Tuesday 14 June 2022

जन प्रेस वार्ता - 7 (एक बृजवासी के द्वारा) मठाधीश सुन ले, मूक पक्षी की आवाज ! नहीं समझे, श्रीजी के सखा का आगाज ! श्रीकृष्ण ने आज से 613 वर्ष पूर्व बृजवासियों के लिए सन् 1409 मे "पाषाण स्वरूप" मे अवतार लिया ! श्रीकृष्ण करीब 5000 वर्ष पूर्व "मानव स्वरूप" मे अवतार बृजवासियों के साथ बालस्वरूप मे गोकुल मे केवल 3 वर्ष 2 माह तक ही लीला कर सके ! इसलिए उस कमी की पूर्ति करने के लिए व बृजवासियों के निस्वार्थ प्रेम व समर्पण भाव के कारण श्रीकृष्ण ने "पाषाण स्वरूप" मे पुनः अवतार लिया ! क्योंकि उस समय श्रीकृष्ण का ज्यादातर समय राक्षसों का वध करने मे ही निकल गया, जिसकी शुरुआत 6 दिन की उम्र से ही पूतना वध से की ! अतः श्रीकृष्ण ने इस अवतार मे सर्वप्रथम बृजवासी को ही दर्शन दिये, उसके बाद अपनी निज सेवा करने की "साक्षात् आज्ञा" श्रीसद्दू पाण्डे जी को ही दी, तदुपरांत सखा के रुप मे साथ मे खेलने की "साक्षात् आज्ञा" बृजवासियों को ही दी ! श्रीकृष्ण ने इस कलयुग मे अन्य जीवमात्र के कल्याण हेतु तथा सरल व विधिवत पूजा पद्धति निर्धारण करने के लिए उस समय के सर्वश्रेष्ठ विद्वान श्रीवल्लभाचार्य जी को "स्वप्न आज्ञा" करके जतीपुरा बुलाया ! श्रीवल्लभाचार्य जी ने श्रीनाथजी की "स्वप्न आज्ञा" का पूर्णतः पालन किया तथा साथ ही उन्होंने श्रीनाथजी की "साक्षात् आज्ञा" (श्रीसद्दू पाण्डे जी व बृजवासियों को) का लेशमात्र भी उल्लंघन नहीं किया ! उन्होंने श्रीनाथजी की सेवा व पूजा "सेवक भाव" से ही की तथा बृजवासियों का स्थान श्रीनाथजी के सखा के रुप मे ही बनाये रखा ! उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति को पुष्टि भाव से प्रसार प्रचार करने के लिए भारत भ्रमण भी किया ! इस कार्य के दौरान अपने शिष्यो व वैष्णवों को "वल्लभ आज्ञा" भी दी किन्तु ध्यान रखा कि "वल्लभ आज्ञा" कभी भी श्रीनाथजी की "साक्षात् आज्ञा" के प्रतिकूल / विरोधाभासी न हो ! अपने अन्तिम उपदेश "शिक्षा श्लोक" मे केवल "अपने वंशजों व वैष्णवों" के लिए 'चेतावनी स्वरूप संदेश" दिया था ! यहाँ यह उल्लेखनीय है कि श्रीवल्लभाचार्य जी ने कभी भी आदेश या उपदेश श्रीनाथजी के सखा (बृजवासियों) को नहीं दिया, क्योंकि वह जानते थे कि बृजवासियों को तो श्रीनाथजी ने "साक्षात् आज्ञा" दी है तथा बृजवासी श्रीनाथजी के सखा है तो उनकी "साक्षात् आज्ञा" के सामने या उसके विपरीत कोई भी आज्ञा या उपदेश बृजवासियों को नहीं दिया जा सकता है ! 【जैसे "संविधान" के विपरीत कोई "कानून" नहीं बन सकता है, उसी प्रकार श्रीनाथजी की "साक्षात् आज्ञा" के विपरीत कोई "वल्लभ आज्ञा" नहीं हो सकती है !】 【किन्तु अभी कलयुग है इसलिए सभी कार्य विपरीत हो रहे है, अतः हमें इन विपरीत कार्यो को रोकने के लिए भगवान के अवतार का इन्तजार नहीं करना है ! हमें ही गलत का विरोध करके सुधार कराना है व आमजन को न्याय दिलाना है !】 【हमें 2 जनहित के कार्य करने है :- (१) श्रीनाथजी मन्दिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराना ! (२) श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा की पालना सुनिश्चित कराना ! 】 ★आप (आम जनता व प्रेस प्रतिनिधि) का कोई प्रश्न हो तो पूछ सकते हो ! {यह अनोखी व अनवरत "जन प्रेस वार्ता" है !} सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #(115)#14/06/22 #dineshapna





 

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