Saturday 8 May 2021

नाथद्वारा व राजसमन्द मे प्रथम बार जगद्गुरू श्रीवल्लभाचार्य जी की जयन्ती वर्चुअल संगोष्ठी के माध्यम से Google meet पर मनाई गई ! तथा यह हमारी तीसरी वर्चुअल मिटींग है ! इस आयोजन की विषय वस्तु :- ◆श्रीवल्लभाचार्य जी का जीवन चरित्र व श्रीनाथजी ! ◆पुष्टिमार्ग के सिद्धांत ! ◆वर्तमान समय मे पुष्टिमार्ग की उपादेयता ! ◆पुष्टिमार्ग से जीवन प्रबन्धन ! ◆श्रीवल्लभाचार्य जी व पुष्टिमार्ग को जाने, माने व अपनाये ! मुख्य वक्ता :- ◆श्री वागेश कुमार जी गोस्वामी महाराज श्री, श्रीद्वारकाधिश जी मन्दिर, कांकरोली ◆आचार्य श्री विनय जी गोस्वामी महाराजश्री, महाप्रभु मन्दिर, कोटा ◆सीए. श्री दिनेश चन्द्र सनाढ्य, पुष्टिमार्ग शोधार्थी ◆डाँ. श्रीमती रचना तैलंग, आचार्य व विदुषी, कांकरोली ◆पण्डित श्री मदनमोहन जी शर्मा, श्रीमद्भागवत कथाकार, नाथद्वारा दिनांक :- 07/05/2021 समय :- सांय 07.30 (लिंक पर 7.10 से जुड़े) Google meet पर लिंक meet.google.com/jst-mwro-idp यह मिटिंग 7.10 से 9.10 तक (2 घण्टे) चली व इसमे 34 व्यक्ति उपस्थित हुए ! ★श्री वागेश कुमार जी गोस्वामी महाराज श्री, श्रीद्वारकाधिश जी मन्दिर, कांकरोली ने आर्शिवचनो मे सभी को श्रीवल्लभाचार्य जी की जयन्ती पर बधाई दी व श्रीवल्लभाचार्य जी के चरित्र पर प्रकाश डाला व सभी को पुष्टि मार्ग पर चलने का सन्देश दिया ! ★आचार्य श्री विनय जी गोस्वामी महाराजश्री, महाप्रभु मन्दिर, कोटा ने आर्शिवचनो मे श्रीनाथजी की सेवा का महत्व, पुष्टि मार्ग व श्रीवल्लभाचार्य जी के चरित्र के बारे मे विस्तार से बताया ! उन्होंने कहा कि हमे श्रीनाथजी की सेवा करनी चाहिए, यह हमारे लिए भाग्य की बात है ! ■■【【आप दोनों महाराज श्री ने श्रीवल्लभाचार्य जी व पुष्टि मार्ग के बारे मे विस्तार से बताया, वह सभी यहाँ लिखना सम्भव नहीं है ! मेरा आपसे अनुरोध है कि अगली बार आप इस "वर्चुअल संत्सग" मे शामिल हो !】】■■ ★सीए. श्री दिनेश चन्द्र सनाढ्य, पुष्टिमार्ग शोधार्थी ने कहा कि श्रीवल्लभाचार्य जी वेदों, पुराणों, भागवत व गीता के जानकर व विद्धान थे । वेदों व उपनिषदों का सार भागवत व गीता है । भागवत के अनुसार पुष्टि का अर्थ पोषण अर्थात् भगवान का अनुग्रह होता है । भगवान श्रीकृष्ण की कृपा या अनुग्रह ही पुष्टि है । इस प्रकार पुष्टिमार्ग भगवान को प्राप्त करने का सरल व सुगम मार्ग है । पुष्टि मार्ग के तीन महत्त्वपूर्ण बिन्दु है :-आत्मसमर्पण, अनुग्रह, स्वरूप दर्शन । इस प्रकार (१)भक्त स्वयं अपने आराध्य के समक्ष "आत्म समर्पण" करता है ! (२)भगवान के "अनुग्रह" से भक्ति उत्पन्न होती है , उसे पुष्टि भक्ति कहते है ! (३)ऐसा भक्त भगवान के "स्वरूप दर्शन" के अतिरिक्त और अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता है ! इस मार्ग को सतयुग मे भक्त प्रह्लाद व ध्रुव ने अपनाया । त्रैतायुग मे भरत, लक्ष्मण, हनुमान व विभिषण ने अपनाया था । द्वापरयुग मे बृजवासियों ने अपनाया था । बृजवासियों ने श्रीकृष्ण के समक्ष आत्मसमर्पण किया, उससे श्रीकृष्ण की कृपा से भक्ति प्राप्त हुई, उसके बाद बृजवासियों ने केवल स्वरूप दर्शन के अलावा कुछ नहीं माँगा । बृजवासियों की निस्वार्थ भक्ति व प्रेम 4521 वर्षो तक चलता रहा व उन्होंने श्रीकृष्ण से कुछ नहीं माँगा, तब श्रीकृष्ण को गिरिराज जी पर 611 वर्ष पूर्व सन् 1409 मे प्रतिमा रुप मे अवतार लेना पड़ा । वहीं आज श्रीनाथजी के रुप मे हमारे बीच है । हम श्रीवल्लभाचार्य जी के ऋणी है कि उस पुष्टि मार्ग की सरल शब्दों मे व्याख्या करके यह सरल व सर्वश्रेष्ठ भक्ति मार्ग जन जन तक पहुँचाया । श्रीवल्लभाचार्य जी प्रेम, समर्पण व त्याग की मुर्ति है । आज इस अवसर पर हमे श्रीवल्लभाचार्य जी व पुष्टिमार्ग को जानना, मानना व अपनाना है । ★डाँ. श्रीमती रचना तैलंग, प्राध्यापक व पुष्टिमार्ग के जानकर, कांकरोली ने वेदों व वैदिक परम्पराओं से पुष्टि मार्ग तक का इतिहास विस्तार से बताया व आपने बताया कि श्रीनाथजी की सेवा कैसे व क्यों होती है ! उन्होंने श्रीनाथजी की सेवा क्रम विस्तार से बताया तथा कहा कि हम श्रीनाथजी को बालस्वरूप मे सेवा करते है इसलिए उनसे हम कुछ लेने या माँगते नहीं है ! ★पण्डित श्री मदनमोहन जी शर्मा, श्रीमद्भागवत कथाकार, नाथद्वारा ने श्रीवल्लभाचार्य जी के जन्म, उनके परिवार के बारे मे विस्तार से बताया ! उन्होंने एक उदाहरण के माध्यम से बताया कि सूरदास जी श्रीनाथजी को कैसे बालस्वरूप मे मानते थे, यह ही पुष्टि मार्ग है ! ★अन्त मे श्री श्याम प्रकाश देवपुरा, प्रधानमंत्री साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा ने भगवती प्रसाद जी देवपुरा के द्वारा लिखित पुष्टि मार्ग के साहित्य व अष्ट सखा पर लिखे ग्रन्थों की जानकारी दी व धन्यवाद ज्ञापित किया ! सीए. दिनेश सनाढ्य - Chartered Accountant, Social Activist, Political Analyst, Spiritual Thinker, Founder of Life Management - 9414170270 साहित्य मण्डल, श्रीनाथद्वारा
















 

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