Saturday 21 August 2021

★साहित्य से सत्य को पहचाने !★साहित्य पढ़ें, समझे, अपनाये ! ★"किंकोडा तेरस" से श्रीनाथजी व बृजवासियों के सत्य तथ्य !★ (१)वि.सं. 1552 मे श्रीनाथजी बृजवासियों से सीधी बात करते थे, श्रीनाथजी साक्षात् आज्ञा के साथ बृजवासियों 【◆सदु पांडे, ◆माणिकचंद पांडे, ◆रामदासजी और ◆कुंभनदासजी】 से सखा जैसा व्यवहार करते थे । (२)वि.सं. 1563 मे श्रीवल्लभाचार्य जी श्रीसद्दू पाण्डे के घर पधारे, तब दूसरे दिन श्रीसद्दू पाण्डे ने उनको श्रीनाथजी से मिलन कराया । 【11 वर्ष बाद】 (३)बृजवासी श्रीनाथजी के सखा पहले, बाद मे श्रीवल्लभाचार्य जी ने पुष्टि मार्ग की स्थापना की । (४)श्रीवल्लभाचार्य जी का श्रीनाथजी से प्रथम मिलन से पूर्व श्रीसद्दू पाण्डे व बृजवासी श्रीनाथजी के साथ वार्तालाप करते थे । ◆◆◆◆◆◆◆>>>>पुष्टि साहित्य से>>>>◆◆◆◆◆◆◆ व्रज - श्रावण शुक्ल त्रयोदशी ●किंकोडा तेरस, चतुरा नागा का प्रसंग● संवत १५५२ श्रावण सुद तेरस बुधवार के दिन श्रीनाथजी टोंड के घने पधारे थे उस प्रसंग का वर्णन निम्नलिखित है :- कुंभनदासजी श्रीनाथजी की सेवा में नित्य कीर्तन करके श्रीनाथजी को रिझाते थे । वे श्रीनाथजी को प्रिय थे । श्रीनाथजी उनको अपना सानुभाव जताते थे । वे साथ साथ खेलते रहते थे और बाते भी किया करते थे । थोड़े ही दिनों में एक यवन का उपद्रव इस विस्तार में शुरू हुआ । वह सभी गांवों को लूटमार कर के पश्चिम से आया । उसका पड़ाव श्री गिरिराजजी से लगभग सात किलोमीटर दूर पड़ा था । 【◆सदु पांडे, ◆माणिकचंद पांडे, ◆रामदासजी और ◆कुंभनदासजी】 चारों ने विचार किया की यह यवन बहुत दुष्ट है और भगवद धर्म का द्वेषी है । अब हमें क्या करना चाहिये ? 【यह चारों वैष्णव श्रीनाथजी के अंतरंग थे. उनके साथ श्रीनाथजी बाते किया करते थे.】 उन्होंने मंदिर में जाकर श्रीनाथजी को पूछा कि महाराज अब हम क्या करें ? धर्म का द्वेषी यवन लूटता चला आ रहा है । अब आप जो आज्ञा करें हम वेसा करेंगें । श्रीनाथजी ने आज्ञा करी कि हमें टोंड के घने में पधारने की इच्छा है । वहां हमें ले चलो । तब उन्होंने पूछा कि महाराज इस समय कौन सी सवारी पर चले ? तब श्रीनाथजी ने आज्ञा करी कि सदु पांडे के घर जो पाडा है उसे ले आओ । सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #20/08/2021 #dineshapna






 

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