Friday 20 August 2021

★"किंकोडा तेरस" से श्रीनाथजी व बृजवासियों के कुछ अनछुए सत्य तथ्य !★ ★इन तथ्यों को आज समझना जरूरी व प्रासंगिक है ।★ (१)वि.सं. 1552 मे श्रीनाथजी बृजवासियों से सीधी बात करते थे, श्रीनाथजी साक्षात् आज्ञा के साथ बृजवासियों 【◆सदु पांडे, ◆माणिकचंद पांडे, ◆रामदासजी और ◆कुंभनदासजी】 से सखा जैसा व्यवहार करते थे । (२)वि.सं. 1563 मे श्रीवल्लभाचार्य जी श्रीसद्दू पाण्डे के घर पधारे, तब दूसरे दिन श्रीसद्दू पाण्डे ने उनको श्रीनाथजी से मिलन कराया । 【11 वर्ष बाद】 (३)बृजवासी श्रीनाथजी के सखा पहले, बाद मे श्रीवल्लभाचार्य जी ने पुष्टि मार्ग की स्थापना की । (४)श्रीवल्लभाचार्य जी का श्रीनाथजी से प्रथम मिलन से पूर्व श्रीसद्दू पाण्डे व बृजवासी श्रीनाथजी के साथ वार्तालाप करते थे । ◆◆◆◆◆◆◆>>>>>>>>>>>>>>>>◆◆◆◆◆◆◆ व्रज - श्रावण शुक्ल त्रयोदशी Friday, 20 August 2021 किंकोडा तेरस, चतुरा नागा का प्रसंग आज के दिन संवत १५५२ श्रावण सुद तेरस बुधवार के दिन श्रीनाथजी टोंड के घने पधारे थे उस प्रसंग का वर्णन निम्नलिखित है :- कुंभनदासजी श्रीनाथजी की सेवा में नित्य कीर्तन करके श्रीनाथजी को रिझाते थे. वे श्रीनाथजी को प्रिय थे. श्रीनाथजी उनको अपना सानुभाव जताते थे. वे साथ साथ खेलते रहते थे और बाते भी किया करते थे. थोड़े ही दिनों में एक यवन का उपद्रव इस विस्तार में शुरू हुआ. वह सभी गांवों को लूटमार कर के पश्चिम से आया. उसका पड़ाव श्री गिरिराजजी से लगभग सात किलोमीटर दूर पड़ा था. 【◆सदु पांडे, ◆माणिकचंद पांडे, ◆रामदासजी और ◆कुंभनदासजी】 चारों ने विचार किया की यह यवन बहुत दुष्ट है और भगवद धर्म का द्वेषी है. अब हमें क्या करना चाहिये ? 【यह चारों वैष्णव श्रीनाथजी के अंतरंग थे. उनके साथ श्रीनाथजी बाते किया करते थे.】 उन्होंने मंदिर में जाकर श्रीनाथजी को पूछा कि महाराज अब हम क्या करें ? धर्म का द्वेषी यवन लूटता चला आ रहा है. अब आप जो आज्ञा करें हम वेसा करेंगें. श्रीनाथजी ने आज्ञा करी कि हमें टोंड के घने में पधारने की इच्छा है वहां हमें ले चलो. तब उन्होंने पूछा कि महाराज इस समय कौन सी सवारी पर चले? तब श्रीनाथजी ने आज्ञा करी कि सदु पांडे के घर जो पाडा है उसे ले आओ. मैं उसके ऊपर चढ़कर चलुंगा. सदु पाण्डे उस पाड़ा को लेकर आये. श्रीनाथजी उस पाड़ा पर चढ़कर पधारें. श्रीनाथजी को एक तरफ से रामदासजी थांभ कर चल थे और दूसरी तरफ सदु पांडे थांभ कर चल रहे थे. कुंभनदास और माणिकचंद वे दोऊ आगे चलकर मार्ग बताते रहते थे. मार्ग में कांटें - गोखरू बहुत लग रहे थे. वस्त्र भी फट गये थे. टोंड के घने में एक चौतरा है और छोटा सा तालाब भी है. एक वर्तुलाकार चौक के पास आके रामदासजी और कुंभनदासजी ने श्रीनाथजी को पूछा कि आप कहाँ बिराजेंगे ? तब श्रीनाथजीने आज्ञा करी कि हम चौतरे पर