्क है. जहां द्वंद्व, द्वंद्वों से अतीत हो जाय, तर्क शांत हो जाय, मानसिक सामाजिक कलह न हो, वह है - अयोध्या. अतः अयोध्या नगरी में या ●"अयोध्याकाण्ड" में घटित समस्त 'राम लीलाएं' "बुद्धि जगत" की लीला है ! (ii) द्वितीय सोपान - "चित्त जगत" : - चित्त स्मृतियों और यादों का भंदारागार है ! रामकथा में यही "चित्रकूट" है. ●चित्रकूट में घटित समस्त 'राम लीलाएं' "चित्त जगत" की लीला है ! भाव तरंगों का बनना, मिटना, फिर बनना और फिर उठना .... यहाँ इसी की प्रधानता है ! चित्त की पांच अवस्थाएं हैं - "क्षिप्तं मूढं विक्षिप्तं एकाग्रं निरुद्धमिती चित्त भूमयः" (योग १.१) (iii) तृतीय सोपान - "मानसिक जगत" : - मन अत्यंत चंचल है. यहाँ कामनाएं हिलोरें मारती रहती हैं ! उचित - अनुचित भी समझ में नहीं आता ! बौद्धिक जगत के समाधान अस्थाई लगाने लगते हैं ! कुछ समझ में नहीं आता ! जो होता है, वह दीखता नहीं ! जो दिखाई देता है, उसमे सच्चाई नहीं ! पूरी तरह मृग मरीचिका की स्थिति है यहाँ ! असंभव "कंचनमृग" भी वास्तविक लगने लगता है ! बुद्धि मोहित हो जाती है ! पंचवटी ही मन है. ●"पंचवटी" में घटित समस्त 'राम लीलाएं' "मानसिक जगत" की लीला है ! इसी मानसिक जगत में सचेत और संमित रहना है ! ●मन को यदि नियंत्रित न किया गया तो विश्वामित्र की तरह अर्जित तपस्या गयी ! सूर्पनखा की तरह नाक (मर्यादा) गयी, स्वयं राम की भी शक्ति (सीता) गयी। (iv)चतुर्थ सोपान - "अहंकार जगत" : - अतिशय सम्पन्नता की प्राप्ति पर अहंकार आता है ! इस अहंकार के विविध रूप हैं - शक्ति का अहंकार, धन का अहंकार, विद्या का अहंकार, बल का अहंकार, सत्ता का अहंकार,..... यहीं साधक के अपने अन्दर के रावण की पहचान कर उसे विजित करना है ! ●"लंका" में घटित समस्त 'राम लीलाएं' "अंहकार जगत" की लीला है ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक आध्यात्मिक विचारक #(224) #31/10/22 #dineshapna










 

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