Sunday 2 February 2020

★सखा गोविन्द दोऊ खडे़, काको करुँ सम्मान ! बलिहारी सखा आपने, गोविन्द दियो मिलाय !!★ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ◆श्रीनाथजी बृजवासीयो से "सेवा लेते" है, (अरी नरो ! दूध ला !), अन्य श्रीनाथजी की "सेवा करते" है ! ◆"बृजवासीयो ने" सन् 1409 से 1478 तक "श्रीनाथजी की 69 वर्षों तक" सेवा की, तो अब यह दूरी क्यों बनाई गयी? ●बृजवासी श्रीनाथजी के सखा है, तो उनके साथ "मित्रवत व्यवहार" होना चाहिए, किन्तु उनके साथ अजनबी/नौकर जैसा व्यवहार क्यों ? ●क्या मित्र को अपने मित्र की सम्पत्ति की रक्षा व उसकी सुरक्षा के लिए "सामाजिक अंकेक्षण"का अधिकार क्यों नहीं ? ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ★श्री वल्लभाचार्य जी के सन्देश व उनके पुष्टि मार्ग को आगे बढाये !★ °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° ◆श्री वल्लभाचार्य जी "एक धोती मे" रहते थे,अब उनके पदचिन्हों पर चलने वाले व निर्णायक लोगों को "धोती भर के" क्यों चाहिए ? ◆श्री वल्लभाचार्य जी ने "तीन बार पूरे भारत का भ्रमण" व "सभी लोगों को लाभ" दिया ! तो अब केवल "बार-बार मुम्बई का भ्रमण" ही क्यों ? व "मुम्बई के लोगों को ही बार-बार बोडँ मे" लेकर लाभ क्यों दिया जा रहा है ? ●हम श्रीनाथजी के सखा है व श्री वल्लभाचार्य जी ने श्रीनाथजी की सेवा व परम्पराओं को आगे बढाया है, तो हमारा भी फर्ज बनता है, कि उसको हम भी कायम रखते हुए, आगे बढाये ! ●श्रीजी की भगवत प्रेरणा से हम अपने सखा श्रीनाथजी की बात कर रहे है ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ★श्री महाप्रभु जी के सिद्वान्तों की उपेक्षा व केवल उनकी परम्पराओं की दुहाई क्यों ?★ °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° ◆श्री महाप्रभु जी केवल "श्रीकृष्ण जी" के भक्त थे, तो अब उनके वंशज व वैष्णव केवल "श्रीलक्ष्मी जी" के ही भक्त क्यों ? ◆श्री वल्लभाचार्य जी ने राजा का दिया "स्वर्ण" नहीं लेकर "ब्राह्मणों मे बाँट" दिया, इसलिए "महाप्रभु जी" कहलाये ! किन्तु अब "ब्राह्मणों व वैष्णवों" से "स्वर्ण" लेकर "महाराज श्री" कहलाये ? ●हमने जो आपने लिखा व देखा, वह ही यहाँ लिखा है ! आप कुछ अलग समझ व समझाना चाहते हो, तो बताये क्योंकि आप सक्षम व ज्ञानी है ! ●हम तो भोले (निश्छल) बृजवासी व श्रीनाथजी के सखा है ! ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ★श्रीनाथजी की सम्पत्ति को लूटने/लुटाने वालों का नाश निश्चित !★ °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° ◆यह मै नहीं, वल्लभाचार्य जी ने अपने अन्तिम सन्देश (वसीयत) मे गंगा जी की पवित्र रेती पर लिखा था, आज से 490 वर्ष पूर्व, रविवार के दिन ही ! ◆यह उनके वंशजों, सेवको (शिष्यों, वैष्णवों) के लिए है ! ●यदि निर्णायक लोग अभी भी समझ जाये तो सामाजिक अंकेक्षण कराकर, सभी निर्णय पारर्दशिता से ले ! - एक बृजवासी "श्रीजी के सखा" का निवेदन !श्रीजी का आदेश हुआ, सो यह निवेदन 02/02/2020 रविवार को कर दिया ! ◆●●◆ याद रहे ! भूल चूक लेनी देनी ! ◆●●◆ CA.Dinesh Samashya - 02/02/2020 www.dineshapna.blogspot.com

























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