बिराजेंगे. `श्रीनाथजी को पाड़े पर बिठाते समय जो गादी बिछायी थी उसी गादी को इस चौतरे पर बिछा दी गई और श्रीनाथजी को उस पर पधराये. चतुरा नागा नाम के एक विरक्त भगवद भक्त थे वे टोंड के घने में तपस्या किया करता थे. वे गिरिराजजी पर कभी अपना पैर तक नहीं रखते थे. मानों उस चतुरा नागा को ही दर्शन देनेके लिए ही श्रीनाथजी पाडा पर चढ़कर टोंड की इस झाड़ी में पधारें, चतुरा नागा ने श्रीनाथजी के दर्शन करके बड़ा उत्सव मनाया. बन मे से किंकोडा चुटकर इसकी सब्जी और आटे हलवा (सिरा) बनाकर श्रीनाथजी को भोग समर्पित किया. इसके बारे में दूसरा उल्लेख यह भी है कि श्रीनाथजी ने रामदासजीको आज्ञा करी कि तुम भोग धरकर दूर खड़े रहो. तब श्री रामदासजी और कुंभनदासजी सोचने लगे कि किसी व्रज भक्त के मनोरथ पूर्ण करने हेतु यह लीला हो रही है. रामदासजी ने थोड़ी सामग्री का भोग लगाया तब श्रीनाथजी ने कहा कि सभी सामग्री धर दो. श्री रामदासजी दो सेर आटा का सिरा बनाकर लाये थे उन्होंने भोग धर दिया. रामदासजी ने जताया कि अब हम इधर ठहरेंगें तो क्या करेंगें ? तो श्रीनाथजी ने कहा कि तुमको यहाँ रहना नहीं है. कुम्भनदास, सदु पांडे, माणिक पांडे और रामदासजी ये चारों जन झाड़ी की ओट के पास बैठे तब निकुंज के भीतर श्री स्वामिनीजी ने अपने हाथों से मनोरथ की सामग्री बनाकर श्रीनाथजी के पास पधारे और भोग धरे, श्रीनाथजी ने अपने मुख से कुंभनदास को आज्ञा करी कि कुंभनदास इस समय ऐसा कोई कीर्तन गा तो मेरा मन प्रसन्न होने पावे. मै सामग्री आरोंगु और तु कीर्तन गा. श्री कुम्भनदासने अपने मनमें सोचा कि प्रभुको कोई हास्य प्रसंग सुननेकी इच्छा है ऐसा लगता है. कुंभनदास आदि चारों वैष्णव भूखे भी थे और कांटें भी बहुत लगे थे इस लिये कुंभनदासने यह पद गाया : राग : सारंग “भावत है तोहि टॉडको घनो । कांटा लगे गोखरू टूटे फाट्यो है सब तन्यो ।।१।। सिंह कहां लोकड़ा को डर यह कहा बानक बन्यो । ‘कुम्भनदास’ तुम गोवर्धनधर वह कौन रांड ढेडनीको जन्यो ।।२।। यह पद सुनकर श्रीनाथजी एवं श्री स्वामिनीजी अति प्रसन्न हुए. सभी वैष्णव भी प्रसन्न हुए. बाद में माला के समय कुंभनदासजी ने यह पद गाया : बोलत श्याम मनोहर बैठे... राग : मालकौंश बोलत श्याम मनोहर बैठे, कमलखंड और कदम्बकी छैयां । कुसुमनि द्रुम अलि पीक गूंजत, कोकिला कल गावत तहियाँ ।। 1 ।। सूनत दूतिका के बचन माधुरी, भयो हुलास तन मन महियाँ । कुंभनदास ब्रज जुवति मिलन चलि, रसिक कुंवर गिरिधर पहियाँ ।। 