Saturday 18 July 2020

★वल्लभकुल के नाम पर, मन्दिर अधिकारीयो को छूट !★ ★मन्दिर मण्डल के नाम पर, सरकारी अधिकारी की लूट !★ ●●●●●>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>●●●●● ◆१◆कोरोना के कारण मोती महल, मनोरथी गेट व नक्कार ख़ाना गेट बन्द होने के बावजूद मन्दिरअधिकारी की मनमानी से अन्य गेट से धन वैष्णवो को मन्दिर प्रवेश की छूट क्यों? ◆२◆महाराज श्री की आज्ञा व हस्ताक्षर का मझाक क्यों ? उनकी आज्ञा व हस्ताक्षर केवल फोटोस्टेट से अधिकारी द्वारा, मनचाही आज्ञा क्यों ? >>>>> >>>>> >>>>> ●नाथद्वारा मन्दिर मे तिलकायत (वल्लभकुल) की आज्ञा से मन्दिर के अन्दर की व्यवस्था चलती है व सेवा कार्य बृजवासी करते है ! किन्तु वर्तमान मे श्रीजी सेवा, वल्लभकुल व बृजवासीयो के बीच मे कुछ अपात्र अधिकारी / धनप्रेमी अधिकारी आने के कारण मन्दिर सेवा कार्य मे अपनी मनमानी चला रहे है तथा मन्दिर परम्पराओं व मर्यादाओं के विरुद्ध कार्य कर रहे है ! ●सेवावाले बृजवासीयो को मन्दिर प्रवेश करने पर "नोटिस दिया" जा रहा है, जबकि "नोट लेकर" या फोटोस्टेट आज्ञा पत्र से वैष्णवों को मन्दिर प्रवेश दिया जा रहा है ? ●समस्या यह है कि इसकी सत्यता की जाँच कौन करे ? वल्लभकुल को समय नहीं है व सरकारी अधिकारी इसकी जाँच नहीं कर सकता है ! ●अतः उक्त समस्या के समाधान के लिए मन्दिर मर्यादाओं व समस्याओं का सामाजिक अंंकेक्षण किया जाना चाहिए ! अब केवल निष्पक्ष बृजवासी की जरूरत है जो मन्दिर कर्मचारी या सेवा वाला नहीं हो तथा जो इन सभी कार्यो का सामाजिक अंंकेक्षण कर सके ! ●●●●●>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>●●●●● ◆३◆कोरोना काल मे धन की कमी के कारण नीत नेग (नित्य भोग) मे कटौती, कर्मचारियों के वेतन से कटौती, तथा दूसरी ओर लालबाग मे जिम के नाम पर सरकारी अधिकारी द्वारा लाखों रुपये की मशीनें खरीदकर धन की बबाँदी क्यों? ◆४◆सरकार के आदेश से राज्य के सभी जिम बन्द है !किन्तु मुख्य अधिकारी द्वारा नियम विरुद्ध जिम बनाकर कोरोना फैलाने का काम किया जा रहा है ! व धन की बबाँदी क्यों ? >>>>> >>>>> >>>>> ●मन्दिर मण्डल का गठन मन्दिर की सम्पत्ति / धन की रक्षा व सदुपयोग करने व मन्दिर सेवा कार्य सुचारू रुप से चलाने के लिए किया था तथा जिसकी जिम्मेदारी बोर्ड सदस्यों व सरकारी अधिकारी की है ! किन्तु अफसोस के साथ कहना पड रहा है कि बोर्ड सदस्यों को समय नहीं है व सरकारी कर्मचारी यह कार्य करने मे असफल रह रहे है ! ●कोरोना काल मे नीत नेग (नित्य भोग) मे कमी करना, अपनी असफलता का प्रत्यक्ष उदाहरण है ! जबकि पिछले वर्ष मन्दिर मण्डल को 35 करोड़ का आधिक्य होने के बावजूद धन की कमी की बात की जा रही है, जो सरासर गलत है ! इसके बावजूद कर्मचारियों के वेतन से कोरोना काल मे कटौती करना, मानवीयता के विरुद्ध है ! ●सरकारी अधिकारी ने हद तो तब कर दी, जब कोरोना काल मे सरकार द्वारा राज्य के सभी जिम बन्द कर रखे है व मन्दिर मण्डल के पास धन की कमी है, तो ऐसे समय मे क्यों लालबाग मे जिम के लिए लाखों रुपयों की मशीनें खरीदी गई ? इससे एक और कोरोना संकट बढने की सम्भावनाएं बढी है तो दूसरी ओर धन की बबाँदी की जा रही है ! ●अत: मन्दिर मण्डल की सम्पत्ति / धन की सुरक्षा व सदुपयोग के लिए सामाजिक अंंकेक्षण किया जाना चाहिए ! अब केवल निष्पक्ष बृजवासी की जरूरत है जो मन्दिर कर्मचारी या सेवा वाला नहीं हो तथा जो इन सभी कार्यो का सामाजिक अंंकेक्षण कर सके ! ●●●●●>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>●●●●● ★★जयश्रीकृष्ण★★ ★■★ ★★श्रीकृष्णार्पण★★ दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 18/07/2020 #dineshapna www.dineshapna.blogspot.com













1 comment:

