Friday 17 July 2020

★★जीवंत पुष्टिमार्ग :: ईश्वर प्राप्ति का सीधा मार्ग★★ ( गुरु व साधनों के बिना, भक्त द्वारा निस्वार्थ प्रेममार्ग ) ◆◆◆◆◆◆>>>>>>>>>>>>>>>>>>◆◆◆◆◆◆ ●भगवान की प्राप्ति के तीन मार्ग :- • ज्ञान, • कर्म, • भक्ति ! ●भक्ति मार्ग दो है :- • विधी प्रधान भक्तिमार्ग, • प्रेम प्रधान भक्तिमार्ग ! ●प्रेम प्रधान भक्तिमार्ग ही पुष्टि मार्ग है, जिसे बृजवासीयो ने 5132 वर्ष पूर्व से जीया है ! ●श्रीमद्भागवत मे शुकदेवजी ने पुष्टि अर्थात् पोषण का अर्थ भगवान का अनुग्रह है ! भगवान श्रीकृष्ण का अनुग्रह या कृपा ही पुष्टि है ! ●ज्ञानमार्ग, कर्ममार्ग, विधी प्रधान भक्तिमार्ग यह "तीनो मर्यादा मार्ग" है, जो जीव कृति साध्य है ! इसके लिए जीव को ही साधनों के माध्यम से प्रयत्न करना होता है ! ●प्रेम प्रधान भक्तिमार्ग "चतुर्थ सेवा मार्ग" है, जो प्रेम / सेवा / पुष्टिमार्ग है ! जिस मार्ग पर बृजवासी 5132 वर्षों से चल रहे है, तथा (बृजवासी 611 वर्षों से पुनः श्रीनाथजी के प्राकृट्य के साथ इस प्रेम मार्ग पर चल रहे है ! ) जिसे श्रीवल्लभाचार्य जी ने 514 वर्ष पूर्व ज्ञान व शब्दों मे इसे पुष्टिमार्ग कहा तथा उस मार्ग पर स्वयं चल कर इस सन्देश को जन जन (वैष्णवों) तक पहुँचाया ! (किन्तु बाद मे क्या उक्त सन्देश (पुष्टिमार्ग) को देने व उस मार्ग पर स्वयं के चलने का कार्य हो रहा है ?) ●भगवत्प्रेम ही पुष्टिमार्ग है ! इसमें भक्त भगवत्सेवा करता है, भगवत्स्मरण, भगवत् लीला और गुणों के गान मे तल्लीन रहता है व सांसारिक विषयों का त्याग करता है !श्रीकृष्ण की प्रेम पूर्वक सेवा ही पुष्टिमार्ग है, जिसे बृजवासी जीवंत रुप से 611 वर्षों से जी रहे है ! ●पूजामार्ग मे विधि विधान, नियम कर्मकांड व पूजन सामग्री से होती है, तथा वह सार्वजनिक व सकाम हो सकती है, जबकि सेवामार्ग मे भगवत् सभी सभी कार्य समर्पित भाव से व्यक्तिगत, गोपनीय होती है, तथा वह भगवत्सुख व निष्काम होती हैं ! इसमें भगवत्सुख ही सर्वोपरि है ! इसे "जीवंत पुष्टिमार्ग" कहते है ! ◆◆◆◆◆◆>>>>>>>>>>>>>>>>>>◆◆◆◆◆◆ ●ज्ञानमार्ग, ●कर्ममार्ग, ●विधी प्रधान भक्तिमार्ग यह "तीनो मर्यादा मार्ग" है ! 【भगवान + गुरु + साधन + भक्त】 ●प्रेम प्रधान भक्तिमार्ग "चतुर्थ सेवामार्ग" ही "जीवंत पुष्टिमार्ग" है !【भगवान + निस्वार्थ प्रेम + भक्त】 इस मार्ग मे "गुरु व साधन" की आवश्यकता नहीं है, केवल "समर्पण व भगवत्कृपा" आवश्यक है ! ◆◆◆◆◆◆>>>>>>>>>>>>>>>>>>◆◆◆◆◆◆ ★★जयश्रीकृष्ण★★ ★■★ ★★श्रीकृष्णार्पण★★ दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 17/07/2020 #dineshapna www.dineshapna.blogspot.com






1 comment:

  1. - श्रीनाथजी प्राकृट्य का गूढ़ रहस्य -

    "श्रीनाथजी प्राकृट्य व प्रथम दर्शन"- श्रीसद्दू पाण्डे द्वारा !
    "श्रीनाथजी से प्रथम मिलन" - श्रीवल्लभाचार्य जी द्वारा !

