Wednesday 15 July 2020

★जीवंत पुष्टिमार्ग(611 वर्ष) OR ज्ञान पुष्टिमार्ग(514 वर्ष)★ ◆◆◆◆◆◆◆>>>>>>>>>>>>>>>>◆◆◆◆◆◆◆ ●श्रीकृष्ण व बृजवासी के बीच जो निस्वार्थ प्रेम है, उसमें ज्ञान का समावेश करने पर, जो ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बनता है, उसे पुष्टिमार्ग कहते है ! ◆◆◆◆◆◆◆>>>>>>>>>>>>>>>>◆◆◆◆◆◆◆ ●षुष्टिमार्ग "समर्पण", "अनुग्रह" व "स्वरूप दर्शन / सेवा" के द्वारा ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है ! जो श्रीवल्लभाचार्य जी ने 514 वर्ष पूर्व वैष्णवों के लिए बताया था ! ●बृजवासी 611 वर्षों से इसी ईश्वर प्राप्ति के मार्ग अर्थात् पुष्टिमार्ग के साथ जी रहे है ! यह जीवंत पुष्टिमार्ग है ! ●बृजवासीयो का "जीवंत पुष्टिमार्ग" यह है कि षुष्टिमार्ग के "समर्पण", "अनुग्रह" व "स्वरूप दर्शन / सेवा" को आत्मसात किया है ! बृजवासीयो ने निस्वार्थ प्रेम से समर्पण किया तो प्रभु श्रीकृष्ण ने अनुग्रह करके बृजवासीयो को अन्यन भक्ति दी, जिसके फलस्वरूप बृजवासीयो को स्वरुप दर्शन व स्वरूप सेवा का सुअवसर मिल रहा है ! ●बृजवासीयो ने आज से 5132 वर्ष पूर्व बृज मे श्रीकृष्ण से "निस्वार्थ" प्रेम के साथ, अपना सब कुछ श्रीकृष्ण को "समर्पण" किया, उस कारण बृजवासीयो को श्रीकृष्ण का "अनुग्रह" प्राप्त हुआ और श्रीकृष्ण के "मानव स्वरूप दर्शन" व मानव स्वरूप 'सेवा" का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! ●बृजवासीयो ने श्रीकृष्ण जन्म के 126 वर्ष बाद अर्थात् श्रीकृष्ण की लीला समाप्ति व वैकुण्ठ धाम पधारने के बाद भी 4395 वर्षों (5132 - 126 - 611) तक श्रीकृष्ण से निस्वार्थ प्रेम, समर्पण, अनुग्रह व स्वरूप दर्शन / सेवा करते रहे ! इसी कारण श्रीकृष्ण को पुनः अनुग्रह करके "प्रतिमा स्वरूप मे प्राकृट्य" उसी बृज के गिरिराज जी पर पधारना पडा, क्योंकि भगवान भक्त के प्रेम के अधीन है ! जबकि बृजवासीयो का तो प्रेम से भी ज्यादा उनका निस्वार्थ प्रेम है ! ●बृजवासीयो के निस्वार्थ प्रेम के कारण श्रीकृष्ण का "प्रतिमा स्वरूप" मे प्राकृट्य सन् 1409 (611 वर्ष) हुआ व उसके बाद 97 वर्षों तक केवल बृजवासीयो को ही सेवा का अवसर दिया ! ●श्रीकृष्ण / श्रीनाथजी ने बृजवासीयो के निस्वार्थ प्रेम, समर्पण, अनुग्रह व स्वरूप दर्शन / सेवा का लाभ जन जन तक पहुँचाने के लिए इस मार्ग को "ज्ञान व शब्दों मे परिभाषित" करने के लिए श्रीवल्लभाचार्य जी को आज्ञा दी ! जिस प्रेरणा से श्रीवल्लभाचार्य जी सन् 1506 (514 वर्ष पूर्व) मे श्रीसद्दू पाण्डे (सनाढ्य / बृजवासी) के घर पधारे व श्रीनाथजी के दर्शन करने की ईच्छा व्यक्त की ! तब श्रीसद्दू पाण्डे व अन्य बृजवासीयो ने दूसरे दिन श्रीवल्लभाचार्य जी को गिरिराज पर्वत पर प्राकृट्य स्थल पर ले जाकर श्रीनाथजी के दर्शन कराये ! ●इसके बाद श्रीवल्लभाचार्य जी ने बृजवासीयो के निस्वार्थ प्रेम, समर्पण, प्रभु के अनुग्रह व प्रभु के स्वरूप दर्शन / सेवा को ज्ञान व शब्दों मे परिभाषित कर आमजन (वैष्णवों) के लिए ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया, जिसका नाम पुष्टिमार्ग है ! ◆◆◆◆◆◆◆>>>>>>>>>>>>>>>>◆◆◆◆◆◆◆ ★★जयश्रीकृष्ण★★◆★★श्रीकृष्णार्पण★★ दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 15/07/2020 #dineshapna www.dineshapna.blogspot.com
















2 comments:

