Wednesday 6 July 2022

56 भोग श्रीनाथजी के लिए समर्पण भाव से या स्वआत्म सन्तुष्टि व आत्म अहमं सुखाय: ! श्रीनाथजी के लिए बृजवासियों ने अपनी सम्पत्ति व जीवन का त्याग 350 वर्ष पूर्व सन् 1665 से किया ! उनकी श्रीनाथजी के प्रति "आस्था व त्याग" है ! इसलिए श्रीनाथजी बृजवासियों को "अपना सखा" मानते है ! उक्त "आस्था व त्याग" आजतक भी है ! बृजवासी श्रीनाथजी की "निस्वार्थ सेवा" करते है व प्रतिफल मे श्रीनाथजी केवल जीने की व्यवस्था व "अनन्त सखा का प्रेम" देते है ! ऐसा ही श्रीनाथजी से निस्वार्थ भक्ति व त्याग मेवाड़ के महाराणा व राजपूतों ने किया ! वर्तमान मे कुछ लोग श्रीनाथजी की भक्ति का दिखावा करके, श्रीनाथजी के प्रति अक्षम्य अपराध अपनी आत्म अहमं सुखाय: करते हुए कुछ कृत्य कर रहे है और जिम्मेदार मठाधीश देखते हुए भी चुप है ! श्रीनाथजी की छवि को ब्लाऊज व साड़ी पर प्रिंट कराकर पहन रहे है ! जो हमारी श्रीनाथजी के प्रति "आस्था व त्याग" का अपमान है ! श्रीनाथजी के धन / सम्पत्तियों का नाश करने तक हम चुप थे किन्तु अब श्रीनाथजी व हमारी आस्था / त्याग का अपमान असहनीय है ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #(132) #05/07/22 #dineshapna


















 

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