Saturday 12 June 2021

★20 सुनो ! 20 मानो ! 20 बनो !★ ★श्रीकृष्ण की सुनो ! श्रीनाथजी की मानो !★ ■बृजवासियों कुछ सोचो ! समझो ! उठो ! धर्म युद्ध करो ! श्रीनाथजी की आज्ञा की पालना करो ! सखा धर्म निभाओ !■ (१)श्रीकृष्ण ने अपने सखा अर्जुन को "अधर्म / अन्याय के विरुद्ध" युद्ध करने के लिए कहा ! (२)श्रीकृष्ण ने अपने सखा अर्जुन से कहा कि "अन्याय का साथ देने यदि अपने बड़े, परिजन या गुरु" आते है तो भी पीछे नहीं हटना है ! (३)श्रीनाथजी ने श्री सद्दू पाण्डे जी (सनाढ्य) को निज सेवा व बृजवासियों को सेवा व सुरक्षा की "साक्षात् आज्ञा" दी ! अतः हमें श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा की "पालना करनी ही चाहिए" ! (४)श्रीनाथजी ने बृजवासियों को साक्षात् आज्ञा दी, किन्तु वल्लभ कुल द्वारा उक्त "साक्षात् आज्ञा के विपरीत निर्णय" लेकर बृजवासियों को निज सेवा व सुरक्षा से दूर करना, सरासर गलत व अन्याय है ! हमें इस "अन्याय के विरुद्ध श्रीकृष्ण के अनुसार युद्ध" करना चाहिए ! (५)श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा की पालना नहीं करना, "श्रीनाथजी की अवमानना" है व श्रीकृष्ण के कहने के अनुसार अन्याय के विरुद्ध युद्ध नहीं करना, "श्रीकृष्ण का अपमान" है ! ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ★श्रीकृष्ण की सुनो ! श्रीनाथजी की मानो !★ ■बृजवासियों कुछ सोचो ! समझो ! उठो ! धर्म युद्ध करो ! श्रीनाथजी की आज्ञा की पालना करो ! सखा धर्म निभाओ !■ ■आओ ! नाथद्वारा मन्दिर को बचाओ ! घर मे थोडा विरोध करे, ताकि बड़े नुकसान से बचे !■ (१)श्रीनाथजी के द्वारा बृजवासियों को की गई साक्षात् आज्ञा को नहीं मानना "अन्याय/अधर्म" है । यदि इसके विरुद्ध आवाज नहीं उठाई, तो हमारे "धर्म व मन्दिर को नुकसान" होगा । यह शास्वत सत्य है । (२)जैसे हमने 70 - 80 वर्षों से उक्त अन्याय/अधर्म के लिए "आवाज नहीं उठाई", तो मन्दिर को नुकसान होने लगा । तब मन्दिर की सम्पत्तियों को बचाने के लिए सरकार को 1959 मे "नाथद्वारा मन्दिर मण्डल का गठन" करना पडा । (३)नाथद्वारा मन्दिर मण्डल के गठन के बाद भी श्रीनाथजी की "साक्षात् आज्ञा की पालना नहीं" होने से मन्दिर को नुकसान/लूट मे कमी होने के बजाय "नुकसान/लूट के साथ अनावश्यक खर्चा भी बढ़ा" है । (४)नाथद्वारा मन्दिर को जो नुकसान/लूट हो रही है उसका मुख्य कारण "श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा नहीं मानते" हुए "निरंकुश राजा" बनना तथा अपने कृत्यों को छुपाने के लिए अपने जैसे व्यक्तियों को आसपास व बोर्ड मे स्थान देना ! (५)श्रीनाथजी के सेवक को सेवक बनकर ही रहना चाहिए, न कि "राजा बनने का दुस्साहस" करना चाहिए । बृजवासियों को भी "मूक सेवक" बनने के बजाय "सजग व केवल श्रीनाथजी के प्रति समर्पित सेवक" बनना चाहिए । ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ★श्रीकृष्ण की सुनो ! श्रीनाथजी की मानो !★ ■बृजवासियों कुछ सोचो ! समझो ! उठो ! धर्म युद्ध करो ! श्रीनाथजी की आज्ञा की पालना करो ! सखा धर्म निभाओ !■ ■आओ ! नाथद्वारा मन्दिर को बचाओ ! घर मे थोडा विरोध करे, ताकि बड़े नुकसान से बचे !