  1. ★★श्रीनाथजी का प्राकृट्य,
    श्रीसद्दू पाण्डे, बृजवासी व श्रीवल्लभाचार्य जी ★★
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    ◆सन् 1409 (वि.सं 1466)श्रीनाथजी के ऊध्व भुजा का प्राकृट्य
    (श्रीसद्दू पाण्डे व बृजवासीयो द्वारा प्रथम दर्शन व सेवा)
    ◆सन् 1478 (वि.सं 1535)श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य
    (श्रीनाथजी के प्राकृट्य के 69 वर्ष बाद श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य)
    ◆सन् 1506 (वि.सं 1563)श्रीवल्लभाचार्य जी का श्रीसद्दू पाण्डे के घर आन्यौर पदार्पण
    (97 वर्षों तक श्रीसद्दू पाण्डे व बृजवासीयो के द्वारा श्रीनाथजी की सेवा व पूजा व श्रीवल्लभाचार्य जी 28 वर्ष की उम्र मे बृज मे पधारे)
    ◆सन् 1519 (वि.सं 1576)श्रीनाथजी का जतिपुरा मन्दिर मे पाटोत्सव
    (13 वर्षों मे श्रीनाथजी का जतिपुरा मे नया मन्दिर)
    ◆सन् 1530 (वि.सं 1587)श्रीवल्लभाचार्य जी का देवलोक गमन
    (52 वर्ष की उम्र मे श्रीवल्लभाचार्य जी का देवलोक गमन)
    ◆सन् 1665 (वि.सं 1726)श्रीनाथजी का बृज से प्रस्थान
    (श्रीनाथजी 256 वर्ष तक बृज मे विराजे)
    ◆सन् 1672 (वि.सं 1728)श्रीनाथजी का नाथद्वारा मन्दिर मे पाटोत्सव
    (श्रीनाथजी को बृज से मेवाड़ पधारने मे 32 माह का समय लगा)
    ◆सन् 1959 (वि.सं 2016)नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन
    (61 वर्ष पूर्व नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन, जिसमें बृजवासीयो को कोई स्थान नहीं)
    ◆सन् 2020 (वि.सं 2077)श्रीनाथजी की प्रेरणा से न्याय के लिए आवाज
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    ★★श्रीनाथजी प्राकृट्य का मूल इतिहास★★
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    श्रीनाथजी का प्रथम प्राकृट्य बृज के गोवर्धन पर्वत पर सन् 1409 मे हुआ ! महाप्रिय श्री सद्दू पाण्डे (सनाढ्य/बृजवासी) को सर्वप्रथम श्रीनाथजी के दर्शन व सेवा करने का सौभाग्य मिला, उसके साथ ही सभी बृजवासी व श्री सद्दू पाण्डे श्रीनाथजी की सेवा व पूजा लगातार 97 वर्ष तक करते रहे !
    जब प्रभु प्रेरणा से महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य जी सन् 1506 मे महाप्रिय श्री सद्दू पाण्डे के घर आन्यौर गाँव पधारे तथा रात्रि को महाप्रिय श्री सद्दू पाण्डे के घर विश्राम किया तब महाप्रिय श्री सद्दू पाण्डे ने श्रीनाथजी के प्राकृट्य का पूरा वृत्तांत श्रीवल्लभाचार्य जी को सुनाया, दूसरे दिन श्री सद्दू पाण्डे व बृजवासीयो ने श्रीवल्लभाचार्य जी को लेकर गये व श्रीनाथजी प्राकृट्य के दर्शन कराये ! इसके बाद श्रीनाथजी की आज्ञा से श्रीवल्लभाचार्य जी ने मन्दिर बनवाया व सेवा पद्वति निर्धारित की ! श्रीवल्लभाचार्य जी ने बृजवासीयो के निस्वार्थ प्रेम, समर्पण व उनकी श्रीनाथजी के स्वरूप सेवा से प्रेरित होकर, श्रीनाथजी की कृपा व अपने ज्ञान से जीव का प्रभु के प्रति समर्पण व भक्ति का नया मार्ग बनाया जो पुष्टि मार्ग कहलाया तथा उस मार्ग का अनुसरण करने वाले वैष्णव कहलाये !
    बृजवासी अभी तक श्रीनाथजी से निस्वार्थ प्रेम व सेवा करते आये किन्तु श्रीवल्लभाचार्य जी के पधारने व मन्दिर निर्माण के बाद सुरक्षा का कार्य भी करने लगे !
    इस प्रकार बृजवासीयो ने सन् 1409 से 1665 तक 256 वर्ष तक बृज मे श्रीनाथजी से निस्वार्थ प्रेम के साथ सेवा व सुरक्षा की ! सन् 1665 मे औरंगजेब के आक्रमण के कारण बृजवासीयो ने अपना घर व सम्पदाओं का त्याग करके श्रीनाथजी व वल्लभकुल को लेकर सुरक्षा व संरक्षण हेतु अनिर्धारित गन्तव्य की ओर निकल गये ! 32 माह के बृज से सफर के बाद सिंहाड़, नाथद्वारा पधारे, जहाँ मेवाड़ के महाराणा राजसिंह जी ने रक्षा का वचन दिया ! सन् 1672 को नाथद्वारा के नये मन्दिर मे श्रीनाथजी का पाटोत्सव हुआ !
    इस प्रकार बृजवासी श्रीनाथजी से निस्वार्थ प्रेम, सेवा व सुरक्षा (सन् 1409 से 2020 तक) 611 वर्षों से कर रहे है ! श्रीवल्लभाचार्य जी व वल्लभकुल सन् 1506 से 2020 तक) 514 वर्षों से पूजा कर रहे है !
    अत: श्रीनाथजी की सेवा व सुरक्षा करने का प्रथम व प्राथमिक अधिकार बृजवासीयो का है, जिसे सन् 1959 से धिरे धिरे कम किया जा रहा है जो प्राकृतिक न्याय व परम्पराओं के विपरीत है !
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    दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी - 12/07/2020
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  2. - श्रीनाथजी प्राकृट्य का गूढ़ रहस्य -

