Saturday 19 June 2021

नाथद्वारा श्रीनाथजी मन्दिर की 5 चुनौतीयाँ :- (५)श्रीनाथजी की साक्षात् आज्ञा की पालना नहीं ! (i)श्रीनाथजी की "साक्षात् आज्ञा" मनुष्य के बनाये किसी भी विधान/नियम/कानून व वल्लभ कुल की आज्ञा से ऊपर है ! अतः उसका अक्षरश: पालन होना चाहिए तथा उसमे परिवर्तन या उसके विपरीत कोई भी आज्ञा मान्य नहीं है ! (ii)श्रीनाथजी ने सबसे पहले सन् 1478 (वि.सं.१५३५) को श्रीसद्दू पाण्डे जी (सनाढ्य) को "दूध भोग व निजसेवा" की "साक्षात् आज्ञा" दी ! (iii)श्रीनाथजी ने उसके बाद धर्मदास बृजवासी व अन्य बृजवासियों को "गाय दान, खेलने, सुरक्षा व अन्य सेवा कार्य" करने की "साक्षात् आज्ञा" दी ! (iv)श्रीनाथजी ने सन् 1492 (वि.सं.१५४९) "स्वप्न आज्ञा" श्रीवल्लभाचार्य जी को दी कि श्रीगिरिराज पधारकर "सेवा प्रकार" प्रकट करे ! तदुपरान्त श्रीवल्लभाचार्य जी सन् 1506 (वि.सं.१५६३) श्रीसद्दू पाण्डे जी के घर पधारे, तब दूसरे दिन श्रीसद्दू पाण्डे जी व बृजवासियों ने श्रीनाथजी से उनका मिलन कराया ! (v)इस प्रकार श्रीनाथजी ने "साक्षात् आज्ञा" दी कि बृजवासी "सखा भाव से सेवा" व श्री वल्लभ "सेवक भाव से सेवा" करें ! किन्तु श्रीवल्लभाचार्य जी के बाद उनके वंशजों ने "सेवक भाव से सेवा" करने के स्थान पर "स्वामी भाव से सेवा" करने लगे और इस कारण वल्लभ कुल द्वारा बृजवासी से "सखा भाव से सेवा" लेने के स्थान पर उनसे "नौकर भाव से सेवा" लेने लगे, जो गलत व अन्यायपूर्ण है ! सीए. दिनेश सनाढ्य - एक बृजवासी #20/06/2021 #dineshapna







 

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