2 ।। यह पद सुनकर श्रीनाथजी स्वयं अति प्रसन्न हुए. बाद में श्री स्वामिनीजी ने श्रीनाथजी को पूछा की आप यहाँ किस प्रकार से पधारें? श्रीनाथजी ने कहा कि सदु पांडे के घर जो पाडा था उस पर चढ़कर हम पधारें हैं. श्रीनाथजी के इस वचन सुनकर स्वामिनीजी ने उस पाडा की ओर दृष्टि करके कृपा करके बोले कि यह तो हमारे बाग़ की मालन है. वह हमारी अवज्ञा से पाडा बनी है पर आज आपकी सेवा करके उसके अपराध की निवृत्ति हो गई है. इसी तरह नाना प्रकारे केली करके टोंड के घने से श्री स्वामिनी जी बरसाना पधारें. बादमें श्रीनाथजी ने सभी को झाडी की ओट के पास बैठे थे उनको बुलाया और सदु पांडे को आज्ञा करी कि अब जा कर देखो कि उपद्रव कम हुआ ? सदु पांडे टोंड के घने से बाहर आये इतने मे ही समाचार आये कि यवन की फ़ौज तो वापिस चली गई है. यह समाचार सदु पांडे ने श्रीनाथजी को सुनाया और बिनती की कि यवन की फ़ौज तो भाग गई है तब श्रीनाथजी ने कहा कि अब हमें गिरिराज पर मंदिर में पधरायें. इसी प्रकार आज्ञा होते ही श्रीनाथजी को पाडे पर बैठा के श्री गिरिराज पर्वत पर मंदिर में पधराये. यह पाडा गिरिराज पर्वत से उतर कर देह छोड़कर पुन: लीला को प्राप्त हुआ. सभी ब्रजवासी मंदिर में श्रीनाथजी के दर्शन करके बहुत प्रसन्न हुए और बोले की धन्य है देवदमन ! जिनके प्रताप से यह उपद्रव मिट गया. इस तरह संवत १५५२ श्रावण सुदी तेरस को बुधवार के दिन चतुरा नागा का मनोरथ सिद्ध करके पुन: श्रीनाथजी गिरिराजजी पर पधारें. यह टोंड के घने में श्रीनाथजी की बैठक है जहाँ सुंदर मंदिर व बैठकजी बनाई गई है. यह पाडा दैवी जीव था. लीला में वो श्री वृषभानजी के बगीचा की मालन थी. नित्य फूलों की माला बनाकर श्री वृषभानजी के घर लाती थी. लीला में वृंदा उसका नाम था. एक दिन श्री स्वामिनी जी बगीचा में पधारें तब वृंदा के पास एक बेटी थी उसको वे खिलाती रही थी. उसने न तो उठकर स्वामिनी जी को दंडवत किये कि न तो कोई समाधान किया. फिर भी स्वामिनीजी ने उसको कुछ नहीं कहा. उसके बाद श्री स्वामिनीजी ने आज्ञा की के तुम श्री नंदरायजी के घर जाकर श्री ठाकोरजी को संकेत करके हमारे यहां पधारने के लिए कहो तो वृंदा ने कहा की अभी मुझे मालाजी सिद्ध करके श्री वृषभानजी को भेजनी है तो मैं नहीं जाऊँगी. ऐसा सुनकर श्री स्वामिनीजी ने कहा कि मैं जब आई तब उठकर सन्मान भी न किया और एक काम करने को कहा वो भी नहीं किया. इस प्रकार तुम यह बगीचा के लायक नहीं हो. तु यहाँ से भुतल पर पड़ और पाडा बन जा. इसी प्रकार का श्राप उसको दिया तब वह मालन श्री स्वामिनीजी के चरणारविन्दमें जा कर गीर पडी और बहुत स्तुति करने लगी और कहा कि आप मेरे पर कृपा करों जिससे मैं यहां फिर आ सकुं. तब स्वामिनीजी ने कृपा करके कहा की जब तेरे पर चढ़कर श्री ठाकुरजी बन में पधारेंगें तभी तेरा अंगीकार होगा. इसी प्रकार वह मालन सदु पांडे के घर में पाडा हुई और जब श्रीनाथजी उस पर बेठ कर वन में पधारे तब वो पुन: लीला को प्राप्त हुई. 🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺 सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #20/08/2021 #dineshapna






 

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