Monday 3 May 2021

★नाथद्वारा मन्दिर के "मठाधीश" किस दिशा मे चले ?★ ●श्रीनाथजी श्रीकृष्ण का स्वरूप है अतः हमें श्रीकृष्ण को मानने के साथ अपनाना भी होगा ! अब यह बात हमारे पुष्टिमार्ग व श्रीवल्लभाचार्य जी के वंशज वर्तमान स्वघोषित तिलकायत तो कहेंगे नहीं ! इसलिए हमे ही श्रीकृष्ण को अपनाना होगा जैसे हम (बृजवासी) आज से सन् 1506 (515 वर्ष) से पूर्व श्रीकृष्ण को आत्मसात कर रखा था ! तथा जो सन्देश हमें श्रीकृष्ण ने आज से 5132 वर्ष पूर्व दिया था ! ●नाथद्वारा मन्दिर के वर्तमान स्वघोषित तिलकायत को भी श्रीकृष्ण का सन्देश है कि जैसे पाण्डवों ने युद्ध के बाद दोनों पक्षों के मरे हुए योद्धाओं का अंतिम संस्कार किया था। उसी प्रकार श्रीमती महालक्ष्मी बहुजी का अन्तिम संस्कार करना चाहिए । ●महाभारत का युद्ध धर्म के लिए हुआ था किन्तु आपने जो अघोषित युद्ध चालू कर रखा है वह अधर्म पर आधारित है क्योंकि पुष्टिमार्ग व श्रीवल्लभाचार्य जी के अनुसार जब आपने सभी कुछ श्रीनाथजी को समर्पण कर रखा है तो आपकी तो कोई सम्पत्ति है ही नहीं ! तब आप श्रीनाथजी की सम्पत्तियों के लिए क्यों लड़ रहे हो ! आपका सम्पत्ति के लिए लड़ना ही अधर्म है ! ●महाभारत के स्त्री पर्व के अनुसार युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर के कहने पर पांडवों ने ही दोनों पक्षों के मरे हुए योद्धाओं का अंतिम संस्कार किया था। उन्होंने इसलिए कोरवों के मरे हुए योद्धाओं का अंतिम संस्कार किया था क्योंकि मरने के बाद दुश्मनी खत्म हो जाती है और आखिर वह थे तो उनके भाई व परिवार के सदस्य ही । ■अभी भी वक्त है कि श्रीवल्लभाचार्य जी के सिद्धांतों व पद चिन्हों पर चले, नहीं तो हमें (बृजवासियों को) श्रीकृष्ण के सिद्धांतों व पद चिन्हों पर चलना होगा क्योंकि हम श्रीनाथजी (श्रीकृष्ण) को "मानते" भी है और "अपनाते" भी है !■ ★जैसे श्रीनाथजी ने आज्ञा की, वैसा लिख दिया !★ सीए. दिनेश सनाढ्य - #एक_बृजवासी #04/05/2021#dineshapna





 

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