    "श्रीनाथजी प्राकृट्य व प्रथम दर्शन"- श्रीसद्दू पाण्डे द्वारा !
    "श्रीनाथजी से प्रथम मिलन" - श्रीवल्लभाचार्य जी द्वारा !

    सन् 1409 (वि.सं 1466 - श्रावण शुक्ल पंचमी - नागपंचमी)
    श्रीनाथजी का प्राकृट्य (उध्व भुजा) । (श्रीसद्दू पाण्डे - सनाढ्य द्वारा प्रथम दर्शन व बृजवासीयो द्वारा प्रथम सेवा कार्य)

    सन् 1478 (वि.सं 1535 - वैशाख कृष्ण एकादशी) श्रीनाथजी के मुखारविंद के दर्शन व श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य । (श्रीनाथजी के प्राकृट्य के 69 वर्ष बाद श्रीवल्लभाचार्य जी का प्राकृट्य)

    सन् 1506 (वि.सं 1563) श्रीवल्लभाचार्य जी का श्रीसद्दू पाण्डे के घर आन्यौर पदार्पण व श्रीनाथजी से प्रथम मिलन । (97 वर्षों तक श्रीसद्दू पाण्डे व बृजवासीयो के द्वारा श्रीनाथजी की सेवा व पूजा व श्रीवल्लभाचार्य जी 28 वर्ष की उम्र मे बृज मे पधारे)

    सन् 1519 (वि.सं 1576 - वैशाख शुक्ल तीज - अक्षय तृतीया) श्रीनाथजी का जतिपुरा मन्दिर मे पाटोत्सव । (13 वर्षों मे श्रीनाथजी का जतिपुरा मे नया मन्दिर)

    सन् 1530 (वि.सं 1587 - आषाढ़ शुक्ल तीज, रविवार)
    श्रीवल्लभाचार्य जी का देवलोक गमन । (52 वर्ष की उम्र मे श्रीवल्लभाचार्य जी का देवलोक गमन)

    सन् 1665 (वि.सं 1726 - आश्विन शुक्ल १५, शुक्रवार)
    श्रीनाथजी का बृज से प्रस्थान ।
    (श्रीनाथजी 256 वर्ष तक बृज मे विराजे)

    सन् 1672 - 20 फरवरी (वि.सं 1728 - फाल्गुन कृष्ण सप्तमी - शनिवार) श्रीनाथजी का नाथद्वारा मन्दिर मे पाटोत्सव । (श्रीनाथजी को बृज से मेवाड़ पधारने मे 32 माह का समय लगा)

    सन् 1959 - 28 मार्च (वि.सं 2016) नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन । (61 वर्ष पूर्व नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन, जिसमें बृजवासीयो को कोई स्थान नहीं !)

    सन् 2019 - 2 अक्टूबर (वि.सं. 2076) श्रीनाथजी की प्रेरणा से सत्य, न्याय व सेवाधिकार के लिए आवाज - एक बृजवासी के द्वारा श्रीनाथजी की आज्ञा से !

    सन् 2020 (वि.सं.2077) "श्रीनाथजी के प्राकृट्य" व श्रीसद्दू पाण्डे (सनाढ्य) व बृजवासीयो को प्रथम दर्शन व सेवा करते 611 वर्ष हुए। श्रीवल्लभाचार्य जी के "श्रीनाथजी से मिलन" को 514 वर्ष हुए । श्रीनाथजी को नाथद्वारा पधारे 348 वर्ष हुए । नाथद्वारा मन्दिर मण्डल बने 61 वर्ष हुए ।

    सन् 1409 (वि.सं 1466 - श्रावण शुक्ल पंचमी - नागपंचमी) - 【611 वर्ष】"श्रीनाथजी प्राकृट्य व प्रथम दर्शन"- श्रीसद्दू पाण्डे द्वारा !
    सन् 1506 (वि.सं 1563) - 【514 वर्ष】"श्रीनाथजी से प्रथम मिलन" - श्रीवल्लभाचार्य जी द्वारा !

    जयश्रीकृष्ण - श्रीकृष्णार्पण

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