    सन् 1409 (वि.सं 1466 - श्रावण शुक्ल पंचमी - नागपंचमी)
    श्रीनाथजी का प्राकृट्य (उध्व भुजा) । (श्रीसद्दू पाण्डे - सनाढ्य द्वारा प्रथम दर्शन व बृजवासीयो द्वारा प्रथम सेवा कार्य)

    सन् 1478 (वि.सं 1535 - वैशाख कृष्ण एकादशी) श्रीनाथजी के मुखारविंद के दर्शन व श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य । (श्रीनाथजी के प्राकृट्य के 69 वर्ष बाद श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य)

    सन् 1506 (वि.सं 1563) श्रीवल्लभाचार्य जी का श्रीसद्दू पाण्डे के घर आन्यौर पदार्पण व श्रीनाथजी से प्रथम मिलन । (97 वर्षों तक श्रीसद्दू पाण्डे व बृजवासीयो के द्वारा श्रीनाथजी की सेवा व पूजा व श्रीवल्लभाचार्य जी 28 वर्ष की उम्र मे बृज मे पधारे)

    सन् 1519 (वि.सं 1576 - वैशाख शुक्ल तीज - अक्षय तृतीया) श्रीनाथजी का जतिपुरा मन्दिर मे पाटोत्सव । (13 वर्षों मे श्रीनाथजी का जतिपुरा मे नया मन्दिर)

    सन् 1530 (वि.सं 1587 - आषाढ़ शुक्ल तीज, रविवार)
    श्रीवल्लभाचार्य जी का देवलोक गमन । (52 वर्ष की उम्र मे श्रीवल्लभाचार्य जी का देवलोक गमन)

    सन् 1665 (वि.सं 1726 - आश्विन शुक्ल १५, शुक्रवार)
    श्रीनाथजी का बृज से प्रस्थान ।
    (श्रीनाथजी 256 वर्ष तक बृज मे विराजे)

    सन् 1672 - 20 फरवरी (वि.सं 1728 - फाल्गुन कृष्ण सप्तमी - शनिवार) श्रीनाथजी का नाथद्वारा मन्दिर मे पाटोत्सव । (श्रीनाथजी को बृज से मेवाड़ पधारने मे 32 माह का समय लगा)

    सन् 1959 - 28 मार्च (वि.सं 2016) नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन । (61 वर्ष पूर्व नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन, जिसमें बृजवासीयो को कोई स्थान नहीं !)

    सन् 2019 - 2 अक्टूबर (वि.सं. 2076) श्रीनाथजी की प्रेरणा से सत्य, न्याय व सेवाधिकार के लिए आवाज - एक बृजवासी के द्वारा श्रीनाथजी की आज्ञा से !

    सन् 2020 (वि.सं.2077) "श्रीनाथजी के प्राकृट्य" व श्रीसद्दू पाण्डे (सनाढ्य) व बृजवासीयो को प्रथम दर्शन व सेवा करते 611 वर्ष हुए। श्रीवल्लभाचार्य जी के "श्रीनाथजी से मिलन" को 514 वर्ष हुए । श्रीनाथजी को नाथद्वारा पधारे 348 वर्ष हुए । नाथद्वारा मन्दिर मण्डल बने 61 वर्ष हुए ।

    सन् 1409 (वि.सं 1466 - श्रावण शुक्ल पंचमी - नागपंचमी) - 【611 वर्ष】"श्रीनाथजी प्राकृट्य व प्रथम दर्शन"- श्रीसद्दू पाण्डे द्वारा !
    सन् 1506 (वि.सं 1563) - 【514 वर्ष】"श्रीनाथजी से प्रथम मिलन" - श्रीवल्लभाचार्य जी द्वारा !

    जयश्रीकृष्ण - श्रीकृष्णार्पण

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