  1. ★★श्रीनाथजी का प्राकृट्य,
    श्रीसद्दू पाण्डे, बृजवासी व श्रीवल्लभाचार्य जी ★★
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    ◆सन् 1409 (वि.सं 1466)श्रीनाथजी के ऊध्व भुजा का प्राकृट्य
    (श्रीसद्दू पाण्डे व बृजवासीयो द्वारा प्रथम दर्शन व सेवा)
    ◆सन् 1478 (वि.सं 1535)श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य
    (श्रीनाथजी के प्राकृट्य के 69 वर्ष बाद श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य)
    ◆सन् 1506 (वि.सं 1563)श्रीवल्लभाचार्य जी का श्रीसद्दू पाण्डे के घर आन्यौर पदार्पण
    (97 वर्षों तक श्रीसद्दू पाण्डे व बृजवासीयो के द्वारा श्रीनाथजी की सेवा व पूजा व श्रीवल्लभाचार्य जी 28 वर्ष की उम्र मे बृज मे पधारे)
    ◆सन् 1519 (वि.सं 1576)श्रीनाथजी का जतिपुरा मन्दिर मे पाटोत्सव
    (13 वर्षों मे श्रीनाथजी का जतिपुरा मे नया मन्दिर)
    ◆सन् 1530 (वि.सं 1587)श्रीवल्लभाचार्य जी का देवलोक गमन
    (52 वर्ष की उम्र मे श्रीवल्लभाचार्य जी का देवलोक गमन)
    ◆सन् 1665 (वि.सं 1726)श्रीनाथजी का बृज से प्रस्थान
    (श्रीनाथजी 256 वर्ष तक बृज मे विराजे)
    ◆सन् 1672 (वि.सं 1728)श्रीनाथजी का नाथद्वारा मन्दिर मे पाटोत्सव
    (श्रीनाथजी को बृज से मेवाड़ पधारने मे 32 माह का समय लगा)
    ◆सन् 1959 (वि.सं 2016)नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन
    (61 वर्ष पूर्व नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन, जिसमें बृजवासीयो को कोई स्थान नहीं)
    ◆सन् 2020 (वि.सं 2077)श्रीनाथजी की प्रेरणा से न्याय के लिए आवाज
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    ★★श्रीनाथजी प्राकृट्य का मूल इतिहास★★
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    श्रीनाथजी का प्रथम प्राकृट्य बृज के गोवर्धन पर्वत पर सन् 1409 मे हुआ ! महाप्रिय श्री सद्दू पाण्डे (सनाढ्य/बृजवासी) को सर्वप्रथम श्रीनाथजी के दर्शन व सेवा करने का सौभाग्य मिला, उसके साथ ही सभी बृजवासी व श्री सद्दू पाण्डे श्रीनाथजी की सेवा व पूजा लगातार 97 वर्ष तक करते रहे !
    जब प्रभु प्रेरणा से महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य जी सन् 1506 मे महाप्रिय श्री सद्दू पाण्डे के घर आन्यौर गाँव पधारे तथा रात्रि को महाप्रिय श्री सद्दू पाण्डे के घर विश्राम किया तब महाप्रिय श्री सद्दू पाण्डे ने श्रीनाथजी के प्राकृट्य का पूरा वृत्तांत श्रीवल्लभाचार्य जी को सुनाया, दूसरे दिन श्री सद्दू पाण्डे व बृजवासीयो ने श्रीवल्लभाचार्य जी को लेकर गये व श्रीनाथजी प्राकृट्य के दर्शन कराये ! इसके बाद श्रीनाथजी की आज्ञा से श्रीवल्लभाचार्य जी ने मन्दिर बनवाया व सेवा पद्वति निर्धारित की ! श्रीवल्लभाचार्य जी ने बृजवासीयो के निस्वार्थ प्रेम, समर्पण व उनकी श्रीनाथजी के स्वरूप सेवा से प्रेरित होकर, श्रीनाथजी की कृपा व अपने ज्ञान से जीव का प्रभु के प्रति समर्पण व भक्ति का नया मार्ग बनाया जो पुष्टि मार्ग कहलाया तथा उस मार्ग का अनुसरण करने वाले वैष्णव कहलाये !
    बृजवासी अभी तक श्रीनाथजी से निस्वार्थ प्रेम व सेवा करते आये किन्तु श्रीवल्लभाचार्य जी के पधारने व मन्दिर निर्माण के बाद सुरक्षा का कार्य भी करने लगे !
    इस प्रकार बृजवासीयो ने सन् 1409 से 1665 तक 256 वर्ष तक बृज मे श्रीनाथजी से निस्वार्थ प्रेम के साथ सेवा व सुरक्षा की ! सन् 1665 मे औरंगजेब के आक्रमण के कारण बृजवासीयो ने अपना घर व सम्पदाओं का त्याग करके श्रीनाथजी व वल्लभकुल को लेकर सुरक्षा व संरक्षण हेतु अनिर्धारित गन्तव्य की ओर निकल गये ! 32 माह के बृज से सफर के बाद सिंहाड़, नाथद्वारा पधारे, जहाँ मेवाड़ के महाराणा राजसिंह जी ने रक्षा का वचन दिया ! सन् 1672 को नाथद्वारा के नये मन्दिर मे श्रीनाथजी का पाटोत्सव हुआ !
    इस प्रकार बृजवासी श्रीनाथजी से निस्वार्थ प्रेम, सेवा व सुरक्षा (सन् 1409 से 2020 तक) 611 वर्षों से कर रहे है ! श्रीवल्लभाचार्य जी व वल्लभकुल सन् 1506 से 2020 तक) 514 वर्षों से पूजा कर रहे है !
    अत: श्रीनाथजी की सेवा व सुरक्षा करने का प्रथम व प्राथमिक अधिकार बृजवासीयो का है, जिसे सन् 1959 से धिरे धिरे कम किया जा रहा है जो प्राकृतिक न्याय व परम्पराओं के विपरीत है !
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    दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 12/07/2020
    www.dineshapna.blogspot.com

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