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Saturday 29 October 2022
★"अध्यात्म रामायण" - दुसरा दिन★ सर्वप्रथम भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा "अध्यात्म रामायण" है ! राम कथा का दर्शन "अध्यात्म, और विज्ञान" !!!!!! "अयोध्या" रामकथा का प्रारम्भ और समापन स्थल है ! (1)"धनुष यज्ञ" का अर्थ :- शिव महायोगी है. साधना के क्षेत्र में, प्रत्येक साधक को इस धनुष को तोडना पड़ता है. लेकिन एक योगी ही "महायोगी शिव" के धनुष को तोड़ सकता है, कोई वंचक या ढोंगी नहीं ! (2)शिव के इस धनुष का नाम पिनाक है और निरुक्त में पिनाक का अर्थ बताया गया है -"रम्भ: पिनाकमिति दण्डस्य" अर्थात रम्भ और पिनाक दंड के नाम हैं ! योग और अध्यात्म के क्षेत्र में यह पिनाक नाम "मेरुदंड" का है। (3)प्रतीक रूप में यही धनुष है ! इसी धनुष की प्रत्यंचा को मूलाधार से खींच-तान कर सहस्रार तक ले जाकर चढाना पड़ता है ! जो योगी होगा, जिसे षटचक्र भेदन का भली भांति ज्ञान होगा, वही प्रत्यंचा चढ़ाकर धनुष को तोड़ सकता है ! इस धनुष के निचले शिरे मूलाधार से आज्ञां चक्र की यात्रा के बाद ही साधक रुपी "शिव" का मिलन "शक्ति" से होता है। (4)राम एक योगी हैं, कुण्डलनी विद्या द्वारा "ताडका - सुबाहु- मारीच" रूपी (काम-क्रोध-लोभ-मोह आदि) कषाय-कल्मषों को विजित कर सहस्रार तक की यात्रा पूरी की थी ! सहस्रार में सहस्रदल कमल खिलने की बात योगशास्त्र में बताई गयी है ! इसी सहस्रार रूपी "पुष्प वाटिका" में शिव (राम) का अपनी शक्ति (सीता) से प्रथम साक्षात्कार होता है ! यही "शिव-शक्ति" का मिलन भी है। (5)धनुष यज्ञ के माध्यम से "राम-सीता विवाह" की कहानी, "शिव-शक्ति" के मिलन की कहानी है ! जो योगी नहीं होगा, वह धनुष को हिला भी नहीं पायेगा ! योगबल के अभाव में, "कुण्डलिनी विद्या बल" के अभाव में शारीरिक बल, धन बल, संख्या बल का कोई महत्त्व नहीं। इसी को संकेतित करते हुए गोस्वामीजी ने लिखा - "भूप सहसदस एकहिं बारा लगे उठावाहीं टरयी न टारा" ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक आध्यात्मिक विचारक #(223) #30/10/22 #dineshapna
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