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Tuesday 4 October 2022
★★रामकथा 04/10/2022★★ ★★कलयुग की महिमा (६) ★★ श्रीरामचरितमानस में कलि महिमा का वर्णन :- (१६)ते बिप्रन्ह सन आपु पुजावहिं। उभय लोक निज हाथ नसावहिं॥ बिप्र निरच्छर लोलुप कामी। निराचार सठ बृषली स्वामी॥4॥ भावार्थ:-वे अपने को ब्राह्मणों से पुजवाते हैं और अपने ही हाथों दोनों लोक नष्ट करते हैं। ब्राह्मण अपढ़, लोभी, कामी, आचारहीन, मूर्ख और नीची जाति की व्यभिचारिणी स्त्रियों के स्वामी होते हैं॥4॥ (१७)सूद्र करहिं जप तप ब्रत नाना। बैठि बरासन कहहिं पुराना॥ सब नर कल्पित करहिं अचारा। जाइ न बरनि अनीति अपारा॥5॥। भावार्थ:-शूद्र नाना प्रकार के जप, तप और व्रत करते हैं तथा ऊँचे आसन (व्यास गद्दी) पर बैठकर पुराण कहते हैं। सब मनुष्य मनमाना आचरण करते हैं। अपार अनीति का वर्णन नहीं किया जा सकता॥5॥ (१८)भए बरन संकर कलि भिन्नसेतु सब लोग। करहिं पाप पावहिं दुख भय रुज सोक बियोग॥100 क॥ भावार्थ:-कलियुग में सब लोग वर्णसंकर और मर्यादा से च्युत हो गए। वे पाप करते हैं और (उनके फलस्वरूप) दुःख, भय, रोग, शोक और (प्रिय वस्तु का) वियोग पाते हैं॥100 (क)॥ सीए. दिनेश सनाढ्य - एक हिन्दुस्तानी #(204) #04/10/22 #dineshapna
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