■ (१)श्रीनाथजी के द्वारा सबसे पहले श्रीसद्दू पाण्डे जी व बृजवासियों को निज सेवा, सुरक्षा व साथ मे खेलने की साक्षात् आज्ञा दी । उसके 97 वर्षो के बाद श्रीवल्लभाचार्य जी को सेवा क्रम निर्धारित करने की साक्षात् आज्ञा दी । इस प्रकार बृजवासियों से "सखा भाव से सेवा" व वल्लभ को "सेवक भाव से सेवा" करने की आज्ञा दी । (२)किन्तु श्रीवल्लभाचार्य जी के बाद उनके वंशजों ने "सेवक भाव से सेवा" करने के स्थान पर "स्वामी भाव से सेवा" करने लगे । और इस कारण वल्लभ कुल द्वारा बृजवासी से "सखा भाव से सेवा" लेने के स्थान पर उनसे "नौकर भाव से सेवा" लेने लगे, जो गलत व अन्यायपूर्ण है । (३)इस प्रकार वल्लभ कुल ने पिछले 70 - 80 वर्षो मे तो "सेवाओ की सभी सीमाओं" को तोड़ते हुए "श्रीनाथजी व उनकी सम्पत्तियों पर अपना पैतृक अधिकार" समझने लगे, जो गलत व अन्यायपूर्ण है । (४)इस प्रकार "वल्लभ कुल" द्वारा श्रीनाथजी की "साक्षात् आज्ञा का उल्लंघन" किया गया । जबकि बृजवासियों ने वल्लभ कुल का सम्मान करते हुए, इस अन्याय पर भी चुप रहे । अब बृजवासियों को यह समझना होगा कि "श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा ही सर्वोपरि" है । जिसे बृजवासियों व वल्लभ कुल दोनों को मानना चाहिए । (५)उक्त कारणो से मन्दिर को नुकसान हो रहा है, इसलिए बृजवासियों को श्रीकृष्ण के सन्देश को मानते हुए "मन्दिर व श्रीनाथजी की रक्षा के लिए अन्याय/अधर्म के विरुद्ध युद्ध" करना होगा । ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ★श्रीकृष्ण की सुनो ! श्रीनाथजी की मानो !★ ■बृजवासियों कुछ सोचो ! समझो ! उठो ! धर्म युद्ध करो ! श्रीनाथजी की आज्ञा की पालना करो ! सखा धर्म निभाओ !■ ■आओ ! नाथद्वारा मन्दिर को बचाओ ! घर मे थोडा विरोध करे, ताकि बड़े नुकसान से बचे !■ (१)श्रीनाथजी ने सन् 1478 को श्रीसद्दू पाण्डे जी (सनाढ्य) को "साक्षात् आज्ञा" व सन् 1492 को श्रीवल्लभाचार्य जी को "स्वप्न आज्ञा" दी ! उसके बाद बृजवासियों को "साक्षात् आज्ञा" दी ! इसलिए हमें उनकी उक्त सभी "साक्षात् आज्ञाओ" के अनुसार ही कार्य करना चाहिए तथा वह ही "हमारे लिए सर्वोपरि" है ! (२)बाद मे श्रीवल्लभाचार्य जी के वंशजों ने अपनी आज्ञा जोड़कर "सेवा पद्धति व पुष्टि मार्ग" को चलाया, जो सही था ! किन्तु तदुपरांत कुछ वल्लभ बालकों ने "अपने स्वार्थ व अपने को सर्वश्रेष्ठ बनाने" के चक्कर मे ऐसी - ऐसी "स्व आज्ञा" दे दी, जो "श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा" के विपरीत है ! यही गलत है, इसका ही विरोध है, इसी के लिए यह "धर्म युद्ध" है ! (३)वल्लभ कुल की "स्व आज्ञा" यह है कि "बृजवासियों के अधिकारो मे कमी", अपने आपको सर्वश्रेष्ठ मानना, श्रीनाथजी की "सम्पत्तियों को अपनी सम्पत्ति बनाना", मन्दिर को व्यापार की तरह चलाना, मन्दिर मे खास नियुक्ति अपने स्वार्थ के अनुरूप करना, बोर्ड मैम्बर्स का अपने अनुरूप चुनना व मन्दिर मे अनाचार, अव्यवस्था, परम्पराओं के टूटने पर चुप रहना ! इसकी सूची बहुत लम्बी है, यहाँ कुछ ही है ! (४)अभी भी समय है कि नाथद्वारा मठाधीश श्रीनाथजी के चरणों मे "अपने अहम् व स्वार्थ" को समर्पित करके श्रीनाथजी की "साक्षात् आज्ञानुसार कार्य" करे ! बृजवासियों को श्रीनाथजी के द्वारा दिये "सेवा अधिकार" मूल स्वरूप मे पुनः दे व "स्वयं श्रीवल्लभाचार्य जी बने" ! (५)यदि "वल्लभ कुल ऐसा नहीं करता" है तो श्रीनाथजी सर्वशक्तिमान है, वह अपनी आज्ञा की पालना कराने मे सक्षम है ! ध्यान रहे ! श्रीकृष्ण "धर्म की रक्षा" स्वयं भी करते है और "अन्य के माध्यम से भी" करते है ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी (केवल श्रीनाथजी के लिए समर्पित सेवक) #07-08-09-10/06/2021 #dineshapna

















 

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